Defence budget of developing India

 

रक्षा बजट बढ़ाना प्राथमिकता में न हो तो ही अच्‍छा

संजीव खुदशाह  

भारत में बजट का इतिहास करीब डेढ़ सौ साल पुराना है । इतने वर्षों में बजट पेश किए जाने के समय से लेकर तौर तरीकों में बड़े स्तर पर बदलाव हुऐ है। कई नई परंपराएं अस्तित्व में आई और कई प्रतिमान स्थापित हुए। भारत में पहला बजट ब्रिटिश शासन के दौरान 1860 में पेश किया गया। पहले रेल बजट अलग से पेश किया जाता था जिसको लेकर लोगों में उत्सुकता रहती थी कि इस बजट में रेल यात्रियों और उनके कर्मचारीयों को नया क्या मिलने वाला है । 2017 के बाद से रेल बजट आम बजट के साथ ही पेश होता है। इसी प्रकार रक्षा बजट भी कभी अलग से पेश नहीं हुआ है। इसे आम बजट के साथ में प्रस्तुत करने की परिपाटी रही है। रक्षा बजट का अध्‍ययन करने से यह पता चलता है कि सरकार देश की रक्षा सुरक्षा में कितना खर्च करने जा रही है और किन-किन क्षेत्रों में खर्च करना सरकार की प्राथमिकता है।

आम बजट में बहुत सारे छोटे-छोटे विभाग होते हैं। अक्सर यह मंत्रालय के रूप में काम करते हैं और उनके लिए अलग से बजट का प्रावधान होता है। जिसे जोड़कर आम बजट बनाया जाता है। जैसे कृषि, खाद्य, टेक्नोलॉजी, रेल, सैन्य बजट आदि आदि। इसी प्रकार किन स्रोतों से सरकार को आय होगी उन स्रोतों का खुलासा भी आम बजट में किया जाता है। देश की सामरिक शक्ति के विकास के साथ-साथ रक्षा बजट का महत्व बढ़ता जा रहा है। वैसे भी देश की सुरक्षा और शांति व्यवस्था के लिए रक्षा बजट की आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि भारत की सेना युद्ध के दौरान न केवल देश की रक्षा करती है बल्कि शांति काल के दौरान आपदा से भी बचाती है। इसलिए रक्षा बजट को केवल युद्ध के दृष्टिकोण से देखना सही नहीं होगा। 

इस बार रक्षा बजट में क्या है

केंद्रीय बजट 2024 25 में रक्षा मंत्रालय को 6.22 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए जो सब मंत्रालय से ज्यादा यह राशि वित्त वर्ष 2023 24 की तुलना में 4.79 प्रतिशत ज्यादा है। पूंजी के अधिग्रहण के लिए 1.72 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए। जीविका और परिचालक तत्परता के लिए 92,088 करोड़ रुपए दिए गए। गौरतलब है की रक्षा पेंशन बजट 1.41 लाख करोड़ रुपए दिया गया। इसी प्रकार ECHS के लिए 6968 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए। सीमा पर सड़कों के विकास के लिए 6500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए और तटीय सुरक्षा के लिए 7651 करोड़ रुपए आवंटित हुए। इस बजट में सरकार का दावा है कि केंद्रीय सशस्त्र बलों को आधुनिक किया जाएगा। जिसमें घातक हथियार, लड़ाकू विमान, जहाज, पनडुब्बिया, प्लेटफार्म, मानव रहित हवाई वाहन, ड्रोन, विशेषज्ञ, वाहन आदि से लैस किया जाएगा। सरकार द्वारा जारी प्रेस रिलीज में यह दावा किया गया है कि भूतपूर्व सैनिकों के स्वास्थ्य और उनकी सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए प्रतिबद्ध है। इसलिए 2024-25 के रक्षा बजट (सैनिक अंश दाई स्वास्थ्य योजना) में 28% की वृद्धि की गई। रक्षा अनुसंधान और विकास के लिए विशेष बजट का प्रावधान किया गया है ताकि आधुनिक तकनीक विकसित करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके। इसी प्रकार रक्षा पेंशन के लिए कुल बजट आवंटन 1,41,205 करोड़ रुपए है जो पिछले वर्ष के दौरान दिए गए आवंटन से 2.17% ज्यादा है। यह पेंशन प्रशासन प्रणाली या स्पर्श और अन्य पेंशन वितरण प्राधिकरणों के जरिए लगभग 32 लाख पेंशन भोगियों की मासिक पेंशन में खर्च होगा ।

पाकिस्तान का रक्षा बजट 

पाकिस्तान ने 2024-25 के बजट में डिफेंस का खर्च बढ़ाया था। पाक सरकार ने अपने रक्षा क्षेत्र के लिए 2122 अब पाकिस्तानी रुपए आवंटित किए थे। इसकी तुलना अगर भारतीय रुपए से की जाए तो करीब 59.42 हजार करोड़ रुपए के बराबर होते हैं। जो भारत की रक्षा बजट के मुकाबले काफी कम है। चीन और भारत के मुकाबले  भी पाकिस्तान का रक्षा बजट काफी कम है। 2024 में पाकिस्तान का रक्षा बजट करीब 10.3 अरब डालर था जो भारत और चीन के मुकाबले कहीं नहीं टिकता है। जबकि 2024 में पाकिस्तान ने अपने रक्षा बजट में 17.5% की बढ़ोतरी की थी। 

चीन का रक्षा बजट 

चीन ने रक्षा बजट 236 अरब डॉलर रखा है। अगर रक्षा अनुसंधान और विकास अन्य उद्योग संबंधी पहलों में कॉरपोरेट फंडिंग को जोड़ा जाता है तो यह चीन के वार्षिक बजट से काफी बढ़ जाता है। इसीलिए कुछ एक्सपर्ट्स का तर्क है कि चीन का रक्षा खर्च 711 अरब डॉलर के बराबर है जो इस साल अमेरिका के सैन्य खर्च के 875 बिलियन डॉलर के स्तर के करीब है। यानी चीन अपनी सैन्य बजट में काफी खर्च कर रहा है। यदि भौगोलिक क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाए तो भी चीन सैन्य बजट पर निवेश में भारत से कहीं आगे है। अमेरिका, चीन, सोवियत रूस और दूसरे बड़े देशों के रक्षा बजट पर नजर डालें तो या महसूस होता है कि रक्षा बजट पर खर्च करने की होड़ मची हुई है। आखिर क्यों इतना ज्यादा रक्षा पर खर्च किए जा रहे हैं, यह प्रश्न खड़ा होता है। ऐसा करने में भारत भी अपने आप को पीछे नहीं रखना चाहता। जबकि मूलभूत जरूरतों पर खर्च करना एक विकासशील देश की प्राथमिकता होनी चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य, खाद्यान्न, कृषि पर और ज्यादा खर्च किए जाने की जरूरत है। हालांकि शिक्षा बजट पर इस साल 6.65% की मामूली वृद्धि की गई है। लेकिन भारत की स्कूल की व्यवस्था और शिक्षा की स्थिति को देखते हुए ना काफी है। आज भी भारत के विश्वविद्यालय विश्व के टॉप के 100 विश्वविद्यालय में शामिल नहीं है। शिक्षा पर विशेष खर्च किए जाने की जरूरत थी।

आज के समय में विश्व का रक्षा बजट पूंजीवाद का गुलाम हो चुका है। कई देश के आय का साधन केवल अस्त्र-शस्त्र बिक्री पर ही आधारित है। यह बड़े देश प्रयास करते हैं कि विकासशील देशों को यह विध्वंसक शस्त्र बिक्री करें और युद्ध को प्रेरित करें। सरकार के नकाब में आयुध फैक्ट्री के मालिक रक्षा डील करते हैं। और यह कोशिश करते हैं कि उनके अस्त्र-शस्त्र को किसी न किसी प्रकार से खपाया जाए। ताकि बड़ा मुनाफा कमाया जा सके। हालांकि भारत अभी अस्त्र-शस्त्र बेचने की स्थिति में नहीं है। बावजूद इसके यह दावा किया जा रहा है कि इस बजट के बाद में कई देशों को आधुनिक अस्त्र-शस्त्र बेचा जाएगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पड़ोसी देशों को देखते हुए भारत के रक्षा बजट को बढ़ाया जाए। लेकिन यह हमारी प्राथमिकता में नहीं होनी चाहिए। हमारा देश अभी भी विकासशील देशों की गिनती में है। यानी विकसित नहीं हुआ है । ऐसी स्थिति में हमारे देश को विकसित बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए और यदि देश को विकसित बनाना है तो उसके स्वास्थ्य, शिक्षा और खाद्यान्न का बजट बढ़ाना होगा। नई टेक्नोलॉजी को प्रेरित करना होगा। युवा शक्ति का भरपूर उपयोग करना होगा। तब कहीं जाकर भारत विकसित देश बन पाएगा।

 Defence budget

Publish On Rastriya Sahara Dated 8 Feb 2025


 

सिरपुर चलो, संविधान जानों हीरक जयंती 2025

सिरपुर महोत्‍सव के लिए संकल्‍प

रायपुर दिनांक 12.01.2025 को डॉ अंबेडकर वेल्फेयर सोसाइटी की आठवीं बैठक श्री दिलीप वासनीकर की अध्यक्षता में संपन्न हुई, जिसमें प्रमुख रूप से उपाध्यक्ष श्री महादेव कावरे, श्री के एन कांडे एवं श्री सुनील रामटेके, श्री सारंग हुमने, महासचिव, श्री कमलेश बंसोड, कोषाध्यक्ष श्री मदन मेश्राम, महेंद्र बागड़े उपस्थिति थे। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि कोचिंग के लिए मकान किराए अथवा खरीदने का प्रस्ताव, समिति  की गतिविधि एजुकेशन, स्वस्थ्य एवं अन्य गतिविधि पर कार्य करने, कचना में समिति के लिए कलेक्टर से भूमि आवंटन। 

समिति के सदस्यों की संख्या बढ़ाने, संविधान की प्रति विधायक गण को देने, समाज के गरीब वंचित बच्चों को समिति द्वारा यथा संभव मदद करने, डिजिटल माध्यम से सोसाइटी का प्रचार, सिरपुर में चलो संविधान की ओर हीरक जयंती 2025 कार्यक्रम का विशाल आयोजन करने तथा इसके लिए एक अलग समिति का गठन करने , समिति की आडिट रिपोर्ट, नया रायपुर में बुद्ध समाज के लिए भूमि आवंटन करने आदि महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई।

सोसाइटी के महासचिव कमलेश बंसोड़ की रिर्पोट

Even the lockers of banks are not safe, where should the citizens go

 बैंकों के लॉकर भी सुरक्षित नहीं, नागरिक जाए तो कहां जाएं

संजीव खुदशाह 

बैंक और लाकर की सुविधा शुरू होने से पहले लोग अपने बहुमूल्य रुपए पैसे और कागजात गुप्त रूप से रखी तिजोरी में रखा करते थे। प्राचीन काल में लोग घर में ही किसी गुप्त स्थान पर गड्ढे खोदकर किसी मटकी या बर्तन में बहुमूल्य चीज़े रखा करते थे। लेकिन इसमें भय यह होता था कि यदि घर के जिम्मेदार व्यक्ति की असमय मौत हो जाती तो वह गुप्त स्थान में रखी चीजे उनके परिवारजनों को नहीं मिल पाती। या कई बार ऐसा होता की चोर और डकैत उन गुप्त स्थान से भी चोरी कर लिया करते लूट की वारदात हो जाती। यानी घर में रखी चीजे सुरक्षित नहीं मानी जाती है। 


इस कारण लोगों ने अपने रूपए पैसे बैंक में रखना शुरू किये। बहुमूल्य वस्तुएं, गहने और कागजात के लिए बैंकों में लाकर की सुविधा शुरू हुई। तो लोगों ने इसका लाभ लेना शुरू किया। यह सोचकर की बैंकों में 24 घंटे सुरक्षा होती है। उनकी चीजे वहां सुरक्षित होगी। लेकिन विगत दिनों घट रही घटनाओं से यह सुरक्षा की गारंटी भी खत्म होती दिखती है। एक आम नागरिक घर में चोरी डकैती न हो जाए यह सोचकर अपने बहुमूल्य कागजात और जेवर रूपए पैसे बैंकों के लॉकर में रखते हैं। ताकि वहां पर वे सुरक्षित रहें। लेकिन कई बार ऐसी घटना सामने आती है कि चोर बैंक की तिजोरी को न निशाना बनाकर उसके लाकर को निशाना बनाते हैं। और आम जनता, बैंकों के ग्राहक हाथ मलते रह जाते हैं।

पिछले दिनों 17 दिसंबर को लखनऊ के ओवरसीज बैंक में दीवार काटकर चोरों ने 90 में से 42 लॉकर तोड़कर करोड़ों रुपए और जेवर पार कर दिए। बताया जा रहा है की दिन में बैंक के आसपास के इलाके की रेकी की, इस दौरान बैंक में आसानी से दाखिल होने के रास्ते की तलाश की, आसपास कहां-कहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं इसका पता लगाया। चार दिन एक-एक चीज की बारीकी से रेकी के बाद गिरोह ने तय किया कि शनिवार की रात वारदात को अंजाम दिया जाएगा। चोरों ने मुंह में कपड़ा बांधा हुआ था तथा हेलमेट लगाए हुए थे ताकि सीसीटीवी से उनकी पहचान न हो सके। हालांकि लखनऊ के इस बैंक के मामले में चोर पकड़े गए तथा चोरी के सामान भी बरामद कर लिए गए। यह स्थानीय पुलिस की सक्रियता के कारण संभव हो पाया। खबर यह भी है कि एनकाउंटर में दो चोर मारे गए।  घटना के दूसरे तीसरे दिन बैंक लॉकर के ग्राहक घटनास्थल पर पहुंचे और रोते बिलखते हुए दिखे। किसी ने बताया कि उसने अपनी बेटी की शादी के लिए गहने वहां रखे थे । तो किसी ने बताया कि रिटायरमेंट के बाद अपने जीवन की सुरक्षा के लिए सारे बहुमूल्य पेपर और पैसे वहां रखे थे। किसी ने बताया कि उनकी प्रॉपर्टी के कागजात वहां पर थे। लेकिन अब वह वहां नहीं है । उनके लॉकर टूटे हुए थे। चोरों से बरामद सामान में भी ग्राहकों को अपने सामान की पहचान और दावा करने में कई अड़चनों का सामना करना पड़ेगा। जब तक उनके पास पूरा वैद्य दस्तावेज नहीं होगा। तब तक उन्हें उनके गहने जेवर रूपए पैसे प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

इस प्रकरण में बैंक अफसर यह दावा कर रहे हैं और अपनी सफाई दे रहे हैं कि बैंक की तरफ से सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई। रिजर्व बैंक आफ इंडिया के नियमों के मुताबिक पूरी व्यवस्था थी। लॉकर में डबल लॉक रहता है। इसकी एक चाबी बैंक के पास और दूसरी ग्राहक के पास होती है। ऑडिट विभाग समय-समय पर इमारत की सुरक्षा की पड़ताल करता है। ऑडिट में बैंक के भवन को सुरक्षित बताया गया। यह भी बताया गया कि सभी बैंक आरबीआई के नियमों के तहत ही संचालित होते हैं। किसी भी बैंक में रात को गार्ड की तैनाती करने की व्यवस्था नहीं है। रात कि सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस और गश्ती दल की होती है।

गौरतलब है कि आधुनिक सुरक्षा प्रणाली एवं तकनीक के बावजूद चोर किस तरह बैंक में दाखिल हुए और 42 लाकरों को उन्होंने तोड़ा। लेकिन बैंक के मैनेजर तक को पता नहीं चला। चूंकि बैंक में स्वचालित अलार्म की व्यवस्था होती है। इस समय अलार्म क्यों नहीं बजे। यदि बजे तो चोरों तक अधिकारी क्यों नहीं पहुंच पाए। यह सारी चीज प्रश्न वाचक चिन्ह खड़ा करती है। खैर ऐसी स्थिति में बैंकों के ग्राहक अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं। क्योंकि उनके सामने यह प्रश्न खड़ा हो जाता है कि जब बैंक भी सुरक्षित नहीं है तो वह अपने बहुमूल्य सामान को रखे तो कहां रखें। बैंक के लॉकर की शर्तों में इस बात का जिक्र होता है की चोरी होने की स्थिति में बैंक की जिम्मेदारी नहीं होगी। कई बैंक लॉकर का बीमा करवाते हैं ऐसी स्थिति में भी नुकसान ग्राहक को होता है। क्योंकि बहुमूल्य वस्तुएं और जरूरी कागजात वापस नहीं मिल पाते हैं।

काश ऐसे कड़े‍ नियम बनाए जाते जिससे बैंक अफसरों की जिम्मेदारी तय होती और बैंक लॉकरों के प्रति लोगो का विश्वास कम होने के बजाए बढ़ता। उन खामियों को दूर किया जाना चाहिए जिसके सहारे ऐसे वारदात को अंजाम दिया जाता है।

राष्‍ट्रीय सहारा दिनांक 30/12/2024 को प्रकाशित

What is Digital Arrest ?

डिजिटल अरेस्ट क्या है?

संजीव खुदशाह

आज के आधुनिक दौर में नई-नई तकनीक और आइडिया का उपयोग करके ठग, लोगों को लूट रहे हैं। इन्‍ही नई तकनीक से आनलाईन डराकर ठगी करने को डिजिटल अरेस्‍ट कहते है। डिजिटल अरेस्ट बिल्कुल नया शब्द है। बहुत सारे लोग डिजिटल अरेस्ट शब्द से वाकिफ नहीं है। लेकिन आए दिन समाचार पत्रों से लेकर सोशल मीडिया एवं अन्य माध्यमों से यह जानकारी सामने आ रही है कि लोग किस प्रकार डिजिटल अरेस्ट हो रहे हैं। और अपनी जमा पूंजी से हाथ धो रहे हैं। यह एक प्रकार से ब्लैकमेलिंग का धंधा है जो कि सामने आए बिना, गुमराह करके आम नागरिक से पैसे लूटते है। पैसे लूटने के दौरान वह किसी न किसी चीज का डर दिखाते है और पैसे लूटने की एक ही तकनीक अपनाते हैं वह है ऑनलाइन मनी ट्रांसफर। कई बार व्‍यक्ति इतना डर जाता है कि डर के मारे पैसे ठग के बताये अकाउंट में जमा करता है। 

डिजिटल अरेस्ट में किसी शख्स को ऑनलाइन माध्यम से डराया जाता है कि वह सरकारी एजेंसी के माध्यम से अरेस्ट हो गया है। उसे पेनल्टी या जुर्माना देना होगा। डिजिटल अरेस्ट एक ऐसा शब्द है जो कानून में नहीं है लेकिन इस तरह के बढ़ते अपराध की वजह से इसका उद्भव हुआ है। पिछले 3 महीने के दौरान दिल्ली एनसीआर में डिजिटर अरेस्‍ट के 600 मामले ऐसे आए हैं जिनमें 400 करोड़ की धोखाधड़ी हुई है। इसके अलावा कई सारे अनरिपोर्टेड मामले हैं। कई ऐसे मामले भी सामने आते हैं जो की सफल नहीं होते हैं। कई मामलों में पीड़ित डर या शर्म की वजह से अपने ठगे जाने का खुलासा नहीं करता है। डिजिटल अरेस्ट के संगठित गिरोह का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है। इस वजह से डिजिटल अरेस्ट के मामले बढ़ते जा रहे हैं। 

डिजिटल अरेस्ट कितने प्रकार के होते हैं ?

यदि डिजिटल अरेस्ट के तरीकों पर जाएं तो करीब 5 या 6 प्रकार के तरीके होते हैं जिसके आधार पर आपको डिजिटल अरेस्ट किया जा सकता है।

1. कुरियर के नाम पर - इसमें कहा जाता है कि आपने जो कुरियर या पार्सल मंगाया था उसमें गैर कानूनी चीज जैसे हथियार या ड्रग्स आदि है। आप फस गए हो आपको बचाने के लिए हमें आपके बैंक खाते के पासवर्ड देने होंगे या फिर इतने पैसे ट्रांसफर करने होंगे।

2. बैंक खाते पर ट्रांजैक्शन (मनी लांड्रिंग) -इस तरीके में कहा जाता है कि आपने मनी लॉन्ड्रिंग की है आपके खाते में बड़े अमाउंट के बैंक ट्रांजैक्शन दिखा रहे हैं। आप फस जाओगे। आपके खाते में बैंक ट्रांजैक्शन नहीं होने के बावजूद आपको यकीन दिलाया जाता है कि बैंक ट्रांजैक्शन बड़े अमाउंट का हुआ है और आपके ऊपर कार्यवाही हो सकती है। बचने के लिए पैसे मांगे जाते हैं।

3. हवाला के नाम पर - यह कहा जाता है कि आपने हवाला के नाम पर पैसे लिए हैं। अब आप फस गए हो आपके ऊपर कानूनी कार्रवाई होगी। कार्रवाई ख़त्म करने के लिए आपको पैसे देने होंगे।

4. धमकी / लालच देकर - आपके निकट के रिश्तेदार अथवा आपके बच्चों पर कानूनी कार्रवाई की जा रही है। यह कहकर आपको धमकी दी जाती है और छुड़वाने का लालच देकर पैसे मांगे जाते हैं.

5. इनकम टैक्स के नाम पर - इसमें यह कहा जाता है कि वह इनकम टैक्स या इ डी डिपार्टमेंट से हैं बाकायदा उनकी ड्रेस भी पहने होते हैं और इनकम टैक्स का छापा आपके घर में मारेंगे कहकर कार्रवाई से बचने के लिए पैसे मांगे जाते हैं।

6. अश्लील वीडियो का आरोप – यह कहा जाता है कि आपने डी जी पी की बेटी को अश्लील मैसेज किया है। आपके ऊपर कार्यवाही होगी, गिरफ्तार करके जेल भेजा जायेगा। मामला रफा दफा करने के लिए पैसे देने होगे।

यदि आपके खाते में पैसे नहीं है फिर भी आप डिजिटल अरेस्ट हो सकते हैं। 

कई लोग यह समझते हैं कि उनके खाते में पैसे नहीं है या बहुत कम पैसे हैं तो वह डिजिटल अरेस्ट होने से बच सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। कई मामले ऐसे सामने आए हैं। जिसमें डिजिटल अरेस्ट किया गया है और पीड़ित को उनके पैन कार्ड, बैंक के पासवर्ड आदि के आधार पर ऑनलाइन लोन लेकर उनके खाते से करोड़ों रुपए उड़ाए हैं। इस लोन के पैसे पीड़ित को जमा करना पड़ता हैं ।

डिजिटल अरेस्ट की शुरुआत कैसे होती है ?

पूरे स्कैम की शुरुआत एक सरल मैसेज या ईमेल अथवा व्हाट्सएप के संदेश से होती है। जिसमें दावा किया जाता है कि पीड़ित व्यक्ति किसी तरह की आपराधिक गतिविधि में शामिल है। इसके बाद उसे वीडियो या फोन कॉल करके कुछ खास प्रक्रिया से गुजरने के लिए दबाव डाला जाता है और पुष्टि के लिए कई तरह की जानकारी मांगी जाती है। ऐसे कॉल करने वाले खुद को पुलिस, नारकोटिक्स, साइबर सेल, इनकम टैक्स, सीबीआई या ई डी के अधिकारी होने का दावा करते हैं। वह बाकायदा किसी ऑफिस से यूनिफॉर्म में कॉल करते हैं। ताकि आपको शक न हो।

डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचे ?

अपरिचित कॉल से बचें, किसी संदिग्ध व्यक्ति को अपनी निजी जानकारी न दे। सोशल मीडिया में निजी जिन्दगी की जानकारी साझा करने से बचे । यदि आपको ऑनलाइन डराया धमकाया जाता है तो इसकी जानकारी पुलिस को दें। कोई भी गवर्नमेंट का अधिकारी ऑनलाइन या वीडियो कॉलिंग करके किसी भी आम जनता को नहीं धमकाता है। न ही उसे पैसे मांगता है। हर हालत में आधार नंबर, पैन कार्ड नंबर, बैंक अकाउंट, क्रेडिट कार्ड की जानकारी और पासवर्ड किसी को न दें। यदि कोई व्यक्ति यह सब जानकारी मांग रहा है। इसका मतलब है कि वह आपके साथ ठगी करने जा रहा है। क्योंकि बैंक के कर्मचारी अधिकारी यह सब जानकारी फोन पर नहीं मांगते है। इस तरह आप अपने आपको डिजिटल अरेस्‍ट होने से बचा सकते है।

 



Dr Ambedkar is a Passion Not Fashion

 

डॉ आंबेडकर फैशन नहीं पैशन है

योगेश प्रसाद 

डॉ आंबेडकर के प्रति आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी की नफरत कोई नई नहीं है। याद कीजिए आज से कई साल  पहले अटल बिहारी वाजपेई की सरकार के दौरान ऐसा ही एक मामला सामने आया। भाजपा नेता अरुण सौरी ने एक किताब लिखी। जिसका नाम था झूठे भगवान की पूजा "worshipping false God" Ambedkar and the fact which have been crashed यहां पर भगवान अंबेडकर को बताया गया। किताब के भीतर अंबेडकर के बारे में कितनी और कैसी बातें कही गई होगी, इसका आप अंदाजा किताब के शीर्षक से ही लगा सकते हैं। तब भी काफी बवाल मचा लेकिन वह बवाल साहित्यिक हलकों तक ही सीमित रहा। 

वोट के लालच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तमाम भाजपा के नेता यहां तक आरएसएस के प्रमुख भी बे मन से ही सही डॉक्टर अंबेडकर के सामने अपने शीश को झुकाते हैं। लेकिन उनके प्रति नफरत बीच-बीच में बाहर आ जाती है। हिंदू कोड बिल डॉ आंबेडकर के द्वारा पेश किए जाने के दौरान आरएसएस ने डॉक्टर अंबेडकर के पुतले तक जलाएं और खुलकर विरोध किया। जो इतिहास के पन्नों में दर्ज है। 

इसी बीच अमित शाह के द्वारा भरी संसद में डॉ अंबेडकर को नीचा दिखाने की जो कोशिश की गई है। यह निंदा करने योग्य है। भारत की शोषित पीड़ित 85% जनता डॉ अंबेडकर को बाबा साहब कहती है। बाबा का मतलब होता है "पिता"। मराठी में पिता को बाबा कहते हैं। बाबा साहब के प्रति इस शोषित पीड़ित जनता के मोहब्बत का आप अंदाजा लगा सकते हैं की बाबा साहब को मानना और उन्हें मोहब्बत करना उनके लिए कोई फैशन नहीं बल्कि एक पैशन है। क्योंकि यह पीड़ित जनता यह मानती है कि आज जो वह बराबरी, शिक्षा, पानी का अधिकार उन्हें मिला है. वह सिर्फ बाबा साहब के संघर्षों के परिणाम से मिला है। वैसे बाबा साहब देश में ही नहीं पूरे संसार में यह स्थान रखते हैं कि उनका कोई भी अदना सा व्यक्ति अपमान नहीं कर सकता। उनकी शान में गुस्ताखी नहीं कर सकता। लेकिन अमित शाह के द्वारा बेहूदे शब्दों का प्रयोग करना। दरअसल भारत की उस पीड़ित शोषण 85% जनता का अपमान है। जो उन्हें अपना पिता मानती हैं। जिस अपमान को वह जनता महसूस कर रही है और आक्रोशित है। इस पर भी बेहूदगी यह देखिए कि भारतीय जनता पार्टी और दूसरे मामलों की तरह एक मामले को दबाने के लिए दूसरा मामला अपने गोदी मीडिया के माध्यम से ठोकती है। यह प्रयास यहां पर भी किया जा रहा है। राहुल गांधी के धक्का देने के मामले को इतना उठाया जा रहा है ताकि अमित शाह वाले बयान के मामले को ठंडा कर दिया जाए।

जाति वादियों द्वारा डॉक्टर अंबेडकर का अपमान करना एक आम बात है। लेकिन किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा इस तरह से 85% जनता को अपमानित करना निश्चित रूप से दुर्भाग्य जनक है। बार-बार यह तर्क दिया जा रहा है कि उनके वीडियो को ए आई द्वारा बनाया गया है। फाल्स वीडियो है। जबकि सच्चाई यह है कि लोगों ने सांसद टीवी पर अमित शाह को ऐसा बोलते देखा है और वही वीडियो वायरल हो रहा है। हालांकि 11 सेकंड के इस वीडियो को अगर आप पूरा देखते हैं तो भी आप बाबा साहब के बारे में अपमानजनक बात किए जाने को इनकार नहीं कर सकते।

इस आलेख को लिखे जाने तक अमित शाह ने न तो अपने बयान का खंडन किया है न ही अपने बयान पर खेद व्यक्त किया है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं की सत्ता का नशा सर चढ़कर बोल रहा है और कहते हैं कि जब सत्ता का नशा सर चढ़कर बोलता है तो नशा उतरने में देर नहीं लगती है। काश इस बीच प्रधानमंत्री मोदी जी जो लोगों के बीच अपने आप को पिछड़ा वर्ग का बताते हैं। सामने आते और देश से माफी मांगते। अमित शाह को मंत्री पद से बाहर करते। लेकिन ऐसा करना भारतीय जनता पार्टी की फितरत में नहीं है।