डॉ आंबेडकर कल आज और कल - संजीव खुदशाह

अंबेडकर जयंती 14 अप्रैल पर विशेष

डॉ अंबेडकर आज और कल

संजीव खुदशाह

14 अप्रैल 1891 को डॉक्टर अंबेडकर का जन्म हुआ, यानी डॉ आंबेडकर की 132 वी जयंती है। वैसे तो उनका जन्म मध्यप्रदेश के महू सैनिक छावनी में हुआ था। लेकिन उनका परिवार अंबावडे गांव जो कि वर्तमान में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में है, उससे संबंधित था। डॉक्टर अंबेडकर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे और साहू जी महाराज के फेलोशिप की बदौलत उन्होंने विदेश से भी जाकर शिक्षा अर्जित की थी। जीवन में उन्हे कई बार जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा।

एक समय ऐसा था जब भारत में दलितों को सार्वजनिक स्‍थानों से पानी पीने तक का अधिकार नहीं था। वे सार्वजनिक तालाबों, कुओं में पानी नहीं पी सकते थे। डॉक्टर अंबेडकर ने 20 मार्च 1927 को पानी पीने के अधिकार के लिए आंदोलन किया जिसे सामाजिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

दरअसल महाराष्‍ट्र कोलाबा जिले के महाड़ में स्थित चवदार तालाब में ईसाई, मुसलमान, पारसी, पशु, यहाँ तक कि कुत्ते भी तालाब के पानी का उपयोग करते थे लेकिन अछूतों को यहाँ पानी छूने की भी इजाजत नहीं थी। डॉं अंबेडकर ने अपने साथियों के साथ उस तालाब में जाकर एक चुल्‍लु पानी पिया । चारों ओर सवर्ण हिन्दुओं का विरोध हाने लगा डॉं अंबेडकर के काफिले के उपर लाठी डंडे से हमले किया गये लोग जख्‍मी हुऐ । बाद में उस तलाब को ब्राम्‍हणों द्वारा तीन दिनों तक दूध गौमूत्र गोबर मंत्रोपचार यज्ञ हवन से प्‍युरिफाई किया गया।

आजादी के पहले महात्मा गांधी जब एक ओर नमक (नमक सत्‍याग्रह 1930) के लिए लड़ाई कर रहे थे वहीं दूसरी ओर डॉक्टर अंबेडकर वंचित जातियों के लिए पीने के पानी की लड़ाई (1927) लड़ रहे थे। एक ओर जब छोटी-छोटी रियासतें ऊंची जाति के लोग अपनी हुकूमत बचाने के लिए अंग्रेजों से संघर्ष कर रहे थे। तो डॉक्टर अंबेडकर इन रियासतों ऊंची जातियों से पिछड़ी जातियों के जानवर से बदतर बर्ताव, शोषण से मुक्ति की बात कर रहे थे।  महात्मा फुले के बाद वे ही ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पूरे विश्व पटल में जातिगत शोषण का मुद्दा बड़ी ही मजबूती के साथ पेश किया। दरअसल दलित और पिछड़ी वंचित जातियों का मुद्दा विश्व पटल पर तब गुंजा जब उन्होंने गोलमेज सम्मेलन के दौरान जातिगत, आर्थिक और राजनीतिक शोषण होने की बात रखी। बाद में इन मुद्दों को साइमन कमीशन में जगह मिली। पहली बार दबे कुचले वंचित जातियों को अधिकार देने की बात हुई।

डॉक्टर अंबेडकर ने भारत के हर वर्ग के लिए काम किया। यदि भारत का संविधान देखें तो उसमें गैर बराबरी के लिए कोई स्थान नहीं है। हर वह व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति से ताल्लुक रखता हो अगर वंचित है, पीड़ित है, तो संविधान उसे न्याय और ऊपर उठने में मदद करता है। सदियों से पीड़ित दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, भारत की आधी आबादी महिला वर्ग के उत्थान की खातिर उन्होंने संविधान में क्लॉज बनाएं। संविधान सभा के 248 सदस्यों ने प्रारूप में प्रस्‍तुत जिन अनुच्छेदों को सर्वसम्मति से पारित किया, वही आज भारतीय संविधान का हिस्सा है। दरअसल भारत का संविधान यह बताता है कि हमारे पूर्वज जो संविधान सभा के सदस्य थे, पूरे भारत से चुनकर आए थे, वह किस प्रकार के भारत का कल्पना कर रहे थे। संविधान उसी कल्पना का मूर्त रूप है।

डॉक्टर अंबेडकर संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में कहते हैं कि संविधान कैसा लिखा गया है, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि संविधान को किस तरीके से लागू किया जा रहा है। क्या हमारी मशीनरी, हमारा प्रशासन संविधान की मंशा अनुसार भेदभाव रहित लोकतांत्रिक व्यवस्था दे पा रही है? यह एक प्रश्न है जिसे डॉक्टर अंबेडकर के इस मंशा के बरअक्स देखा जा सकता है।

 क्या था डॉक्टर अंबेडकर का ड्रीम प्रोजेक्ट?

समतामूलक भेदभाव रहित समाज की स्थापना के लिए बाबा साहब ने कई सपने देखे थे। इनमें से दो स्‍वप्‍न महत्‍वपूर्ण थे जिन्हें उनका ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है।

पहला है जाति का उन्मूलन, दूसरा है सबको प्रतिनिधित्व।

जाति का उन्मूलन यानी सभी जाति बराबर, बिना भेदभाव के जाति विहीन समाज की स्थापना। वे इस जाति प्रथा को खत्म करना चाहते थे। बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का कहना था कि हमारे देश की तरक्की मैं सबसे बड़ा रोड़ा हमारी जाति व्यवस्था है, ऊंच नीच है।

आज पूरे देश की जिम्मेदारी है कि वह डॉ आंबेडकर के इस ड्रीम प्रोजेक्ट जाति के उन्मूलन के लिए कदम बढ़ाए और उनके इस सपने को पूरा करें। तभी हमारा देश संगठित और विकसित हो पाएगा।

भारत के लोकतंत्र के चार स्तंभ है न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया। क्या इन स्तंभों में डायवर्सिटी है ? क्या सभी वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व इन स्तंभों में है? इसका जवाब है लोकतंत्र के इन स्तंभों में कुछ ही जातियों का दबदबा है। इस कारण तमाम वंचित जातियों, महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है। उनकी बातें, उनकी परेशानियां वहां तक नहीं पहुंच पाती है।

बाबा साहब कहते हैं कि सिर्फ सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व देने से काम नहीं बनेगा। इनको लोकतंत्र के चारों स्तंभों में बराबर का प्रतिनिधित्व देना पड़ेगा। तब कहीं जाकर देश के सबसे अंतिम पंक्ति के व्यक्तियों का भला हो सकेगा और सबसे अंतिम व्यक्ति को यह महसूस होगा कि वह इस देश का हिस्सा है। देश उसके लिए सोचता है। आज कितने बेघर, भूमिहीन, बेरोजगार , भेदभाव से पीड़ित लोग हैं उन तक शासन-प्रशासन से मदद की जरूरत है।

भारत के फिर से गुलाम होने का भय

डॉ अंबेडकर देश के गद्दारों से भार के फिर से गुलाम होने की आशंका व्‍यक्त करते है। वे संविधान सभा के समापन भाषण में कहते है कि यह बात नहीं है कि भारत कभी एक स्वतंत्र देश नहीं था। विचार बिंदु यह है कि जो स्वतंत्रता उसे उपलब्ध थी, उसे उसने एक बार खो दिया था। क्या वह उसे दूसरी बार खो देगा? यही विचार है जो मुझे भविष्य को लेकर बहुत चिंतित कर देता है। यह तथ्य मुझे और भी व्यथित करता है कि न केवल भारत ने पहले एक बार स्वतंत्रता खोई है, बल्कि अपने ही कुछ लोगों के विश्वासघात के कारण ऐसा हुआ है।

सिंध पर हुए मोहम्मद-बिन-कासिम के हमले से राजा दाहिर के सैन्य अधिकारियों ने मुहम्मद-बिन-कासिम के दलालों से रिश्वत लेकर अपने राजा के पक्ष में लड़ने से इनकार कर दिया था। वह जयचंद ही था, जिसने भारत पर हमला करने एवं पृथ्वीराज से लड़ने के लिए मुहम्मद गोरी को आमंत्रित किया था और उसे अपनी व सोलंकी राजाओं को मदद का आश्वासन दिया था। जब शिवाजी हिंदुओं की मुक्ति के लिए लड़ रहे थे, तब कोई मराठा सरदार और राजपूत राजा मुगल शहंशाह की ओर से लड़ रहे थे।

जब ब्रिटिश सिख शासकों को समाप्त करने की कोशिश कर रहे थे तो उनका मुख्य सेनापति गुलाबसिंह चुप बैठा रहा और उसने सिख राज्य को बचाने में उनकी सहायता नहीं की। सन् 1857 में जब भारत के एक बड़े भाग में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वातंत्र्य युद्ध की घोषणा की गई थी तब सिख इन घटनाओं को मूक दर्शकों की तरह खड़े देखते रहे।

क्या इतिहास स्वयं को दोहराएगा? यह वह विचार है, जो मुझे चिंता से भर देता है। इस तथ्य का एहसास होने के बाद यह चिंता और भी गहरी हो जाती है कि जाति व धर्म के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अतिरिक्त हमारे यहां विभिन्न और विरोधी विचारधाराओं वाले राजनीतिक दल होंगे। क्या भारतीय देश को अपने मताग्रहों से ऊपर रखेंगे या उन्हें देश से ऊपर समझेंगे? मैं नहीं जानता। परंतु यह तय है कि यदि पार्टियां अपने मताग्रहों को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता संकट में पड़ जाएगी और संभवत: वह हमेशा के लिए खो जाए। हम सबको दृढ़ संकल्प के साथ इस संभावना से बचना है। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी है।

अखण्‍ड भारत के लिए उनके विचार

डॉक्टर अंबेडकर कहते है की आज का विशाल अखण्‍ड भारत धर्मनिरपेक्षता समानता की बुनियाद पर खड़ा है, इसकी अखण्‍डता को बचाये रखने के लिए जरूरी है की इसकी बुनियाद को मजबूत रखा जाय। वे राजनीतिक लोकतंत्र के लिए सामाजिक लोकतंत्र महत्‍वपूर्ण और जरूरी मानते थे। भारत में जिस प्रकार गैरबराबरी है उससे लगता है कि समाजिक लोकतंत्र आने में अभी और समय की जरूरत है।

संविधान सभा के समापन भाषण में वे कहते है। ‘’तीसरी चीज जो हमें करनी चाहिए, वह है कि मात्र राजनीतिक प्रजातंत्र पर संतोष न करना। हमें हमारे राजनीतिक प्रजातंत्र को एक सामाजिक प्रजातंत्र भी बनाना चाहिए। जब तक उसे सामाजिक प्रजातंत्र का आधार न मिले, राजनीतिक प्रजातंत्र चल नहीं सकता। सामाजिक प्रजातंत्र का अर्थ क्या है? वह एक ऐसी जीवन-पद्धति है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जीवन के सिद्धांतों के रूप में स्वीकार करती है।"

उनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह है कि राजनीति से धर्म पूरी तरह अलग होना चाहिए। राजनीति और धर्म के घाल मेल से भारत की अखण्‍डता को खतरा हो सकता है। वे भारत में नायक वाद को भी एक खतरा बताते है संविधान सभा के समापन भाषण में कहते है कि दूसरी चीज जो हमें करनी चाहिए, वह है जॉन स्टुअर्ट मिल की उस चेतावनी को ध्यान में रखना, जो उन्होंने उन लोगों को दी है, जिन्हें प्रजातंत्र को बनाए रखने में दिलचस्पी है, अर्थात् ''अपनी स्वतंत्रता को एक महानायक के चरणों में भी समर्पित न करें या उस पर विश्वास करके उसे इतनी शक्तियां प्रदान न कर दें कि वह संस्थाओं को नष्ट करने में समर्थ हो जाए।''

उन महान व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने में कुछ गलत नहीं है, जिन्होंने जीवनर्पयत देश की सेवा की हो। परंतु कृतज्ञता की भी कुछ सीमाएं हैं। जैसा कि आयरिश देशभक्त डेनियल ओ कॉमेल ने खूब कहा है, ''कोई पुरूष अपने सम्मान की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता, कोई महिला अपने सतीत्व की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकती और कोई राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता।'' यह सावधानी किसी अन्य देश के मुकाबले भारत के मामले में अधिक आवश्यक है, क्योंकि भारत में भक्ति या नायक-पूजा उसकी राजनीति में जो भूमिका अदा करती है, उस भूमिका के परिणाम के मामले में दुनिया का कोई देश भारत की बराबरी नहीं कर सकता। धर्म के क्षेत्र में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है, परंतु राजनीति में भक्ति या नायक पूजा पतन और अंतत: तानाशाही का सीधा रास्ता है।‘’

जाहिर  है डॉं अंबेडकर की चिंता केवल समुदाय विशेष के लिए नही है वे देश को प्रबुध्‍द एवं अखण्‍ड देखना चाहते है। उनके ये विचार कल की तरह आज भी उतने की प्रासंगिक है। आशा ही नही पूर्ण विश्‍वास है कि देश उनके चिंतन से सीख लेता रहेगा और तरक्‍की करता रहेगा।


Dr Ambedker Sanjeev Khudshah
Publish on Navbharat  13 April 2025

 

Defence budget of developing India

 

रक्षा बजट बढ़ाना प्राथमिकता में न हो तो ही अच्‍छा

संजीव खुदशाह  

भारत में बजट का इतिहास करीब डेढ़ सौ साल पुराना है । इतने वर्षों में बजट पेश किए जाने के समय से लेकर तौर तरीकों में बड़े स्तर पर बदलाव हुऐ है। कई नई परंपराएं अस्तित्व में आई और कई प्रतिमान स्थापित हुए। भारत में पहला बजट ब्रिटिश शासन के दौरान 1860 में पेश किया गया। पहले रेल बजट अलग से पेश किया जाता था जिसको लेकर लोगों में उत्सुकता रहती थी कि इस बजट में रेल यात्रियों और उनके कर्मचारीयों को नया क्या मिलने वाला है । 2017 के बाद से रेल बजट आम बजट के साथ ही पेश होता है। इसी प्रकार रक्षा बजट भी कभी अलग से पेश नहीं हुआ है। इसे आम बजट के साथ में प्रस्तुत करने की परिपाटी रही है। रक्षा बजट का अध्‍ययन करने से यह पता चलता है कि सरकार देश की रक्षा सुरक्षा में कितना खर्च करने जा रही है और किन-किन क्षेत्रों में खर्च करना सरकार की प्राथमिकता है।

आम बजट में बहुत सारे छोटे-छोटे विभाग होते हैं। अक्सर यह मंत्रालय के रूप में काम करते हैं और उनके लिए अलग से बजट का प्रावधान होता है। जिसे जोड़कर आम बजट बनाया जाता है। जैसे कृषि, खाद्य, टेक्नोलॉजी, रेल, सैन्य बजट आदि आदि। इसी प्रकार किन स्रोतों से सरकार को आय होगी उन स्रोतों का खुलासा भी आम बजट में किया जाता है। देश की सामरिक शक्ति के विकास के साथ-साथ रक्षा बजट का महत्व बढ़ता जा रहा है। वैसे भी देश की सुरक्षा और शांति व्यवस्था के लिए रक्षा बजट की आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि भारत की सेना युद्ध के दौरान न केवल देश की रक्षा करती है बल्कि शांति काल के दौरान आपदा से भी बचाती है। इसलिए रक्षा बजट को केवल युद्ध के दृष्टिकोण से देखना सही नहीं होगा। 

इस बार रक्षा बजट में क्या है

केंद्रीय बजट 2024 25 में रक्षा मंत्रालय को 6.22 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए जो सब मंत्रालय से ज्यादा यह राशि वित्त वर्ष 2023 24 की तुलना में 4.79 प्रतिशत ज्यादा है। पूंजी के अधिग्रहण के लिए 1.72 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए। जीविका और परिचालक तत्परता के लिए 92,088 करोड़ रुपए दिए गए। गौरतलब है की रक्षा पेंशन बजट 1.41 लाख करोड़ रुपए दिया गया। इसी प्रकार ECHS के लिए 6968 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए। सीमा पर सड़कों के विकास के लिए 6500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए और तटीय सुरक्षा के लिए 7651 करोड़ रुपए आवंटित हुए। इस बजट में सरकार का दावा है कि केंद्रीय सशस्त्र बलों को आधुनिक किया जाएगा। जिसमें घातक हथियार, लड़ाकू विमान, जहाज, पनडुब्बिया, प्लेटफार्म, मानव रहित हवाई वाहन, ड्रोन, विशेषज्ञ, वाहन आदि से लैस किया जाएगा। सरकार द्वारा जारी प्रेस रिलीज में यह दावा किया गया है कि भूतपूर्व सैनिकों के स्वास्थ्य और उनकी सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए प्रतिबद्ध है। इसलिए 2024-25 के रक्षा बजट (सैनिक अंश दाई स्वास्थ्य योजना) में 28% की वृद्धि की गई। रक्षा अनुसंधान और विकास के लिए विशेष बजट का प्रावधान किया गया है ताकि आधुनिक तकनीक विकसित करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके। इसी प्रकार रक्षा पेंशन के लिए कुल बजट आवंटन 1,41,205 करोड़ रुपए है जो पिछले वर्ष के दौरान दिए गए आवंटन से 2.17% ज्यादा है। यह पेंशन प्रशासन प्रणाली या स्पर्श और अन्य पेंशन वितरण प्राधिकरणों के जरिए लगभग 32 लाख पेंशन भोगियों की मासिक पेंशन में खर्च होगा ।

पाकिस्तान का रक्षा बजट 

पाकिस्तान ने 2024-25 के बजट में डिफेंस का खर्च बढ़ाया था। पाक सरकार ने अपने रक्षा क्षेत्र के लिए 2122 अब पाकिस्तानी रुपए आवंटित किए थे। इसकी तुलना अगर भारतीय रुपए से की जाए तो करीब 59.42 हजार करोड़ रुपए के बराबर होते हैं। जो भारत की रक्षा बजट के मुकाबले काफी कम है। चीन और भारत के मुकाबले  भी पाकिस्तान का रक्षा बजट काफी कम है। 2024 में पाकिस्तान का रक्षा बजट करीब 10.3 अरब डालर था जो भारत और चीन के मुकाबले कहीं नहीं टिकता है। जबकि 2024 में पाकिस्तान ने अपने रक्षा बजट में 17.5% की बढ़ोतरी की थी। 

चीन का रक्षा बजट 

चीन ने रक्षा बजट 236 अरब डॉलर रखा है। अगर रक्षा अनुसंधान और विकास अन्य उद्योग संबंधी पहलों में कॉरपोरेट फंडिंग को जोड़ा जाता है तो यह चीन के वार्षिक बजट से काफी बढ़ जाता है। इसीलिए कुछ एक्सपर्ट्स का तर्क है कि चीन का रक्षा खर्च 711 अरब डॉलर के बराबर है जो इस साल अमेरिका के सैन्य खर्च के 875 बिलियन डॉलर के स्तर के करीब है। यानी चीन अपनी सैन्य बजट में काफी खर्च कर रहा है। यदि भौगोलिक क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाए तो भी चीन सैन्य बजट पर निवेश में भारत से कहीं आगे है। अमेरिका, चीन, सोवियत रूस और दूसरे बड़े देशों के रक्षा बजट पर नजर डालें तो या महसूस होता है कि रक्षा बजट पर खर्च करने की होड़ मची हुई है। आखिर क्यों इतना ज्यादा रक्षा पर खर्च किए जा रहे हैं, यह प्रश्न खड़ा होता है। ऐसा करने में भारत भी अपने आप को पीछे नहीं रखना चाहता। जबकि मूलभूत जरूरतों पर खर्च करना एक विकासशील देश की प्राथमिकता होनी चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य, खाद्यान्न, कृषि पर और ज्यादा खर्च किए जाने की जरूरत है। हालांकि शिक्षा बजट पर इस साल 6.65% की मामूली वृद्धि की गई है। लेकिन भारत की स्कूल की व्यवस्था और शिक्षा की स्थिति को देखते हुए ना काफी है। आज भी भारत के विश्वविद्यालय विश्व के टॉप के 100 विश्वविद्यालय में शामिल नहीं है। शिक्षा पर विशेष खर्च किए जाने की जरूरत थी।

आज के समय में विश्व का रक्षा बजट पूंजीवाद का गुलाम हो चुका है। कई देश के आय का साधन केवल अस्त्र-शस्त्र बिक्री पर ही आधारित है। यह बड़े देश प्रयास करते हैं कि विकासशील देशों को यह विध्वंसक शस्त्र बिक्री करें और युद्ध को प्रेरित करें। सरकार के नकाब में आयुध फैक्ट्री के मालिक रक्षा डील करते हैं। और यह कोशिश करते हैं कि उनके अस्त्र-शस्त्र को किसी न किसी प्रकार से खपाया जाए। ताकि बड़ा मुनाफा कमाया जा सके। हालांकि भारत अभी अस्त्र-शस्त्र बेचने की स्थिति में नहीं है। बावजूद इसके यह दावा किया जा रहा है कि इस बजट के बाद में कई देशों को आधुनिक अस्त्र-शस्त्र बेचा जाएगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पड़ोसी देशों को देखते हुए भारत के रक्षा बजट को बढ़ाया जाए। लेकिन यह हमारी प्राथमिकता में नहीं होनी चाहिए। हमारा देश अभी भी विकासशील देशों की गिनती में है। यानी विकसित नहीं हुआ है । ऐसी स्थिति में हमारे देश को विकसित बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए और यदि देश को विकसित बनाना है तो उसके स्वास्थ्य, शिक्षा और खाद्यान्न का बजट बढ़ाना होगा। नई टेक्नोलॉजी को प्रेरित करना होगा। युवा शक्ति का भरपूर उपयोग करना होगा। तब कहीं जाकर भारत विकसित देश बन पाएगा।

 Defence budget

Publish On Rastriya Sahara Dated 8 Feb 2025


 

सिरपुर चलो, संविधान जानों हीरक जयंती 2025

सिरपुर महोत्‍सव के लिए संकल्‍प

रायपुर दिनांक 12.01.2025 को डॉ अंबेडकर वेल्फेयर सोसाइटी की आठवीं बैठक श्री दिलीप वासनीकर की अध्यक्षता में संपन्न हुई, जिसमें प्रमुख रूप से उपाध्यक्ष श्री महादेव कावरे, श्री के एन कांडे एवं श्री सुनील रामटेके, श्री सारंग हुमने, महासचिव, श्री कमलेश बंसोड, कोषाध्यक्ष श्री मदन मेश्राम, महेंद्र बागड़े उपस्थिति थे। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि कोचिंग के लिए मकान किराए अथवा खरीदने का प्रस्ताव, समिति  की गतिविधि एजुकेशन, स्वस्थ्य एवं अन्य गतिविधि पर कार्य करने, कचना में समिति के लिए कलेक्टर से भूमि आवंटन। 

समिति के सदस्यों की संख्या बढ़ाने, संविधान की प्रति विधायक गण को देने, समाज के गरीब वंचित बच्चों को समिति द्वारा यथा संभव मदद करने, डिजिटल माध्यम से सोसाइटी का प्रचार, सिरपुर में चलो संविधान की ओर हीरक जयंती 2025 कार्यक्रम का विशाल आयोजन करने तथा इसके लिए एक अलग समिति का गठन करने , समिति की आडिट रिपोर्ट, नया रायपुर में बुद्ध समाज के लिए भूमि आवंटन करने आदि महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई।

सोसाइटी के महासचिव कमलेश बंसोड़ की रिर्पोट

Even the lockers of banks are not safe, where should the citizens go

 बैंकों के लॉकर भी सुरक्षित नहीं, नागरिक जाए तो कहां जाएं

संजीव खुदशाह 

बैंक और लाकर की सुविधा शुरू होने से पहले लोग अपने बहुमूल्य रुपए पैसे और कागजात गुप्त रूप से रखी तिजोरी में रखा करते थे। प्राचीन काल में लोग घर में ही किसी गुप्त स्थान पर गड्ढे खोदकर किसी मटकी या बर्तन में बहुमूल्य चीज़े रखा करते थे। लेकिन इसमें भय यह होता था कि यदि घर के जिम्मेदार व्यक्ति की असमय मौत हो जाती तो वह गुप्त स्थान में रखी चीजे उनके परिवारजनों को नहीं मिल पाती। या कई बार ऐसा होता की चोर और डकैत उन गुप्त स्थान से भी चोरी कर लिया करते लूट की वारदात हो जाती। यानी घर में रखी चीजे सुरक्षित नहीं मानी जाती है। 


इस कारण लोगों ने अपने रूपए पैसे बैंक में रखना शुरू किये। बहुमूल्य वस्तुएं, गहने और कागजात के लिए बैंकों में लाकर की सुविधा शुरू हुई। तो लोगों ने इसका लाभ लेना शुरू किया। यह सोचकर की बैंकों में 24 घंटे सुरक्षा होती है। उनकी चीजे वहां सुरक्षित होगी। लेकिन विगत दिनों घट रही घटनाओं से यह सुरक्षा की गारंटी भी खत्म होती दिखती है। एक आम नागरिक घर में चोरी डकैती न हो जाए यह सोचकर अपने बहुमूल्य कागजात और जेवर रूपए पैसे बैंकों के लॉकर में रखते हैं। ताकि वहां पर वे सुरक्षित रहें। लेकिन कई बार ऐसी घटना सामने आती है कि चोर बैंक की तिजोरी को न निशाना बनाकर उसके लाकर को निशाना बनाते हैं। और आम जनता, बैंकों के ग्राहक हाथ मलते रह जाते हैं।

पिछले दिनों 17 दिसंबर को लखनऊ के ओवरसीज बैंक में दीवार काटकर चोरों ने 90 में से 42 लॉकर तोड़कर करोड़ों रुपए और जेवर पार कर दिए। बताया जा रहा है की दिन में बैंक के आसपास के इलाके की रेकी की, इस दौरान बैंक में आसानी से दाखिल होने के रास्ते की तलाश की, आसपास कहां-कहां सीसीटीवी कैमरे लगे हैं इसका पता लगाया। चार दिन एक-एक चीज की बारीकी से रेकी के बाद गिरोह ने तय किया कि शनिवार की रात वारदात को अंजाम दिया जाएगा। चोरों ने मुंह में कपड़ा बांधा हुआ था तथा हेलमेट लगाए हुए थे ताकि सीसीटीवी से उनकी पहचान न हो सके। हालांकि लखनऊ के इस बैंक के मामले में चोर पकड़े गए तथा चोरी के सामान भी बरामद कर लिए गए। यह स्थानीय पुलिस की सक्रियता के कारण संभव हो पाया। खबर यह भी है कि एनकाउंटर में दो चोर मारे गए।  घटना के दूसरे तीसरे दिन बैंक लॉकर के ग्राहक घटनास्थल पर पहुंचे और रोते बिलखते हुए दिखे। किसी ने बताया कि उसने अपनी बेटी की शादी के लिए गहने वहां रखे थे । तो किसी ने बताया कि रिटायरमेंट के बाद अपने जीवन की सुरक्षा के लिए सारे बहुमूल्य पेपर और पैसे वहां रखे थे। किसी ने बताया कि उनकी प्रॉपर्टी के कागजात वहां पर थे। लेकिन अब वह वहां नहीं है । उनके लॉकर टूटे हुए थे। चोरों से बरामद सामान में भी ग्राहकों को अपने सामान की पहचान और दावा करने में कई अड़चनों का सामना करना पड़ेगा। जब तक उनके पास पूरा वैद्य दस्तावेज नहीं होगा। तब तक उन्हें उनके गहने जेवर रूपए पैसे प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

इस प्रकरण में बैंक अफसर यह दावा कर रहे हैं और अपनी सफाई दे रहे हैं कि बैंक की तरफ से सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई। रिजर्व बैंक आफ इंडिया के नियमों के मुताबिक पूरी व्यवस्था थी। लॉकर में डबल लॉक रहता है। इसकी एक चाबी बैंक के पास और दूसरी ग्राहक के पास होती है। ऑडिट विभाग समय-समय पर इमारत की सुरक्षा की पड़ताल करता है। ऑडिट में बैंक के भवन को सुरक्षित बताया गया। यह भी बताया गया कि सभी बैंक आरबीआई के नियमों के तहत ही संचालित होते हैं। किसी भी बैंक में रात को गार्ड की तैनाती करने की व्यवस्था नहीं है। रात कि सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस और गश्ती दल की होती है।

गौरतलब है कि आधुनिक सुरक्षा प्रणाली एवं तकनीक के बावजूद चोर किस तरह बैंक में दाखिल हुए और 42 लाकरों को उन्होंने तोड़ा। लेकिन बैंक के मैनेजर तक को पता नहीं चला। चूंकि बैंक में स्वचालित अलार्म की व्यवस्था होती है। इस समय अलार्म क्यों नहीं बजे। यदि बजे तो चोरों तक अधिकारी क्यों नहीं पहुंच पाए। यह सारी चीज प्रश्न वाचक चिन्ह खड़ा करती है। खैर ऐसी स्थिति में बैंकों के ग्राहक अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं। क्योंकि उनके सामने यह प्रश्न खड़ा हो जाता है कि जब बैंक भी सुरक्षित नहीं है तो वह अपने बहुमूल्य सामान को रखे तो कहां रखें। बैंक के लॉकर की शर्तों में इस बात का जिक्र होता है की चोरी होने की स्थिति में बैंक की जिम्मेदारी नहीं होगी। कई बैंक लॉकर का बीमा करवाते हैं ऐसी स्थिति में भी नुकसान ग्राहक को होता है। क्योंकि बहुमूल्य वस्तुएं और जरूरी कागजात वापस नहीं मिल पाते हैं।

काश ऐसे कड़े‍ नियम बनाए जाते जिससे बैंक अफसरों की जिम्मेदारी तय होती और बैंक लॉकरों के प्रति लोगो का विश्वास कम होने के बजाए बढ़ता। उन खामियों को दूर किया जाना चाहिए जिसके सहारे ऐसे वारदात को अंजाम दिया जाता है।

राष्‍ट्रीय सहारा दिनांक 30/12/2024 को प्रकाशित

Manmohan Singh is a useless Prime Minister

 एक नाकारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 

योगेश प्रसाद

यह सन 2003 की बात है जब लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने बहुमत पाया और सरकार बनाने का उसे मौका मिला। क्योंकि कांग्रेस की सर्वे सर्वा सोनिया गांधी थी इसलिए यह माना जा रहा था कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनेगी। किंतु सुषमा स्वराज समेत भारतीय जनता पार्टी के अन्य नेता विदेशी मूल का होने के कारण सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध कर रहे थे। इसीलिए सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन सकी। सुषमा स्वराज ने तो यहां तक कहा कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनेगी तो मैं सार्वजनिक रूप से अपना मुंडन करवाऊंगी। 

चुनाव जीतने के बाद सोनिया गांधी ने यह निर्णय लेने में करीब 10 दिन का समय लिया कि अपने स्थान पर किसे प्रधानमंत्री बनाया जाए। सोनिया गांधी के सामने दो ऑप्शन थे उस वक्त। पहला प्रणब मुखर्जी दूसरा मनमोहन सिंह दोनों को सोनिया गांधी का करीबी भी कहा जाता था। सोनिया गांधी के पास तीसरा ऑप्शन और था। वह अपने बेटे राहुल को भी प्रधानमंत्री बना सकती थी। लेकिन राहुल उस वक्त काफी छोटे थे। शायद इस कारण उन्हें उन्होंने प्रधानमंत्री बनाना सही नहीं समझा। बहरहाल दो लोगों की रेस में मनमोहन सिंह प्रथम आए और उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया गया। मनमोहन सिंह को अर्थशास्त्री से लेकर न जाने किन-किन उपमाओं से अलंकृत किया जाता रहा है। यह सही हो सकता है कि वह एक अच्छे अर्थशास्त्री थे लेकिन राजनीति के रूप में उनकी पकड़ वैसी नहीं थी। जैसा कि उनके दिवंगत होने के बाद कहा जा रहा है। 

दरअसल कांग्रेस की उल्टी गिनती 2003 से ही शुरू हो गई जब मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया। मनमोहन सिंह आम जनता के बीच में बिल्कुल भी लोकप्रिय नहीं थे। न ही उनके चेहरे को सामने रखकर चुनाव लड़ा गया था। चुनाव दरअसल सोनिया गांधी को सामने रखकर लड़ा गया था और जनता ने उन्हें अपना वोट दिया। अपेक्षा थी कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनने के बाद में आम जनता से संवाद जारी रखेंगे। लोकप्रिय हो जाएंगे। लेकिन वह मौनी बाबा साबित हुए। सोनिया गांधी को सुप्रीम प्राइम मिनिस्टर कहां जाने लगा और यह सही भी था की सरकार में सोनिया की ही चलती थी।

2008 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस फिर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लोगों को आशा थी कि इस बार प्रधानमंत्री सोनिया गांधी बनेगी या कोई सक्रिय व्यक्ति को प्रधानमंत्री की कुर्सी में बिठाया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ दोबारा फिर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया गया। ऐसा पहली बार हुआ जब किसी गैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर दो कार्यकाल मिला। इस समय 2G घोटाला, कोयला घोटाला की चर्चा होनी शुरू हो गई। केंद्र के कुछ मंत्री और उनके रिश्तेदार जेल गए। अन्ना का आंदोलन भी इसी वक्त शुरू हुआ। जन लोकपाल की मांग होने लगी। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इन सारी चीजों को कंट्रोल नहीं कर पाए। न ही उन्होंने जनता से कोई संवाद किया। न ही सरकार का पक्ष रखा। जब वह प्रेस कॉन्फ्रेंस लेते थे तो उनकी ज्यादातर प्रेस कॉन्फ्रेंस इंग्लिश में होती थी। आम जनता को उनकी बातें समझने में कठिनाई आती थी। एक दो प्रेस कॉन्फ्रेंस उन्होंने हिंदी में ली लेकिन वह टूटी फूटी हिंदी भी जनता नहीं समझ पाती थी। इस कारण जिन घोटाले को मीडिया ने सर पर उठा कर रखा था। उस घोटाले के बारे में सच्चाई प्रधानमंत्री आम जनता को नहीं बता सके। हालांकि उनकी सरकार के कई साल बाद सारे आरोपी दोष मुक्त हो गए और घोटाला झूठा साबित हुआ। मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल पूरे भारत को निराशा की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। ऐसा लगने लगा मानो पूरा देश भ्रष्टाचार की आग में जल रहा है। सारे बड़े नेताओं और अफसरों पर आरोप लग रहा था। मीडिया खुलकर सरकार के विरोध में आ गई। अन्ना आंदोलन ने इस वक्त खास भूमि का निभाई। यह तय हो सका हो चुका था कि कांग्रेस अब सरकार में नहीं आएगी। इसका पूरा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला। यहां यह बताना बेहद जरूरी है कि मनमोहन सिंह के कार्यकाल में दो ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए जो भारत के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए। पहले था सूचना के अधिकार दूसरा था मनरेगा। इन दोनों उपलब्धियों को भी कांग्रेस पार्टी ने नहीं भुनाया।

आंतरिक राजनैतिक परिस्थितियों के अलावा विश्व स्तर पर भी मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का मकसद IMF और विश्व बैंक की नीतियों को लागू करवाना भी एक विशेष मकसद था । इसी तरह देश की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की भूमिका में जो खेल खेला गया, उसकी वजह से ही दक्षिणपंथी पार्टी सत्ता में आ गई यह सही है ।

मेरा विवेक यह कहता है कि आज की जो सरकार है और बहुमत में काम कर रही है इसके पीछे मनमोहन सिंह की नाकामी है। सोनिया गांधी का वह निर्णय, जब उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनने के लिए निश्चय किया। मनमोहन सिंह फेल साबित हुए। जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्होंने अपनी प्रधानमंत्रित्व काल में कोई संपत्ति नहीं बनाई। जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके पास सिर्फ मारुति 800 कार थी। जनता को काम चाहिए और जनता एक ऐसा राजनेता देखना चाहती है जिससे वह संवाद कर सके, आम जनता का हित सुरक्षित कर सके।

What is Digital Arrest ?

डिजिटल अरेस्ट क्या है?

संजीव खुदशाह

आज के आधुनिक दौर में नई-नई तकनीक और आइडिया का उपयोग करके ठग, लोगों को लूट रहे हैं। इन्‍ही नई तकनीक से आनलाईन डराकर ठगी करने को डिजिटल अरेस्‍ट कहते है। डिजिटल अरेस्ट बिल्कुल नया शब्द है। बहुत सारे लोग डिजिटल अरेस्ट शब्द से वाकिफ नहीं है। लेकिन आए दिन समाचार पत्रों से लेकर सोशल मीडिया एवं अन्य माध्यमों से यह जानकारी सामने आ रही है कि लोग किस प्रकार डिजिटल अरेस्ट हो रहे हैं। और अपनी जमा पूंजी से हाथ धो रहे हैं। यह एक प्रकार से ब्लैकमेलिंग का धंधा है जो कि सामने आए बिना, गुमराह करके आम नागरिक से पैसे लूटते है। पैसे लूटने के दौरान वह किसी न किसी चीज का डर दिखाते है और पैसे लूटने की एक ही तकनीक अपनाते हैं वह है ऑनलाइन मनी ट्रांसफर। कई बार व्‍यक्ति इतना डर जाता है कि डर के मारे पैसे ठग के बताये अकाउंट में जमा करता है। 

डिजिटल अरेस्ट में किसी शख्स को ऑनलाइन माध्यम से डराया जाता है कि वह सरकारी एजेंसी के माध्यम से अरेस्ट हो गया है। उसे पेनल्टी या जुर्माना देना होगा। डिजिटल अरेस्ट एक ऐसा शब्द है जो कानून में नहीं है लेकिन इस तरह के बढ़ते अपराध की वजह से इसका उद्भव हुआ है। पिछले 3 महीने के दौरान दिल्ली एनसीआर में डिजिटर अरेस्‍ट के 600 मामले ऐसे आए हैं जिनमें 400 करोड़ की धोखाधड़ी हुई है। इसके अलावा कई सारे अनरिपोर्टेड मामले हैं। कई ऐसे मामले भी सामने आते हैं जो की सफल नहीं होते हैं। कई मामलों में पीड़ित डर या शर्म की वजह से अपने ठगे जाने का खुलासा नहीं करता है। डिजिटल अरेस्ट के संगठित गिरोह का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है। इस वजह से डिजिटल अरेस्ट के मामले बढ़ते जा रहे हैं। 

डिजिटल अरेस्ट कितने प्रकार के होते हैं ?

यदि डिजिटल अरेस्ट के तरीकों पर जाएं तो करीब 5 या 6 प्रकार के तरीके होते हैं जिसके आधार पर आपको डिजिटल अरेस्ट किया जा सकता है।

1. कुरियर के नाम पर - इसमें कहा जाता है कि आपने जो कुरियर या पार्सल मंगाया था उसमें गैर कानूनी चीज जैसे हथियार या ड्रग्स आदि है। आप फस गए हो आपको बचाने के लिए हमें आपके बैंक खाते के पासवर्ड देने होंगे या फिर इतने पैसे ट्रांसफर करने होंगे।

2. बैंक खाते पर ट्रांजैक्शन (मनी लांड्रिंग) -इस तरीके में कहा जाता है कि आपने मनी लॉन्ड्रिंग की है आपके खाते में बड़े अमाउंट के बैंक ट्रांजैक्शन दिखा रहे हैं। आप फस जाओगे। आपके खाते में बैंक ट्रांजैक्शन नहीं होने के बावजूद आपको यकीन दिलाया जाता है कि बैंक ट्रांजैक्शन बड़े अमाउंट का हुआ है और आपके ऊपर कार्यवाही हो सकती है। बचने के लिए पैसे मांगे जाते हैं।

3. हवाला के नाम पर - यह कहा जाता है कि आपने हवाला के नाम पर पैसे लिए हैं। अब आप फस गए हो आपके ऊपर कानूनी कार्रवाई होगी। कार्रवाई ख़त्म करने के लिए आपको पैसे देने होंगे।

4. धमकी / लालच देकर - आपके निकट के रिश्तेदार अथवा आपके बच्चों पर कानूनी कार्रवाई की जा रही है। यह कहकर आपको धमकी दी जाती है और छुड़वाने का लालच देकर पैसे मांगे जाते हैं.

5. इनकम टैक्स के नाम पर - इसमें यह कहा जाता है कि वह इनकम टैक्स या इ डी डिपार्टमेंट से हैं बाकायदा उनकी ड्रेस भी पहने होते हैं और इनकम टैक्स का छापा आपके घर में मारेंगे कहकर कार्रवाई से बचने के लिए पैसे मांगे जाते हैं।

6. अश्लील वीडियो का आरोप – यह कहा जाता है कि आपने डी जी पी की बेटी को अश्लील मैसेज किया है। आपके ऊपर कार्यवाही होगी, गिरफ्तार करके जेल भेजा जायेगा। मामला रफा दफा करने के लिए पैसे देने होगे।

यदि आपके खाते में पैसे नहीं है फिर भी आप डिजिटल अरेस्ट हो सकते हैं। 

कई लोग यह समझते हैं कि उनके खाते में पैसे नहीं है या बहुत कम पैसे हैं तो वह डिजिटल अरेस्ट होने से बच सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। कई मामले ऐसे सामने आए हैं। जिसमें डिजिटल अरेस्ट किया गया है और पीड़ित को उनके पैन कार्ड, बैंक के पासवर्ड आदि के आधार पर ऑनलाइन लोन लेकर उनके खाते से करोड़ों रुपए उड़ाए हैं। इस लोन के पैसे पीड़ित को जमा करना पड़ता हैं ।

डिजिटल अरेस्ट की शुरुआत कैसे होती है ?

पूरे स्कैम की शुरुआत एक सरल मैसेज या ईमेल अथवा व्हाट्सएप के संदेश से होती है। जिसमें दावा किया जाता है कि पीड़ित व्यक्ति किसी तरह की आपराधिक गतिविधि में शामिल है। इसके बाद उसे वीडियो या फोन कॉल करके कुछ खास प्रक्रिया से गुजरने के लिए दबाव डाला जाता है और पुष्टि के लिए कई तरह की जानकारी मांगी जाती है। ऐसे कॉल करने वाले खुद को पुलिस, नारकोटिक्स, साइबर सेल, इनकम टैक्स, सीबीआई या ई डी के अधिकारी होने का दावा करते हैं। वह बाकायदा किसी ऑफिस से यूनिफॉर्म में कॉल करते हैं। ताकि आपको शक न हो।

डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचे ?

अपरिचित कॉल से बचें, किसी संदिग्ध व्यक्ति को अपनी निजी जानकारी न दे। सोशल मीडिया में निजी जिन्दगी की जानकारी साझा करने से बचे । यदि आपको ऑनलाइन डराया धमकाया जाता है तो इसकी जानकारी पुलिस को दें। कोई भी गवर्नमेंट का अधिकारी ऑनलाइन या वीडियो कॉलिंग करके किसी भी आम जनता को नहीं धमकाता है। न ही उसे पैसे मांगता है। हर हालत में आधार नंबर, पैन कार्ड नंबर, बैंक अकाउंट, क्रेडिट कार्ड की जानकारी और पासवर्ड किसी को न दें। यदि कोई व्यक्ति यह सब जानकारी मांग रहा है। इसका मतलब है कि वह आपके साथ ठगी करने जा रहा है। क्योंकि बैंक के कर्मचारी अधिकारी यह सब जानकारी फोन पर नहीं मांगते है। इस तरह आप अपने आपको डिजिटल अरेस्‍ट होने से बचा सकते है।