प्रथम हिन्दी दलित कविता
हीरा डोम की कविता
हमनी के रात दिन दुखवा भोगत बानी
हमनी के सहेबे से मिनती कराइबी ।
हमनी के दुख भगवनवो न देखत जे
हमनी के कबले कलेसवा उठाइबी ॥
पदरी साहब की कचहरी में जाइबजा ।
बेधरम हो के अंगरेज बन जाइबी ॥
हाय राम धरम न हमसे छोड़त बाजे ।
बेशरम होके कहाँ मुहवाँ दिखाईबी ॥
खंभवा को फारी प्रह्लाद के बचवले जा ।
ग्राह के मुंह से गजराज के बचवले ॥
धोती जुरजोधना के भइया छोरत रहे ।
परगट होके तहां कपड़ा बढ़वले ॥
मारले खानवा के पत ले विभीखना के ।
कानी उंगली पे धैके पथरा उठाइबे ॥
कहाँ लो सुतल बाटे सुनत न बाटे अब ।
डोम जानी हमनी के छुए से डेरइले ॥
हमनी के इनरा के निगीचे ना जाइबजा ।
पांकि में से भरी भरी पियतानी पानी ॥
पनही से पीटी पीटी हाथ गोड़ तोड़ ले हों ।
हमनी के इतना काहेको हलकानी
हमनी के रात दिन दुखवा भोगत बानी
हमनी के सहेबे से मिनती कराइबी...
(1913 में हंस में प्रकाशित)
हमनी के सहेबे से मिनती कराइबी ।
हमनी के दुख भगवनवो न देखत जे
हमनी के कबले कलेसवा उठाइबी ॥
पदरी साहब की कचहरी में जाइबजा ।
बेधरम हो के अंगरेज बन जाइबी ॥
हाय राम धरम न हमसे छोड़त बाजे ।
बेशरम होके कहाँ मुहवाँ दिखाईबी ॥
खंभवा को फारी प्रह्लाद के बचवले जा ।
ग्राह के मुंह से गजराज के बचवले ॥
धोती जुरजोधना के भइया छोरत रहे ।
परगट होके तहां कपड़ा बढ़वले ॥
मारले खानवा के पत ले विभीखना के ।
कानी उंगली पे धैके पथरा उठाइबे ॥
कहाँ लो सुतल बाटे सुनत न बाटे अब ।
डोम जानी हमनी के छुए से डेरइले ॥
हमनी के इनरा के निगीचे ना जाइबजा ।
पांकि में से भरी भरी पियतानी पानी ॥
पनही से पीटी पीटी हाथ गोड़ तोड़ ले हों ।
हमनी के इतना काहेको हलकानी
हमनी के रात दिन दुखवा भोगत बानी
हमनी के सहेबे से मिनती कराइबी...
(1913 में हंस में प्रकाशित)
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