मूलनिवासी कला साहित्य और फिल्म फेस्टिवल 2013

मूलनिवासी कला साहित्य और फिल्म फेस्टिवल 2013
10 से 12 मई 2013
स्थान  
नेहरु हॉउस आफ कल्चर
सेक्टर एक, भिलाई नगर , छत्तीसगढ़
संयुक्त आयोजन समिति
सामाजिक-आर्थिक बदलाव के लिए कार्यरत
गैर-राजनितिक संस्थाओ एवं व्यक्तियों का स्वत:स्फूर्त संयुक्त प्रयास
पृष्ठभूमि
मूलनिवासी कला साहित्य और संस्कृति की समृद्ध परम्परा भारत में सदियों से विद्धमान है. छत्तीसगढ़ इस मायने में विशेष रूप से धनी है. यहाँ की लोक-कलाएं हमारे जन-गन द्वारा सामूहिक श्रम से निरंतर रची जाती रही है, पीढ़ी दर पीढ़ी  परिमार्जित की जाती रही है, हृदय में बसा कर  सराही जाती रही है. यहाँ लोक कलाओं का प्रदर्शन देखने बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुष जुटते रहे हैं . छत्तीसगढ़ की यह प्राचीन धरती हम मुलनिवासियों के वीर पुरखों से गौरवान्वित होती रही है. संत कबीर, संत  रविदास, वीरांगना अवंतिबाई लोधी, शहीद वीर नारायण सिंह, शहीद गुरु बालकदास की वाणी का गुणगान यहाँ होता रहा है.
    बाजार की अर्थव्यवस्था हमारे सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को तेजी से बदल रही है. जीवन का हर पहलू इससे प्रभावित हो रहा है. इससे उपजी मूलनिवासी बहुजन समाज की पीड़ाये अलग-अलग रूपों में कला, साहित्य, रंगमंच और फिल्मों में अभिव्यक्ति पा रही है. इन दुख-तकलीफों और संघर्ष की गाथा को मंच उपलब्ध कराने, इसके बहाने व्यापक परिदृश्य में एक बेहतर दुनियां का सपना देखने और समता स्वतंत्रता भाईचारे और न्याय पर आधारित समाज का निर्माण करने के लिए, छत्तीसगढ़ की मूलनिवासी बिरादरी द्वारा यह तीन दिवसीय आयोजन किया जा रहा है. इस परम्परा की शुरुवात स्टालिन के पद् मा की डाक्यूमेंट्री फिल्म   ‘’ इंडिया अनटचड ’’ की स्क्रीनिंग से हुई थी जब खचाखच भरे हाल के बाहर सैकड़ो की संख्या में लोगो ने खड़े-खड़े देश में आज भी जारी जातीय भेदभाव के  दर्द को महसूस किया था. इसके बाद पेरियार रामास्वामी, कांशीराम, बिरसा मुंडा, डॉ अम्बेडकर, गुरु घासीदास, संत रविदास पर ‘’ हमारे महापुरुषों की विरासत ’’ कड़ी में विमर्श आयोजित होते रहे है. इन मिले-जुले कार्यक्रमों का भार भिलाई की मूलनिवासी बिरादरी द्वारा उठाया गया, पुरे परिवार सहित शिरकत की गयी और इनसे उपजे विचारों को फैलाया गया. इन्ही अनुभवों से पैदा हुये आशा और विश्वास ने यह कला साहित्य और फिल्म फेस्टिवल आयोजित करने की प्रेरणा दी है, साहस पैदा किया है और हमें एक प्लेटफार्म पर खड़ा किया है.

कार्यक्रम विवरण
शुक्रवार 10 मई 2013
पेन्टिंग, शिल्पकला, छायाचित्र प्रदर्शनी एवं फिल्म फेस्टिवल का सवी सावरकर द्वारा उद्घाटन व्याख्यान क्रमबद्ध जातिय विषमता के विशेष सन्दर्भ में भारत में नाटक और फ़िल्में वक्तव्य और संवाद - राजेश कुमार, सुंदर लाल टांकभौरे प्रस्तावना- रतन गोंडाने,  अध्यक्षता - डॉ एल.जे. कान्हेकर, फिल्म शुद्र द रायजिंग  का प्रदर्शन शाम 5.00 से रात्रि 10.00  बजे तक
शनिवार 11 मई 2013
पेन्टिंग, शिल्पकला, छायाचित्र प्रदर्शनी व्याख्यान इतिहास में मूलनिवासियो के साहित्य को हाशिये पर रखने के बाद भी शोषण के खिलाफ उसकी धार तेज़ है. वक्तव्य और संवाद - एल.के.मडावी, शीलबोधि, घनाराम साहू, प्रस्तावना संजीव खुदशाह, अध्यक्षता - के.आर.शाह, मराठी फिल्म महात्मा फुले एवं गोंडी भाषा में बनी फिल्म पारिशी का प्रदर्शन  शाम 5.00 से रात्रि 12.00 बजे
रविवार 12 मई 2013
बहस - लोक कलाओ की       बहस- सामाजिक परिवर्तन में लोककलाओ  की भूमिका और चुनौतियां प्रात: 11 बजे से दोप 2-00 तक प्रस्तावना- राकेश बोम्बर्डे बहस में - कांचा इलेय्या, राजेश कुमार, एफ.आर जनार्दन, नन्द कश्यप, शाकिर अली, शिव टंडन, आलोक देव, जी.आर.राणा, के.आर.शाह, अमृत मिंज, अंजू मेश्राम, विष्णु बघेल, महेंद्र वर्मा, लोकेन्द्र सिंह, पी.एस.कंवर, डॉ जयप्रकाश साव, डॉ एल.जे.कान्हेकर, डॉ अनुराग मेश्राम, शीतल पिल्लिवार, डॉ देव नारायण अम्बेडकरवादी,  संजीव खुदशाह , रामकुमार वर्मा, शरद कोकास, आर.एस.मार्को और संजीव सुखदेवे आदि मूलनिवासी कवियों का कवितापाठ संचालन जी.आर.राणा 5.00 से 12.00 तक.  समापन व्याख्यान- सारी लोक कलाएं मूलनिवासियो द्वारा सामाजिक श्रम से निर्मित हैं. कांचा इलेय्या एवं डॉ विमलकीर्ति  फिल्म  जयभीम कामरेड का प्रदर्शन शाम 7.00 से 12.00 तक. प्रत्येक दिन संध्याकालीन कार्यक्रमों का प्रारंभ लोकगीतों तथा लोकनृत्यो के साथ होगा.  

संयुक्त आयोजन समिति
भिलाई - एल उमाकांत,  एफ आर जनार्दन, विनोद वासनिक,  पी जयराज, डॉ अकिलधर बेनर्जी, किशोर एक्का, दिवाकर प्रजापति, सुनील रामटेके, कोमल प्रसाद, बी पी ठाकुर, अमृत मिंज, पी जे अम्बुरकर, बलदेव भुआर्य, गणेश राम रात्रे, किशन मानकर, बसंत तिर्की, नानसाय भगत, सीतारमैय्या नायडू, अरविन्द रामटेके, एन.चेन्ना केशवलू, बहादुर जैसवारा, राजकुमार कँवर, शोभराय ठाकुर, एस आर सुमन, डी के पोरिया, प्रकाश गोंडाने, भीमराव पाटिल , दयाराम साहू , लहुरी प्रसाद , घनाराम ढन्ढ़े , नरेंद्र खोब्रागडे, शीला मोटघरे, डॉ रत्नमाला गणवीर, आर के राम, रमेश बेले, प्रदीप सोमकुंवर, शांतनु मरकाम, हर्ष मेश्राम, सुनंदा गजभिये, विक्रम जनबंधू, प्रवीन काम्बले, अनिल मेश्राम, विकास राउलकर, लखन सांगोड़े, उत्तम देशभ्रतार, राजेंद्र ध्रुव, रत्नदीप टेम्भरे, एल एन कुम्भकार, वासुदेव, दिनेश शिंदे, विश्वास मेश्राम, रायपुर - संजीव खुदशाह, भोजराज गौरखेड़े, विष्णु बघेल,  रवि बौद्ध, रतन गोंडाने, शिव टंडन, अंजू मेश्राम, डॉ के.के. सहारे, शरद उके, आर के वर्मा, डी डी भारती, तरुण ध्रुव, मुकेश गोंडाने, डॉ घनश्याम टंडन, शेखर नाग, करमन खटकर, वसंत निकोसे, अनिरुद्ध कोचे, बिलासपुर - टी.के.मेश्राम, नन्द कश्यप, चमन हुमने, डॉ अनुराग मेश्राम, दुर्ग - लक्ष्मी नारायण कुम्भकार, राकेश बोम्बारदे, शरद कोकास, डॉ जयप्रकाश साव, वीरेंद्र ओगले,  राजहरा- त्रिभुवन बौद्ध, दिल्ली - डॉ प्रवीन खोब्रागडे, हेमलता महीश्वर, डॉ एल जे कान्हेकर, डॉ मेघा खोब्रागडे, बलोदा बाज़ार- राम फेकर,  रायगढ़ - संजीव सुखदेवे, के एल डनसेना, धमतरी - जी.आर.राणा, लोकेन्द्र सिंह, जगदलपुर - आलोक देव, डॉ अविनाश मेश्राम, तुणीर खेलकर, कोंडागांव- पी आर पेंद्रे  कोरबा- पी.एस.कंवर, आर एस मार्को, पी.सी.लेदर, टी.आर.नागवंशी, अंबिकापुर चारुचंद, पिथोरा- हेमंत खूटे, महासमुंद - एम डी प्रधान, भिलाई ३ - लोकनाथ सोना, कांकेर - अनुपम जोफर, अशोक कुम्भकार, राजेन्द्र आर्ची, राजनांदगाव- डॉ विजय उके, एम डी अनोखे, डोंगरगढ़- प्रशांत सुखदेवे, बालाघाट- पंकज मेश्राम, बीजापुर - संजय टेम्भूरने,  दंतेवाडा - एचकेएस गजेन्द्र, किरंदुल -  देवनारायण अम्बेडकरवादी,  भोपाल -  मनोहर शामकुवर, संजीव ढोक, नागपुर - लिखन मेश्राम, प्रवीण मेश्राम,

जगाने का काम
फुले-अम्बेडकरी विचारों से प्रेरित पेंटिंग्स, छायाचित्र, मूर्तिशिल्प, पंथी-करमा, कबीर के सबद, रविदास के भजन, संवाद और बहस, फिल्म शो विचारों को उत्तेजित करेंगे, प्रश्न उठाएंगे और सोते हुये लोगों को जगाने में कामयाब होंगे इसलिए इसमें सभी मित्र संगठनों से सक्रीय सहभागिता का आग्रह है.
मैं  क्या कर सकता हूँ ?
यह आयोजन हम मूलनिवासियों का अपने खुद के द्वारा अभिकल्पित है, खुद के संसाधनों से आयोजित किया जा रहा है. इसका लक्ष्य हमारे सामाजिक-आर्थिक बदलाव के लिये संवाद निर्माण करना है. इसकी सफलता में हम सबकी अहम भूमिका है और हम सब मूलनिवासियों के  लिये इसमें स्पेस है. निम्नलिखित कामो को हम अपने-अपने स्थानों पर साधारण प्रयासों से कर सकते हैं
·         इस आयोजन का अधिक से अधिक लोगो तक प्रचार-प्रसार करना,
·         युवावर्ग को संवाद के लिये प्रेरित करना
·         कार्यक्रमों के लिये आर्थिक सहयोग देना. फंड एकत्रित करना.
·         मानव संसाधन के रूप में सहयोग देना.
·         मूलनिवासी रचनाकारों को पेंटिंग्स, छायाचित्र, मूर्तिशिल्प प्रदर्शनी में रचनाये रखने प्रेरित करना.
·         अतिथि साहित्यकारों, फिल्मकारों, शिल्पकारो से विचारों और कार्यों को साँझा करना.
·         कार्यक्रम के पहले, अपने क्षेत्रों में बैठकों, नुक्कड़ सभाओ, चर्चा गोष्ठियों के द्वारा भागीदारी हेतु प्रेरणा देना
·         कार्यक्रम के बाद, अपने क्षेत्रो में फिल्मों की स्क्रीनिंग, मूलनिवासी कवि गोष्ठियो, पुस्तकों पर चर्चा का आयोजन करना.
·         स्मारिका के लिये रचना भेजना, विज्ञापन एकत्र करना.
·         कार्यक्रम के प्रचार के लिये क्षेत्र के साथियों को प्रेरित कर सामूहिक रूप से अपने क्षेत्रों में फ्लेक्स/ होर्डिंग लगाना, पोस्टर चिपकाना, दीवार लेखन करना.
·         पाम्पलेट/ ब्रोशर  छपवा कर वितरित करना,  
·         केबल टी.व्ही. में सन्देश चलवाना, एफ एम रेडियो में विज्ञापन देना
·         दूरदर्शन, इलेक्ट्रोनिक मिडिया, अखबारों में अपने क्षेत्र के कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करना. प्रेस विज्ञप्ति देना
·         कार्यक्रम में भागीदारी करने मित्रों-परिचितों को एसएमएस करना.


संयुक्त आयोजन समिति की ओर से अरविंद रामटेके द्वारा प्रकाशित
संपर्क-09407984243, 09827988430,08103760623,09425244258

1 comment:

  1. एक अमूर्त प्रयास है, भाइयों एवं बहनों दलित चेतना कला साहित्य और संवाद प्रस्तुति में कितनी उन्मुख है इसका आकलन आज के इस दौर की बेहद जरूरी और नेक आवश्यकता है आयोजकों को बहूत बहूत बधाई और सफलतम कार्य संपादन के लिये अत्यन्त अत्यन्त शुभ कामनाएं
    मित्रों साहित्यकारों कलाकारों से अपील कि ज्यादा से ज्यादा संख्या मे पहुंच कर इस अपने तरह का एक अनोखे आयोजन की भागीदारी बने

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