क्या कहता है भारत का कालोनी कल्चर ?
· संजीव खुदशाह
तेजी से विकसित होते भारतीय शहरों और कस्बेा में कालोनियों, अर्पाटमेंटों की बाढ आ गई है। कालोनियों और अपार्टमेंटों में निवास करना अब शान का प्रतीक बन चुका है। आधुनिकी करण एवं सुविधाओं के कारण लोग सकरीं गली मुहल्लों में रहने के बजाय इन कालोनियों में रहना ज्यादा पसंद करते है। इतिहास गवाह है कि भारत में कालोनी कल्चर ने धर्म, जाति, रंग भेद को मिटने में अहम भूमिका अदा की है।
कालोनी क्या है?
मनुष्यों के निवास के लिए व्यवस्थित नगर निर्माण जिनमें कम से कम अधार भूत सुविधाऐं जैसे पेयजल, नाली, सडक, बिजली आदी का प्रावधान हो, मकान एक जैसे ज्यादा संख्या में भी हो सकते है तो उसे हम कालोनी या अपार्टमेंट कहेंगे।
कालोनी का इतिहास
भारत में कालोनी का इतिहास काफी पुराना है, विकसित कालोनी के निर्माण के साक्ष्य सिंधु धाटी सभ्यता में मिलते है जो कि ईसा से 3300 वर्ष पूर्व के है। सिधु सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना। हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो दोनो नगरों के अपने दुर्ग थे जहां शासक वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे। इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे। यानि सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खंडों में विभक्त हो जाता था। ये बात सभी सिन्धु बस्तियों पर लागू होती थीं चाहे वे छोटी हों या बड़ी। हड़प्पा तथा मोहन् जोदड़ो के भवन बड़े होते थे। ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारत और प्रत्येक घरों में दी गई सुविधाओं को देख कर कहा जा सकता है की उनकी व्यवस्थीत निवास व्यवस्था कितनी वैज्ञानिक थी।
हड़प्पा संस्कृति के नगरों में ईंट का इस्तेमाल एक विशेष बात है, क्योंकि इसी समय के मिस्र के भवनों में धूप में सूखी ईंट का ही प्रयोग हुआ था। समकालीन मेसोपेटामिया में पक्की ईंटों का प्रयोग मिलता तो है पर इतने बड़े पैमाने पर नहीं जितना सिन्धु घाटी सभ्यता में। मोहन जोदड़ो की जल निकास प्रणाली अद्भुत थी। लगभग हर नगर के हर छोटे या बड़े मकान में प्रांगण और स्नानागार होता था। कालीबंगां के अनेक घरों में अपने-अपने कुएं थे। घरों का पानी बहकर सड़कों तक आता जहां इनके नीचे मोरियां (नालियां) बनी थीं। अक्सर ये मोरियां ईंटों और पत्थर की सिल्लियों से ढकीं होती थीं आज की सिवरेज की तरह। सड़कों की इन मोरियों में नरमोखे भी बने होते थे। सड़कों और मोरियों के अवशेष बनावली में भी मिले हैं।
भारत में व्यवस्थित नगर विन्यास व्यवस्था योरोपियों के आने के बाद दिखती है, आधुनिक नगर सबसे पहले सूरत, गोवा, दमन, पाडिचेरी बसाया गया, बाद में अंग्रेजा द्वारा बंबई कलक्ता और चेन्नई जैसे नगर को बसाय गया। ये नगर ज्यादातर सरकारी या कंपनी ही होते थे जैसे छावनी, सीविल लाईन, रेल्वे कालोनी, प्रशासनिक कालोनी आदी। कुछ औद्धोगिक कालोनियों का भी विकास हुआ, पहला औधोगिक नगर जमशेदपुर था जिसकी नीव 1850 को पडी थी। इसके पहले जो नगर बसे वे धार्मिक या राजनीतिक केन्द्र के रूप में विकसित हुये। जिसे हम धर्मनगरी या राजधानी भी पुकारते है। ऐसा प्रतीत होता है की ये नगर व्यवस्थित नगर निर्माण योजना के अंतर्गत नही बसाये गये। इसलिए इनकी बस्तियां, नालियां सडके अव्यवस्थित रही है। लेकिन ग्रामों में जो मुहल्ले और पारें बनाये जाते थे वे शुध्द जाति आधारित थे जैसे ब्राम्हण पारा, तेली पारा, खटिक मुहल्ला आदि। ये मुहल्ले भी अव्यवस्थित ही थे जो किसी परिवार या पारिवारिक समुह जाति समुह के आधार पर बस जाते थे और जनसंख्या वृध्दि के आधार पर मकान बढते जाते जिससे गलियां सकरी होती जाती।
कालोनी में रहने के कारण
1. जगह की कमी
आज जगह की कमी कालोनी में रहने का सबसे प्रमुख कारण है, लोग मुहल्लों और गांवों की असुविधाओं से परिचित है, इसलिए वे निवास हेतु ज्यादा सुविधा पाने के लिए कालोनी में रहना पसंद करते है।
2. अत्याधुनिक सुविधायें
आज कल कई अत्याधुनिक कालोनियां विकसित की गई जिसमें वाई फाइ्र, इन्टर कॉम, सिक्योरिटी, क्लब, गार्डन, स्वीमिंगपूल, बार, मनोरंजन भवन एवं हैलीपेड आदि की सुविधायें उपलब्ध की जाती है।
3. शांत वातावरण
कई बार लोग गली मुहल्ले के कानफोडू शोर से तंग आकर कालोनी में निवास करना पसंद करते है। कालोनी की की एक खास विशेषता ये भी होती है की यहां का वातावरण शांत होता। कोई गाली गलोज नही कोई झगडा झंझट नही। ना लाउडस्पीकर न ही गाडियों का शोर। सब अपने में मस्त होते है।
4. अच्छे कल्चर में रहने की अकांक्षा
ज्यादा तर ये देखा जाता है कि लोग शहर के बीच तंग मुहल्ले में रहने के बजाय दूरस्थ स्थित कालोनी में रहना पसंद करते है भले ही इन कालोनी के मकानों का मूल्य अधिक हो। इसका सबसे बडा कारण है एक समान हैसियत वाले लोगों का एक जगह निवास करना। जिससे एक अच्छा कल्चर डेवलप होता है। हर परिवार ये चाहता है किसी अच्छे मौहोल में गुजर बसर करे।
कालोनियों में सांस्कृतिक हमले
आप जब भी किसी नये कालोनी की प्रचार सामग्री पर गौर करे तो पायेगे। आज कल की कालोनी का प्रमुख आकर्षण गार्डन और मंदिर होता है। प्रश्न यह है की क्या भारत में सिर्फ एक धर्म के ही लोग कालोनी पर निवास करते है? ज्यादातर सरकारी हाउसिंग बोर्ड कालोनियों में आप मंदिर ही पायेगे। प्राईवेट कालोनी के विज्ञापन तो मंदिर को सामने रखकर ही दिये जाते है। जबकी सच्चाई ये है की कालोनी में सभी धर्म समुदाय के लोग निवास करते है, लेकिन कहीं भी सर्वधर्म प्रार्थना भवन नही मिलेगा। ये भारत में सामुदायिक सौहार्द के लिए खतरनाक है। खतरा इसका भी है कि कहीं ये कालोनियां जाति या धर्म केन्द्रित मुहल्ले का रूप न ले ले। निजी और सरकारी हाऊसिंग समितियों से ये अपेक्षा है की वे सभी धर्मो और समुदाय के हित को ध्यान में रखकर कालोनी का निर्माण करे ताकि सामुदायिक हित की रक्षा हो सके। ज्यादातर ये होता है की अल्पसंख्यक अपने आपको ऐसी कालोनी में असुरक्षित महसूस करते है और भाईचारा कायम नही हो पाता।
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