जाति विहीन समाज निर्माण के लिए जाति उन्मूलन आंदोलन का
तृतीय अखिल भारतीय सम्मेलन सम्पन्न
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रायपुर, दिनांक 01 नवंबर 2015। आधुनिक भारत के निर्माण में समता मूलक एवं वैज्ञानिक आधार पर समाज निर्माण की आवश्यकता है इस हेतु जाति का उन्मूलन आवश्यक है। इसके मद्देनजर जाति उन्मूलन आंदोलन अखिल भारतीय संयोजक कमेटी द्वारा दो दिवसीय तृतीय अखिल भारतीय सम्मेलन बाबा साहेब डा. बी.आर. अम्बेडकर हाल (श्री दुलार विश्वकर्मा धर्मशाला), गुरू घासीदास नगर (बढ़ईपारा), रायपुर में सम्पन्न हुआ। प्रथम दिवस ‘‘मौजूदा सांप्रदायिक व ब्राम्हणवादी आक्रमण और जाति उन्मूलन आंदोलन का महत्व‘‘ विषय पर सेमीनार एवं द्वितीय दिवस में प्रतिनिधि सत्र का आयोजन किया गया। सम्मेलन की अध्यक्षता जाति उन्मूलन आंदोलन के अखिल भारतीय समन्वय परिषद् के उमाकांत ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में भाकपा (माले) के राष्ट्रीय महासचिव काॅ. के. एन. रामचंद्रन, जाति उन्मूलन आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक जयप्रकाश, जाति उन्मूलन आंदोलन के राज्य प्रतिनिधि साथी शैल्वी व एडवोकेट मनोहरण (तमिलनाडु), आई. पी. दलयानिया (गुजरात), साथी गौरी (कर्नाटक), डाॅ. बलराम (बलराम), एस. पी. सिंह (हरियाणा), के. पी. सिंह (दिल्ली), डाॅ. आर.के. सुखदेवे, तुहिन व गोल्डी एम. जार्ज (छत्तीसगढ़) उपस्थि थे। कार्यक्रम का संचालन जाति उन्मूलन आंदोलन के छत्तीसगढ़ राज्य संयोजक संजीव व आभार अंजु मेश्राम ने किया। सम्मेलन में बुद्धिजीवीगण लाभ सिंह (पंजाब), परिजात (दिल्ली), काॅ. सौरा, दुर्गा, काॅ. भारत भूषण ने भी अपनी बात रखी। उक्त संबंध में 31 अक्टूबर को प्रेस क्लब, रायपुर में प्रेसवार्ता का आयोजन एवं उसी दिन सायं 5 बजे ‘जाति व्यवस्था ध्वस्त करो‘ नारे के साथ देशभर के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में रैली निकालकर ‘आजाद चैक‘ में आमसभा का आयोजन किया गया। अतिथियों द्वारा जाति उन्मूलन आंदोलन की हिन्दी में पत्रिका ’जाति उन्मूलन’ तथा अंग्रेजी में ‘Cast
Annihilation’ का विमोचन भी किया। इस अवसर पर बिपासा राव, चंद्रिका, डाॅ. रामबली व कलादास ने ‘हम न लड़ेंगे‘ जनगीत प्रस्तुत किया। सम्मेलन में देशभर से बड़ी संख्या में प्रतिनिधि, संस्कृतिकर्मी, बुद्
कार्यक्रम में उद्घाटन भाषण देते हुए का. रामचंद्रन ने कहा कि भारत में जाति व्यवस्था के विरोध का लंबा इतिहास रहा है। इसकी शुरूआत गौतम बुद्ध ने की थी। जिसे बाद में कबीर, रैदास, महात्मा फुले और अंबेडकर ने आगे बढ़ाया। परंतु हम ऐसी स्थिति में आंदोलन की शुरूआत कर रहें है जब जाति-धर्म के नाम पर दमन किया जा रहा है। धर्म व जाति के नाम पर राजनीति हो रही है। धार्मिक व जातीय आधार पर लोगों का बाटा जा रहा है, सभी जनवादी अधिकारों का हनन किया जा रहा है। देश के इतिहास व संस्कृति का विकृतिकरण किया जा रहा है। साम्प्रदायिक ताकतों ने प्रत्येक क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करने का प्रयास तेज कर दिया है। नव-उदारवादी व्यवस्था के चलते देश भर में सामाजिक रूप से उत्पीड़ित जातियों एवं वर्गाें पर जातिवादी हमला बढ़ा है। हाल के दिनों में दबंगों द्वारा राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश, छ त्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, महाराष् ट्र, ओड़ीसा सहित पूरे देश में दलितों, मजदुरों, किसानों, आदि वासियों, अल्पसंख्यकों के ऊपर हमले की अनेक वीभत्स घटनाएं हुई हैं। उनकी हालत बद् से बद्तर हो गयी है। साम्राज्यवाद एवं उसके अनुचरों द्वारा अपने वर्चस्व को चिरायु बनाये रखने के लिए धार्मिक व जातीय कट्टरपंन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है एवं भारत को हिन्दु राष्ट्र बनाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। देश सांप्रदायिक व जाति प्रथा के माध्यम से अंधकार की ओर पूरी तरह बढ़ रहा है। इसके लिए हम सबको एक होकर आंदोलन को क्रांति का रूप देना होगा। भारत को समाजवादी दिशा में ले जाने के लिए प्रगतिशील लोगों को आगे आकर इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी को स्वीकार करना होगा।
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जे.पी.नरेला ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि देश के तमाम हिस्सों में हो रहे हिंसक हमलों, धर्म के नाम पर हो रहे अत्याचार के कारण अल्पसंख्य सहित दलित समुदाय डरा हुआ है। समाज में दलितों पर जघन्य अपराध लगातार हो रहें हैं हरियाणा इसका ज्वलंत उदाहरण है। दलितों पर हमलों, अत्याचारों की रिर्पोट नहीं लिखी जाती। और यदि लिख भी ली गई तो ज्यादातर आरोपियों को मुक्त कर दिया जाता है। आज भी देश के गावों मे दलितों की हालत बहुत ही खराब है। उन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं हो रही। भारत की सभी पार्टियां दलितों का उत्थान नहीं कर पायी। सत्ता के लिए वो जाति पहचान को बनाए रखना चाहती है। इसलिए हम सभी की जिम्मेदारी है कि जनता के वाज़िब हक के लिए सभी संगठनो को साथ लेकर व्यवस्था के खिलाॅफ आंदोलन चलाने की जरूरत है।
तमिलनाडु की साथी शैल्वी ने कहा कि तमिलनाडु एवं पूरे देश में एक जैसी स्थिति है। पिछले डेढ वर्षाें में इसमें बढोतरी हो रही है। अंतर्जातीय-अंतर्धार्मिक विवाह करने वालों को मार डाला जा रहा है। उच्च वर्ण की दबंगई बढ़ती जा रही है। नई तकनीक आने से पीढ़ीगत व्यवसाय खत्म हो रहा है। साम्राज्यवाद-पंूजीवाद खाद पानी देकर जाति व्यवस्था को बढ़ावा दे रहा है। हमें इसके विरोध में उठ खड़ा होना है। असमानता के खिलाफ समानता की लड़ाई लडते हुए जाति व्यवस्था को ध्वस्त कर देना है।
डाॅ. सुखदेवे ने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर ने जाति प्रथा को एक कोढ़ की तरह बताया है। उन्होने जाति उन्मूलन पत्रिका में लिखा कि ये किताब मैने जिनके लिए लिखी है उन्हे ही इसका अर्थ नहीं मालूम। शिक्षित लोग भी ब्राम्हणवादी व्यवस्था को ढो रहे है, उसी का परिणाम है कि यह व्यवस्था अभी तक पूरे समाज में व्याप्त है। हम सबको को मिलकर समाज में चेतना पैदा करना है। अलोचनाओं से डरना नहीं है। सभी संगठनों को जाति उन्मूलन आंदोलन के साथ मिलकर इस व्यवस्था के खिलाफ लोगों को जाकरूक करना है।
तमिलनाडु के एडवोकेट मनोहरन ने कहा कि दलितों को जातिवादी पार्टियां लड़ाने का काम करती हैं। जाति व्यवस्था को पोषित करती हैं। जातिय पहचान की राजनीति करती है। जिससे दलितों में भी कई गुट बन गये है। छद्म चेतना से दलित बाहर आए और वैज्ञानिक चेतना के आधार पर जाति विहीन, धर्म विहीन समाज निर्माण में योगदान दें।
कर्नाटक की साथी गौरी ने कहा कि ब्राम्हणों ने ब्राम्हणों के लिए जाति व्यवस्था बनाई यह सही विश्लेषण नहीं है। बल्कि शासक वर्ग ने अपने फायदे के लिए इस व्यवस्था को बनाया। शासक वर्ग समाज को जातियों में बांट कर राज करना चाहती है। हमें इनकी चालों को समझना होगा। सबको बराबर के अधिकार के लिए समानता के आधार पर जाति व्यवस्था के उन्मूलन की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
आई.पी. दलसानिया ने गुजरात का अनुभव साझा करते हुए बताया कि आरक्षण के नाम पर जातियों को लड़ाया जा रहा है। सत्ता पाने के लिए बांटो और राज करो की नीति अपनाई जा रही है। हमारी मूल समस्याओं से ध्यान भटकाकर जनता का शोषण किया जा रहा है। कई दशकों के कठोर संघर्षों से उत्पीड़ित तबकों ने कुछ जनवादी और सामाजिक अधिकारों को हासिल किया था, जिसे आज निष्ठुरता के साथ छीन लिया गया है। हम सबको मिल कर इसका विरोध कर, अपने हक की लड़ाई लड़नी होगी।
डाॅ. गोल्डी एम. जार्ज ने कहा कि सभी प्रकार क भेदभाव व व्यवस्था को परिवर्तन करना जरूरी है, इसके बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते। समता, स्वतंत्रता, विश्वबंधुत्व के आधार पर न्याय होना चाहिए। मानवतावादी संस्कृति का विकास करना जाति उन्मूलन आंदोलन का मूल आधार होना चाहिए।
हरियाणा के एस.पी.सिह ने कहा कि जाति विहीन समाज की दशा तो समाज में दिखाई देती है परंतु दिशा हमें तय करनी होगी। दलितों को औजार की तरह तैयार करना होगा। इस पर हमें मनन तथा गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
दिल्ली के के.पी.सिंह ने कहा कि हरियाणा व उत्तरप्रदेश में जाति प्रथा चरम पर है जिसका मूल कारण जमीन है। जिस भी जाति के पास अधिक जमीन है वह दलितों पर अत्याचार करती है। दिल्ली में अधिकतर दलितों के पास जमीन है ही नहीं। वर्तमान सरकार का एजेंडा आरक्षण व एस.सी. एस.टी. एक्ट खत्म करना और जातिवाद व सांप्रदायिक विभेद पैदा कर सत्ता चलाना है।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए उमाकांत ने बताया कि भारत में वर्गीय और जातीय विभाजन एक कड़वी सच्चाई है और ये दोनों व्यापक जनता के नारकीय जीवन के कारण हैं। इसलिए, एक जाति विहीन और वर्ग विहीन समाज निर्माण के उद्देश्य से अखिल भारतीय स्तर पर जाति उन्मूलन आंदोलन की शुरूआत की गई है। जाति प्रथा भारत में एक कोढ़ की तरह है। हजारों साल से चली आ रही यह अमानवीय प्रथा बदलते समय के साथ तालमेल बैठाकर नये निर्मम रूप में आज भी बरकरार है। लेकिन बलशाली शासक वर्ग जाति को कोई समस्या नहीं मानता है। या यूं कहें जान बूझकर समस्या मानने से इनकार करता है क्योंकि इसके पीछे उसके निजी हित छिपे हैं। ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब संपन्न-दबंगों द्वारा दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और उत्पीड़ित तबके पर जुल्म की खबरें नहीं आती हों। भारत की बहुमत मेहनतकश आबादी, जो खेतों से लेकर कारखानों तक दिन-रात खटती है, आर्थिक शोषण के साथ-साथ जाति व्यवस्था के तहत सामाजिक उत्पीड़न के कारण नारकीय जीवन जी रही है, उनके सवालों पर कोई चर्चा तक नहीं की जाती है। इसके पीछे गहरी साजिश है जिसका पर्दाफाश करने की जरूरत है। ऐसे नकाबपोश लोगों के नकाब उतार फेंकने की जरूरत है जो एक ओर तो जाति को सनातन पुराणांे के बहाने बनाये रखना चाहते हैं तोे दूसरी ओर आधुनिक होेने का ढोंग रचते हैं। उन्होंने जाति विहीन वर्ग विहीन समाज के निर्माण के संघर्ष में शामिल होने हेतु सबका आह्वान किया।
सम्मेलन में जाति उन्मूलन आंदोलन के अखिल भारतीय समिति द्वारा कार्यक्रम एवं सांगठनिक विधान पर चर्चा की गई एवं पारित किया गया। सम्मेलन में 17 सदस्यीय अखिल भारतीय समन्वय परिषद्, 5 सदस्यीय केंद्रीय कार्यकारिणी का गठन किया गया एवं सर्वसम्मति से जयप्रकाश नरेला को अखिल भारतीय संयोजक के रूप में चुना गया। सम्मेलन में जातिगत उत्पीड़न, किसानों की बिगड़ती गंभीर हालातों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर होने वाले बर्बर हमलों, इतिहास व संस्कृति के विकृतिकरण, सांप्रदायीकरण व शिक्षा के भगवाकरण, दिन प्रतिदिन बढ़ रही गरीबी, मंहगाई व बेरोजगारी, महिलाओं, आदिवासियों , अल्पसंख्यक समुदाय व मेहनतकश वर्ग के खिलाफ बढ़ते उत्पीड़न आदि विभिन्न विषयों पर प्रस्ताव पारित किए गए।
सम्मेलन में देश के दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत् तरप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु , कर्नाटक, केरल, राजस्थान, गु जरात, उड़ीसा व छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधियों सहित बड़ी संख्या में गणमान्य बुद्धिजीवी, चिंतक व छात्र उपस्थित थे।
जाति उन्मूलन आंदोलन
राज्य संयोजक परिषद
छत्तीसगढ़
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