जयभीम यात्रा
भारत में सफाई
कर्मचारियों ने, एक देश व्यापी
यात्रा शुरू की है - भीम यात्रा एक दर्द
और पीड़ा की यात्रा। यह यात्रा देश को और सरकार को यह बताने के की जा रही है की
शुष्क शौचालय, नाली और
सेप्टिक टैंक में सफाई कामगारों की हत्या बंद की जाय । भीम यात्रा 10 दिसंबर 2015 से 30 राज्यों में 500 जिलों में 125 दिनों के लिए देश भर में की जायेगी। हमारे महान नेता एवं उद्धारकर्ता
डॉ भीम राव अंबेडकर की 125 वीं जन्म
शताब्दी की पूर्व संध्या पर 13 अप्रैल 2016 को दिल्ली में खत्म हो जाएगा। हमारे माननीय
सांसद जब जश़्न मना रहे होते है तब देश भर में से लाखों सफाई कर्मचारी मरने के
लिए सीवर लाईन और मैला ढोने के लिए मजबूर किया जाते है। सफाई कर्मचारियों का जीवन
जीने और मौत तक के अधिकारो को छीना जा चुका है।
भीम यात्र क्यों
?
1982 के बाद से हम इस हिंसा और भेदभाव के खिलाफ आवाज
उठाते रहे हैं। हम संगठित और एकजुट होकर इस क्रूरता के खिलाफ अभियान चलाया। हम
चाहते है की जातिय भेद भाव बंद हो, शुष्क शौचालय चलाने वालों के खिलाफ कार्यवाही
हो।
1993 में संसद ने मैला ढोने का कार्य और शुष्क
शौचालय (निषेध) अधिनियम 1993 पारित किया
इस कानून के अनुसार एक वर्ष की सजा या 2,000 रुपये का जुर्माना या दोनो सजा देने का प्रावधान रखा गया। लेकिन यह
कानून लागू नहीं किया गया और 20 वर्षो के दौरान कोई प्रतिबद्धता नही दिखाई दी।
सरकार ने इस जघन्य प्रथा को खत्म करने के लिए बहुत से झूठे वादे किए। कुछ नहीं
हुआ। हम लगातार सरकार के सर्वेक्षण और योजनाओं के झूठ और पाखंड सामने लाते रहे है
। सन 2000 में सरकार केवल 679,000 मैला ढोने
वालों की गिनती की, जबकी हम बेतरतीब ढंग से चुने हुये राज्यों और जिलों में 13 लाख से ज्यादा मैला ढोने वालो की पहचान की ।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों ने इस शुष्क शौचालय को खत्म करने की कई बार समय
सीमा तय की पहले 1995, उसके बाद 2000, उसके बाद 2003, फिर 2005, फिर 2010 और उसके बाद 2012 ... लकिन कुछ भी नहीं बदला!
2003 में हम सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर
की। सरकार अपनी झूठी राय पर कायम रही । पहले तो मैला ढोने वाले के अस्तित्व से ही
इनकार किया जाता रहा। जब हमने साक्ष्य के तौर पर फोटो आदी पेश किया तो सरकार ने
उन स्थानों को नष्ट करने का झूठा अनुपालन किया।
यह बताना जरूरी
है की हमने नागरिक समूह, जन नेताओं के समर्थन 2010 में बस यात्रा किया गया था जिसे
समाजिक परिर्वतन यात्रा कहा गया, यह ऐतिहासिक बस यात्रा पूरे देश भर में की गई ।
जिन महिलाओं और पुरुषों ने मैला ढोने का काम छोड़ा वे इस यात्रा का नेतृत्व किया
और एक विशाल जनसभा के साथ दिल्ली में यात्रा समाप्त हुई। इस यात्रा ने राष्ट्र का
ध्यान सफाई कर्मचारियों की समस्या ओर दिलाया।
इसके अलावा इन
सामाजिक कार्यों से, हम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रालयों, सांविधिक
निकायों और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को ज्ञापन प्रस्तुत की। ज्ञापन 1993 अधिनियम के कार्यान्वयन और एक पुनर्वास पैकेज
के लिए मांग की। एनएसी यात्रा, सामाजिक न्याय
के तत्कालीन मंत्री के बाद 31 मार्च 2012 से मैला ढोने का अंत करने के लिए 23 अक्टूबर 2010 को एक प्रस्ताव पारित किया और एक चर्चा के लिए आमंत्रित किया। हम 30 दिसंबर 2010 पर उनसे मुलाकात की और हम इस यात्रा के दौरान एकत्र की गई
राष्ट्रव्यापी डेटा प्रस्तुत की। एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण, अधिनियम की समीक्षा के पुनर्वास पैकेज और
स्वच्छता के समाधान को संशोधित करने के लिए - इस बैठक के बाद सामाजिक न्याय और
अधिकारिता मंत्रालय चार कार्यदलों की स्थापना हुई, जो 24 और 25 जनवरी 2011 को राष्ट्रीय परामर्श बुलाई। बजट सत्र की शुरुआत में संसद में अपने
भाषण में भारत के राष्ट्रपति मार्च, 2012 में मैला ढोने के निषेध के लिए एक नया विधेयक के लिए मसौदा घोषणा की।
भारत सरकार ने 'मैला ढोने वालों
के रूप में रोजगार का प्रतिषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम 2013' नई पारित कर दिया सितंबर 2013 में और दिसंबर 2013 में सरकार ने अधिसूचना जारी की।
इसके अलावा, 12 साल के लंबे अंतराल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने
हमारी याचिका क्रमांक 583 सन 2003 परदिनांक 27 मार्च 2014 को निर्णय
पारित किया जिसमें सभी राज्य सरकारों के निर्देशन के संघ और संघ शासित प्रदेशों को
निहित प्रावधानों पर उचित कार्यवाही एवं क्रियान्वयन करने का निर्देश दिया। साथ
में मेनहोल सिवर लाईन में सफाई कर्मचारियों की मौत रोकने के लिए भी उचित कदम उठाने
को कहा। मौत होने की स्थ्ाति में में पीडित परिवारों को 10 लाख रूपय का मुआवजा
देने का निर्देश दिया। किन्तु विगत एक साल में कहीं पर भी इस अधिनियम तथा सूप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन
नही किया गया।
सरकार मैला
ढोने वालों के रोजगार का प्रतिषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम 2013 और उच्चतम न्यायालय के आदेश को लागू करने में
पूरी तरह से लापरवाह है। लोगों की मृत्यु होती है, प्राथमिकी दायर नहीं कर रहे हैं। केवल भारी दबाव और आंदोलन के बाद, प्राथमिकी दर्ज की जाति है वह भी मौत का कारण
साधारण बताया जाता है। न ही अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम के
तहत मामला दर्ज किया जाता है । संविधान के इस स्पष्ट उल्लंघन नाली और सेप्टिक टैंक
में सफाई कर्मचारियों का जीवन खत्म हो रहा है। सरकार इनके मौत को आमंत्रित कर रही
है। हमें एक जुट होकर इन सबके खिलाफ लडना होगा। सभी प्रगतिशील, अंबेडकरवादी एवं
समाजिक संगठनों व्यक्तियों से निवेदन है की वे इस यात्रा का
हिस्सा बने ।
" हमारी लडाई धन के लिए नही है न ही सत्ता के लिए है
हमारी लडाई मानव की स्वतंत्रता और व्यक्तित्व के उद्धार के लिए है। "डॉ बी
आर अंबेडकर
4 जनवरी 2016 को यात्रा छत्तीसगढ प्रवेश करेगी कोरबा
बिलासपुर होते हुये 5 जनवरी को रायपुर पहुचेगी यहां से ओडिसा के लिए महासमुन्द
होकर रवाना होगी ।
निवेदक
सफाई कर्मचारी आंदोलन, नई दिल्ली
सहयोगी - दलित मुव्हमेन्ट ऐसोसियेशन, छत्तीसगढ़,
रायपुर
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