विमर्श,कसम,जाति उन्मूलन आंदोलन एवं दलित मूवमेंट एसोसिएशन का संयुक्त आयोजन
रायपुर, 07.12.2017। समाज में साम्प्रदायिकता के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष माहौल बनाने हेतु विमर्श छत्तीसगढ़, क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच छत्तीसगढ़, जाति उन्मूलन आंदोलन छत्तीसगढ़ व दलित मूवमेंट एसोसिएशन ने बाबासाहेब डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस एवं बाबरी मस्जिद के विध्वंस दिवस के अवसर पर ’साम्प्रदायिकता के खिलाफ धर्म निरपेक्षता’ विषय पर रायपुर में संगोष्ठी का आयोजन किया। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच कसम व जाति उन्मूलन आंदोलन की राज्य कमेटी सदस्य रेखा गोंडाने ने की। इस अवसर पर विशिष्ट वक्ता के रूप में जाति उन्मूलन आंदोलन के अखिल भारतीय कार्यकारी संयोजक व छत्तीसगढ़ संयोजक संजीव खुदशाह,क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के अखिल भारतीय संयोजक तुहिन, अम्बेडकर,फुले,पेरियार छात्र संगठन के सदस्य व टीस मुंबई के शोधार्थी श्रीकांत,अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान संगठन के छत्तीसगढ़ राज्य सचिव काॅ. तेजराम विद्रोही एवं वरिष्ठ वामपंथी विचारक काॅ.मृदुलसेन गुप्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम में जाति उन्मूलन आंदोलन के सदस्य रवि बौद्ध,एडवोकेट रामकृष्ण जांगडे़ व गुरू घासीदास सेवादार संघ के दिनेश सतनाम ने भी अपनी बात रखी। कार्यक्रम का संचालन विमर्श के रविन्द्र व आभार क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के सदस्य रतन गोंडाने ने किया। इस अवसर पर प्रख्यात जनगायिका बिपाशा राव ने जनगीत प्रस्तुत किया। संगोष्ठी में आगामी 17 दिसंबर 2017 को रायपुर में आयोजित जाति उन्मूलन आंदोलन के राज्य सम्मेलन को तथा नागपुर में आगामी 13-14 जनवरी 2018 को जाति उन्मूलन आंदोलन के अखिल भारतीय सम्मेलन को सफल बनाने की अपील की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं रेखा गोंडाने ने कहा कि बाबासाहेब सभी समाज को अपना घर समझते थे। यह हमें समता,समानता और न्याय आधारित संविधान की रचना में दिखता है। हमें दकियानूसी विचारों को छोड़ना व नये विचारों से युवा वर्ग को अवगत कराना होगा जिससे नवीन समाज की स्थापना हो और महिला-पुरूष में भेदभाव रहित समाज की ओर आगे बढ़ना है।
कार्यक्रम में प्रारंभिक वक्तव्य रखते हुए तुहिन ने कहा कि आज ही के दिन 25वर्ष पूर्व अयोध्या में धर्म निरपेक्षता को तार-तार किया गया था और इसके लिए डाॅ.बी.आर. अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस को जानबुझकर चुना गया। 1826 से पूर्व बाबरी मस्जिद व रामजन्म भूमि कोई मुद्दा नहीं था। सभी समुदाय भारत की बहुलतावादी संस्कृति के तहत एक साथ रहते आए । सबसे पहले अंग्रेज इतिहासकार लिडेन व बेबरीज ने बाबरी मस्जिद व रामजन्म भूमि विवाद को पैदा किया और इसे अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम समुदाय को लड़ाने के लिए मुद्दे के तौर पर इस्तेमाल किया। 7वीं सदी में व्हेनसांग के जीवन वृतांत में उल्लेख है कि अयोध्या बौद्ध धर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। बाबरनामा से पता चलता है कि बाबर कला प्रेमी था और किसी भी साक्ष्य में यह पता नहीं चलता कि अयोध्या में मस्जिद उसने बनवाई थी। बाद में दक्षिणपंथी कट्टरवादियों ने झूठ की बुनियाद पर साम्प्रदायिकता की आग भड़काई जिससे पूरे देश मेें दंगे हुए और भय का माहौल बना। वर्तमान दौर में देश में धुर दक्षिणपंथी शासक वर्ग द्वारा हमारी सामाजिक विरासत गंगा-जमुनी तहजीब के ताने-बाने को छिन्न भिन्न करने की लगातार कोशिश हो रही है इसे आमजनों तक सही बात को पहुंचाना होगा। लोगों के खान पान, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं। मेहनतकश मजदूरों,किसानों,दलितों,आदिवासियों,महिलाओं व अल्पसंख्यकों की आवाज को दबाया जा रहा है। एैसे माहौल में प्रगतिशील संगठनांे, बुद्धिजीवियों व छात्र-नौजवानों को आगे आकर लोगों को सही बातों को बताने और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है।
संजीव खुदशाह ने कहा कि विचारोें की प्रासंगिकता वक्त के साथ बदल सकती है लेकिन डाॅ. भीमराव अम्बेडकर की सोच प्रगतिशील लोकतांत्रिक व्यवस्था में थी जिसके कारण उनकेे विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि धर्म निरपेक्षता का मतलब है कि शासन प्रणाली व राजनीति धर्म से अलग होगी। धर्म एक व्यक्तिगत मुद्दा है। इसका मतलब यह कतई नहीं कि धर्म व राजनीति का घालमेल हो व धर्म राजनीति से उपर हो। हमारे पड़ोसी मुल्क में कानून के उपर धर्म है जिसके दुष्परिणाम हम देखते हैं। हमारे देश में तमिलनाडु में आदेश निकाला गया है कि सरकारी संस्थानों में किसी भी तरह के धार्मिक क्रियाकलाप नहीं होगा। वहीं अन्य प्रदेशों में यह लगातार जारी है। आज के समय बुद्धिजीवी वर्ग की जिम्मेदारी है कि बाबासाहेब के विचारों को आगे बढ़ाने की ताकि ऊंच-नीच,जाति भेद,लिंग भेद तोड़कर एक भेदभाव मुक्त समतावादी भारत की कल्पना को साकार किया जा सके। उन्होंने उपस्थित जनों से बाबा साहब के दिखाये पथ पर जाति उन्मूलन आंदोलन से जुड़ने की अपील की।
टीस मुंबई के शोधार्थी श्रीकांत ने कहा कि शोषितों से शोषक बनाने वाली शिक्षा व्यवस्था जब तक है तब तक समाज में बदलाव नहीं आऐगा। आमजन को मिथकों से दूर रहने के लिए सही बात बताना होगा। हमारे सामने इतिहास को विकृत कर प्रस्तुत किया गया है। इसलिए इतिहास पढ़ना ही नहीं इतिहास बनाना भी हमारी जिम्मेदारी है। रस्सी को सांप बताने वालों से हमें सावधान रहने की जरूरत है। शोषितों में सबसे शोषित महिला होती है और महिलाओं के लिए जाति व्यवस्था शोषण का प्रवेश द्वार है। विषमतावादी समाज को खत्म कर समतावादी समाज बनाना, जाति प्रथा को खत्म करना हमारी जिम्मेदारी है।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में बुद्धिजीवीगण,सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि,लेखक,साहित्यकार,संस्कृतिकर्मी व छात्र/छात्राएं उपस्थित थे।
No comments:
Post a Comment
We are waiting for your feedback.
ये सामग्री आपको कैसी लगी अपनी राय अवश्य देवे, धन्यवाद