अभिजात वर्गीय है
मी टू कैंपेन
संजीव खुदशाह
पिछले दिनों से मी टू कैंपेन सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट और
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक काफी चर्चित हो रहा है। इस मूवमेंट में महिलाएं #MeToo
के साथ कडुवे अनुभव कुछ स्क्रीन शॉट्स भी शेयर
कर रही हैं। भारत में इसकी शुरूआत 2017 से हुई थी लेकिन अभिनेत्री तनुश्री दत्ता के मामले ने पहले पहल तूल पकड़ा । उन्होंने नाना पाटेकर पर
आरोप लगाए थे।
सबसे
पहले सोशल मीडिया पर इस #MeToo की
शुरुआत मशहूर हॉलीवुड एक्ट्रेस एलिसा मिलानो ने की थी. उन्होंने बताया कि हॉलीवुड
प्रोड्यूसर हार्वे विंस्टीन ने उनका रेप किया था । मी तू कैम्पेन
की शुरूआत अमेरिकी सिविल राइट्स
एक्टिविस्ट तराना बर्क ने की थी। भारत में मी टू कैंपेन शुरू होने के बाद से अब तक
कई बड़ी बॉलीवुड हस्तियों के नाम इसमें सामने आ चुके हैं इनमें विकास बहल, चेतन भगत, रजत कपूर, कैलाश खैर,
जुल्फी सुईद, आलोक नाथ, सिंगर अभिजीत
भट्टाचार्य, तमिल राइटर
वैरामुथु और मोदी सरकार में मंत्री एमजे अकबर शामिल हैं।
बता दूं कि बेसिकली यह कैंपेन सोशल मीडिया पर आधारित है और
सोशल मीडिया के दबाव के कारण कुछ मामलों ने पुलिस ने संज्ञान लिया है।
कैंपेन को असहमति की सहिष्णुता नहीं है
इस कैंपेन की एक खास बात यह भी है की वे लोग जो इस कैंपेन
से सहमत नहीं है उन्हें ट्रोल भी किया जा रहा है असहमति यों को बर्दाश्त नहीं किया
जा रहा है कुछ साहित्यका,र लेखक, व्यक्ति,
राजनैतिक लोगों ने अपनी असहमति जाहिर की है
और वे ट्रोल का शिकार हो गए । आखिर यह लोकतंत्र है कोई ब्राह्मणवादी या
तानाशाही तंत्र नहीं है। किसी एक जाति या लिंग के आधार पर किसी को गलत या सही नहीं
ठहराया जा सकता । पुरुष सभी गलत होते हैं या महिलाएं सभी अच्छी होती हैं। इस
मान्यता से ऊपर उठना होगा। असहमति की गुंजाईस होनी चाहिए।
इस कैंपेन से क्या हो रहा है
मीटू के इस कैंपेन से हो यह रहा है कि करीब 10 साल या 20 साल या उससे भी ज्यादा समय के बाद महिलाएं अपने साथ हुए
शोषण को सोशल मीडिया पर रख रहे हैं और उन लोगों को बेनकाब कर रही हैं जिन्होंने
उनके साथ शोषण किया है अमेरिका की तरह भारत में भी यह कैंपेन फिल्मी दुनिया के
इर्द-गिर्द घूम रहा है जबकि फिल्मी दुनिया में यौन कर्म एक आम बात है ऐसा माना
जाता रहा है कास्टिंग काउच हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक आम बात है। फिल्मी दुनिया
में कामयाबी पाने के लिए अपने आप को और अपने संबंधों को इस्तेमाल करना कोई नया नहीं
है । लेकिन इस कैम्पेन से लोगों की नींद
उड़ी हुई है। और कई नकाबपोश बेनकाब हुए हैं। यही इस कैंपेन की उपलब्धि है। इस
कैंपेन के कारण शोषण करता की बदनामी हो रही है और उसे जवाब देते नहीं बन रहा है।
महिला वर्ग खासकर महिला वादी लोग इस कैंपेन पर बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।
कानूनी पहलू
इस कैंपेन का कानूनी पहलू यह है कि इसे कानूनी
मान्यता प्राप्त नहीं है। हालांकि किसी भी शिकायत को थाने में दर्ज कराया जा सकता
है। या फिर सीधे कोर्ट में मामला लिया जा सकता है। लेकिन काफी समय हो जाने के कारण
सबूत और गवाह नष्ट हो चुके हैं और परिस्थितियां बदल चुकी हैं इसीलिए शोषण करता को
सजा के निकट ले जाने में मुश्किल आ सकती है।
काश वंचित वर्ग की महिलाओ को इस कैम्पेन में जगह मिलती.
जैसा कि इस कैंपेन से नाम से जाहिर है की यह एक निजी कैंपेन
है। किसी और की पीड़ा को इस कैंपेन में शामिल नहीं किया जा रहा है। इसीलिए इस
कैंपेन के दौरान हुई अन्य महिलाओं के साथ बदसलूकी बलात्कार हत्याओं को इस कैंपेन
में नहीं उठाया गया है। अब तक यह मामला या इसे कैंपेन कहें अभिजात्य वर्ग तक ही
सीमित है या सेलिब्रिटी वर्ग तक सीमित है कह सकते हैं। इसमें वे महिलाएं जो कमजोर
और पीड़ित वर्ग की आती हैं उनकी बातों को तवज्जो नहीं दी जा रही है । ना ही वे ऐसा
करने का हिम्मत कर पा रही है। यह इस कैंपेन का काला पक्ष है। काश दलित और अल्पसंख्यक
महिलाओं के साथ हुए शोषण को भी इस कैंपेन में जगह मिलती।
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