Hindu Muslim for whom?

हिन्दू मुस्लिम किसके लिए है?
(कँवल भारती)

सवाल है कि आरएसएस की हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई किसके लिए है. क्या यह मुसलमानों के खिलाफ है? अगर कोई ऐसा समझता है, तो गलत समझता है. भाजपा के साथ मुसलमानों के रोटी-बेटी के रिश्ते हैं. क्या दलित-पिछड़ों के साथ ऐसे रिश्ते हैं? फिर हिन्दू मुस्लिम किनके खिलाफ है? स्पष्ट रूप से दलित-पिछड़ी जातियों के खिलाफ है. प्रमाण चाहिए, तो सामन्य वर्ग के लिए दस प्रतिशत आरक्षण पर विचार कीजिये. इनमें तीन सवर्ण जातियां हैं—ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य, और तीन मुस्लिम जातियां हैं—शेख, पठान और सैय्यद. इनको बिना मांगे आरक्षण मिला है. क्या सवर्णों और मुस्लिम उच्च जातियों ने कभी आरक्षण मांगा? अब यह देखिये कि विश्विद्यालयों में विभाग वार आरक्षण का प्राविधान करके किनके विकास को रोका गया है? स्पष्ट है दलित-पिछड़ों के. 
क्या आपको नहीं लग रहा है कि भाजपा ने सत्ता में आने के बाद से ही नफरत की खाई को और चौड़ा कर दिया है? बहुजन और सवर्ण के बीच जो सौहार्द का वातावरण बन रहा था, उसे उसने नफरत में इतना ज्यादा बदल दिया है कि अब ब्राह्मणों और ठाकुरों के खिलाफ बहुजन समाज में नफरत का खतरनाक दौर शुरू हो गया है. पर यही आरएसएस का एजेंडा है. क्योंकि आरएसएस को नफरत से ही आक्सीजन मिलती है. क्या देश को नफरत चाहिए?
आरएसएस का संघर्ष किससे है? नोट कर लीजिये, आरएसएस का भावी संघर्ष दलित पिछड़ों से है, क्योंकि वे मूल निवासी हैं. उसका संघर्ष मुसलमान से नहीं होगा. वह पहले भी नहीं था, आगे भी नहीं होगा. वह तो बस कुछ मुसलमानों को मारकर उन्हें डरा कर रखना चाहता है. सारे अत्याचार दलितों पिछड़ों के साथ होते हैं, चाहे वे बलात्कार हों, आगजनी हो. क्या कभी उच्च मुसलमानों की बस्तियां जलाई गयी हैं? मुसलमानों में कसाई जैसी छोटी जातियों का उत्पीडन किया गया है, क्योंकि वे भी दलित-पिछड़े समुदाय में आते हैं. अत: याद रहे, आरएसएस केवल दलित-पिछड़ी जातियों का शत्रु है. 
देश में कोई विकास का एजेंडा नहीं चल रहा है, एजेंडा सिर्फ हिंदुत्व का चल रहा है. उत्तर प्रदेश में जो विकास पिछली सरकार ने जहाँ छोड़ा था, वह वहीँ पड़ा हुआ है. हाँ, हिंदुत्व का विकास दिन दूनी रात चौगुना तरक्की कर रहा है.
क्या कांग्रेस भाजपा को हराने में सक्षम है? कदापि नहीं. कांग्रेस का नेता बुद्धिजीवी नहीं है. जो नेता अपना जनेऊ दिखाता फिर रहा है, अपना गोत्र बताता फिर रहा है, और मन्दिर-मन्दिर घूम कर हिंदुत्व की राजनीति कर रहा है, वह भाजपा के एजेंडे पर ही चल रहा है. कांग्रेस के नेतृत्व में वह परिपक्वता और वह बौद्धिकता नहीं है, जो नेहरु और इंदिरा गाँधी में थी. प्रियंका गाँधी कभी इंदिरा गाँधी नहीं बन सकती. देश में उनका कोई योगदान नहीं है? ऐशोआराम का जीवन जीने वाली महिला, जिसने कभी खेत की मेढ़ न देखी हो, वह क्या नेतृत्व करेगी? 
और अंत में सपा-बसपा गठबंधन इतिहास की दूसरी बड़ी भूल होने जा रहा है. कैसे? यह चुनाव बाद पता चल जायेगा. पेच प्रधानमन्त्री पद पर फंसेगा. अखिलेश यादव अपने पिता के लिए पलटी मरेंगे, और मायावती के नाम पर कोई पार्टी मुहर नहीं लगाएगी.
(यह टिप्पणी धीरज कुमार शील और मेरे बीच हुई वार्ता का सारांश है)

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