भारत में नारी जलने के लिए ही पैदा होती है।
संजीव खुदशाह
यू तो पूरे संसार में कुछ न कुछ जलता ही है लेकिन भारत में नारी का जलना सदियों
से वर्ल्ड रिकार्ड रहा है। इस रिकार्ड को कोई भी देश, छूना तो
दूर करीब तक नही पहुच पाया
है। ऐसा हो भी क्यू न भला, यहां नारियों का जलना आम
बात है। तभी तो संजली के जल
जाने पर किसी ने चू तक
नही किया। वहीं पुरूष जला होता तो उसके नाम से राजीव चौक फिर बाद में मेट्रो स्टेशन
बना दिया जाता। लेकिन नारी का जलना एक आम
बात है। शान की बात है तभी तो सती को
माता का दर्जा दिया जाता है लाखो करोडो के
मंदिर बना दिये जाते है । ताकि उसके सती होने
को न्याय संगत ठहराया
जा सके। आपने कभी सोचा है भारतीय पुरूष कभी क्यो नही सती होता।
कुछ मंदिर तो उसके नाम पर बनना चाहिए था। लेकिन ऐसा नही हुआ। क्योकि खान दान की
इज्जत जो नारी के शरीर में ही कही पर समाई हुई
है। इज्जत बचाने के लिए सती हुई।
वाह भई मर्द, कुछ इज्जत आप भी तो बचाओं।
वैसे भारत में नारी का जलना उत्सव
की भी बात है। रात के बारह बजे उसे जलाओं और
दूसरे दिन खुशियां मनाओं एक
दूसरे को होली की बधाईयां दो।
नारियों को जलाना हमारे
संस्क़ति का भी हिस्सा है। कोई माई का लाल इसका विरोध नही कर सकता। अगर विरोध
किया तो मजाल है, कि वह जलने से बच जाये। तमाम सेना, संस्क़ति रक्षक
जो तैनात खडे है आपके लिए। आखिर उन्हे
ठेका जो मिला है। नारी कई बार इसलिए भी जलाई जाती
की उसने किसी का प्रणय निवेदन नही
स्वीकार किया। अपने अहम से आहत हुये मर्द के
लिए बदला लेने का सबसे अच्छा साधन है तेजाब। बस तेजाब डाल
दो चेहरे पर और भाग जाओं। बच गई तो पूरी जिन्दगी अपने आपको ही कोसती रहेगी।
दूसरे भी उसे ही गलत ठहराते रहेगे।
अगर दहेज नही
लाई या कुल्टा है तो बस जला दो उसे ऊफ तक नही
करेगी। मृत्यु पूर्व बयान भी वह आपके खिलाफ नही देगी। क्योकि सनातन परंपरा
जो उसे निभानी है। यह एक खोज का विषय है कि क्यो खाना बनाते हुये सिर्फ भारत की बहुयें ही
जलती है। अरे भई पुरूष भी तो खाना
बनाते है सुना है उसे जल के मरते हुये? कुआरी लड़किया भी तो
खाना बनाती है सुना है उसे जल के मरते हुये? विदेशो में
भी तो स्त्रियां खाना बनाती है। उसी साधन
से जिस साधन से हमारे यहां की औरते बनाती
है। जरूर गलती आग की
होगी और पास खाना बनाती औरत को वह लप-लपाती लपटो में
घेर कर निगल लेती होगी। तभी तो भारत
की बहुयें इतनी बड़ी संख्या में
सिर्फ खाना बनाते जल कर मरती है।
मरे भी क्यो न। भई परंपरा जो है। तभी तो धोबी की
बातों मे आकर उसे लांच्छन दिया गया है और परीक्षा देनी
पड़ी अग्नि की। यहां हर हालत में पुरूष को अग्नि परिक्षा नही
देनी पड़ती। अरे भई जो
खुद परीक्षा लेता है वह क्या कभी परिक्षा दे
सकता है। तंदूर कांड तो याद होगा आपको
सुशील शर्मा ने किस प्रकार अपनी ही पत्नी की बोटी-बोटी काट कर तंदूर में
मक्खन के साथ जला रहा था। नैना साहनी, भवरी देवी
से लेकर संजली तक एक लंबी फेहरिस्त है,
भारत की नारियों के
जलने की। इससे कई गुना तो थानो कचहरियों तक
नही पहुच पाती।
जो नारी जलने के खिलाफ लड़ती है
उसकी हालत संजली के परिवार की तरह हो
जाती है। संजली को जलाये जाने
के बाद आगरा की पुलिस ने संजली के
परिवार को ही घेरे में लिया और चचरे भाई
योगेश से दो दिनों तक थाने में बिठाकर पूछताछ किया
की वह बिचारा परेशान, जहर खाकर मौत को गले लगा लिया। पुलिस भी यहां की पूरी संस्कृति रक्षक जो ठहरी मजाल है
कोई संजली के जलने पर आवाज उठाये
चाहे वो उसके परिवार का ही क्यो न हो। जांच उसके खिलाफ ही कि जायेगी जो पीडि़त होगा
यह एक नियम बन चुका है आजकल। भले ही उसका अपना ही थानेदार क्यो
न मारा जाय। ऐसे में भारत की नारी वह भी दलित आदिवासी हो तो उसकी क्या औकात।
No comments:
Post a Comment
We are waiting for your feedback.
ये सामग्री आपको कैसी लगी अपनी राय अवश्य देवे, धन्यवाद