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Discussion on the novel of kishan lal "cheetiyo ki vapsi"

किशनलाल के उपन्यास चिटियों की वापसी पर हुई चर्चा


दिनांक 19 जनवरी 2020 रविवार की सुबह 10 30 से 1.30 तक वृंदावन  सभागृह, सिविल लाइंस, रायपुर में उपन्यासकार किशनलाल के उपन्यास "चिटियों की वापसी" कपर चर्चा की गई। सर्वप्रथम अतिथियों को  किताब भेंट कर  उनका स्वागत किया गया । किशनलाल ने उपन्यास के शुरुआती अंशों का पाठ किया जिसमें उन्होंने रायपुर के बसने और महानगर की प्रतिस्पर्धा,  नया रायपुर के विकास पर बातचीत की। दरअसल यह उपन्यास विभिन्न मुद्दों पर केंद्रित है खासतौर पर उस गुरु जी की कहानी पर केंद्रित है जो जात पात जैसी रूढ़ियों को तोड़ता हुआ नए आयाम गढ़ता है।
इस सारगर्भित चर्चा में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की प्रो. हेमलता महिश्वर ने बताया कि यह उपन्यास पढ़ना शुरू करने के बाद बीच में छोड़ने का मन नहीं करता और पाठक पूरा पढ़ने के बाद ही दम लेता है. उन्होंने उपन्यास के तमाम सारे पात्रों का बारीकी से विश्लेषण किया और गांव से शहर आने, दलित अस्मिता के प्रखर होते जाने के परिणामस्वरूप उठने वाले द्वंदों को उजागर करने के लिए लेखक की प्रशंसा की। उपन्यास के मुख्य पात्र गुरुजी के शिक्षा को लेकर लगाव, स्त्री पुरुष समानता, अहिंसा को तरजीह देने, होली दिवाली की जगह  गुरु घासीदास जयंती और डाक्टर बाबासाहेब अंबेडकर जयंती को त्यौहारों की तरह धूमधाम से मनाये जाने आदि घटनाओं के माध्यम से उपन्यास के नैसर्गिक रुप से विकसित किए जाने के लिए उन्होंने किशनलाल की प्रशंसा की। प्रोफेसर हेमलता महिश्वर ने किशनलाल को भाषा के स्तर पर कुछ सुधार की सलाह भी दी और इस उपन्यास को समकालीन हिंदी साहित्य की सशक्त उपलब्धि बताया। रायपुर के दलित लेखक संजीव खुदशाह ने अपने उद्बोधन में कहा की विस्थापन की त्रासदी को इस उपन्यास में बखूबी बताया गया है साथ साथ किस प्रकार वंचित वर्ग के व्यक्ति का विकास के दौरान तमाम कुरीतियों से संघर्ष करना और आगे बढ़ने की कहानी बताई गई है। सांझा मंच के विश्वास मेश्राम ने अपने वक्तव्य में कहा की चीटियों की वापसी हासिए के लोगों को केंद्र में रखकर लिखा गया एक अच्छा उपन्यास है। इसे हिंदी साहित्य में जैसी चर्चा या ख्याति मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिली। लेकिन भविष्य में आलोचक और पाठक इस पर जरूर गौर करेंगे। उन्होंने गांवों में व्याप्त जातिवादी, सामंती विषमता को दलित वंचितों के शहर की ओर आने का मुख्य कारण बताते हुए शहरों में अवसरों की उपलब्धता को केंद्र में रखने के लिए उपन्यासकार किशनलाल की प्रशंसा की । प्रलेस के संजय शाम ने कहा कि यह एक अद्भुत उपन्यास है इसे किसी वाद में घेरकर कर देखना उपन्यास के मूल्य को छोटा करने जैसा है। इसे विस्तृत नजरिए से देखना चाहिए। रंगकर्मी निसार अली ने कहा की आज का समय ऐसा है जब बात को क्लियर होकर कहा जाए यदि आप वैज्ञानिक और प्रगतिशील विचारधारा के हैं तो आपको उस वाद में क्लियर आना चाहिए चाहे उसका रंग नीला या सुर्ख हो। लोक कलाकार यशवंत सतनामी ने अपना एक प्रसिद्ध लोकगीत सुनाया। नंदकुमार कंसारी, भागवत प्रसाद, प्रो. अविनाश मेश्राम, प्रो. के के सहारे आदि ने चर्चा की । कार्यक्रम के अंत में बीके अय्यर ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। अंजू मेश्राम ने इस पूरे कार्यक्रम का सफल संचालन किया।

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