मनुवादी गुलाब कोठारी पत्रिका न्यूज़ के मालिक होश में आओ
लेखक विनोद कोसले
हम विनोद कोसले का यह महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें गुलाब कोठारी के पत्रिका में प्रकाशित संपादकीय दिनांक 28 अप्रैल 2020 का जवाब दिया गया है
गुलाब कोठारी जी सम्पादक पत्रिका न्यूज आपकी लेख पुनर्विचार आवश्यक का जवाब आशा है अपनी सम्पादकीय में स्थान देंगे।
आज दिनांक 28 अप्रैल 2020 को आपने आरक्षण के मुद्दे पर
पुनर्विचार आवश्यक लेख लिखा। आपकी लेखन से देशभर के अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़ा वर्ग समुदाय के लोग आहत हुए है।आपने अनुचित तरीके से उद्धरण देकर आरक्षण पर समीक्षा की बात की है।
पुनर्विचार आवश्यक लेख लिखा। आपकी लेखन से देशभर के अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़ा वर्ग समुदाय के लोग आहत हुए है।आपने अनुचित तरीके से उद्धरण देकर आरक्षण पर समीक्षा की बात की है।
उच्चतम न्यायालय ने अपने चर्चा के बिंदु में आरक्षण पर समीक्षा की बात कही लेकिन केस का मुद्दा अनुसूचित क्षेत्रों में 100% आरक्षण देने पर रोक लगाने को लेकर था। अनुसूचित क्षेत्रों में 100% आरक्षण क्यों नही दिया जा सकता है ।वहां उनकी शत प्रतिशत आबादी रहती है। 5वी अनुसूची अनुसूचित क्षेत्र में राज्यपाल को विशेषाधिकार सँविधान में उपबन्धित है।जिसे स्थानीय भाषा की ज्ञान नही,वह कैसे वहां उचित संप्रेषण कर पाएंगे।क्या गैर अनुसूचित लोग उनकी समस्याओं से अवगत हो पाएंगे?बिल्कुल नही।अनुसूचित क्षेत्र में भाषायी समस्या होती है। बस्तर छत्तीसगढ़ आकर देखिए। पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में बाहरी लोगों का ज्यादा दखल बढ़ गए हैं।हम अनुसूचित क्षेत्र में 100%प्रतिनिधित्व की मांग करते है।जल जंगल जमीन हमारी है।हम सदा प्रकृति पूजक रहे है।
आपने आरक्षण को आत्मा का विषय कहा है ।आरक्षण कोई गरीबी उलमूलन कार्यक्रम, रोजगार गारंटी योजना या फिल्म के लिए सीट आरक्षण नही है,यह एक प्रतिनिधित्व है ।आपको उदाहरण देकर अवधारणा स्पष्ट करने की कोशिश करता हूँ,शायद मेरी लेख पढ़ने के बाद आपकी विचार बदल जाए।मान लीजिए यदि संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधित्व के लिए पोस्ट निकलती है तो इस बात का फर्क नहीं पड़ता कि भारत में चुना जाने वाला व्यक्ति अमीर है या गरीब ।लेकिन उसका भारतीय होना जरूरी है ।साथ ही यह भी समझने की कोशिश करें कि संयुक्त राष्ट्र ने एक जॉब इसलिए नहीं निकाली कि उसे किसी एक भारतीय की गरीबी इस जॉब से मिटानी हैं बल्कि इसलिए निकाली ताकि कोई चुना हुआ व्यक्ति भारत की आवाज संयुक्त राष्ट्र में रख सकें ।अब यदि व्यक्ति संयुक्त राष्ट्र के निर्धारण किए गए मापदंडों को पूरा करता है तो बाकी के भारतीय क्या यह कह सकते हैं कि चुना गया भारतीय बाकि भारतीयों को आगे बढ़ने नहीं दे रहा है?यही बात भारत में आरक्षण के मामले में हैं।
इतिहास के पन्नों में झांक कर देखिए प्रतिनिधित्व सदियों से सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वंचित व सताए हुए अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों को समान अवसर प्रदान करने की एक व्यवस्था है। समान अवसर इसलिए क्योंकि रेस की लाइन एक नहीं है ।इसलिए रेस के लाइन एक करने व विशेष अवसर प्रदान करने प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई है। जिसे देशभर में आरक्षण आरक्षण के नाम से समीक्षा की बात की जा रही है।
हम भी रोज-रोज आरक्षण की समीक्षा बातों को सुनकर अब हम भी समीक्षा चाहते हैं ।लेकिन शर्त है पूरे भारतवर्ष की सारी संपतिया पूरे लोगों में बराबर बांट दी जाए और जिन लोगों ने जाति की व्यवस्था बनाई ।उनको केवल 1 पीढ़ी को शिक्षा से वंचित रखा जाए।तब रेस की लाइन एक होगी।और मुकाबला भी बराबर का होगा।
मनुष्य और पशु पक्षी की विकास मैं थोड़ी भिन्नता है दोनों का चलन पाद व प्रजनन अलग अलग है तो फिर कैसे मनुष्य पक्षी जन्म ले सकता है। एक निश्चित उम्र के बाद मनुष्य व पशु पक्षी मृत हो जाते है।मृत पश्चात शरीर जटिल कार्बनिक पदार्थो से सरल कार्बनिक पदार्थो में अपघटित हो जाता है।यह विकास का क्रम है।
दो समान जीवधारियों से प्रजनन पश्चात सन्तति उतपन्न होती है।हमने डार्विन व मेंडल के सिद्धांत में पढ़ा है।।
राष्ट्र की समुचित विकास के लिए ही भारतीय संविधान में सभी भारत के नागरिकों के लिए समान अवसर प्रदान किए ।सँविधान में 'किसी व्यक्ति को धर्म मूल वंश जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता,उपबन्धित है।
संविधान निर्माण के पूर्व हजारों वर्षों से जन्म के आधार पर भेदभाव होता था। तेली के तेली, चमार के घर चमार ,लोहार के घर लोहार ,खटीक के घर खटीक,नाई के घर नाई, गोंड के घर गोंड़ पैदा होता था ।संविधान निर्माण के बाद प्रतिनिधित्व व अवसर की समता पश्चात एक चमार का बेटा आईएएस भी बनने लगा। मात्र आजादी के 70 वर्षों बाद अब आरक्षण की समीक्षा की बात होने लगी।हमारे पूर्वजो ने तो सदियां त्रासदियां झेलीं है।मुँह से उफ्फ तक नही निकली।
इतिहास उठाकर देखें जातियां किसने बनाएं? जाति में ऊंच-नीच भेदभाव किसने पैदा किए? जवाब आपको पता है।
मंडल कमीशन का इतिहास लिखता हूं, 1953 चौहान में काका कालेकर आयोग से शुरू हुआ सफर 1990 में मंडल कमीशन के रूप में पिछड़े वर्गों के पहचान के लिए 3743 जातियां की चिन्हांकित किए। काफी मुश्किलों से ओबीसी आरक्षण बिल पास हुआ।यह बिल भी कोर्ट में चैलेंज हुआ।कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण सही माना। जब भी नई वैकेंसी रिक्रूट होती है ।तो उस वैकेंसी को प्राप्त करने के लिए कई शर्ते होती हैं। तब कहीं जाकर कोई भी व्यक्ति उस पद के काबिल होता है ।क्या कभी आज तक ऐसा हुआ है ,कि किसी आठवीं पास एससी एसटी ओबीसी को आईएएस आईपीएस बनाए गए हो?हमने सारे सरकारी पदों को प्राप्त करने के लिए उसके लायक योग्यता हासिल की है।
गांव में निवास करने वाले एससी एसटी ओबीसी समुदाय आज भी कठिन परिश्रम से अनाज उत्पन्न कर रहे हैं ।जिसका उपभोग देश विदेश के लोग कर रहे हैं ।आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश की उच्च शिक्षा संस्थानों में महज sc.st.obc की भागीदारी मात्र कुछ प्रतिशत है। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट में आरक्षित वर्गों की भागीदारी कुछ एक या नही के बतौर है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया ,बिजनेसमैन,मॉल फैक्ट्रियां के मालिको की संख्या
SC, ST ओबीसी की कितनी है?
रिकॉर्ड आपके पास मौजूद है।
आरक्षण ने हिंदुओं को नहीं बांटा। बल्कि हिंदू पहले से ही हजारों जातियों में बैठे थे ।यह कैसी व्यवस्था है एक दूसरे के ऊपर पानी भी पड़ जाए तो ताकतवर जातियां कमजोर वर्गों के खून की प्यासी हो जाती है ।मध्य प्रदेश की घटना याद होगी उच्च जातियों के खेत में वाल्मीकि समुदाय अनुसूचित जाति के बच्चे खेत में टॉयलेट के लिए गए तो तथाकथित उच्च कहे जाने वाले जातियों के ठेकेदारों ने लाठी से पीट-पीटकर उनकी हत्या कर दी।
रोहित वेमुला की आत्महत्या,पायल तड़वी की आत्महत्या हम आज भी नहीं भूले हैं ।क्या यह टुकड़े आरक्षण ने किया है बिल्कुल नहीं यह पहले से खुद समाज के सिपल हारों ने इंसान को इंसान में भेद अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए किया।
अंतिम बात भारत में तीन भारत नहीं केवल एक भारत जिसमें समता ,स्वतंत्रता,बंधुता व न्याय स्थापित करने की बात कही गई है, जो भारतीय संविधान के प्रस्तावना में वर्णित हैं ।प्रतिनिधित्व का पैमाना सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़ापन है ना कि आर्थिक। अनुसूचित जाति व जनजाति का व्यक्ति कितना भी बड़ा अफसर भी बन जाए लेकिन उसे संबोधित असंवैधानिक शब्दों से करते आए हैं ।इतनी असमानताओ के बावजूद आरक्षण में पुनर्विचार की आवश्यकता कह रहे हैं ।यह बड़ी विडंबना है। देश संकट के दौर से गुजर रहा है और आप आरक्षण की समस्या को लेकर कठोर फैसले लेने की ओर इशारा कर रहे हैं ।यह आरक्षित वर्गों के प्रति आपकी अनुचित मानसिकता को प्रदर्शित करती है।
vinodkumar160788@gmail.com
excellent Vinod
ReplyDeleteI am fully agry with you