युगबोध प्रकाशन के आरक्षण के विरोध निबंध के संबंध में मुख्यमंत्री को पत्र लिखा गया
प्रति,
माननीया श्रीमती अनसुईया उईके जी
राज्यपाल, छ.ग.शासन रायपुर
माननीय भूपेश बघेल जी
मुख्यमंत्री, छ.ग.शासन
माननीय प्रेमसाय सिंह टेकाम जी
मंत्री,आदिम जाति कल्याण
एवं स्कूल शिक्षा विभाग
छ.ग.शासन
माननीय पुलिस अधीक्षक
जिला-रायपुर
विषय- युगबोध अग्रवाल प्रबोध एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड गीता नगर जी ई रोड रायपुर छत्तीसगढ़ द्वारा प्रकाशित प्रबोध हिंदी आधार कक्षा ग्यारहवीं हिंदी गाइड के समसामयिक निबंध विधा अंतर्गत आरक्षण समस्या है शीर्षक अंतर्गत विवादित अंश लिखने के कारण प्रकाशक मंडल एवं लेखक समूह पर दंडात्मक कार्यवाही करने बाबत।
महोदय,
युगबोध अग्रवाल प्रबोध एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड गीता नगर जी ई रोड रायपुर छत्तीसगढ़ द्वारा प्रकाशित प्रबोध हिंदी आधार कक्षा ग्यारहवीं हिंदी गाइड के समसामयिक निबंध विधा अंतर्गत आरक्षण जो कि संवैधानिक प्रावधान है के विरूद्ध में असंवैधानिक लेख लिखा गया है । निबंध का शीर्षक आरक्षण की समस्या पृष्ठ क्रमांक 47-48 में वर्णित है।
इस लेख में संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अंबेडकर को पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण करने की व्यवस्था करने वाला बताया गया है । अनुसूचित जाति के लिए नहीं लिखा । इससे डा.आंबेडकर के प्रति गलत धारणा बच्चों के मन में आ रही है ।
निबंध के पैरा 2 में आरक्षण क्यों ? का उल्लेख किया गया है जिसमें उन्होंने लिखा है । यह प्रणाली अपने आप में समाज विरोधी है । किसी एक वर्ग को किसी भी नाम पर सुविधा पाते देखकर शेष समाज में ईष्र्या,द्वेष और प्रति हिंसा का वातावरण फैलता है । इसलिए आरक्षण मूलतः गलत है। इस तरह से प्रतिनिधित्व के अधिकार के विरोध में असंवैधानिक लेख किया गया है।
पैरा 3 में भारत में आरक्षण टापिक के अंतर्गत उन्होंने लिखा है -यहां एक और सवर्ण जातियों का दबदबा है,तो दूसरी ओर हरिजन अछूत मौलिक अधिकारों से वंचित हैं।यहां कुछ जातियां शासन पर सदा कब्जा जमाए रखती हैं तो निम्न जातियों को वोट भी नहीं डालने दिया जाता यहां अनेक जनजातियां ऐसी हैं जो जंगली जीवन जी रहे हैं।इस तरह से अनुसूचित जनजातियों को जंगली जीवन जीने वाला उल्लेखित किया गया।ईस पैरा मे अनुसूचित जाति के लिए असंवैधानिक शब्द हरिजन का उपयोग किया गया है।प्रकाशक की उक्त कृत्यो से अनुसूचित जाति वर्ग अपमानित महसूस कर रहा है।यह कृत्य अनुसूचित जाति,जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के अधिनियम के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है।
पैरा 4 में इन्होंने भ्रामक तथ्यों का उल्लेख किया है उन्होंने कहा है कि आरक्षण केवल 10 वर्षों के लिए था जो खींचते-खींचते 40 वर्ष लंबी हो गई परिणाम ढाक के वही तीन पात!इससे सुविधा पाकर आरक्षित समुदाय और अधिक लापरवाह और गैर जिम्मेदार हो गया और अकुशल सरकारी कर्मचारी की संध्या बढ़ती गई । इस तरह से इस लेख के माध्यम से इन्होंने आरक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को और अकुशल और लापरवाह तथा गैर जिम्मेदार कह कर अपमानित किया है । इन्होंने मंडल आयोग की व्याख्या करते हुए लिखा है।यथा अगस्त सन् 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी चैधरी देवीलाल को धूल चटाने के लिए हथियार के रूप में प्रयोग किया । इस तरह से इन्होंने देश के प्रतिष्ठित व्यक्ति प्रधानमंत्री के विरुद्ध में अशोभनीय टिप्पणी की है । जिससे माननीय पूर्व प्रधानमंत्री श्री वी पी सिंह की प्रतिष्ठा में आघात हुई है,उनकी छवि धूमिल हुई है । जो कि भारतीय दंड विधान के तहत दंडनीय है। किसी भी प्रतिष्ठित व्यक्ति राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की छवि को धूमिल करना दंडनीय होता है। इस तरह से इन्होंने अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दंडनीय कार्य किया है । प्रतिष्ठित व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए लेख करने का आरोप सिद्ध हो रहा है।जो कि आपराधिक सत्य है। भारतीय संविधान मे राजनैतिक आरक्षण केवल 10 वर्षो के लिए था।जिसे समय समय पर भारत सरकार लोकसभा व राज्यसभा मे संविधान संशोधन लाकर बढ़ाती आ रही है।अभी हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा राजनिति मे आरक्षण को 10 वर्ष के लिए बढ़ाया गया है।मूलतः आरक्षण प्रतिनिधित्व है जो लोक नियोजन,शैक्षणिक संस्थान व विभिन्न योजनाओ में अनुसूचित जाति,जनजाति व पिछड़ा वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करती है।यह कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नही बल्कि यह प्रतिनिधित्व का संवैधानिक अधिकार है। प्रकाशक के उक्त कृत्य से भारतीय संविधान का अपमान हुआ है।
उपरोक्त तथ्यो के आधार पर प्रबोध हिंदी आधार कक्षा ग्यारहवीं हिंदी गाइड के समसामयिक निबंध विधा अंतर्गत आरक्षण की समस्या एक विवादित अंश है।प्रकाशक द्वारा ईस प्रकार का कृत्य से समाज मे आरक्षण के प्रति भ्रामक व गलत संदेश जा रहा है।प्रकाशक द्वारा की गई गलती अक्षम्य है।उक्त विवादित अंश को तत्काल हटाया जाए।यदि उक्त अंश को हटाया नही जाता है तो देश भर के अनुसूचित जाति,जनजाति व पिछड़ा वर्ग उस पुस्तक की प्रतियां जलाने पर मजबूर होंगे।यदि कोई अप्रिय घटना घटती है तो ईसका जवाबदेह प्रकाशक मंडल की होगी।
अतः युगबोध अग्रवाल प्रकाशक प्रबोध एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड गीतानगर रायपुर तथा लेखक मंडल श्री डीके तिवारी ,श्रीमती रंजना द्विवेदी,डा.कुसुम त्रिपाठी,श्रीमती श्रद्धा तिवारी एवं श्री हरि नारायण पांडे के विरुद्ध अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज कर गिरफ्तार करने की कार्रवाई की जाए।
भवदीय
सोशल जस्टिस एंड लीगल फाउंडेशन
प्रति,
माननीया श्रीमती अनसुईया उईके जी
राज्यपाल, छ.ग.शासन रायपुर
माननीय भूपेश बघेल जी
मुख्यमंत्री, छ.ग.शासन
माननीय प्रेमसाय सिंह टेकाम जी
मंत्री,आदिम जाति कल्याण
एवं स्कूल शिक्षा विभाग
छ.ग.शासन
माननीय पुलिस अधीक्षक
जिला-रायपुर
विषय- युगबोध अग्रवाल प्रबोध एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड गीता नगर जी ई रोड रायपुर छत्तीसगढ़ द्वारा प्रकाशित प्रबोध हिंदी आधार कक्षा ग्यारहवीं हिंदी गाइड के समसामयिक निबंध विधा अंतर्गत आरक्षण समस्या है शीर्षक अंतर्गत विवादित अंश लिखने के कारण प्रकाशक मंडल एवं लेखक समूह पर दंडात्मक कार्यवाही करने बाबत।
महोदय,
युगबोध अग्रवाल प्रबोध एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड गीता नगर जी ई रोड रायपुर छत्तीसगढ़ द्वारा प्रकाशित प्रबोध हिंदी आधार कक्षा ग्यारहवीं हिंदी गाइड के समसामयिक निबंध विधा अंतर्गत आरक्षण जो कि संवैधानिक प्रावधान है के विरूद्ध में असंवैधानिक लेख लिखा गया है । निबंध का शीर्षक आरक्षण की समस्या पृष्ठ क्रमांक 47-48 में वर्णित है।
इस लेख में संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अंबेडकर को पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण करने की व्यवस्था करने वाला बताया गया है । अनुसूचित जाति के लिए नहीं लिखा । इससे डा.आंबेडकर के प्रति गलत धारणा बच्चों के मन में आ रही है ।
निबंध के पैरा 2 में आरक्षण क्यों ? का उल्लेख किया गया है जिसमें उन्होंने लिखा है । यह प्रणाली अपने आप में समाज विरोधी है । किसी एक वर्ग को किसी भी नाम पर सुविधा पाते देखकर शेष समाज में ईष्र्या,द्वेष और प्रति हिंसा का वातावरण फैलता है । इसलिए आरक्षण मूलतः गलत है। इस तरह से प्रतिनिधित्व के अधिकार के विरोध में असंवैधानिक लेख किया गया है।
पैरा 3 में भारत में आरक्षण टापिक के अंतर्गत उन्होंने लिखा है -यहां एक और सवर्ण जातियों का दबदबा है,तो दूसरी ओर हरिजन अछूत मौलिक अधिकारों से वंचित हैं।यहां कुछ जातियां शासन पर सदा कब्जा जमाए रखती हैं तो निम्न जातियों को वोट भी नहीं डालने दिया जाता यहां अनेक जनजातियां ऐसी हैं जो जंगली जीवन जी रहे हैं।इस तरह से अनुसूचित जनजातियों को जंगली जीवन जीने वाला उल्लेखित किया गया।ईस पैरा मे अनुसूचित जाति के लिए असंवैधानिक शब्द हरिजन का उपयोग किया गया है।प्रकाशक की उक्त कृत्यो से अनुसूचित जाति वर्ग अपमानित महसूस कर रहा है।यह कृत्य अनुसूचित जाति,जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के अधिनियम के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है।
पैरा 4 में इन्होंने भ्रामक तथ्यों का उल्लेख किया है उन्होंने कहा है कि आरक्षण केवल 10 वर्षों के लिए था जो खींचते-खींचते 40 वर्ष लंबी हो गई परिणाम ढाक के वही तीन पात!इससे सुविधा पाकर आरक्षित समुदाय और अधिक लापरवाह और गैर जिम्मेदार हो गया और अकुशल सरकारी कर्मचारी की संध्या बढ़ती गई । इस तरह से इस लेख के माध्यम से इन्होंने आरक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को और अकुशल और लापरवाह तथा गैर जिम्मेदार कह कर अपमानित किया है । इन्होंने मंडल आयोग की व्याख्या करते हुए लिखा है।यथा अगस्त सन् 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी चैधरी देवीलाल को धूल चटाने के लिए हथियार के रूप में प्रयोग किया । इस तरह से इन्होंने देश के प्रतिष्ठित व्यक्ति प्रधानमंत्री के विरुद्ध में अशोभनीय टिप्पणी की है । जिससे माननीय पूर्व प्रधानमंत्री श्री वी पी सिंह की प्रतिष्ठा में आघात हुई है,उनकी छवि धूमिल हुई है । जो कि भारतीय दंड विधान के तहत दंडनीय है। किसी भी प्रतिष्ठित व्यक्ति राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की छवि को धूमिल करना दंडनीय होता है। इस तरह से इन्होंने अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दंडनीय कार्य किया है । प्रतिष्ठित व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए लेख करने का आरोप सिद्ध हो रहा है।जो कि आपराधिक सत्य है। भारतीय संविधान मे राजनैतिक आरक्षण केवल 10 वर्षो के लिए था।जिसे समय समय पर भारत सरकार लोकसभा व राज्यसभा मे संविधान संशोधन लाकर बढ़ाती आ रही है।अभी हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा राजनिति मे आरक्षण को 10 वर्ष के लिए बढ़ाया गया है।मूलतः आरक्षण प्रतिनिधित्व है जो लोक नियोजन,शैक्षणिक संस्थान व विभिन्न योजनाओ में अनुसूचित जाति,जनजाति व पिछड़ा वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करती है।यह कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नही बल्कि यह प्रतिनिधित्व का संवैधानिक अधिकार है। प्रकाशक के उक्त कृत्य से भारतीय संविधान का अपमान हुआ है।
उपरोक्त तथ्यो के आधार पर प्रबोध हिंदी आधार कक्षा ग्यारहवीं हिंदी गाइड के समसामयिक निबंध विधा अंतर्गत आरक्षण की समस्या एक विवादित अंश है।प्रकाशक द्वारा ईस प्रकार का कृत्य से समाज मे आरक्षण के प्रति भ्रामक व गलत संदेश जा रहा है।प्रकाशक द्वारा की गई गलती अक्षम्य है।उक्त विवादित अंश को तत्काल हटाया जाए।यदि उक्त अंश को हटाया नही जाता है तो देश भर के अनुसूचित जाति,जनजाति व पिछड़ा वर्ग उस पुस्तक की प्रतियां जलाने पर मजबूर होंगे।यदि कोई अप्रिय घटना घटती है तो ईसका जवाबदेह प्रकाशक मंडल की होगी।
अतः युगबोध अग्रवाल प्रकाशक प्रबोध एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड गीतानगर रायपुर तथा लेखक मंडल श्री डीके तिवारी ,श्रीमती रंजना द्विवेदी,डा.कुसुम त्रिपाठी,श्रीमती श्रद्धा तिवारी एवं श्री हरि नारायण पांडे के विरुद्ध अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध दर्ज कर गिरफ्तार करने की कार्रवाई की जाए।
भवदीय
सोशल जस्टिस एंड लीगल फाउंडेशन
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