The Big lie of the century -hai preet jahan ki reet sada

सदी का महाझूठ - है प्रीत जहां की रीत सदा

संजीव खुदशाह

भारतीय सिनेमा के कुछ गीतों ने समाज पर अमिट छाप छोड़ी है। कुछ गीतों ने तो लोगो का मार्ग दर्शन भी किया है। इनमें कुछ गीत ऐसे भी रहे है जिन्‍होने समाज पर अमिट छाप तो छोड़ी है लेकिन वे  झूठ के पूलिंदे रहे है, महज भावनाओं से भरे हुये, सच्‍चाई से कोशो दूर।

ऐसा ही एक गीत है है प्रीत जहां की रीत सदा। इस गीत को फिल्‍म पूरब पश्चिम के लिए इंदिवर उर्फ श्‍यामलाल बाबू राय ने 1970 में लिखा था। प्राथमिक शालेय जीवन में यह गीत  इन पंक्तियों के लेखक के मस्तिष्‍क पर गहरे तक प्रभावित किया था। वह महेन्‍द्र कपूर की आवाज में इस गीत को गया करते। उन्‍हे लगता था की इस गीत की लिखी बाते शब्‍दश: सही है। लेकिन जैसे जैसे लेखक बड़ा हुआ उसके अनुभव और ज्ञान में वृध्दि होती गई । सपनों की दुनिया के बजाय जीवन के सच्‍चाइयों का सामना होता गया। वैसे वैसे इस गीत के एक-एक लफ़्ज झूठे साबित होते गये। आज इसी गीत पर बात होगी। पहले आप  गीत की पंक्तियोंको पूरा पढ ले ।

जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने

भारत ने मेरे भारत ने

दुनिया को तब गिनती आयी

तारों की भाषा भारत ने

दुनिया को पहले सिखलायी

 

देता ना दशमलव भारत तो

यूँ चाँद पे जाना मुश्किल था

धरती और चाँद की दूरी का

अंदाज़ लगाना मुश्किल था

 

सभ्यता जहाँ पहले आयी

पहले जनमी है जहाँ पे कला

अपना भारत जो भारत है

जिसके पीछे संसार चला

संसार चला और आगे बढ़ा

ज्यूँ आगे बढ़ा, बढ़ता ही गया

भगवान करे ये और बढ़े

बढ़ता ही रहे और फूले-फले

मदनपुरी: चुप क्यों हो गये? और सुनाओ

स्‍थाई

है प्रीत जहाँ की रीत सदा

मैं गीत वहाँ के गाता हूँ

भारत का रहने वाला हूँ

भारत की बात सुनाता हूँ

अंतरा 1

काले-गोरे का भेद नहीं

हर दिल से हमारा नाता है

कुछ और न आता हो हमको

हमें प्यार निभाना आता है

जिसे मान चुकी सारी दुनिया

मैं बात वोही दोहराता हूँ

भारत का रहने वाला हूँ

भारत की बात सुनाता हूँ

अंतरा 2

जीते हो किसीने देश तो क्या

हमने तो दिलों को जीता है

जहाँ राम अभी तक है नर में

नारी में अभी तक सीता है

इतने पावन हैं लोग जहाँ

मैं नित-नित शीश झुकाता हूँ

भारत का रहने वाला हूँ

भारत की बात सुनाता हूँ

अंतरा 3

इतनी ममता नदियों को भी

जहाँ माता कहके बुलाते है

इतना आदर इन्सान तो क्या

पत्थर भी पूजे जातें है

इस धरती पे मैंने जनम लिया

ये सोच के मैं इतराता हूँ

भारत का रहने वाला हूँ

भारत की बात सुनाता हूँ

क्‍या सच में भार ने जीरो दिया है?

 

 (जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने

भारत ने मेरे भारत ने)

आमतौर पर एक आम पढ़ा लिखा भारतीय यह मानता है कि भारत में शुन्‍य का अविष्‍कार हुआ। कुछ का कहना है कि पांचवी शताब्‍दी में भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने शुन्‍य का प्रयोग पहली बार किया था। यह मान्‍यता सिर्फ भारतीयों की है विश्‍व इससे कोई इत्‍तेफाक नही रखता। ये खुशफहमी भारत में कैसे घर कर गई यह एक अलग

विषय है। लेकिन शून्‍य का अविष्‍कार किसने किया और कब किया आज एक अंधकार की गर्त में छुपा हुआ है।

ऐसी  कथाएं प्रचलित है की पहली बार शून्‍य का अविष्‍कार बाबिल इराक में हुआ दूसरी बार माया सभ्‍यता 1500 इपू के लोगो ने इसका अविष्‍कार किया। ऐसी जानकारी मिलती है कि मेसोपोटामिया के सुमेरियन लेखको (3500 ई पू) स्‍तंभो में अनुपस्थिति को निरूपित करने के लिए रिक्‍त स्थान का उपयोग किया था।

हाल ही में अमेरिकी गणितज्ञ आमिर एक्‍जेल ने सबसे पुराना शून्‍य कंबोडिया में खोजा है। उन्‍होने अपनी किताब (फाईउिग जीरो: ए मैथमेटिशियन ओडिसी टू अनकवर द ओरिजिन आफ नंबर 2015) में दावा करते है की सबसे पुराना शून्‍य भारत में नही बल्कि कम्‍बोडिया में मिला।

यानि ताजा खोज से ये सिध्‍द होता है कि जीरो की खोज भारत में नही हुई।

(दुनिया को तब गिनती आयी)

यह एक बड़ा झूठ है विश्‍व की पुरानी से पुरानी सभ्‍यता सुमेरियन (3500 ई पू) में सिक्‍के और बैकिंग प्रणाली के सबूत मिले है जो की बिना गिनती के सम्‍भव नही है।

 तारों की भाषा भारत ने

दुनिया को पहले सिखलायी

यदि कवि का इशारा ज्‍योतिष विज्ञान से है तो यह एक धूर्त भाषा है। भारत में ज्‍योतिष नक्षत्र  के बहाने लोगो को ठगा जाता है। यदि कवि का इशारा तारो की खोज से है तो  बता दे की अरस्‍तु के बाद गैलिलियों ने नक्षत्र और तारों के बारे में वैज्ञानिक ढंग से बताया। और अपना दूरबीन यंत्र विकसित किया।

यह कहना की तारो की भाषा भारत ने सिखलायी कोरी कपोल बाते है।

दशमलव भारत ने दिया ?

इसका संबंध शून्‍य के अवि‍ष्‍कार से है जिसकी चर्चा पहले की जा चुकी है।

दशमलव से चांद की दूरी निकाली गई ?

ऐसा लगता है कि कवि इन्‍दीवर का विज्ञान पक्ष काफी कमजोर रहा होगा। दूरी की गणना प्रकाश वर्ष के सिध्‍दान्‍त के माध्‍यम से की गई है जिसका अविष्‍कार यूरोपियों ने किया है।

क्‍या सचमुच सभ्‍यता यहां पहले आई ?

यदि कवि का इशारा सभ्‍यता यानि अच्‍छे चाल चलन से है तो आप इसका अंदाजा यहां के जेलों में बंद धर्म गुरूओं से कर सकते है। यदि कवि का इशारा मानव सभ्‍यता से है तो कार्बन डेटिंग के अनुसार सबसे पुरानी सम्‍यता सुमेर 3500 इसा पूर्व सम्‍यता को माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्‍यता 2300 इ पू क माना  जाता है।

क्‍या कला का जन्‍म यहां पहली बार हुआ ?

कवि किस कला का जन्‍म पहली बार हुआ ये नही बता रहे है। शायद उनका इतिहास बोध कमजोर रहा होगा। जब सभ्‍यता में आप पीछे थे तो कला में आगे कैसे हो सकते है।

भारत के पीछे संसार चला ?

आखिर किस मामले में संसार भारत के पीछे चल रहा है। कवि बताने से परहेज कर रहे है। जबकि ज्ञात इतिहास में भारत ही यूरोपिय देशो के पीछे पीछे चल रहा है । यदि अध्‍यात्‍म में आगे चल रहा है तो प्राचीन काल से लेकर अब तक यहां के आध्‍यात्‍मीक गुरूओं के ऊपर हत्‍या से लेकर रेप तक के आरोप क्‍यो लगे है।

स्‍थाई

है प्रीत जहाँ की रीत सदा

मैं गीत वहाँ के गाता हूँ

भारत का रहने वाला हूँ

भारत की बात सुनाता हूँ

mob linching india

प्रश्‍न यह है क्‍या सच मुच प्रीत इस देश की रीत है? महामारी करोना लाकडाऊन जैसी स्थिति में कोरंटाईन में ब्राम्‍हण दलितों के हाथों का बना खाने खाने से इनकार कर रहे है। हजारों कन्‍या भ्रूण जन्‍म से पहले मार दी जाती है। बहुऐ दहेज की बली चढा दी जाती है। दलितों आदिवासियों पिछड़ा वर्ग और मुसलमानों की माब लिंचिंग आम बात है। क्‍या कवि इसी प्रीत की बात कर रहे है।

अंतरा 1

काले-गोरे का भेद नहीं

हर दिल से हमारा नाता है

कुछ और न आता हो हमको

हमें प्यार निभाना आता है

पहले अंतरे को पढने के बाद ये प्रश्‍न उठता है कि क्‍या भारत में सचमुच कोई भेद भाव नही है। जाति भेद, माब लिचिग, छुआ छूत के रहते हर दिल से नाता की बात करना आप जनता को बेवकूफ बनाना है। ये बात तो सही है कि कुछ और आपको नही आता है। पर प्‍यार निभाना भी नही आता है। जातिय और धार्मिक नफरत सिखाने वाले लोग कहते है कि हमे प्‍यार निभाना आता है।

अंतरा 2

जीते हो किसीने देश तो क्या

हमने तो दिलों को जीता है

जहाँ राम अभी तक है नर में

नारी में अभी तक सीता है

इतने पावन हैं लोग जहाँ

मैं नित-नित शीश झुकाता हूँ

इस अंतरे में भी सिवाय लफाजी के कुछ और नही है। ये बात तो सही है कि भारत ने किसी देश को नही जीता है। लेकिन दिलो को जीतने वाली बात झूठी है। एकलव्‍य का अंगूठा काटने वाले दिल को कैसे जीत सकते है।  शूद्र (पिछडा वर्ग) के संबूक का वध करने वाले राम पूरे देश का आदर्श कैसे हो सकते है। उसी प्रकार अग्नि परिक्षा देने वाली सीता पूरे भारत की नारी की आदर्श नही हो सकती। अब आप ही बताईये की जहां के लोग बात बात में नफरत, छुआ छूत, ऊंच नीच बरतते हो वह पावन कैसे कहला सकते है। वह आज से नही प्रचीन काल से, धर्म ग्रन्‍थो में भी यही छुआ छूत ऊच नीच नफरत भरी हुई है।

अंतरा 3

इतनी ममता नदियों को भी

जहाँ माता कहके बुलाते है

इतना आदर इन्सान तो क्या

पत्थर भी पूजे जातें है

ये बात तो सही है यहां नदियों को माता कहा जाता है। लेकिन ममता की बात झूठी है पूरे मल मूत्र, गंदगी, शव आदि इसी नदियों में बहाकर गंदगी फैलाई जाती है। माता तो यहां गाय को भी कहा जाता है लेकिन सगी माता उपेक्षा का शिकार होकर वृध्‍दा आश्रम में अंतिम समय बिताती है। यह बात तो सही है कि यहां पत्‍थर ही पूजे जाते है मनुष्‍य को आदर तो क्‍या स्‍पर्श के योग्‍य भी नही समझा जाता है।


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