कौन है झोलाछाप डॉक्टर ?
डॉक्टर के बी बनसोडे
पिछले दिनों में बीजेपी सरकार ने आयुर्वेदिक चिकित्सकों को सीधे एलोपैथी पोस्ट ग्रेजुएशन कराने की तथा उसके बाद उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सकों को भी विभिन्न प्रकार की सर्जरी करने की अनुमति दिये जाने की बात की थी ।
जिसके अनुसार आयर्वेदिक चिकित्सक भी कई प्रकार की आंख , नाक , कान , गले के अलावा अनेक प्रकार की जनरल सर्जरी की ट्रेनिग देकर उन्हें लाइसेंस देने को कहा था ।
इस मुद्दे के खिलाफ देश भर के एलोपैथी चिकित्सक तथा उनकी संस्था आईएमए ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया था ।
उनके अनुसार कोई स्पेशलिस्ट ENT , Ophthalmic या General Surgeon बनाने के लिये पहले MBBS की पढ़ाई करवाई जाती है । जिसमें विद्यार्थी को विशेषज्ञ बनने के पहले सभी विषयों का ज्ञान गहराई से पढ़ाया जाता है ।
वैसी शिक्षा आयुर्वेद में नही पढ़ाई या सिखाई जाती है ।
इसके अलावा एलोपैथी का भी कोई एक विशेषज्ञ किसी भी अन्य फील्ड में काम नही कर सकता है । क्योकि उसकी विशेषज्ञता अलग क्षेत्र में है । जैसे कि कोई हड्डी रोग विशेषज्ञ नेत्र रोग विशेषज्ञ का काम नही कर सकता है ।
उसी तरह कोई महिला रोग विशेषज्ञ ENT का काम नही कर सकता है ..... इसी तरह सभी विषय के विशेषज्ञ का अपना फील्ड होता है ।
अब यदि आयुर्वेदिक चिकित्सक को ट्रेनिग देकर भी सर्जरी करवाना है , तो उसके लिये उसे उसके शुरुवात से आयुर्वेदिक विषयों को छोड़ना पड़ेगा । जैसे उनका फार्मेकोलॉजी , पैथोलॉजी वगैरह को त्यागना पड़ेगा ।
और तब वह एलोपैथी के अनुसार सभी विषयों को पढ़कर तथा सीखकर ही विशेषज्ञ बन सकता है ।
*अब सरकार अपनी समझदारी या अज्ञानता का परिचय ना देकर इस जरूरी मापदंड को खारिज करके किसी को भी विशेषज्ञ बनाने की जिद को छोड़ देना ही सही होगा , अन्यथा यह कोशिश वास्तव में जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना है ।*
फिलहाल तो वह मुद्दा अभी कोरोना के बाद से ठंडे बस्ते में है ।
अब आप झोला छाप चिकित्सकों को मान्यता देने की बात करते हैं , तो फिर झाड़फूंक वाले बाबाओं , बैगा गुनिया , तांत्रिक बाबा , हस्तरेखा विशेषज्ञ , तथा ग्रह दशा शांत करने वालों शनिदेव को शांत करने वाले लोगों तथा वास्तु शास्त्र के लोगों को भी फ्रंट लाईन वर्कर का दर्जा क्यों नही दे देना चाहिये ?? आखिरकार वह भी तो जनता की तकलीफ के उपचार में ही हजारों सालों से निर्बाध अपना काम करके जनता को उनके कष्ट से *??* राहत पहुंचाते ही हैं ।
गोबर तथा गोमूत्र से उपचार करने वालों को भी कोरोना से बचाने वाले फ्रंट लाईन वारियर कहने में क्या समस्या है ??
आजकल सोशल मीडिया में भी अनेक लोग विभिन्न प्रकार के उपचार से लोगों का ज्ञानवर्धन कर रहे है , तो उन्हें भी फ्रंट लाईन वारियर का खिताब मिलना ही चाहिये ???
*अब देश को आधुनिकता की बुराइयों से बचाकर वापस 5000 साल पीछे ले जाने वाले सभी बातों का समर्थन हमें क्यों नही करना चाहिये ??*
अवश्य करना चाहिये ।
वैसे भी शहरी लोग , आधुनिक लोग पश्चिमी सभ्यता वाले लोग तो केवल हम सब भारतीय तथा पवित्र लोगों को बर्बाद कर रहे हैं । तो इसलिये फिर हमे वापस जंगली जीवन , शिकारी जीवन को सही मान लेना ही बुद्धिमानी है ।
कृषि में भी आधुनिक विज्ञान का सहारा लेना बंद करना चाहिये ।
देशभर के सभी लोगों को मोटरसाइकिल कार , मोबाईल वगैरह आधुनिक विज्ञान द्वारा निर्मित सब आविष्कारों का प्रयोग करना बन्द करना चाहिये ।
सभी बड़े अस्पताल जिसमें आधुनिक ईलाज होता है , उन्हें बन्द कर देना चाहिये ।
*और सबसे बड़ी बात आधुनिक युग की पढ़ाई लिखाई( शिक्षा ) भी खत्म किया जाना चाहिये ।*
सभी फैक्ट्रियों को तत्काल बन्द करना चाहिये ।जिसमे कपड़े वगैरह समस्त आधुनिक वस्तुओं का उत्पादन होता है तथा जिसका हम रोजमर्रा के जीवन में लगातार उपयोग करते हैं ।
दरअसल कुछ लोग अपने अधूरे ज्ञान को जस्टिफाई करना चाहते हैं । इसलिये अपने देश की जनता को सबसे अच्छा ज्ञान ( शिक्षा ) देने के विरोध में अज्ञानता को सही साबित करने में लगे रहते हैं ।
इसी सिलसिले में हमे इसे देखना होगा ।
झोलाछाप चिकित्सक कोई कैसे बनता है ??
कोई एक कम पढ़ा लिखा व्यक्ति , जो किसी मेडिकल शॉप में काम करते करते तथा , किसी अन्य चिकित्सक के साथ काम करते करते उसे कुछ दवाओं के बार में कुछ ज्ञान हासिल कर लेता है या उसको दवाओं की कुछ सामान्य जानकारी मिल जाती है कि , किस तरह की तकलीफ (लक्षण) में कौन सी दवा काम करती है ।
एक दो इंजेक्शन की जानकारी लेकर वह लोगों का इलाज शुरू कर देता है ।
जब ऐसे आधे - अधूरे या कम जानकार व्यक्ति के ईलाज से कुछ लोगों को छोटी मोटी बीमारियों में आराम मिल जाता है , तो आम जनता उसे चिकित्सक मान लेती है । जनता को भी उसके बेहद अल्प ज्ञान से ही जब राहत मिल जाती है , तो वह दूर शहर के किसी बड़े चिकित्सक के पास जाकर अपना समय तथा पैसा बचाने में ही अपनी समझदारी समझता है ।
इस तरह के झोला छाप चिकित्सकों को सरकार वैसे तो कोई मान्यता नही देती है , लेकिन अघोषित तौर पर इनका कारोबार अत्यंत व्यवस्थित रूप से फल फूल रहा है । इन झोला छाप चिकित्सकों के कारण बड़े बड़े कॉरपोरेट अस्पताल भी अपनी कमाई में इजाफा करते है । इसलिये वे भी उन्हें एक प्रकार से प्रश्रय ही देते हैं ।
अब यदि हम इस समस्या के निदान की बात भी कर लें तो बेहतर होगा ।
झोलाछाप चिकित्सक यदि कहें कि ग्रामीण जन जीवन के अच्छे मित्र हैं , और इसलिये वे आराम से कार्यरत रहते भी हैं ।
आम जनता को सरकार से कोई सहूलियत भी नही मिलती , तो वे झोलाछाप चिकित्सकों के शरणागत होने को मजबूर भी हैं ।
भारत की सरकार ने आजादी के बाद से अब तक गांव गांव में शिक्षा , स्वास्थ्य एवम अन्य समस्त मूलभूत सुविधा प्रदान करने में असफल रही है ।
कहने को मिनी पीएचसी , सीएचसी एवम जिला अस्पताल खोले हुवे है , लेकिन उसमें से अधिकांश जगहों पर ना चिकित्सक हैं और ना पैरामेडिकल स्टॉफ और ना दवाइयाँ या एडमिशन की सहूलियत ।
ऐसी स्तिथि में झोलाछाप ही ग्रामीण जनता के लिये मददगार है ।
अब यदि इस सिस्टम को ठीक करना है , तो सरकार को फिलहाल एक काम करना चाहिये । वह ये कि जितने भी झोलाछाप चिकित्सक हैं , उनकी पहचान करके उन्हें पहली बार , लगभग एक साल की ट्रेनिग देकर , कुछ निश्चित बीमरियों के उपचार के लिये लाइसेंस दे देना चाहिये । फिर कुछ निश्चित दवाओं का किट उपलब्ध करवाना चाहिये एवम उनकी सेलरी निर्धारित करके ग्रामपंचायत से दिलवाई जानी चाहिये ।
हालाकि सरकार ने आशा दीदी इत्यादि को इसके लिये नियुक्त किया है , लेकिन उतना ही पर्याप्त नही है ।
प्रत्येक झोलाछाप चिकित्सक को उसके बाद प्रतिवर्ष 15 दिनों की ट्रेनिंग देना चाहिये , जिससे वह समय समय पर अपडेट होते रहें ।
सरकार सबको सही एवम वैज्ञानिक शिक्षा पद्धति से शिक्षित करने के लिये मुफ्त शिक्षा दे । सभी प्राइवेट शिक्षा संस्थान बन्द किये जाने चाहिये , तथा सभी जगह एक तरह की शिक्षा दी जानी चाहिये । स्टेट बोर्ड , या केंद्रीय बोर्ड ( (ICSE &CBSE) वगैरह बन्द करके समान शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिये । कुछ राज्य अपनी मातृभाषा में शिक्षा देना चाहते हैं , तो उसके लिये यह सुविधा गई जानी चाहिये । शिक्षा हासिल करने का मकसद ज्ञान हासिल करना होना चाहिये , ना की डिग्रीधारी बनकर केवल नौकरी हासिल करने की मानसिकता से बच्चों को तथा जनता को मुक्त किया जाना चाहिये ।
सबको रोजगार प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिये ।
यही सब समानता चूंकि विकसित देशों में लगभग 150 साल पहले ही अपना ली थी , जिनके चलते आज वे विकसित समाज हैं । और हम अभी भी अविकसित समाज और दुनिया के पिछड़े तथा गरीब देश में एक देश है ।
इसमें भी हमें अपनी अज्ञानता पर गर्व करना छोड़कर वास्तविक उन्नति की दिशा में अपनी सोच विकसित करना जरूरी है ।
धन्यवाद ।
बहुत ही अच्छी सोच के साथ अपनी बात को रखी गई है। मैं भी बार-बार इन बातों से विचलित हो जाता था और सोंचने लगता था कि आखिर सरकार क्यों ऐसा करना चाहती है । धन्यवाद खुदशाह साहब !
ReplyDelete