भारत के संविधान के अनुसार भारत एक धर्मनिरपेक्ष
देश है। धर्म निरपेक्ष का सही मतलब होता है ऐसी सरकार जो किसी धर्म के पक्ष में
नहीं है। कुछ लोग धर्म निरपेक्ष का मतलब यह भी निकालते है कि ऐसी सरकार जो सभी
धर्म के पक्ष में हो सबको लेकर चलती हो।
पिछले दिनों तमिलनाडु में एक सड़क परियोजना के
उद्घाटन में सरकारी अधिकारी ने गलती से सिर्फ ब्राम्हण पुजारी को बुला लिया सांसद
सैंथिलकुमाल ने पूछा की बाकी धर्म के प्रतिनिधि कहां है । बताना चाहूंगा की तमिलनाडु
में सिर्फ एक धर्म के पुजारी से सरकारी योजनाओं में पूजा नहीं कराई जाती, आम तौर पर पूजा होती ही नहीं है।
दरअसल, तमिलनाडु राज्य के धर्मपुरी सीट
से लोकसभा सांसद सेंथिलकुमार एक सड़क परियोजना की भूमि पूजा के लिए अपने गृह जिले
में पहुंचे थे। यहां पहुंचने पर उन्होंने लोक निर्माण विभाग के कार्यकारी अभियंता
से पूछा कि क्या उन्हें पता है कि एक सरकारी समारोह को इस तरह से आयोजित नहीं किया
जाना चाहिए, जिसमें केवल एक विशेष धर्म की प्रार्थना शामिल
हो। उन्होंने अधिकारी से पूछा कि आप ये बात जानते हैं या नहीं।
इस दौरान मौके पर मौजूद एक भगवा वस्त्र पहने हिंदू
पुजारी को देखकर उन्होंने अधिकारी से पूछा कि अन्य धर्मों के प्रतिनिधि कहां है।
उन्होंने अधिकारी से कहा कि, "यह क्या है? अन्य
धर्म कहां हैं? ईसाई और मुस्लिम कहां हैं? चर्च के फादर, इमाम को आमंत्रित करें, किसी भी धर्म को नहीं मानने वालों को भी आमंत्रित करें। गौरतलब है कि
सामाजिक न्याय के प्रतीक पेरियार ईवी रामासामी द्वारा स्थापित एक तर्कवादी संगठन
द्रविड़ कड़गम सत्तारूढ़ द्रमुक का मूल निकाय है।
सांसद एस सेंथिलकुमार की डांट के बाद लोक निर्माण
विभाग के कार्यकारी अभियंता ने सांसद से माफी मांगी। उन्होंने कहा कि यह
शासन का द्रविड़ मॉडल है। सरकार सभी धर्मों के लोगों के लिए है।
ज्ञातव्य है कि इसके कुछ दिनों पहले प्रधान मंत्री
नरेन्द्र मोदी ने नये संसद भवन में राजकीय चिन्ह अशोक स्तंभ की पूजा सिर्फ ब्राम्हण
पुजारियों से कराई। जबकि यह देश संविधान से चलता है न कि किसी धर्म के विधान से ।
कायदे से पूजा नहीं करानी चाहिए थी। यदि करानी पड़ रही है तो भारत में जितने भी
धर्म के मानने वाले है उनके पुजारियों से पूजा करानी चाहिए।
यह बताना जरूरी है की संविधान जब निर्माणाधीन था
तब इस पर चर्चा हुई जिसमें सभी समाज और स्थान के चुने हुये प्रतिनिधि मौजूद थे।
ने यह निर्णय लिया था की भारत में एक धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना की जानी
चाहिए। ताकि सभी समता समानता एवं सद्भावना से रह सके। बाद में कांग्रेस की सरकार
ने संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ दिया। यह संविधान की भावना के हिसाब से एक अच्छा
कदम था। इसी तरह यह बात कॉमन हो गई और इसे गंभीरता नहीं लिया गया।
लेकिन तमिलनाडु सांसद डां सेन्थिल कुमार के वीडियो
वायरल हो जाने के बाद, यह बात चर्चा में फिर आ गई की भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है जिसमें
सभी धर्मो का समान आदर होना चाहिए। क्योंकि एक आम हिन्दू भी धर्म निरपेक्ष सरकार
चाहता है।
सरकर को धर्म निरपेक्ष क्यो होना चाहिए:
भारत एक ऐसा देश है कि जिसमें कई धर्मों, सैकड़ो पंथो को
मानने वाले लोग रहते है। देश को अखण्ड
बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि सभी धर्म एवं पंथो का बराबर सम्मान किया जाय। यह सम्मान
तभी हो सकता है जब आप सरकार और धर्म में दूरियां रखेगें। आप उत्तर भारत के सरकारी
कार्यलयों में एक खास धर्म के देवी देवता की तस्वीर या पूजा स्थल पाते है। जबकि
तमिलनाडु सरकार ने पूर्व में भी संविधान के भावना का आदर करते हुये सरकारी कार्यालय
में मंदिर मस्जिद या किसी भी पूजा स्थल, तस्वीर न लगाने का
आदेश जारी किया था। दर असल तमिलनाडु एवं उसकी सरकार पर प्रसिध्द तर्कशास्त्री इ
वी रामास्वामी पेरियार का प्रभाव रहा है। यही कारण है तमिलनाडु देश का सबसे उन्नत
राज्य है।
सरकारी धन का दुरूपयोग:
चूकि सरकार को टैक्स सभी धर्म पंथ को मानने वाले
लोग देते है । इसलिए सरकार को इस टैक्स के पैसे को किसी खास धर्म के उपर खर्च करने
से बचना चाहिए। यह संविधान के भावना के खिलाफ है। जनता चाहती है उसे सड़क बिजली
पानी मिले, गरीबी दूर हो, बेरोजगारी से देश निजात पाये ।
सरकारी मेडिकल, इंजिनीयरीग कालेज खुले शिक्षा चिकित्सा सस्ती
हो। आज भारत के दूर दराज में ऐसे कई गांव है जहां बिजली पानी सड़क अब तक नहीं
पहुची है। इन सामरिक चीजों में टैक्स का पैसा खर्च होना चाहिए।
संविधान कहता है तर्क शील बनों अंधविश्वास से निजात पाओ:
संविधान की धारा 51 क की उपधारा ज कहती है कि भारत
में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाये। लोग तर्क शील बने। धर्म एक निजी
मामला है उसे घर एवं पूजा स्थलों तक सीमित होना चाहिए। आज अंधविश्वास के कारण पूरा
देश पिछड़े पन का शिकार है । कई मौतें सिर्फ अंधविश्वास के कारण होती है। लोग अपनी
मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों के इलाज के लिए आज भी ओझा, बैगा, मौलवी के भरोसे रहते है। इस कारण स्वास्थ सूचकांक में भारत पिछड़ता जा
रहा है। हमें उन यूरोपीय देशों से सीख लेनी चाहिए जिन्होंने धर्म के बजाए
वैज्ञानिक विचारधारा एवं तकनीक अपनाया और विकसित देशों में अपना मुकाम बनाए हुए
है।
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