छत्तीसगढ़ी सिनेमा के जनक मनु नायक
संजीव खुदशाह
पिछले दिनों प्रथम छत्तीसगढ़ी फिल्म के
निर्माता निर्देशक मनु नायक को राज्य का प्रतिष्ठित सम्मान किशोर साहू से सम्मानित
किया गया। यह सम्मान सिनेमा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए दिया
जाता है। मैं यहां बताना चाहूंगा की मनु नायक ने छत्तीसगढ़ी में पहली फिल्म कही
देबे संदेश का निर्माण और निर्देशन किया था। यह फिल्म उस वक्त बनी जिस समय फिल्मी
दुनिया में जाना किसी सपनों की दुनिया में जाना जैसे था।
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वे अपनी तीक्ष्ण बुद्धि और ईमानदारी के
बल पर कंपनी में एक खास जगह बना लेते हैं। उन्हें कंपनी का वित्त विभाग संभालने के
लिए दे दिया जाता है और वह उस समय के तमाम बड़े कलाकार हीरो, हीरोइन ,पार्श्व गायक, संगीतकारों को पेमेंट किया करते थे।
इससे उनकी इन सब कलाकारों से पहचान हो गई। एक व्यक्तिगत रिश्ता कायम हो गया। इनका
मुंबई से रायपुर आना जाना चलता रहा। उनके भीतर एक कलाकार भी था जो उन्हें मुंबई तक
खींच लाया था। बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था और उन्हें फिल्म बनाने के लिए प्रेरित
कर रहा था।
कही देबे संदेश फिल्म बनाने की कहानी
डीएमए इंडिया को दिये गये साक्षात्कार
के दौरान मनु नायक बताते हैं कि जब वह रायपुर में रहा करते थे। तब उनसे एक दलित
यानी सतनामी समाज के लड़के से दोस्ती हो गई थी । वह उनका एक करीबी दोस्त बन गया।
कभी वह घर आता तो मां उतने क्षेत्र को जितने एरिया में दोस्त खड़ा होता था या
बैठता था। उस जगह को गोबर से लीप देती थी। यानि उस वक्त छुआ-छूत, जाति-प्रथा चरम पर थी । इससे उन्हें बहुत तकलीफ होती। लेकिन वह कह
नहीं पाते। जब फिल्म बनाने की बारी आई तो उन्होंने इस तरह की घटनाओं को याद करते
हुए एक रोमेंटीक कहानी तैयार की जो ग्रामीण सामाजिक परिवेश पर आधारित था। जिसमें
हीरो दलित परिवार से और हीरोइन ब्राह्मण परिवार से आती थी। इस फिल्म को बनाने में उन्हे
बहुत मेहनत करना पड़ा । पहले सारे गीत रिकॉर्ड करवाए गए। जिसमें मोहम्मद रफी, सुमन कल्याणपुर, महेन्द्र कपूर , मन्ना
डे जैसे बड़े
गायकों से गवाया गया। बाद में यह गीत काफी हिट हुए। पैसे की कमी थी इसीलिए सेट में
शूटिंग नहीं की जा सकती थी। उन्होंने पूरी फिल्म की शूटिंग के लिए छत्तीसगढ़ के ही
पलारी गांव का चयन किया । नवंबर दिसंबर ठंड के महीने में उन्होंने इसकी शूटिंग
पूरी की। महीनों मुंबई के टेक्नीशियन कलाकार पलारी में जमे रहे।
यहां पर मनु नायक एक फिल्म निर्माता से
भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि वह सिर्फ मनोरंजन के लिए फिल्म का
निर्माण नहीं करते हैं। बल्कि समानांतर सिनेमा की तरह वह समाज की सच्चाई जातिवाद
छुआ छूत को भी सामने लाने की कोशिश करते हैं। इस फिल्म के माध्यम से वे सागर सरहदी, श्याम बेनेगल, बसु भट्टाचार्य जैसे बड़े निर्देशकों
की सूची में जगह बना लेते हैं।
फिल्म को लेकर विवाद
वे बताते हैं कि जब 1965 में फिल्म कहि देबे संदेश रिलीज हुई
तो कुछ कट्टरपंथियो को फिल्म के कथानक को लेकर आपत्ति हुई। वे फिल्म को बैन करने
की मांग करने लगते है। फिल्म रिलीज होने से पहले काफी चर्चित हो चुकी होती है। मनु
नायक इस फिल्म को टैक्स फ्री करवाने लिए एड़ी चोटी एक कर देते हैं। फिल्म टैक्स
फ्री होते ही बैन करने का विवाद समाप्त हो जाता है। इस फिल्म को जनता का बहुत
प्यार मिला। समीक्षकों और लेखकों द्वारा इसे काफी सराहा गया। क्योंकि यह
छत्तीसगढ़ी में पहली फिल्म थी । यह माना जाता है कि यह फिल्म तकनीकी दृष्टिकोण से
कमजोर होगी। लेकिन जब आप इस फिल्म को देखते हैं तो पाते है कि उस जमाने की उच्च
तकनीक का उपयोग करके बनाई गई थी। बेजोड़ संगीत, मजबूत
पटकथा, सधे हुए निर्देशन के आधार पर यह एक
महत्वपूर्ण फिल्म साबित होती है।भले ही यह फिल्म ब्लैक एंड वाइट है । लेकिन
दर्शकों पर पूरा प्रभाव छोड़ती है।
86 वर्षिय मनु नायक कहते हैं कि इस फिल्म
की ओरिजिनल प्रिंट उनके पास नहीं है। जो प्रिंट यूट्यूब पर अपलोड की गई है उसकी
क्वालिटी बेहद खराब है । वह इसकी प्रिंट को लेकर चिंतित है। यह कोशिश की जानी
चाहिए कि छत्तीसगढ़ी भाषा में पहली फिल्म की ओरिजिनल प्रिंट प्राप्त की जाए और
उसका डिजिटलाइजेशन करके छत्तीसगढ़ के सिनेमाघरों में दिखाई जाए। ताकि लोगो को
फूहड़ फिल्मों से मुक्ति मिल सके और स्थानीय कलाकारों को मार्गदर्शन। तब कहीं जाकर
मनु नायक का सही सम्मान हो सकेगा। यह तारीफें काबिल है कि उन्हें सरकार के द्वारा
किशोर साहू सम्मान दिया गया लेकिन उनका कद इस सम्मान से भी कहीं ऊंचा है। हिंदी
फिल्म दुनिया में छत्तीसगढ़ के तीन कलाकारों ने अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।
(किशोर साहू, हबीब तनवीर) उनमें से एक मनु नायक भी
हैं। उनकी विलक्षण प्रतिभा को एक सलाम तो बनता है।
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