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How right, how wrong is it to end Rahul's membership of Parliament with immediate effect.

राहूल कि तत्काल प्रभाव से संसद कि सदस्यता समाप्त करना कितना सही कितना गलत।

संदीप खुदशाह

        गुजरात के सूरत की सेशन कोर्ट ने चार साल पुराने मानहानि केस में राहुल को दोषी पाया था और दो साल

जेल की सजा सुनाई थी। इसके साथ ही कोर्ट ने निजी मुचलके पर राहुल को जमानत देते हुए सजा को 30 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया था।

      दरअसल, जनप्रतिनिधि कानून के मुताबिक, अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा हुई हो तो ऐसे में उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा से) रद्द हो जाती है। इतना ही नहीं सजा की अवधि पूरी करने के बाद छह वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य भी होते हैं. राहुल को एक दिन पहले ही कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई और दूसरे दिन लोकसभा सचिवालय की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में राहुल की संसद सदस्यता रद्द करने की सूचना दे दी गई है।

     दरअसल, जब मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उनको सजा दी और उसके साथ 30 दिनों का स्टे भी दिया था कि आप अपील कर सकते हैं। (लेकिन ये सही सही पता नहीं है कि केवल बेल दिया गया है या फिर स्टे भी किया गया था। इसे देखने की जरूरत है) चूंकि, 2013 में लिली थॉमस बनाम इंडिया मामले की सुनवाई के दौरान जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के सेक्शन (8) और सब सेक्शन (4) को चैलेंज किया गया था कि ये असंवैधानिक है। इसके तहत जो है सिटिंग MP और MLA को 3 महीने का समय दिया जाता था कि वो अपील कर सकते थे और इतने दिनों तक उनकी सदस्यता बरकरार रहती थी, लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दे दिया था. कोर्ट ने कहा था कि अगर 2 साल की सजा होती है तो आपकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से खत्म कर दी जाएगी.

क्‍या मामला है?

साल 2019 का ये मामला 'मोदी सरनेम' को लेकर राहुल गांधी की एक टिप्पणी से जुड़ा हुआ है जिसमें उन्होंने नीरव मोदी, ललित मोदी और अन्य का नाम लेते हुए कहा था, "कैसे सभी चोरों का सरनेम मोदी है?"
 
क्या है कानून ?

●जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(3) के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो वह अयोग्य हो जाएगा। जेल से रिहा होने के छह साल बाद तक वह जनप्रतिनिधि बनने के लिए अयोग्य रहेगा।

● इसकी उपधारा 8(4) में प्रावधान है कि दोषी ठहराए जाने के तीन माह तक किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता है। और दोषी ठहराए गए सांसद या विधायक ने कोर्ट के निर्णय को इन दौरान यदि ऊपरी अदालत में चुनौती दी है तो वहां मामले की सुनवाई पूरी होने तक उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।


sandeep khudshah

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