समाज की एकता के लिए अम्बेडकरी आंदोलन को वंचित समाज के अधिकारों के लिए आगे आना होगा
विद्याभूषण रावत की अम्बेडकरी साहित्यकार संजीव खुदशाह से बातचीत
(समाज वीकली)- संजीव खुदशाह का जन्म 12 फरवरी 1973 को बिलासपुर छत्तीसगढ़ में हुआ। आप देश में चोटी के दलित लेखकों में शुमार किए जाते है। उनकी रचनाएं देश की लगभग सभी अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है।संजीव जी की “सफाई कामगार समुदाय” राधाकृष्ण प्रकाशन से एवं “आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग” शिल्पायन से, “दलित चेतना और कुछ जरुरी सवाल” शिल्पायन से इनकी चर्चित कृतियों मे शामिल है। संजीव खुदशाह यू ट्यूब चैनल DMAindia online के प्रधान संपादक है। वर्तमान में संजीव जर्नलिज्म डिपार्मेंट से पीएचडी कर रहे हैं। वह कानून की पढ़ाई भी कर चुके हैं और महत्वपूर्ण बात ये की वंचित समूहों मे सबसे भी भी सबसे वंचित समाज से आते हैं और इसलिए उनके दिल की बात और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। वर्षों पूर्व अम्बेडकरी आंदोलन से जुडने के बाद और लेखन के जरिए सम्पूर्ण दलित समाज को जगाने की बात कहने वाले संजीव आज आहत हैं क्योंकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट मे अनुसूचित जातियों के वर्गीकरण के फैसले का स्वागत किया। इस बातचीत मे हम संजीव खुदशाह के संघर्षों और वर्गीकरण के इस सवाल से पैदा हुई सामाजिक स्थिति पर बात करेंगे।
आप तो अम्बेडकरी आंदोलन का अभिन्न अंग रहे हैं और हमेशा से बाबा साहब के मिशन को लेकर सक्रिय भी रहे। आपने अपने मंचों पर और दूसरों के मंचों पर भी दलित एकता की बाते कही हैं लेकिन आज आप पर हमला हो रहा है क्योंकि आपने अति दलित जातियों के आरक्षण के संदर्भ मे सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का समर्थन किया है। सर्वप्रथम तो हमे ये बताए कि आखिर आप पर किस प्रकार का हमला हो रहा है और कौन लोग कर रहे हैं ?
संजीव : दरअसल मैं अति दलित का समर्थन नहीं कर रहा हूं मैं उन लोगों का समर्थन कर रहा हूं जो वास्तव में वंचित हैं और इस समय पिछड़ा दलित जिसे महादलित अति दलित भी कह सकते हैं। वह वास्तव में बहुत ही पीछे है और शासन संसाधन की सुविधा उस तक अभी नहीं पहुंची है। इस समय मेरी यह जिम्मेदारी है कि एक विचारक और बुद्धिजीवी होने के नाते मैं अपने विचार पर अडिग रहूं और मैंने वह किया। मैं विभिन्न मंचों पर यह कह रहा हूं कि अगड़ी दलित और पिछड़े दलित दोनों जातियों को आपस में बैठकर बातचीत करनी चाहिए। पिछड़ापन क्यों है? इस पर विचार करना चाहिए। क्योंकि इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि एक बहुत बड़ी संख्या में दलित जातियां पिछड़ेपन का शिकार हैं। मुझे नासमझ बताया जा रहा है यह कहा जा रहा है कि मैं आरएसएस या बीजेपी का एजेंट हूं। मेरी समझ पर भी प्रश्न चिन्ह उठाया जा रहा है और उन लोगों के द्वारा उठाए जा रहा है जो मेरे काफी करीब है। जिनके साथ मैंने आंदोलनों में हिस्सा लिया है। इस कारण में दुखी भी हूं क्योंकि वह मेरी बात को समझने के लिए, सुनने के लिए तैयार नहीं है।
इतने वर्षों तक सक्रिय रहने के बाद क्या आपको लगता है कि हमारे नेता और बुद्धिजीवी अपनी जातियों के ढांचे या खांचे से आगे नहीं निकल पाए हैं ?
संजीव : अभी के 21 अगस्त वाले आंदोलन से यह बात छनकर आती है कि दलित आंदोलन दरअसल कुछ जातियों का आंदोलन है। इन जातियों को सिर्फ अपने स्वार्थ की चिंता है। बाकी दलित जातियों के बारे में यह सोचने और सुनने को भी तैयार नहीं है। इसका उदाहरण अगर आपको देखना है तो अंबेडकर जयंती के प्रोग्राम में आप देख सकते हैं। लिखा होता है सार्वजनिक अंबेडकर जयंती समारोह लेकिन उसके अध्यक्ष से लेकर सारे पदाधिकारी एक ही जाति समाज से होते हैं। शासन से मिलने वाले रकम का यह लोग बंदर बांट करते हैं। इसमें भी किसी और को हिस्सेदारी नहीं देते हैं और आज यही लोग बड़ी-बड़ी बात कर रहे हैं कि दलितों को बाटा हुआ है। दरअसल बांटने वाले यह खुद हैं। यही हाल-चाल देश भर के बुद्ध विहारों का भी है जो की सिर्फ बुद्ध विहार नहीं बल्कि जाति पंचायत का अड्डा है।
आपने बुद्ध विहारों को जाति पंचायत का अड्डा करार दे दिया है। क्या ये कुछ अधिक नहीं हो गया ? आज तो देश भर मे न केवल दलित समुदाय अपितु पिछड़े वर्ग के लोग भी बौद्धह धम्म मे आ रहे हैं और भानते लोग और भिखु लोग भी विभिन्न समुदायों से निकल रहे हैं। आखिर आपको ऐसा क्यों लगा कि वे जाति पंचायत का अड्डा बन गए हैं।
संजीव : बुध विहार डॉक्टर अंबेडकर के ड्रीम प्रोजेक्ट का हिस्सा होना चाहिए था । डॉक्टर अंबेडकर ने कई सपने देखे हैं लेकिन उनके दो सपने को उनका ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है। पहला जाति का उन्मूलन दूसरा सबको प्रतिनिधित्व। बुद्ध विहार में आकर लोग जाति का उन्मूलन करना बंद कर दिये और गैरों के लिए बुध विहार में ताले जड़ दिए गए। बुध विहार को देखकर आप यह आसानी से बता सकते हैं की कौन सा बुध विहार किस जाति का है।
जब आपकी आलोचना हो रही थी तो क्या आपको लगा कि आपके द्वारा उठाए गए प्रश्न वाजिब हैं ?
संजीव : मै इन आलोचनाओं को समझने की कोशिश कर रहा हूं और उनका चिंतन मनन करता हूं तो मुझे यह समझ में आता है कि मैंने जो प्रश्न उठाए हैं या मैंने जो स्टैंड लिया है वह बिल्कुल सही है।
सुप्रीम कोर्ट के वर्गीकरण के प्रश्न पर दिए आदेश पर आपकी राय ?
संजीव : सुप्रीम कोर्ट में दो मुद्दे उठाएं गए पहले क्रीमी लेयर का मुद्दा दूसरा वर्गीकरण का मुद्दा। क्रीमी लेयर के मुद्दे से में सहमत नहीं हूं क्योंकि दलित की परेशानी भेदभाव छुआछूत से ताल्लुक रखती है। आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है यह प्रतिनिधित्व है जो की जब तक गैर बराबरी है तब तक चलनी चाहिए।
लेकिन वर्गीकरण को मैं सकारात्मक नजरिए से देखता हूं। मैं खुद डोमार जैसी अति पिछड़े दलित जाति से ताल्लुक रखता हूं और मैं यह देख रहा हूं कि वाल्मीकि समेत अन्य सफाई कामगार जातियां आज भी विपरीत परिस्थिति में काम कर रही है। जीवन यापन कर रही हैं और दलित आरक्षण में इनका बहुत बड़ा हिस्सा है। लेकिन उस हिस्से की नौकरियां इन्हें नहीं मिल रही है। निश्चित रूप से आरक्षण के वर्गीकरण से पीछे रह गई जातियों को फायदा मिलेगा। अगड़े दलित जो आरोप लगा रहे हैं की इससे दलित बट जाएंगे या आप में कोई नयापन नहीं है। यही बात कम्युनल अवार्ड आने पर अगड़ी जाति (सवर्ण) भी कहती रही है।
आज दलित आंदोलन या अम्बेडकरी आंदोलन इस विषय पर पूरी तरह से विभाजित दिखता है। जो लोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आलोचना कर रहे हैं वे आरोप लगा रहे हैं कि उनकी जातियों पर हकमारी का आरोप लगाया जा रहा है जो गलत है लेकिन ये भी कोई समझदारी नहीं कि अपने अन्य भाई बहिनों की अस्मिताओ के प्रश्न को बिल्कुल ही इग्नोर कर दिया जाए। क्या आपको कभी ये महसूस हुआ कि इन समुदायों की बैट अम्बेडकरी राजनीति और दर्शन का हिस्सा नहीं बन पा रही हैं क्योंकि आप तो सभी मुखधारा के कार्यक्रमों से जुड़े रहे हैं।
संजीव : यह बात सही है कि हक मारा जा रहा है या कोई आपका हक छीन रहा है यह कहना गलत है। लेकिन इन जातियों के पिछड़ेपन से इनकार नहीं किया जा सकता। जैसे पहले अछूत पिछड़े थे आरक्षण आने के बाद वे आगे बढ़े हैं। इसी प्रकार पिछड़े अछूत को अलग से आरक्षण मिलेगा तो वह भी आगे बढ़ेंगे।
आश्चर्य की बात है कि अगड़े दलित अपने से कमजोर वंचितों की आवाज सुनने तक को तैयार नहीं है, मनना तो दूर की बात है। यह किसी भी हाल में अंबेडकरवादी नहीं हो सकते संविधान वादी नहीं हो सकते यह संविधान विरोधी है। क्योंकि संविधान कहता है की सबसे अंतिम व्यक्ति को उसका लाभ मिले। जिस पर यह रोड़ा लगा रहे हैं। यह बात सही है कि पिछड़े दलितों की मांगे, उनकी समस्याएं अंबेडकर राजनीति और उसके दर्शन का हिस्सा नहीं बन पा रही है। क्योंकि यहां पर भी वह इग्नोर होते हैं। उपेक्षित किए जाते हैं। भेदभाव का शिकार होते हैं। बहुजन समाज पार्टी ने सीवर में काम करने वाले लोगों की समस्याओं को कभी नहीं उठाया।
आप एक साहित्यकार हैं जिसके बारे मे कहते हैं कि वह समाज को नई दिशा देता है और भीड़ के बीच मे भी न्याय के साथ खड़ा रहता है चाहे अकेले ही क्यों न हो। क्या साहित्य अब जाति के ढांचे को नहीं तोड़ पा रहा है। ऐसा कहते हैं कि बुद्धिजीवी अपने आंदोलन और राजनीति को दिशा देता है लेकिन आज वह शायद पार्टियों और आंदोलनों के पीछे अनुसरण की भूमिका मे होकर उनका ‘वर्णन’ कर रहा है, उन्हे दिशा नहीं दे रहा।
संजीव : मुझे लगता है कि इस समय मेरी जिम्मेदारी यह है कि मैं वंचितों के हित के लिए खड़ा हूं चले चाहे मुझे अकेला कर दिया जाए। वंचित दलित में भी बहुत सारे लोग अगड़े दलितों के बातों में गुमराह हो रहे हैं और उन्हें लगता है कि उनके साथ रहना चाहिए। इमोशनल ब्लैकमेलिंग का भी वे शिकार हो रहे हैं। अगड़े दलित भी हमारे आंदोलन के साथी हैं हम खुद भी उनके इस रुख से परेशान और चिंतित हैं। वे पिछड़े दलितों के खिलाफ इस प्रकार आंदोलन करेंगे आज भी यकीन नहीं होता है।
आपने तो वर्षों पूर्व स्वच्छकार समाज की जातियों को लेकर एक पुस्तक लिखी। क्या आपसे पहले कम से कम इस दौर मे किसी ने इन समाजों के हालात पर कुछ लिखा ? यदि नहीं तो क्यों ?
संजीव : समस्या यही है दलित आंदोलन में इन लोगों ने सफाई कामगार समुदाय की समस्याओं को न तो पढ़ने की कोशिश की न जानने की कोशिश की। इन पर लिखना तो बहुत दूर की बात है। इसीलिए आज भी यह उन समस्याओं से अनभिज्ञ है और न जानना चाहते हैं। पिछड़े दलितों के खिलाफ आंदोलन करना इसका बहुत बड़ा उदाहरण है।
इन्होंने स्वच्छकार समुदाय पर इसलिए नहीं लिखा क्योंकि इन दोनों वर्गों में भेद बहुत पहले से है। सुप्रीम कोर्ट ने इन भेदो को सिर्फ रेखांकित किया है। बुद्ध विहार, अंबेडकर जयंती के कार्यक्रमों में यह भेद स्पष्ट रूप से दिखता है।
ये आरोप लगाए जा रहे हैं कि स्वच्छकार समाज बाबा साहब अंबेडकर के साथ नहीं आए। बहुत से लोग ये कह रहे हैं की ये तो हिन्दू हैं और भाजपा को वोट देते हैं इसलिए इन्हे अनुसूचित जातियों के आरक्षण से बाहर कर ई डब्ल्यू एस मे डाल दिया जाए । ऐसे प्रश्नों का आप कैसे जवाब देंगे।
संजीव : जिन लोगों ने डॉक्टर अंबेडकर को नहीं पढ़ा है वही ऐसी बात कह सकते हैं कि यह समाज अंबेडकर के साथ नहीं आए आप रामरतन जानोरकर की बात कीजिए आप एडवोकेट भगवान दास की बात कीजिए। ऐसे बहुत सारे नाम है। यह सब ऐसे लोग हैं जिन्होंने शुरुआत से बाबा साहब के साथ कदम ताल मिलाकर चला है। इसके लिए इन्हें एडवोकेट भगवान दास की किताब बाबा साहब और भंगी जातियां पढ़ना चाहिए।
यदि आप भेदभाव करेंगे अपने भाई से, अपने भाई को नीचा दिखाएंगे तो मजबूर होकर वह भाई उनके पास जाएगा जो उनके साथ भेदभाव नहीं करते हैं। उन्हें प्यार से दुलारते हैं। आरएसएस के लोगों ने उन तक अपनी पहुंच बनाई है और उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास किया है। भले ही उनका मकसद कुछ और रहा हो लेकिन अगड़े दलित ने अपने इन वंचित भाइयों के लिए क्या किया? शिवाय उनके खिलाफ आंदोलन करने के। 21 तारीख के आंदोलन ने इस खाई को और चौड़ा कर दिया है।
आरएसएस और भाजपा को वोट देने की बात करना बहुत गलत है। कौन किसको वोट देता है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि आरएसएस और भाजपा के सांसद जो अनुसूचित जाति आरक्षित सीट से आए हैं उनकी जाति आप देख लीजिए। वह सब अगड़ी दलित जाति के हैं न की वंचित दलित जातियों के।
इतने लंबे समय तक अम्बेडकरी आंदोलन से जुड़े रहने के बाद क्या आपको लगता है कि बुद्धिजीवियों ने एक बहुत बड़ा अवसर खो दिया जिससे पूरे दलित समाज को एक किया जा सकता था।
संजीव : बिल्कुल सही कहा आपने अगड़े दलित बुद्धिजीवियों ने एक बहुत बड़ा अवसर खो दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस वर्डिक्ट के आने के बाद उन्हें पिछड़े दलित जातियों के प्रतिनिधियों से बुद्धिजीवियों से बातचीत करनी चाहिए थी। उन्हें विश्वास में लेना था लेकिन उन्होंने यह अवसर खो दिया। सोशल मीडिया में वंचित दलित जातियों को इतनी गालियां दी जा रही हैं इतना अपमानित किया जा रहा है कि उतना अपमान सवर्ण जातियां भी नहीं करती हैं। रमेश भंगी की फेसबुक पोस्ट में देखें किस प्रकार गालियां दी जा रही है क्या ये एट्रोसिटी नहीं है।
क्या आपको लगता है कि सोशल मीडिया के इस दौर मे बहुत से लोगों ने इसे ‘आपदा मे अवसर’ मानकर समुदायों के बीच वैमनस्य बढ़ाया क्योंकि दो विभिन्न समुदायों को एक साथ लाने की बजाए पूरी बहस आरक्षण खत्म करने की बात पर या गई जबकि 1990 के बाद से आरक्षण पर हमला है लेकिन इनमे से अधिकांश उस समय से चुप थे और कुछ तो निजीकरण को अच्छा भी बता रहे थे।
संजीव : इसका फायदा सवर्ण समाज ने उठाया है और दोनों समुदायों के बीच वह वैमनस्य बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है। इस काम में अगड़े दलितों ने आग में घी का काम किया है।
आपका अपना जीवन भी मुश्किल हालातों से निकला है। आप हमे अपनी पारिवारिक पृष्टभूमि के विषय मे बताएं।
संजीव : क्योंकि हम और हमारा परिवार जातिय पहचान के साथ जी रहा था। इसीलिए भेदभाव बचपन से झेलना पड़ा। गरीबी लाचारी से जीवन आगे बढ़ा। शिक्षा ने उभरने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खास तौर पर डॉक्टर अंबेडकर से प्रेरणा मिलने के बाद अपने शोषकों और उद्धारकों में फर्क करना आ गया और इसके बाद हम लोगों को बाबा साहब से परिचय करवाने में अपना जीवन लगा दिए।
अम्बेडकरवाद के संपर्क मे आप कैसे और कब आए।
संजीव : मेरे मामा प्रमोद खुरशैल जी कांशीराम साहब के साथ काम करते थे। जब उन्होंने बामसेफ का गठन किया था मामा जी ने ही एक किताब लाकर दी जिसमें डॉक्टर अंबेडकर की जीवनी थी तब मेरी उम्र 10, 12 साल की रही होगी। वे घोर अंबेडकरवादी थे। मेरे पिताजी भी ने बताया की डॉक्टर अंबेडकर की वजह से आज हम थोड़ी बहुत सुख सुविधा उठा रहे हैं। लेकिन जीवनी पढ़ने के बाद में मेरे भीतर बदलाव हुए और मुझे भी बाबा साहब जैसा शिक्षित होने की प्रेरणा मिली। शिक्षा के सहारे मैं आगे बढ़ता गया।
वर्तमान के हालातों मे जब विभिन्न समुदायों के मध्य दूरिया बढ़ चुकी हैं, उसे कैसे पाटेंगे। इसकी पहल कौन करेगा और क्यों ?
संजीव : खाई पाटने का एक ही तरीका है। “बात” मैं मानता हूं की “बात करेंगे तो बात बनेगी” एक दूसरे के बीच में कन्वर्सेशन चलते रहना चाहिए। तभी दूरी खत्म होगी और यह खाई पाटी जा सकती है। अगड़े दलितों की जिम्मेदारी है कि वह पिछड़े दलितों की समस्याओं को समझें और उसे दूर करने का प्रयास करें। इसमें उन्हें अपने स्वार्थ को भुलाना होगा।
क्या इस दौर मे कभी आपको ये लगा कि आप गलत जगह पर थे क्योंकि जब जातीय हितों का प्रश्न उठा तो सबसे हासिए के लोगों के साथ खड़े होने के बजाए लोग उन्हे ही कोसने लग गए।
संजीव : बिल्कुल मैं सहमत हूं जब ऐसा मौका आया की हासिए पर खड़े पिछड़े दलित के साथ होना चाहिए था। तब तथा कथित अंबेडकरवादी अगड़े दलित उन्हें मदद करने के बजाय कोसने में लग गए। क्योंकि उनका जातिय हित टकरा रहा था। अंबेडकर वाद और संविधान यह नहीं सिखाता। संविधान कहता है की सबसे अंतिम व्यक्ति को संसाधन, सुविधाएं और न्याय मिलनी चाहिए।
क्या आरक्षण का वर्गीकरण करना जातियों को बांटना है?
संजीव : मैं इस बात से असहमत हूं डॉ अंबेडकर ने जाति का वर्गीकरण पहले भी किया था। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग। क्या उन्होंने इन्हें बांटने का काम किया? बात गलत है। दरअसल वर्गीकरण करने से यह पता चलता है कि किस पर कितना काम करने की जरूरत है। यदि कोई समाज अपने आप को काबिल समझता है तो इस वर्गीकरण का समर्थन करना चाहिए ना कि घबराना चाहिए। यदि वर्गीकरण गलत था तो डॉक्टर अंबेडकर को भी गलत ठहराएंगे आप?
अम्बेडकरी आंदोलन के साथियों विशेषकर बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों से क्या कहेंगे आप ?
अंबेडकर आंदोलन के साथी बुद्धिजीवी और साहित्यकार से मैं यही आशा करूंगा कि वह ऐसे विकट समय में एक दूसरे का साथ ना छोड़े। एक दूसरे का अपमान न करें। वंचित दलितों की समस्याओं को समझें और उनके पक्ष में खड़े रहे। मतभेद जरूर हो लेकिन मन भेद न हो।
अभी-अभी खबर आई है कि भीम आर्मी के लोगों ने वाल्मीकि जाति के कुछ सदस्यों से मारपीट की है सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लेकर। ऐसे समय में वैमनस्यता को कम करने के लिए अंबेडकरवादियों और बुद्धिजीवी को सामने आना होगा।
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