Pages

Dalits divided into two camps due to division in reservation?

 आरक्षण में बटवारा दो खेमे में बटा दलित ?

संजीव खुदशाह

१ अगस्त २०२४ को आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के सात सदस्‍यीय पीठ के द्वारा देविन्‍दर सिंह विरूध पंजाब के बारे में फैसला आने के बाद अगड़ा दलित और पिछड़ा दलित के बीच द्वंद छि‍ड़ गया है। दोनो ओर से अपने अपने तर्क दिये जा रहे है। आज यह बहस राष्‍ट्रीय पटल पर हो रही है। अगड़े दलित उनको माना जाता है जो आजादी के बाद से लगातार नौकरी पेशा में आ रहे हैं और इस जाति में काफी मात्रा में लोग आरक्षण का लाभ लेकर उच्च पदों तक पहुंचे हैं समृद्ध साली हुए हैं। जैसे चमार, महार, अहिरवार, सतनामी, जाटव आदि आदि। वहीं दूसरे ओर पिछड़े दलित उन्हें माना जाता है जिन्हें  परिस्थितिवश या उनके अति पिछड़ापन होने के कारण उन्हें आरक्षण का लाभ उस तरह से नहीं मिल पाया जिस तरह से अगड़े दलितों को मिला है। जैसे वाल्मीकि, लालबेगी, मेहतर, डोमार, बंसोर, चुहड़ा, घसियादेवार आदि आदि। अगड़े दलितों में सबसे ज्यादा संख्या चमारों की है जो की अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग नामों से जानी जाती है। वहीं पिछड़े दलित वे हैं जो सफाई काम से जुड़े हुए हैं। यह भी अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग जाति के नाम से जाने जाते हैं। दोनों दलित बहुत बड़ी संख्या में हैं। लेकिन प्रतिनिधित्व का बटवारा बेहद असमान है। पिछड़ी दलित जाति के लोग कहते हैं कि अगड़े दलितों ने उनका हक सदियों से छीना है। उनके साथ भेदभाव किया है। उनके साथ छुआछूत बरतते हैं। वैवाहिक संबंध तो दूर उनके साथ बैठने उठने से भी कतराते हैं। उनका कहना है कि जो भेद दलितों में आज हुआ है। यह भेद पहले से ही कायम है। इस भेद को मिटाने के लिए अगड़े दलितों ने कभी कोई प्रयास नहीं किया। सिर्फ पिछड़े दलितों के हकों को मारते रहे हैं।

वही अगड़े दलितों के नेताओं का कहना है कि पिछड़े दलित लोग भ्रमित हो गए हैं। वह समझ रहे हैं कि उन्हें फायदा मिलने वाला है। लेकिन इसका फायदा गवर्नमेंट उनको नहीं देगी। सिर्फ उन्हें बहलाया जा रहा है। हमारे बीच फूट डालो राज करो की नीति का प्रयास किया जा रहा है। ताकि दलित समाज में जो एकता बनी है। वह धराशायी हो जाए। उनका कहना है कि दरअसल आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी दलित एकता से घबराई हुई है। 

यहां यह बताना जरूरी है कि याचिका कर्ता डॉक्टर ओपी शुक्ला जो की वाल्‍मीकि समाज से आते हैं, उनका कहना है कि आजादी के बाद से सफाई कामगार समाज का शोषण हुआ है। उनका प्रतिनिधित्व कहां गया ? आखिर किसने उनका प्रतिनिधित्व खाया है? यह बता दें। वह कहते हैं कि मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका इसीलिए डाली ताकि संविधान के अनुसार जो सबसे अंतिम व्यक्ति है। उसे इसका फायदा मिल सके। बहुत सारी ऐसी जातियां आज भी हैं जिन्हें सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। इन्हें हिस्सेदारी देने के लिए अगड़े दलितों ने कभी भी कोई प्रयास नहीं किया है। छत्‍तीसगढ़ में देवार जाति काफी पिछड़ी है।

आरोप है कि पिछड़े दलित हिंदूवादी विचारधारा के हैं इसीलिए उन्हें फायदा पहुचाने की कोशिश की जा रही है । ताकि उनका वोट बैंक समृद्ध बना रहे। यह आश्चर्य की बात है कि अगड़े दलितों के बुद्धिजीवी लेखक पत्रकार से लेकर नेता तक पिछड़े दलितों के ऊपर यह आरोप लगातार लगा रहे हैं कि अगड़े दलित बुद्धिस्ट हैं, अंबेडकरवादी हैं, अपने हक अधिकार के प्रति जागरुक हैं। लेकिन पिछड़े दलित अंबेडकर को नहीं मानते हैं और न ही वे बुद्धिज्‍म को मानते हैं। इसीलिए आज की हिंदूवादी सरकार उन्हें फायदा देकर अगड़े दलितों अंबेडकरवादी, बौद्धों को नुकसान पहुंचाना चाहती है क्योंकि इस सरकार को यह लगता है कि अगड़े दलित उन्हें वोट नहीं देते हैं।

यह भी एक सच्चाई है कि महार समाज से लेकर बाकी अगड़े दलितों की बात की जाए तो कोई भी ऐसी दलित जाति नहीं है जो की 100% बुद्धिस्ट हो। सभी जातियों में बुद्धिस्टों की संख्या औसत 30% के आसपास होगी। जो यह दावा करते हैं कि वह अंबेडकरवादी हैं और बुद्धिस्ट हैं। और यदि बात करें संघ और बीजेपी के शरण में जाने की जैसा आरोप सफाई कामगार जैसी पिछड़ी जातियों पर लगाया जाता है। तो यह भी गलत आरोप है क्योंकि अगड़ी दलित जाति के बड़े-बड़े नेता लेखक कवि नामदेव ढसाल, रामदास अठावले, उदित राज, मायावती यह ऐसे बड़े नेता है जो अगड़ी जाति के हैं। लेकिन इन्होंने अपने फायदे के लिए अंबेडकरवाद से कई कई बार समझौता किया है, संघ भाजपा के शरण में गए। बावजूद इसके आरोप सिर्फ पिछड़े दलित जातियों पर लगाया जाता है।



यहां पर दलित लेखक कंवल भारती अगड़े दलितों का पक्ष लेते हुऐ वाल्‍मीकि समुदाय 99 प्रतिशत आर एस एस और भाजपा का पिछलग्‍गू है। वे सारा आरोप पिछड़ा दलित (वाल्‍मीकि समाज) पर मढ़ रहे है। वे कहते है कि अब यह समुदाय समझ रहा है कि यह वर्गीकरण उनको एक दम आकाश में पहुंचा देगा। वह इस सच्चाई से बिल्कुल अनजान है कि आरएसएस और भाजपा उसे सिर्फ सफ़ाई कर्मचारी समुदाय ही बनाए रखना चाहता है। इससे ज्यादा कुछ नहीं।

 



 

 

वहीं समाजिक कार्यकर्ता चंदनलाल वाल्‍मीकि पिछड़ा दलित जातियों की एक प्रेस कांन्‍फ्रेस कर स्‍टेटमेंट दे रहे है कि राज्‍य सरकारें सुप्रीम कोर्ट के फैसले को शीध्र लागू करे।

 

 कई समय पूर्व से अगड़े दलित जाति के लोग यह आरोप लगाते रहे हैं कि हिंदूवाद के शरण में जाने के कारण पिछड़े दलित जातियां पीछे रह गई वे अंधी आस्था में लगी रही। उन्होंने पढ़ाई नहीं किया। जबकि यह पूरा सत्‍य नहीं है। पिछड़ी जाति के वे लोग जिन्होंने पढ़ाई किया और आगे बढ़े हुए अंबेडकरवाद के करीब पहुंचे है। क्योंकि जब आप शिक्षित हो जाते है तो अपने शोषकों और उद्धारकों में फर्क जान जाते हैं आप निश्चित रूप से उन महापुरुषों के करीब आ जाते हैं जिन्होंने आपको उठाने में अपना योगदान दिया है। चाहे वह डॉक्टर अंबेडकर हो, पेरियार हो, महात्मा फुले हो या और कोई। आजादी के बाद से ऐसे बहुत सारे बड़े लेखक बुद्धिजीवी पिछड़े दलित समाज से सामने आए हैं जिन्होंने दलित आंदोलन, साहित्‍य, अंबेडकर वाद को एक नई दिशा दी है। एडवोकेट भगवान दास, ओमप्रकाश वाल्मीकि जैसे बहुत सारे नाम है। तुलना करे तो पाते है कि इनका योगदान आंबेडकरिजम और बुद्धिज्‍म में कुछ कम नही रहा है।



 

इस प्रकरण में दिलीप मंडल पूरी तरह से पिछड़ा दलित के खिलाफ पोस्‍ट डाल रहे है। वे इस फेसबुक पोस्‍ट में लिखते हे कि व‍कील नितिन मेश्राम के द्वारा इस पर रिव्‍यू पिटीशन दायर हो गई । बता दू नितिन मेश्राम भी यहां अगड़ी दलित जाति का प्रतिनिधीत्‍व करते है।

 



 

इसी प्रकार एक आदिवासी कार्यकता डॉं जितेन्‍द्र मीणा लिखते है। सुप्रीम कोर्ट का ST SC सूची में वर्गीकरण, क्रीमिलेयर तक मामला नहीं रुकेगा यह अंततः राजनैतिक आरक्षण को भी ख़त्म करेगा।

ST, SC के जो नेता चुप है उन्हें समझना होगा कि RSS आपको ख़त्म करना चाहता है।

 

इन दिग्‍गजो के फेसबुक पोस्‍ट देखने के बाद सहसा कम्‍युनल एवार्ड की याद आती है। जब डॉं अंबेडकर ने अछूतों के लिए कम्‍युनल एवार्ड दिलवाया था। यही भाषा उस समय सवर्णों की थी। वे भी कह रहे थे अंग्रेज फूट डालो राज करो नीति अपना रहा है। हमारा हिन्‍दू धर्म में फूट डाला जा रहा है। अछूतों को कुछ फायदा नहीं होगा।

ये बात तो तय है कि दलित आदिवासियों में बहुतायत जाति आज भी बहुत पिछड़ी है उन तक देश के संसाधन सुविधाएं नहीं पहुची है। इसमें उनकी पुश्‍तैनी पेशे की समस्‍या है जो विकराल है आईये जानने की कोशिश करते है।

पुश्तैनी पेशे की समस्या



अगड़े दलित कहते हैं कि यह फैसला विधि सम्‍मत नहीं है। यह फूट डालो राज करो जैसा है। इस फैसले से दलितों में दो फाड़ हो जायेगा, वैमनस्य बढ़ेगा। वे कहते है कि उन्होंने अपना गंदा पुश्तैनी पेशा बहुत पहले छोड़ दिया था। लेकिन पिछड़े दलित जाति के लोगों ने अपना गंदा पुश्तैनी पेशा नहीं छोड़ा। जबकि डॉ अंबेडकर ने १९३० में यह आह्वान किया था कि अछूत अपना गंदा पेशा छोड़ दें। पिछड़े दलित जातियों में बहुत बड़ी संख्या सफाई कामगार जातियों की हैं। यह सत्य है कि इन्होंने अपना पुश्‍तैनी गंदा पेशा नहीं छोड़ा। इसके कारण इनमें उत्थान नहीं हो पाया। यह थोड़ा बहुत जागरूक हुई तो भी इन्होंने उस गंदे पेशे में अधिक वेतन और सुविधा की मांग करने लगे। कई जगह ऐसा भी देखने मिला की वे इन पेशों में 100% आरक्षण की मांग करने लगे। ऐसे भी उदाहरण हैं जबकि इन पिछड़े दलित जातियों के कुछ लोगों ने अपने गंदे पेशे को छोड़कर अच्छे पेशे को अपनाया और वह आगे तरक्की कर गये।

         दलितों के पिछड़े होने का कारण

1 दलितों के पिछड़ेपन के लिए सरकार जिम्मेदार है-

 आज सुप्रीम कोर्ट का जो वर्डिक्ट आया है सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि यह दलित पिछड़ा है इनका अधिकार मिलना चाहिए। अलग से आरक्षण मिलना चाहिए। लेकिन यह क्यों पिछड़े रहे गए हैं इसका खुलासा सुप्रीम कोर्ट के द्वारा नहीं किया गया है। दरअसल इन पिछड़े रह गए दलितों के लिए सरकार को कई योजनाएं चलानी चाहिए थी। जैसे कि उनके लिए अलग से कोचिंग संस्थान खोला जाता। अलग से शिक्षा संस्थान शुरू किए जाते। उनके लिए अलग से हॉस्टल की व्यवस्था की जाती। ताकि यह लोग पढ़ते, आगे बढ़ते और इनको विदेश भेजने की भी योजनाएं बनाई जाती। यह कानून लाया जाता की इन अमानवीय पेशा को कड़ाइ्र से बंद किया जाय। तो निश्चित रूप से यह दलित बहुत आगे बढ़ते और बाकी लोगों के समकक्ष आ सकते थे। लेकिन सरकार ने इन सफाई कामगार दलितों के और अन्य अति पिछड़े दलित जो की काफी पिछड़े रह गए हैं उनके उत्थान के लिए अलग से कोई भी योजना या कोई भी कार्यक्रम नहीं चलाया। इसलिए यह दलित पिछड़े रह गए। यहां तक की सफाई कामगार आयोग बनने के बावजूद इन आयोग ने भी ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। न ही ऐसे कदम उठाने की उन्होंने सरकार से सिफारिश की। जिससे कि यह लोग आगे बढ़ सकते थे। इन दलितों के पिछड़ा होने का सबसे बड़ा कारण स्वयं सरकार है।

2 दलितों में दलित बने रहने के लिए यह स्वयं जिम्मेदार हैं।

इन पिछड़े दलितों के बदहाली के पीछे यह स्वयं जिम्मेदार हैं। इन्हें चाहिए तो यह था कि यह डॉ अंबेडकर और दूसरे महापुरुषों के आह्वान को मानते और अपने गंदे पेशे को छोड़ देते। लेकिन जितने दलित पिछड़े रह गए हैं इन लोगों ने अपना पुश्तैनी घिनौना पेशा को बनाए रखा। उसे नहीं छोड़ा और न ही यह लोग शिक्षा की तरफ आगे आएन ही अपने जायज मांगों के लिए इन्होंने कोई संघर्ष किया। आज इन दलितों में पढ़े-लिखे उम्मीदवार ढूंढना बहुत मुश्किल है। यदि आप इन दलितों को देखेंगे तो उनकी पढ़ाई का एवरेज आठवीं क्लास के आसपास आता है। ऐसे में अगर इन्हें अलग से रिजर्वेशन दे भी दिया जाएगा। तो भला यह कैसे कोई पद को पाने के या उसे रिजर्व शीट में बैठने की योग्य हो पाएंगे? क्योंकि शिक्षा का स्तर इन लोगों ने बिल्कुल भी नहीं बढ़ाया। यह पिछड़े दलित किसी न किसी प्रकार से ऋषियों के फेर में रहे, वाल्मीकि सुदर्शन, मातंग, देवक ऋषि गोगा पीर आदि आदि। इन लोगों ने शिक्षा का हथियार ढूंढने के बजाय ऋषियों मुनियों में अपना उद्धारक ढूंढने की कोशिश किया। उन्हीं के फेर में यह पड़े रहे। आज भी यही कर रहे है। जिसके लिए यह स्वयं जिम्मेदार है। इनके बीच के नेताओ की भी इसकी जिम्मेदारी बनती है। जिन्होंने अपने समाज को अंधविश्वास में धकेल दिया डॉ अंबेडकर पेरियार फूले जैसे वंचितों के उधारकों से इस समाज को दूर रखा और उन्हें बताया कि यह समाज सेवक उनके नहीं चमारों के है। इस कारण यह दलित जैसे-जैसे समय बढ़ता गया और भी बदहाली में चले गए। जिसके लिए यह समाज स्वयं जिम्मेदार है।

3 अगड़ी दलित जातियों की जिम्मेदारी

अगड़ी दलित जातियों ने डॉ अंबेडकर के ज्यादा बातों को माना। सबसे पहले उन्होंने डॉक्टर अंबेडकर के आह्वान पर अपने गंदे पेशों को त्यागा। इसके कारण उनके ऊपर जुल्म हुए। कई दलित मारे गए। पुश्तैनी पेशे को इनकार करने की वजह से इनको अपनी संपत्ति, अपना घर द्वार सब छोड़ना पड़ा। इन्होंने पलायन किया और यहां पर भूखे प्यासे रहकर उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाया आगे बढ़ाया। संघर्ष किया डॉ अंबेडकर के बताए मार्ग पर चला। इन्होंने संघर्ष करके एक मुकाम हासिल किया और आज वह ऐसी स्थिति में है कि वह ज्ञान के क्षेत्र में सवर्ण को भी टक्कर देते हैं। भले ही यह आर्थिक रूप से ज्यादा संपन्न नहीं हो पाए हैं। लेकिन इन दलितों की यह जिम्मेदारी थी कि वह बाकी दलित भाइयों के बीच में जाते। उनके बीच में जाकर शिक्षा का प्रचार करते। उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रेरित करते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ यह दलित अपना स्वयं का ही उत्थान करने में लगे रहे। और पेबैक टू सोसाइटी नहीं किया या उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को केवल अपनी जाति और अपने परिवार तक ही सीमित रखा। जबकि उन्हें पूरे वंचित समाज के बीच जाकर के काम करना चाहिए था। उन्होंने नहीं किया सिर्फ यह बात नहीं है बल्कि उनके साथ में उन्होंने भेदभाव रखा और रोटी बेटी का भी संबंध उनसे नहीं बनाया।

सुप्रीम कोर्ट को इसके साथ साथ निम्नलिखित निर्णय लेना चाहिए था।

पहला

सरकार को कटघरे में खड़ा करती की आजादी के 75 साल बाद भी इन लोगों को पिछड़ा क्यों रखा गया है? क्यों उनके उत्थान के लिए कोई योजनाएं नहीं चलाई गई है?

दूसरा

गंदे पेशे से छुटकारा देने के लिए सरकार को निर्देशित किया जाना चाहिए था। क्योंकि अपमानजनक (अमानवीय) पेशे का भारत में किया जाना पूरे भारतवर्ष के लिए शर्म की बात है और संविधान के भी विरुद्ध है। सरकार को यह निर्देश देना चाहिए था कि जल्द से जल्द इन पेशे में लगे लोगों को हटाया जाए और मानव की जगह मशीन का उपयोग किया जाए । साथ-साथ इन सफाई कामगारों का और गंदे पेशे वालों का पुनर्वास किया जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया।

तीसरा

माननीय सुप्रीम कोर्ट से यह अपेक्षा थी कि अजा अजजा में जो आरक्षण दिया जाता है वह आरक्षण बहुत मात्रा में नॉट फाउंड सूटेबल  कहकर जनरल पोस्ट भर दिए जाते हैं। कई कई साल तक बैकलॉग की भर्तियां नहीं निकाली जाती है। निर्देश दिया जाना चाहिए था कि बैकलॉग की भर्तियां तुरंत करें और नॉट फाउंड सूटेबल को सामान्‍य में समायोजित न करके अगली भर्ती में उसकी वैकेंसी फिर से उसी केटेगरी में निकाली जाए।

जाहिर है की सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पिछड़े तबके में खुशी का माहौल है। वहीं अगड़े दलितों में से कुछ इसके विरूध में 21 अगस्‍त को भारत बंद का ऐलान कर रहे है। पिछड़े दलितों आदिवासियों को मुख्‍य धारा में लाने के लिए हमें बहुत सारे कदम उठाने पड़ेगें सिर्फ आरक्षण से काम नहीं चलेगा तभी हमारे देश में कोई पीछे नहीं रह जायेगा। न ही किसी को अपने विकास के लिए गुहार लगाने की जरूरत पड़ेगी। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के इस पहल का स्‍वागत किया जाना चाहिए।

 


No comments:

Post a Comment

We are waiting for your feedback.
ये सामग्री आपको कैसी लगी अपनी राय अवश्य देवे, धन्यवाद