जानिए
माता-पिता और बुजुर्गो के क्या-क्या अधिकार हैं।
इस
कानून से क्या अब वृद्ध आश्रम बंद हो जाएंगे?
संजीव
खुदशाह
यह कहानी हर चार बुजुर्ग में से एक की कहानी है। हो सकता है
कि यह शारीरिक प्रताड़ना ना होकर मानसिक प्रताड़ना हो या प्रताड़ना का कोई और रूप
हो। लेकिन आज के बुजुर्ग ऐसी प्रताड़ना से गुजर रहे हैं जो उनके अपने उनके साथ
करते हैं। जैसे-जैसे एकल परिवार और भूमि अर्थव्यवस्था पर आधारित संयुक्त परिवार की
व्यवस्था खत्म होते जा रही है। वैसे-वैसे घर के वृद्धों का महत्व भी कम होता जा
रहा है। जाहिर है महत्व कम होने के कारण घर में निवास करने वाले वृद्धों को
इग्नोर किया जाता है। उन्हें वह मान सम्मान नहीं दिया जाता है जिसके वे हकदार है।
दुख की बात यह है ऐसे समय जब राष्ट्रवाद संस्कृति वाद चरम पर
है। उस समय जब माता-पिता को भगवान माना जा रहा है ऐसे समय वृद्ध आश्रम की संख्या
भी बढ़ती जा रही है। आखिर क्यों एक व्यक्ति पशुओं को भगवान (माता-पिता) मान रहा है
अपने घरों में स्थान दे रहा है। लेकिन अपने वृद्धों को नजर अंदाज कर रहा है। घर से
निकाल रहा है। अत्याचार कर रहा है। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब हमें ढूंढना
होगा कि आखिर क्यों वृद्ध आश्रम की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है?
आज के समय में ऐसे कानून सरकार ने बनाए हैं जो की वृद्धों के
अधिकारों को सुरक्षित करते हैं ऐसा ही एक कानून ‘माता-पिता और
वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007’ पारित किया
गया। बाद में कुछ संशोधनों के साथ माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों
का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2019 पारित
किया गया।
वर्तमान में एकल परिवारों एवं संयुक्त परिवार दोनो में वरिष्ठ
नागरिकों के प्रति उपेक्षा बढ़ी है। वरिष्ठ नागरिकों की अवहेलना उनके प्रति अपराध, उनके शोषण तथा
परित्याग आदि के मामले में बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो 2018 में जारी रिपोर्ट के अनुसार वरिष्ठ नागरिकों के प्रति अपराध में 13.7% की वृद्धि हुई है। इसमें ज्यादातर अपराध उनके अपने करते हैं।
एकाकीं पन - आज जब बच्चो को अपने नौकरी या व्यवसाय के कारण बाहर जाना पड़ता है तो घर के बुजुर्गो को अकेला रहेने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
स्वास्थ - वृद्धावस्था अपने आप में एक बीमारी भी है
और इलाज काफी महंगे हैं ऐसी स्थिति में जब बुजुर्गों के उत्तराधिकारी अपने
कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं तो वृद्धावस्था में चिकित्सा सुविधा मिलना बहुत
मुश्किल हो जाता है। वृद्ध जनों के लिए बने हुए बुनियादी सुविधाएं जैसे भोजन,
स्वास्थ्य, घर तथा अन्य आवश्यकताओं की
अनुपलब्धता उनके मानव अधिकारों का हनन करता है।
आर्थिक समस्या- बुजुर्ग जब
हांथ पांव से लाचार हो जाते है तो वे कुछ काम नही कर पाते वे स्वालंबी नही रह जाते
जिसके कारण उन्हे रूपये पैसों के लिए अपने उत्तराधिकारियों पर निर्भर रहना पड़ता।
संपत्ति - जब उत्तराधिकारी बुजूर्ग से रूपये पैसे, जमीन जायजाद, संपत्ति का बटवारा कर लेते है तो बुजुर्ग उनके लिए बोझ बन जाते है। बच्चे
जिम्मेदारी से बचने लगते है। संपत्ति हाथ से चले जाने के कारण वे असहाय हो जाते
है।
उत्पीड़न - बुजुर्गो को अपने घरो में उपेक्षा, उत्पीड़न, अपमान, शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना झेलना पड़ता
है। जिसके कारण वे स्वयं वृध्दा आश्रम जाने के लिए राजी हो जाते है।
इस
कानून में वृद्ध लोगों के लिए क्या अधिकार सुरक्षित हैं।
यदि कोई बुजुर्ग अपनी उत्तराधिकारियों से पीड़ित है या उनके उत्तराधिकारी उनका ध्यान नहीं रखते हैं। उनका भरण पोषण नहीं करते हैं। तो उस बुजुर्ग को अधिकार है कि वह अपने पास के थाने या कलेक्टर या भरण-पोषण अधिकरण ऑफिस में जाकर आवेदन कर सकते हैं।
यहां
पर बुजुर्ग का मतलब है
माता-पिता, दादा दादी, नाना नानी सास ससुर इसमें सौतेले माता-पिता भी शामिल है।
यहां
पर उत्तराधिकारी से मतलब है
पुत्र-पुत्री, गोद लिया पुत्र-पुत्री, बहु-दामाद, नाती-पोता, इसमें सौतेले या जैविक उत्तराधिकारी सभी शामिल है।
यदि
कोई बुजुर्ग प्रताडि़त दिखे तो आप कैसे मदद कर सकते है?
इसकी शिकायत आप पास के थाने या कलेक्टर या भरण-पोषण
अधिकरण (Maintenance Tribunal) में करे। बुजुर्ग स्वयं इसकी
शिकायत कर सकता है। यदि कोई बुजुर्ग अपनी प्रताड़ना को लेकर शिकायत करता है तो इस
अधिनियम के अंतर्गत उत्तराधिकारी को भरण पोषण रूपये 10000 या
उससे अधिक प्रति माह दिए जाने का आदेश दिया जा सकता है। ऐसा नहीं करने पर 6 महीने की सजा और जुर्माना दोनों भुगतना पड़ सकता है। इस अधिनियम में
वरिष्ठ नागरिक या माता-पिता को त्यागने पर 3 महीने की कैद
दिया ₹5000 का जुर्माना हो सकता है और कैद 6 महीने तक बढ़ाई जा सकती है।
जैसा कि अन्य कानून के प्रचार प्रसार में कोई
कमी नहीं की गई है। लेकिन माता-पिता और वरिष्ठ
नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2019
के प्रचार प्रसार में कमी दिखाई पड़ती है। इसका सही ढंग से प्रचार
प्रसार हो ताकि बच्चे अपनी जिम्मेदारियों को समझें और उसे पूरा करें। बुजुर्ग भी
अपने अधिकारों को जाने और उसका उपयोग करें। हम एक ऐसी देश में निवास करते हैं जहां पर ईश्वर से बढ़कर मां-बाप बुजुर्गो को स्थान दिया गया है। तो हमारी जिम्मेदारी हो जाती है कि हम
अपने बुजुर्गों का सम्मान करें, बुढ़ापे में उनकी देखभाल
करें, उन्हें प्यार करें और उन्हे उनका वह हक दे जिसके वे
हकदार है।
No comments:
Post a Comment
We are waiting for your feedback.
ये सामग्री आपको कैसी लगी अपनी राय अवश्य देवे, धन्यवाद