डॉ अम्बेडकर ने कुछ कमरों में दिया नहीं जलाया, वहां आज भी अंधेरा है।
(बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर जी के परिनिर्वाण दिवस 6 दिसंबर पर अनभिज्ञ प्रश्न से साक्षात्कार)
बीरेंद्र ढीढी, रायपुर, छत्तीसगढ़
1 पहला कमरा जिसे समझना जरूरी है। राज्यसभा सदस्य बनने के लिए राज्यसभा में आरक्षण का व्यवस्था नहीं है। इसलिए सत्तासीन पार्टी प्रमुख, अपने लोगो को राज्यसभा में जनता के विचार के विपरीत और राज्य से बाहर के लोगों को नामित कर देती है। छत्तीसगढ़ में कई वर्षों से अनुसूचित जाति के लोगों को राज्यसभा का सदस्य नहीं बनाया है जबकि राज्यसभा की सीट अनुसूचित जाति से रिक्त हुआ था। बाबा साहब ने राज्यसभा में आरक्षण का व्यवस्था नहीं दिया है इसलिए हमें राज्यसभा में जाने के लिए पार्टी प्रमुख पर निर्भर रहना पड़ता है। हम साधिकार दावा नहीं कर सकते कि हमें राज्यसभा में सदस्य बनाया जावे क्योंकि बाबा साहब अम्बेडकर ने इसे आरक्षण के संवैधानिक दायरे में नहीं रखा है , इस विषय को लोगो और पार्टी के विचाराधीन रखा। बाबा साहब ने इस पर टिप्पणी नहीं किया । इसलिए राज्यसभा के आरक्षण के संबंध कुछ नहीं कहा अर्थात उस कमरे में दिया नहीं जलाया , आज भी अंधेरा है। हम राज्यसभा में उचित प्रतिनिधित्व से आज भी वंचित रह जाते है।
2 जाति विहीन समाज बनाने के लिए डॉ अम्बेडकर ने कमजोर लोगो के लिए आरक्षण की व्यवस्था किए , अंतर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन करने की नियम बनाए , ताकि कमजोर लोग सक्षम और ताकतवर लोगो के सामने बराबरी में खड़ा हो सके परन्तु इसे शासन और प्रशासन के द्वारा दृढ़ता से लागू नहीं किया गया । लागू नहीं होने के कारण आज भी सरकार को मजबूरी वश आरक्षण में बैकलॉग जारी करना पड़ता है। जातिवादी लोगों पर सजा की कठोर नीति लागू नहीं होने के कारण जातिवादी मानने वाले लोग, सर उठा कर आज भी तथाकथित कमजोर लोगो के सर पर मूत्र विसर्जन कर रहे है और हमारी बहु बेटियों पर अंतिम स्तर का अत्याचार करते है। बाबा साहब ने, भविष्य में लोग समझेंगे और स्वीकार करेंगे कहकर इस विषय पर कठोर कानून नहीं बनाया । आज भी वह कमरा अंधेरा है।
3 धार्मिक स्वतंत्रता को संविधान में जगह दिया गया है और व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपने इच्छानुसार धर्म ग्रहण करने की नियम को स्थान देकर धार्मिक बंधन की कुटिल प्रथा की बेड़ियां को तोड़ने के लिए और धार्मिक अंधता के प्रति जागरूक करने के नियम बनाए है। मेरा मानना है कि इसलिए बहुत पहले , मनुस्मृति को तो बाबा साहब ने जलाए लेकिन अन्य कई धर्म के ग्रंथों में छुआछूत और जाति का उल्लेख है जिनका समाज में पठन पाठन और पालन होते रहा है लेकिन, उन तथाकथित धार्मिक ग्रंथों पर जो मनुस्मृति के समकक्ष कुछ बाते लिखी गई है, पाबंदी लगाने का कानून नहीं बनाया गया। जाति विहीन समाज और स्वतंत्र धार्मिक विचार बनाने के लिए , संवैधानिक बातों का आंशिक रूप से पालन तो हुआ परन्तु भारतीय समाज आज भी कुंठित जातिवाद को सिर पर ढोकर चल रहा है और तार्किक धर्म से बहुत दूर है , इसलिए जातिवाद और धार्मिक प्रपंच आज भी निरंतर जारी है। आज हम सरलता से किसी धर्म को अपना नहीं सकते और न ही किसी धर्म को छोड़ सकते है और हम कोई नया धर्म भी नहीं बना सकते। अल्पसंख्यक के ऊपर जुल्म का आलम यह है कि शव को भी श्मशान घाट में जलाना प्रतिबंधित कर रहे है और सामाजिक बहिष्कृत का सामना करना पड़ता है।बहुत कड़ा कानून बनाने की जरूरत थी , जिससे इन प्रताड़ित लोगों पर अत्याचार होना रुक सकता था, परन्तु बाबा साहब ने सोचा भविष्य में वे लोग समझेंगे। परन्तु वे लोग नहीं समझे इसलिए आज भी वह कमरा अंधेरा है जिसमें बाबा साहब ने दिया नहीं जलाया। परिणामस्वरूप आज ,सजा संपूर्ण भारत के अनुसूचित जाति और जन जाति एवं अल्पसंख्यक को मिल रहा है। अब पिछड़े वर्ग भी शामिल है।
4 भारत में निजीकरण का प्रचंड प्रभाव की ओर बढ़ना। हमारा शोषित समाज ,संवैधानिक नियम की सहारा लेकर प्राप्त अधिकार ,चाहे वह सरकारी नौकरी हो या आरक्षण से प्राप्त राजनैतिक सत्ता हो ,सभी प्रकार के साधनों का उपयोग करके मानवीय विकास की ओर बढ़ रहे थे। विगत 30 वर्षों से निजीकरण देश में हावी हो रहा है और सबसे ज्यादा प्रभावित अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोग हो रहे है क्योंकि सरकारी नौकरी में आरक्षण के बदौलत जो लोग पदस्थ होते थे , वह रुक सा गया है क्योंकि निजीकरण संस्था में आरक्षण लागू नहीं है। दूसरी तरफ राजनैतिक आरक्षण , दलगत स्थिति और पार्टी प्रमुख पर निर्भर करता है कि कौन प्रतिनिधि बनेगा , उस पर हमारा अधिकार नहीं है। बाबा साहब के समय कुछ गिने चुने उद्योगपति हुआ करते थे , इसलिए संविधान में कुछ सीमित प्रावधान बनाए जिससे निजीकरण को रोका नहीं जा सकता था। परन्तु आज की परिस्थिति के अवलोकन करने से लगता है कि सरकारी संस्था को वित्तीय हानि दिखाकर निजीकरण में डालना ,स्वतंत्र भारत के नागरिक के विकास के विरुद्ध है। भारत में स्कूलों का निजीकरण होना तो ,सामाजिक स्तर पर और आर्थिक स्तर पर पिछड़े लोगों के ऊपर सबसे बड़ा प्रहार है , उन वर्ग के लोगों के भविष्य की कमर तोड़ने के लिए , उनके बच्चे किसी भी स्तर के शिक्षा को ग्रहण न कर सके और आगे न आ सके इसलिए निजीकरण की प्रचंडता दिखाई दे रहा है। बाबा साहब ने कुछ नियम रखे लेकिन निजीकरण को रोकने में प्रयाप्त नहीं थे। इसलिए बाबा साहब ने जो कमरे में दिया नहीं जलाया वह आज भी अंधेरा है।
5 भारत के राष्ट्रीय सीमा के संबंध में ठोस कानून नहीं होने के कारण भारतीय सीमा सुरक्षित नहीं है, कभी पाकिस्तान, कभी चीन, कभी बांग्लादेश भारतीय सीमा का आज भी अधिग्रहण और उल्लंघन करते रहते है। बाबा साहब ने तत्कालीन समय में भारतीय सीमा के संबंध में कोई ठोस कानून नहीं बनाए क्योंकि सीमा विवाद को सुलझाने के लिए तत्कालीन प्रधान मंत्री और गृह मंत्री के अधीन थे। बाबा साहब ने इस कमरे में भी दिया नहीं जलाया , वह आज भी अंधेरा है।
मेरे प्रिय साथियों यह कुछ थोड़े से बिंदु के माध्यम से मैने यह बताने की कोशिश किया कि वह कुछ बाते जिसे बाबा साहब ने छोड़ रखे थे या आंशिक रख कर या परिस्थिति वश भविष्य पर छोड़ दिए थे ,वह आज भी अधूरा है । लोकसभा में 131 सासंद आरक्षण से है परंतु अभी तक इन उपरोक्त मुद्दों पर सवाल नहीं करते या बिल पेश नहीं करते जिसमे बहस होती और कानून का रूप धारण करती। एक बिंदु भारतीय सीमा का विषय राष्ट्रीय मुद्दा है और अन्य चार मुद्दा का विषय अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक के हित से संबंधित है , इन चार मुद्दों के लिए सही कानून नहीं बनाने से और लागू नहीं होने के कारण इन वर्गों के लोगों को कितना विषम परिस्थिति का सामना आज भी करना पड़ता है । इसीलिए मैने कहा कि जिस कमरे में बाबा साहब ने दिया नहीं जलाए वह कमरा आज भी अंधेरा है। इन कमरों में रोशनी के लिए हमें एकजुट होकर संघर्ष करना चाहिए।
डॉ बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी ने अकेले विषम परिस्थिति और विषम लोगो से लड़कर हमे संवैधानिक अधिकार देकर सम्मान की जिंदगी जीने का अवसर दिया है। ऐसे महामानव को कोटि कोटि नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
आपका बीरेंद्र ढीढी भोरिंग एवं रायपुर
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