ये एक आशर्चय जनक तथ्य है कि दलित आंदोलन से अछूती एक बङी जाति जिसे डोमार, डुमार नाम से पुकारा जाता है। पूरी तरह से एकता विहीन, असंघठित एवं अपनी पहचान बनाने में असफल है। जबकि ये जाति बहुसंख्या में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ तथा यूपी में निवास करती है। ऐसी बात नही है कि इस जाति मे पढे लिखे लोग नही है न ही ये बात है कि ये जाति बहुत ही गरीब है। बल्कि अंग्रेजकाल से रेल एवं नगर निकाय में काम करने वाली ये जाति शहरी सभ्यतासे जुङी हुई है। इसके बावजूद इस जाति के लोग अपनी पहचान छुपातेफिरते है खासकर वे लोग जो आरक्षण का लाभ पाकर उंचे ओहदे पर है। सिर्फ छिटकी बुंदकी के अधार पर शादियां तय करते है।
इसी पहचान छुपाने कि प्रव्रित्ति ने इस समाज को विलुप्ति के कगार पर ला खङा किया। पहचान छिपाने कि इसी गरज से सुदर्शन समाज नाम का चोला पहना किन्तु बहुत जल्द इससे भी दूरियां हो गई कारण है सुदर्शन ऋषि से इस जाति का कोई संबंध नही था। ये तो सिर्फ वाल्मीकि (ऋषि) समाज का नकल मात्र था। आज जरूरत है कि इस समाज का व्यक्ति अपने आपको एक दलित के रूप में पेश करे अपनी जाति को न छिपाये, तभी निक़ष्टतम कहलाने वाली इस जाति का उध्दार हो सकेगा।
इस जाति के लोगो के सरनेम इस प्रकार है
समुंद्रे, खरे, मोगरे, समन, विरहा, कलसिया, कलसा, भारती, सक्तेल,रक्सेल, खोटे, बनाफर, बेरिया, चमकेल, तांबे, जानोकर, बढेल, छडिले,छडिमली, कुण्डे, चौहता, बंदीश, हाथीबेड, मानकर, मनहरे, बंछोर,खुदिशा, राउते, रेवते, राणा, धर्मकार, मधुमटके, बैस, व्यास, चुटेल,चुटेलकर, पसेरकर, बडगईया, बघेल, लद्रे, इटकरे, चौहान, हथगेन, त्रिमले,मोगरिया, साधू, पथरौलिया, वनराज, डेलिकर, हथेल, डकहा, ग्राय,ग्रायकर, मुंगेर, मुंगेरियार, बरसे, पराग, मलिक, कटारे, कटारिया, ललपुरे,बैरिसाल, अतरबेल, नन्हेट, खुरसैल, असरेट, बरसे, हरसे, मनवाटकर,लंगोटे, सरवारी आदि।