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जाति प्रमाण पत्र हेतु छत्तीसगढ शासन द्वारा अधिसूचना जारी किया गया है।

SC/ST/OBC के जाति प्रमाण पत्र हेतु छत्तीसगढ शासन द्वारा अधिसूचना जारी किया गया है लेकिन जाति सबूत के लिए 1950 के भूअभिलेख दस्तावेज मांगने के बारे में कोई खुलासा नही किया गया, इस अधिसूचना में इस बात का जिक्र किया गया है की नियम सरकार अलग से बनायेगी। आपके सहुलियत के लिए अधिसूचना कि प्रति संलग्न की जा रही है क़पया अपनी राय देने का कष्ट करे।

अधिसूचना को पढने के लिए यहां क्लिक करे

डोमार दलित जाति मध्यप्रदेश महाराष्ट्र छत्तीसगढ तथा यूपी में बहुसंख्या में निवास करती है। किन्तु सबसे नीचे के पायदान में आज भी है।

       ये एक आशर्चय जनक तथ्य है कि दलित आंदोलन से अछूती एक बङी जाति जिसे डोमार, डुमार नाम से पुकारा जाता है। पूरी तरह से एकता विहीन, असंघठित एवं अपनी पहचान बनाने में असफल  है। जबकि ये जाति बहुसंख्या में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ तथा यूपी में निवास करती है। ऐसी बात नही है क‍ि इस जाति मे पढे लिखे लोग नही है  ही ये बात है कि ये जाति बहुत ही गरीब है। बल्कि अंग्रेजकाल से रेल एवं नगर निकाय में काम करने वाली ये जाति शहरी सभ्यतासे जुङी हुई है। इसके बावजूद इस जाति के लोग अपनी पहचान छुपातेफिरते है खासकर वे लोग जो आरक्षण का लाभ पाकर उंचे ओहदे पर है। सिर्फ छिटकी बुंदकी के अधार पर शादियां तय करते है।
               इसी पहचान छुपाने कि प्रव्रित्ति ने इस समाज को विलुप्ति के कगार पर ला खङा किया। पहचान छिपाने कि इसी गरज से सुदर्शन समाज नाम का चोला पहना किन्तु बहुत जल्द इससे भी दूरियां हो गई कारण है सुदर्शन ऋषि से इस जाति का कोई संबंध नही था। ये तो सिर्फ वाल्मीकि (ऋषि) समाज का नकल मात्र था। आज जरूरत है कि इस समाज का व्यक्ति अपने आपको एक दलित के रूप में पेश करे अपनी जाति को न छिपायेतभी निक़ष्टतम कहलाने वाली इस जाति का उध्दार हो सकेगा।

इस
 जाति के लोगो के सरनेम इस प्रकार है

समुंद्रेखरेमोगरेसमनविरहाकलसियाकलसाभारतीसक्तेल,रक्सेलखोटेबनाफरबेरियाचमकेलतांबेजानोकरबढेलछडिले,छडिमलीकुण्डेचौहताबंदीशहाथीबेडमानकरमनहरेबंछोर,खुद‍िशाराउतेरेवतेराणाधर्मकारमधुमटकेबैसव्यासचुटेल,चुटेलकरपसेरकरबडगईयाबघेललद्रेइटकरेचौहानहथगेनत्रिमले,मोगरियासाधूपथरौलियावनराजडेलिकरहथेलडकहाग्राय,ग्रायकरमुंगेरमुंगेरियारबरसेपरागमलिककटारेकटारियाललपुरे,बैरिसालअतरबेलनन्हेटखुरसैलअसरेटबरसेहरसेमनवाटकर,लंगोटेसरवारी आदि।

सुविधाओं का लाभ लेने मेंशर्म नही आती है, लेकिन उन्हे अपना मानने में शर्म आती है।

सूक्तियां
संजीव खुदशाह
    1.    डॉ. अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त शिक्षा, समानता तथा आरक्षण जैसी सुविधाओं का लाभ उठाने में हमे कोई शर्म नही आती है। लेकिन उन्हे अपना मानने में हमे शर्म आती है, क्या ये सही है?
    2.    इस समाज को नुकसान उन पढ़े-लिखे लोगों ने ज्यादा पहुचाया, जिन्होने डा. अम्बेडकर द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का लाभ लेकर उचाई का मकाम हासिल किया किन्तु उसी समाज तथा बाबा साहेब को तिरस्कृत करने में कोई कसर नही छोड़ी। ऐसे लोगो कि सामजिक, सार्वजनिक भर्त्सना की जानी चाहिए।
    3.    जिस समाज का व्यक्ति प्रतिमाह एक दिन का वेतन समाज के लिए खर्च करता है। उस समाज को तरक्की करने से काई रोक नही सकता।
    4.    जिस समाज के बुजूर्ग प्रतिवर्ष एक माह के पेंशन का पचास प्रतिशत समाज के लिए देते है। वह समाज शिखर पर होता है।
    5.    ऐसी संस्कृति जिसने हमें हजारों सालों से गुलाम बनाये रखा, वा हमारी संस्कृति नही हो सकती ।
    सौजन्य से
    दलित मुव्हमेन्ट ऐसो‍स‍ियेशन