पुणे शहर के मेहतर वाल्मीकि समाज तथा माणुसकी ने विगत ३० अक्तुबर २०१० शाम ५ बजे मेहतर वाल्मीकि समाज चिंतन पर परिसंवाद का आयोजन किया । इस कार्यक्रम में वक्ता के रूप में चर्चित किताब ''सफाई कामगार समुदाय`` के प्रसिध्द दलित लेखक एवं चितंक रायपुर के संजीव खुदशाह को आमंत्रित किया गया। श्री खुदशाहजी ने अपने उद्बोधन में कहा की ''सफाई कामगार समाज को आज दलित आंदोलन से जुड़ने कि आवश्यकता है तभी यह समाज प्रगति कर पायेगा। और दलित आंदोलन को जानने के लिए डॉ आंबेडकर को जनना आवश्यक है। हमारा यह समाज डॉ आबेडकर के द्वारा प्रदत संविधान के सारे लाभ तो जरूर उठाता है किन्तु उनकों मानने से कतराता है। यह बात बाबा साहेब के साथ बेईमानी जैसा है। यही कारण है आज भी यह समाज टुकड़ियों में बटा हुआ १९३० की स्थिति में गुजर बसर कर रहा है। जिन दलित जातियों ने अपने आपको दलित आंदोलन से जोड़ा वे सब आज तरक्की पर है।`` उन्होने आगे कहा की डॉ बाबा साहेब की किताब 'शूद्र कौन और कैसे?` पढ़कर उनकी पूरी जिन्दगी बदल गई। श्री विलास वाघ जो प्रसिध्द अंबेडकर वादी चिन्तक तथा दैनिक बहुजन महाराष्ट्र के संम्पादक है ने इस कार्यक्रम में कहा की इस समाज को जाति आधारित काम से विरक्त होना चाहिए साथ ही ब्राम्हण वादी चक्रव्यू से मुक्त होना भी जरूरी है। इस समाज का व्यक्ति पढ़ लिख कर ब्राम्हणवाद की गिरफ्त में आसानी से आ जाता है। अनिल कुडिया, बाबूलाल बेद तथा माणुसकी के प्रियदर्शी तैलंग ने भी अपने विचार व्यक्त किये। मौलाना अबुल कलाम आजाद समागृह में आयोजित इस कार्यक्रम में वाल्मीकि समाज के अनेक मान्यवर उपस्थित थे।
अमित गोयल
नागपूर महाराष्ट्र