शिक्षाकर्मियों
की हड़ताल हर बार असफल क्यों हो जाती है?
सचिन
खुदशाह
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शिक्षाकर्मी
की मजबूरी
शिक्षाकर्मी
संगठन की शिकायत है कि उन्हे कई कई महिने वेतन नही मिलता। इस कारण आर्थिक समस्या
बनी रहती है। उनकी खास मांगों में शिक्षाकर्मी से शिक्षक मे संविलियन (यानी सरकारी
कर्मचारी का दर्जा चाहिए जो वर्तमान में उन्हे नही मिल रहा है), उचित स्थानांतरण नीति शामिल है।
अब
प्रश्न या होता है कि वे कौन से कारण है जिसके कारण शिक्षाकर्मी हड़ताल सफल नहीं
हो पाती। इसकी पड़ताल भी जरूरी है आज हम इस मुद्दे पर बात करेंगे।
सरकार
की मजबूरी
पहली
बात तो मैं आपको बताना चाहूंगा कि शिक्षाकर्मी फॉर्म भरने के पहले खासकर शुरुआती
दौर में तकरीबन 22 साल पहले जब शिक्षाकर्मी जैसे पद का सृजन किया गया उसमें यह
शर्त खुले तौर पर शासन के द्वारा प्रसारित किया गया था कि यह सेवा केवल 3 वर्ष के लिए है। और उसके बाद उन्हें सेवा से
पृथक कर दिया जाएगा। किंतु बाद में इनकी सेवाएं बढ़ाई जाने लगी और वह कभी भी स्थाई
शिक्षकों के तौर पर भर्ती नहीं किए गए। हालांकि कुछ शिक्षकों को स्थाई शिक्षक के
तौर पर पदोन्नति भी मिली।
अब
मैं आपको बताना चाहूंगा की शिक्षा कर्मी की भर्ती 3 वर्ष के लिए क्यों की जाती रही है। दरअसल उस समय इस बात को सामने रखा गया
की शिक्षाकर्मी के इस पद हेतु रुपयों का इंतजाम वर्ल्ड बैंक के द्वारा होता है। और
वर्ल्ड बैंक यह राशि ऋण के रूप में स्टेट गवर्नमेंट को 3 साल के लिए देता है। बाद में परिस्थिति का
जायजा लेने के बाद यह राशि अगले तीन वर्षो के लिए बढ़ा दी जाती है।
दावा
है छत्तीसगढ़ राज्य में करीब ढाई लाख शिक्षाकर्मी कार्यरत है निश्चित तौर पर इन्हें
स्थाई करने के बाद और वर्ल्ड बैंक द्वारा राशि नहीं देने की स्थिति में वेतन देना
राज सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन जाएगी। इसलिए राज्य सरकार इन्हे स्थाई करने
में हिचकिचाती है।
दूसरी
मजबूरी है यूजीसी की गाईडलाईन जिनके अनुसार स्थाई शिक्षको को भारी भरकम वेतन देना
जरूरी है। इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते है मान लिजिये किसी शिक्षाकर्मी का
वेतन 30000 प्रतिमाह है तो यदि उसे शिक्षक पद पर बहाल किया जायेगा तो उसे यू जी सी
के गाईडलाईन के अनुसार करीब डेढ गुना ज्यादा वेतन (75000) देना होगा। ऐसा
करना सरकार के लिए एक टेढ़ी खीर है।
अब
हम इस मुद्दे पर आते हैं कि क्यों शिक्षाकर्मियों का हड़ताल जो तमाम छोटी-छोटी
मांगों पर आधारित होता है वह अक्सर असफल हो जाता पिछले बार के हड़ताल में तो करीब 25 शिक्षा कर्मी को मौत के मुंह में जाना पड़ा इनमें 4 आत्महत्या शामिल है
बावजूद इसके सरकार का मन नहीं डोला इसके कुछ कारण है।
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मताधिकार
पर कमजोर - सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि इतनी बड़ी
संख्या में होने के बावजूद वे सरकार बदलने का माद्दा नहीं रखते हैं वे और उनके
परिवार चाहे जातिगत कारण हो या धर्मगत या अन्य कारण हो। वह उसी पार्टी को
वोट देते हैं जिनके खिलाफ हड़ताल पर खड़े रहते हैं। इसीलिए कोई भी पार्टी
उनसे खौफ नहीं खाती। इसीलिए हड़ताल पर जाने से पहले शिक्षाकर्मियों को मनन और
विश्लेषण करना होगा और पूरी तैयारी के साथ हड़ताल पर बैठना होगा। तब कहीं जाकर
उनका आंदोलन सफल हो सकेगा। क्योंकि उनकी सेवाओं से उनके परिवार की रोजी रोटी बंधी
हुई है। वहीं बच्चों का भविष्य भी जुड़ा हुआ है।
सभी
सरकारी कर्मचारियों के लिए यह समस्या आने वाली है।
यदि कोई केन्द्र या राज्य सरकार का कर्मचारी यह समझे की यह समस्या
सिर्फ शिक्षाकर्मियों की है। वह इस समस्या से सुरक्षित है तो मै यह बताना चाहूंगा
की नई नई पूंजी वादी एवं उदारवादी नीति में यही योजना बनाई जा रही है। अब चपरासी
से लेकर आई ए एस तक ठेके पर लिये जायेगे। सरकार शिक्षा स्वास्थ अन्य जनहित
वाली योजना से हाथ खीचना चाहती है। सरकार का काम केवल दो ही होगा। जनता से भूमि
छीन कर पूंजीवादियों को देना और टैक्स वसूलना। राजस्थान सहित कई राज्यों में
इसकी शुरूआत भी हो चुकी है। शिक्षाकर्मी की तरह पुलिस, पटवारी,
ग्रामसेवक,कलर्क और अधिकारी ठेके पर भर्ती किये जा रहे है। इसलिए
अन्य संगठन को भी समस्या को गंभीरता से लेने की जरूरत है।