Rakshabandhan and the truth behind it?
धर्म निरपेक्षता के मायने Means of secularism
भारत के संविधान के अनुसार भारत एक धर्मनिरपेक्ष
देश है। धर्म निरपेक्ष का सही मतलब होता है ऐसी सरकार जो किसी धर्म के पक्ष में
नहीं है। कुछ लोग धर्म निरपेक्ष का मतलब यह भी निकालते है कि ऐसी सरकार जो सभी
धर्म के पक्ष में हो सबको लेकर चलती हो।
पिछले दिनों तमिलनाडु में एक सड़क परियोजना के
उद्घाटन में सरकारी अधिकारी ने गलती से सिर्फ ब्राम्हण पुजारी को बुला लिया सांसद
सैंथिलकुमाल ने पूछा की बाकी धर्म के प्रतिनिधि कहां है । बताना चाहूंगा की तमिलनाडु
में सिर्फ एक धर्म के पुजारी से सरकारी योजनाओं में पूजा नहीं कराई जाती, आम तौर पर पूजा होती ही नहीं है।
दरअसल, तमिलनाडु राज्य के धर्मपुरी सीट
से लोकसभा सांसद सेंथिलकुमार एक सड़क परियोजना की भूमि पूजा के लिए अपने गृह जिले
में पहुंचे थे। यहां पहुंचने पर उन्होंने लोक निर्माण विभाग के कार्यकारी अभियंता
से पूछा कि क्या उन्हें पता है कि एक सरकारी समारोह को इस तरह से आयोजित नहीं किया
जाना चाहिए, जिसमें केवल एक विशेष धर्म की प्रार्थना शामिल
हो। उन्होंने अधिकारी से पूछा कि आप ये बात जानते हैं या नहीं।
इस दौरान मौके पर मौजूद एक भगवा वस्त्र पहने हिंदू
पुजारी को देखकर उन्होंने अधिकारी से पूछा कि अन्य धर्मों के प्रतिनिधि कहां है।
उन्होंने अधिकारी से कहा कि, "यह क्या है? अन्य
धर्म कहां हैं? ईसाई और मुस्लिम कहां हैं? चर्च के फादर, इमाम को आमंत्रित करें, किसी भी धर्म को नहीं मानने वालों को भी आमंत्रित करें। गौरतलब है कि
सामाजिक न्याय के प्रतीक पेरियार ईवी रामासामी द्वारा स्थापित एक तर्कवादी संगठन
द्रविड़ कड़गम सत्तारूढ़ द्रमुक का मूल निकाय है।
सांसद एस सेंथिलकुमार की डांट के बाद लोक निर्माण
विभाग के कार्यकारी अभियंता ने सांसद से माफी मांगी। उन्होंने कहा कि यह
शासन का द्रविड़ मॉडल है। सरकार सभी धर्मों के लोगों के लिए है।
ज्ञातव्य है कि इसके कुछ दिनों पहले प्रधान मंत्री
नरेन्द्र मोदी ने नये संसद भवन में राजकीय चिन्ह अशोक स्तंभ की पूजा सिर्फ ब्राम्हण
पुजारियों से कराई। जबकि यह देश संविधान से चलता है न कि किसी धर्म के विधान से ।
कायदे से पूजा नहीं करानी चाहिए थी। यदि करानी पड़ रही है तो भारत में जितने भी
धर्म के मानने वाले है उनके पुजारियों से पूजा करानी चाहिए।
यह बताना जरूरी है की संविधान जब निर्माणाधीन था
तब इस पर चर्चा हुई जिसमें सभी समाज और स्थान के चुने हुये प्रतिनिधि मौजूद थे।
ने यह निर्णय लिया था की भारत में एक धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना की जानी
चाहिए। ताकि सभी समता समानता एवं सद्भावना से रह सके। बाद में कांग्रेस की सरकार
ने संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ दिया। यह संविधान की भावना के हिसाब से एक अच्छा
कदम था। इसी तरह यह बात कॉमन हो गई और इसे गंभीरता नहीं लिया गया।
लेकिन तमिलनाडु सांसद डां सेन्थिल कुमार के वीडियो
वायरल हो जाने के बाद, यह बात चर्चा में फिर आ गई की भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है जिसमें
सभी धर्मो का समान आदर होना चाहिए। क्योंकि एक आम हिन्दू भी धर्म निरपेक्ष सरकार
चाहता है।
सरकर को धर्म निरपेक्ष क्यो होना चाहिए:
भारत एक ऐसा देश है कि जिसमें कई धर्मों, सैकड़ो पंथो को
मानने वाले लोग रहते है। देश को अखण्ड
बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि सभी धर्म एवं पंथो का बराबर सम्मान किया जाय। यह सम्मान
तभी हो सकता है जब आप सरकार और धर्म में दूरियां रखेगें। आप उत्तर भारत के सरकारी
कार्यलयों में एक खास धर्म के देवी देवता की तस्वीर या पूजा स्थल पाते है। जबकि
तमिलनाडु सरकार ने पूर्व में भी संविधान के भावना का आदर करते हुये सरकारी कार्यालय
में मंदिर मस्जिद या किसी भी पूजा स्थल, तस्वीर न लगाने का
आदेश जारी किया था। दर असल तमिलनाडु एवं उसकी सरकार पर प्रसिध्द तर्कशास्त्री इ
वी रामास्वामी पेरियार का प्रभाव रहा है। यही कारण है तमिलनाडु देश का सबसे उन्नत
राज्य है।
सरकारी धन का दुरूपयोग:
चूकि सरकार को टैक्स सभी धर्म पंथ को मानने वाले
लोग देते है । इसलिए सरकार को इस टैक्स के पैसे को किसी खास धर्म के उपर खर्च करने
से बचना चाहिए। यह संविधान के भावना के खिलाफ है। जनता चाहती है उसे सड़क बिजली
पानी मिले, गरीबी दूर हो, बेरोजगारी से देश निजात पाये ।
सरकारी मेडिकल, इंजिनीयरीग कालेज खुले शिक्षा चिकित्सा सस्ती
हो। आज भारत के दूर दराज में ऐसे कई गांव है जहां बिजली पानी सड़क अब तक नहीं
पहुची है। इन सामरिक चीजों में टैक्स का पैसा खर्च होना चाहिए।
संविधान कहता है तर्क शील बनों अंधविश्वास से निजात पाओ:
संविधान की धारा 51 क की उपधारा ज कहती है कि भारत
में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाये। लोग तर्क शील बने। धर्म एक निजी
मामला है उसे घर एवं पूजा स्थलों तक सीमित होना चाहिए। आज अंधविश्वास के कारण पूरा
देश पिछड़े पन का शिकार है । कई मौतें सिर्फ अंधविश्वास के कारण होती है। लोग अपनी
मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों के इलाज के लिए आज भी ओझा, बैगा, मौलवी के भरोसे रहते है। इस कारण स्वास्थ सूचकांक में भारत पिछड़ता जा
रहा है। हमें उन यूरोपीय देशों से सीख लेनी चाहिए जिन्होंने धर्म के बजाए
वैज्ञानिक विचारधारा एवं तकनीक अपनाया और विकसित देशों में अपना मुकाम बनाए हुए
है।
जाति अत्याचार के खिलाफ राजधानी रायपुर में होगा नग्न प्रदर्शन
खोलने के बजाए चुप्पी साध कर पेटखोर रहते हुए आरक्षण का लाभ उठाते रहना चाहते हैं।
शंकराचार्य यूनिवर्सिटी में द्वितीय स्थापना दिवस की रही धूम
शंकराचार्य यूनिवर्सिटी में द्वितीय स्थापना दिवस की रही धूम
Light of Asia Lord Gautam Buddha
बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष
भगवान
बुद्ध यानी एशिया
का प्रकाश
संजीव
खुदशाह
बुद्ध को एशिया का प्रकाश यानी Light of Asia कहा जाता है। जापान, दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया, चीन, वियतनाम, ताइवान, तिब्बत, भूटान, कंबोडिया, हांगकांग, मंगोलिया, थाईलैंड, मकाउ, वर्मा, लागोस और श्रीलंका की गिनती बुद्धिस्ट देशों में होती है। वैसे तो बुद्ध का जन्म नेपाल में हुआ था। लेकिन बुद्धत्व प्राप्ति से लेकर परिनिर्वाण तक पूरा जीवन भारत के भू भाग में ही बीता। बावजूद इसके भारत में बुद्ध को पूरी तरह भुला दिया गया था। आज भी भारत के लगभग सभी भागों में खुदाई के दौरान बुद्ध की प्रतिमा प्राप्त होती रहती है। इसी प्रकार सम्राट अशोक को भी पूरी तरह भुला दिया गया था 1838 में जब अशोक स्तंभ को पढ़ा गया तब ज्ञात हुआ कि कोई अशोक नाम का सम्राट भी यहां हुआ करता था। हालांकि जनमानस में बुध और अशोक बसे हुए हैं। अशोक के लगाए पेड़ उन्हीं के नाम से आज भी जाने जाते हैं।
प्रसंगवश
यह बताना जरूरी है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी वन
में इसवी सन से 563 वर्ष पूर्व हुआ था। उनकी माता महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह
जा रही थी तो कपिलवस्तु और देवदह के बीच लुंबिनी वन हुआ करता था। इसी वन में भगवान
बुद्ध का जन्म हुआ। इसी दिन 528 ईसा पूर्व बोधगया में एक पीपल वृक्ष के नीचे गौतम
को ज्ञान प्राप्त हुआ और वह बोधिसत्व कहलाए। मान्यता है कि इसी दिन यानी वैशाख
पूर्णिमा के दिन 483 ईसा पूर्व 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में भगवान बुद्ध का
परिनिर्वाण हुआ।
शोध
बताते हैं कि दुनिया में सर्वाधिक प्रवचन बुद्ध के ही रहे हैं। यह रिकॉर्ड है कि
बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना किसी और ने नहीं। धरती पर अभी तक ऐसा कोई
नहीं हुआ जो बुद्ध के बराबर कह गया। सैकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे
पड़े हैं और आश्चर्य कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है। 35 की उम्र के बाद बुद्ध ने
जीवन के प्रत्येक विषय और धर्म के प्रत्येक रहस्य पर जो कुछ भी कहा वह त्रिपिटक
में संकलित है। त्रिपिटक अर्थात तीन पिटक- विनय पिटक,
सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक। सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय के एक अंश
धम्मपद को पढ़ने का ज्यादा प्रचलन है। इसके अलावा बौद्ध जातक कथाएं विश्व प्रसिद्ध
हैं।
आज
हम जितना उनके बारे में जानते हैं। पूरी जानकारी का केवल 20% है। बौद्ध साहित्य जो
त्रिपिटक के रूप में था। काफी पहले नष्ट हो गया। अच्छी बात यह थी कि यह साहित्य
पाली से तिब्बती भाषा में अनूदित हो चुका था। राहुल सांकृत्यायन ने इसे हिंदी भाषा
में अनुवाद करके उपलब्ध कराया। कट्टरपंथियों ने नालंदा बौद्ध विश्वविद्यालय पर
हमले किये उसे जलाया, 3 महीने तक किताबे जलती
रही। न जाने कितनी बहुमूल्य किताबें, कीमती जानकारियां रही होगी , सब राख में तब्दील हो
गई।
कहने
का तात्पर्य यह है कि जिस बुद्ध के पीछे सारी दुनिया पागल थी। उस बुद्ध को उसी के
जन्म और कार्यस्थली में लगभग भुला दिया गया। ऐसा क्यों हुआ? इसके पीछे विभिन्न मत है जिसकी चर्चा यहां गैर जरूरी है।
गौतम
बुद्ध को लाइट ऑफ एशिया के नाम से पुकारने का सबसे महत्वपूर्ण कारण है उनके विचार,
उनकी शिक्षाएं। वे दुख का कारण और उसका निवारण बताते हैं। गृहस्थों
के लिए जीवन जीने की पद्धति बताते हैं जिसे पंचशील कहा जाता है। वे दुनिया के पहले
ऐसे विचारक हैं जो यह कहते हैं कि ‘अपना दीपक खुद बनो’
यानी अत्त दीपो भव। वे कहते हैं कि कोई बात इसलिए नहीं मानो
कि कोई बड़ा व्यक्ति कह रहा है या किसी पवित्र ग्रंथ में लिखा है या मैं कह रहा
हूं। इस बात का स्वयं मूल्यांकन करो और खुद अनुभव करो तभी वह बात को मानो। यही वे पहलू
थे जिसके कारण बुद्ध सर्वत्र स्वीकार किये गये।
दुनिया
के अन्य धर्मों की तरह बुद्ध उपासना की कोई एक पद्धति या रिवाज या कोई ड्रेस कोड अथवा
कोई रूमानी आदेश नहीं है। जिससे यह तय हो की आप बुद्धिस्ट हो। सिर्फ बुद्ध के
विचारों को मानना जरूरी है। जिसे सम्यक विचार कहते हैं। यही कारण है संसार के सारे
बुद्धिस्ट की उपासना पद्धति अलग-अलग है। जापान के बुद्ध वहां की संस्कृति में रचे
बसे हैं। ठीक उसी प्रकार चीन के बुद्ध वहां की संस्कृति में समाये है। बुद्ध को
मानने के लिए संस्कृति को बदलने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन सभी जगहों में पंचशील
अष्टशील पाली भाषा में ही स्मरण किए जाते हैं।
भगवान
बुद्ध कहते हैं कि जीवन ऐसे जियो जैसे वीणा के तार। वीणा के तारों को इतना ढीला ना
रखो कि उसकी ध्वनि बेसुरी लगे और इतना ना कसो कि उसकी ध्वनि कानों में चुभे। वीणा
के तारों को ऐसे एडजस्ट करो कि उससे मधुर संगीत की उत्पत्ति हो। लोगों को खुशी
मिले। यानी जीवन को वीणा के तारो की तरह जीने की बात बुद्ध कहते हैं।
दुनिया
का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहां बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों। दुनिया भर
के हर इलाके से खुदाई में भगवान बुद्ध की प्रतिमा निकलती है। दुनिया की सर्वाधिक
प्रतिमाओं का रिकॉर्ड भी बुद्ध के नाम दर्ज है। बुत परस्ती शब्द की उत्पत्ति ही
बुद्ध शब्द से हुई है। बुद्ध के ध्यान और ज्ञान पर बहुत से मुल्कों में शोध जारी
है
पश्चिम
देशो के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक बुद्ध को पिछले कुछ वर्षों से बड़ी ही गंभीरता से
ले रहे हैं। चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेक बौद्ध राष्ट्रों के बौद्ध मठों में
पश्चिमी जगत की तादाद बढ़ी है। वे बुद्ध के बारे मे और जानना चाहते है। वे उन
रहस्यों से पर्दा उठाना चाहते है की किन कारणो से बुद्ध को भारत से भुला दिये गये।
वे क्या कारण है कि सारे विश्व में अपने विचार का परचम लहराने वाले बुद्ध के
अनुयायी भारत से गायब हो गये। भगवान बुद्ध की खोज अभी भी जारी है।
नवभारत संडे कवर स्टोरी में 15 मई 2022 को प्रकाशित
आधी आबादी नहीं हूं मैं
Kidney can't recover through bricks
ईट के सहारे किडनी फैलियर का इलाज नहीं किया जा सकता | यह टोटकेबाजी है ।
The arrest of Mr. Nandkumar Baghel periyar of Chhattisgarh's is unconstitutional.
छत्तीसगढ के पेरियार श्री नंदकुमार बघेल की गिरफ्तारी असंवैधानिक
नंदकुमार बघेल की आज गिरफ्तारी हो गई। गौरतलब है कि पिछले दिनों नंदकुमार बघेल ने यूपी में एक स्टेटमेंट दिया था जिसे ब्राम्हण विरोधी कहा जा रहा है। इसी मामले पर एक ब्राम्हण गुट के शिकायत पर उनकी गिरफ्तारी की गई।
Why Dr. Radhakrishnan's birthday as Teacher's Day?
डा. राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में क्यों?
यह सवाल हैरान करने वाला है कि डा. राधाकृष्णन के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में क्यों मान्यता दी गई? उनकी किस विशेषता के आधार पर उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस घोषित किया गया? क्या सोचकर उस समय की कांग्रेस सरकार ने राधाकृष्णन का महिमा-मंडन एक शिक्षक के रूप में किया, जबकि वह कूप-मंडूक विचारों के घोर जातिवादी थे? भारत में शिक्षा के विकास में उनका कोई योगदान नहीं थाI अलबत्ता 1948 में उन्हें विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का अध्यक्ष जरूर बनाया गया था, जिसकी अधिकांश सिफारिशें दकियानूसी और देश को पीछे ले जाने वाली थींI नारी-शिक्षा के बारे में उनकी सिफारिश थी कि ‘स्त्री और पुरुष समान ही होते हैं, पर उनका कार्य-क्षेत्र भिन्न होता हैI अत: स्त्री शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि वह सुमाता और सुगृहिणी बन सकेंI’[1] इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह किस स्तर के शिक्षक रहे होंगे?
Journalism University, the laboratory of Godse's thoughts
Know the difference between your exploiter and your savior
डोमार जाति का कभी गौरवशाली इतिहास रहा है और आर्यो के आने के पहले वह इस देश के शासक थे। लेकिन इन्होंने डोमारो का दमन किया और मैला प्रथा से जोड़ दिया। हमें फिर इस देश का शासक बनना है।
Who is jhola chap Doctors?
कौन है झोलाछाप डॉक्टर ?
डॉक्टर के बी बनसोडे
पिछले दिनों में बीजेपी सरकार ने आयुर्वेदिक चिकित्सकों को सीधे एलोपैथी पोस्ट ग्रेजुएशन कराने की तथा उसके बाद उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सकों को भी विभिन्न प्रकार की सर्जरी करने की अनुमति दिये जाने की बात की थी ।
जिसके अनुसार आयर्वेदिक चिकित्सक भी कई प्रकार की आंख , नाक , कान , गले के अलावा अनेक प्रकार की जनरल सर्जरी की ट्रेनिग देकर उन्हें लाइसेंस देने को कहा था ।
इस मुद्दे के खिलाफ देश भर के एलोपैथी चिकित्सक तथा उनकी संस्था आईएमए ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया था ।
उनके अनुसार कोई स्पेशलिस्ट ENT , Ophthalmic या General Surgeon बनाने के लिये पहले MBBS की पढ़ाई करवाई जाती है । जिसमें विद्यार्थी को विशेषज्ञ बनने के पहले सभी विषयों का ज्ञान गहराई से पढ़ाया जाता है ।
वैसी शिक्षा आयुर्वेद में नही पढ़ाई या सिखाई जाती है ।
इसके अलावा एलोपैथी का भी कोई एक विशेषज्ञ किसी भी अन्य फील्ड में काम नही कर सकता है । क्योकि उसकी विशेषज्ञता अलग क्षेत्र में है । जैसे कि कोई हड्डी रोग विशेषज्ञ नेत्र रोग विशेषज्ञ का काम नही कर सकता है ।
उसी तरह कोई महिला रोग विशेषज्ञ ENT का काम नही कर सकता है ..... इसी तरह सभी विषय के विशेषज्ञ का अपना फील्ड होता है ।
अब यदि आयुर्वेदिक चिकित्सक को ट्रेनिग देकर भी सर्जरी करवाना है , तो उसके लिये उसे उसके शुरुवात से आयुर्वेदिक विषयों को छोड़ना पड़ेगा । जैसे उनका फार्मेकोलॉजी , पैथोलॉजी वगैरह को त्यागना पड़ेगा ।
और तब वह एलोपैथी के अनुसार सभी विषयों को पढ़कर तथा सीखकर ही विशेषज्ञ बन सकता है ।
*अब सरकार अपनी समझदारी या अज्ञानता का परिचय ना देकर इस जरूरी मापदंड को खारिज करके किसी को भी विशेषज्ञ बनाने की जिद को छोड़ देना ही सही होगा , अन्यथा यह कोशिश वास्तव में जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना है ।*
फिलहाल तो वह मुद्दा अभी कोरोना के बाद से ठंडे बस्ते में है ।
अब आप झोला छाप चिकित्सकों को मान्यता देने की बात करते हैं , तो फिर झाड़फूंक वाले बाबाओं , बैगा गुनिया , तांत्रिक बाबा , हस्तरेखा विशेषज्ञ , तथा ग्रह दशा शांत करने वालों शनिदेव को शांत करने वाले लोगों तथा वास्तु शास्त्र के लोगों को भी फ्रंट लाईन वर्कर का दर्जा क्यों नही दे देना चाहिये ?? आखिरकार वह भी तो जनता की तकलीफ के उपचार में ही हजारों सालों से निर्बाध अपना काम करके जनता को उनके कष्ट से *??* राहत पहुंचाते ही हैं ।
गोबर तथा गोमूत्र से उपचार करने वालों को भी कोरोना से बचाने वाले फ्रंट लाईन वारियर कहने में क्या समस्या है ??
आजकल सोशल मीडिया में भी अनेक लोग विभिन्न प्रकार के उपचार से लोगों का ज्ञानवर्धन कर रहे है , तो उन्हें भी फ्रंट लाईन वारियर का खिताब मिलना ही चाहिये ???
*अब देश को आधुनिकता की बुराइयों से बचाकर वापस 5000 साल पीछे ले जाने वाले सभी बातों का समर्थन हमें क्यों नही करना चाहिये ??*
अवश्य करना चाहिये ।
वैसे भी शहरी लोग , आधुनिक लोग पश्चिमी सभ्यता वाले लोग तो केवल हम सब भारतीय तथा पवित्र लोगों को बर्बाद कर रहे हैं । तो इसलिये फिर हमे वापस जंगली जीवन , शिकारी जीवन को सही मान लेना ही बुद्धिमानी है ।
कृषि में भी आधुनिक विज्ञान का सहारा लेना बंद करना चाहिये ।
देशभर के सभी लोगों को मोटरसाइकिल कार , मोबाईल वगैरह आधुनिक विज्ञान द्वारा निर्मित सब आविष्कारों का प्रयोग करना बन्द करना चाहिये ।
सभी बड़े अस्पताल जिसमें आधुनिक ईलाज होता है , उन्हें बन्द कर देना चाहिये ।
*और सबसे बड़ी बात आधुनिक युग की पढ़ाई लिखाई( शिक्षा ) भी खत्म किया जाना चाहिये ।*
सभी फैक्ट्रियों को तत्काल बन्द करना चाहिये ।जिसमे कपड़े वगैरह समस्त आधुनिक वस्तुओं का उत्पादन होता है तथा जिसका हम रोजमर्रा के जीवन में लगातार उपयोग करते हैं ।
दरअसल कुछ लोग अपने अधूरे ज्ञान को जस्टिफाई करना चाहते हैं । इसलिये अपने देश की जनता को सबसे अच्छा ज्ञान ( शिक्षा ) देने के विरोध में अज्ञानता को सही साबित करने में लगे रहते हैं ।
इसी सिलसिले में हमे इसे देखना होगा ।
झोलाछाप चिकित्सक कोई कैसे बनता है ??
कोई एक कम पढ़ा लिखा व्यक्ति , जो किसी मेडिकल शॉप में काम करते करते तथा , किसी अन्य चिकित्सक के साथ काम करते करते उसे कुछ दवाओं के बार में कुछ ज्ञान हासिल कर लेता है या उसको दवाओं की कुछ सामान्य जानकारी मिल जाती है कि , किस तरह की तकलीफ (लक्षण) में कौन सी दवा काम करती है ।
एक दो इंजेक्शन की जानकारी लेकर वह लोगों का इलाज शुरू कर देता है ।
जब ऐसे आधे - अधूरे या कम जानकार व्यक्ति के ईलाज से कुछ लोगों को छोटी मोटी बीमारियों में आराम मिल जाता है , तो आम जनता उसे चिकित्सक मान लेती है । जनता को भी उसके बेहद अल्प ज्ञान से ही जब राहत मिल जाती है , तो वह दूर शहर के किसी बड़े चिकित्सक के पास जाकर अपना समय तथा पैसा बचाने में ही अपनी समझदारी समझता है ।
इस तरह के झोला छाप चिकित्सकों को सरकार वैसे तो कोई मान्यता नही देती है , लेकिन अघोषित तौर पर इनका कारोबार अत्यंत व्यवस्थित रूप से फल फूल रहा है । इन झोला छाप चिकित्सकों के कारण बड़े बड़े कॉरपोरेट अस्पताल भी अपनी कमाई में इजाफा करते है । इसलिये वे भी उन्हें एक प्रकार से प्रश्रय ही देते हैं ।
अब यदि हम इस समस्या के निदान की बात भी कर लें तो बेहतर होगा ।
झोलाछाप चिकित्सक यदि कहें कि ग्रामीण जन जीवन के अच्छे मित्र हैं , और इसलिये वे आराम से कार्यरत रहते भी हैं ।
आम जनता को सरकार से कोई सहूलियत भी नही मिलती , तो वे झोलाछाप चिकित्सकों के शरणागत होने को मजबूर भी हैं ।
भारत की सरकार ने आजादी के बाद से अब तक गांव गांव में शिक्षा , स्वास्थ्य एवम अन्य समस्त मूलभूत सुविधा प्रदान करने में असफल रही है ।
कहने को मिनी पीएचसी , सीएचसी एवम जिला अस्पताल खोले हुवे है , लेकिन उसमें से अधिकांश जगहों पर ना चिकित्सक हैं और ना पैरामेडिकल स्टॉफ और ना दवाइयाँ या एडमिशन की सहूलियत ।
ऐसी स्तिथि में झोलाछाप ही ग्रामीण जनता के लिये मददगार है ।
अब यदि इस सिस्टम को ठीक करना है , तो सरकार को फिलहाल एक काम करना चाहिये । वह ये कि जितने भी झोलाछाप चिकित्सक हैं , उनकी पहचान करके उन्हें पहली बार , लगभग एक साल की ट्रेनिग देकर , कुछ निश्चित बीमरियों के उपचार के लिये लाइसेंस दे देना चाहिये । फिर कुछ निश्चित दवाओं का किट उपलब्ध करवाना चाहिये एवम उनकी सेलरी निर्धारित करके ग्रामपंचायत से दिलवाई जानी चाहिये ।
हालाकि सरकार ने आशा दीदी इत्यादि को इसके लिये नियुक्त किया है , लेकिन उतना ही पर्याप्त नही है ।
प्रत्येक झोलाछाप चिकित्सक को उसके बाद प्रतिवर्ष 15 दिनों की ट्रेनिंग देना चाहिये , जिससे वह समय समय पर अपडेट होते रहें ।
सरकार सबको सही एवम वैज्ञानिक शिक्षा पद्धति से शिक्षित करने के लिये मुफ्त शिक्षा दे । सभी प्राइवेट शिक्षा संस्थान बन्द किये जाने चाहिये , तथा सभी जगह एक तरह की शिक्षा दी जानी चाहिये । स्टेट बोर्ड , या केंद्रीय बोर्ड ( (ICSE &CBSE) वगैरह बन्द करके समान शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिये । कुछ राज्य अपनी मातृभाषा में शिक्षा देना चाहते हैं , तो उसके लिये यह सुविधा गई जानी चाहिये । शिक्षा हासिल करने का मकसद ज्ञान हासिल करना होना चाहिये , ना की डिग्रीधारी बनकर केवल नौकरी हासिल करने की मानसिकता से बच्चों को तथा जनता को मुक्त किया जाना चाहिये ।
सबको रोजगार प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिये ।
यही सब समानता चूंकि विकसित देशों में लगभग 150 साल पहले ही अपना ली थी , जिनके चलते आज वे विकसित समाज हैं । और हम अभी भी अविकसित समाज और दुनिया के पिछड़े तथा गरीब देश में एक देश है ।
इसमें भी हमें अपनी अज्ञानता पर गर्व करना छोड़कर वास्तविक उन्नति की दिशा में अपनी सोच विकसित करना जरूरी है ।
धन्यवाद ।