Story to being Periyar

पेरियार बनने की कहानी

संजीव खुदशाह

अगर प‍ेरियार को समझना है तो ये जानना जरूरी है कि पेरियार कैसे पेरियार बने। बतादू की ई वी रामास्‍वामी पेरियार एक समृध परिवार से थे। एक बार काशी के मंदिर में एक सामूहिक भोज रखा गया और उस भोज से पेरियार को उठा दिया गया। क्‍योकि वे एक ओबीसी परिवार से आते थे। ओबीसी होने के कारण उन्‍हे जलील होना पड़ा। धर्म की सत्‍ता का उन्‍हे ज्ञान हुआ की धर्म की सत्‍ता वास्‍तव में क्‍या है। वहां उन्‍होने देखा की काशी में जो दान दाता की लिस्‍ट है उसमें सबसे ज्‍यादा ओबीसी समाज के ही लोग है। लेकिन उन्‍हे भोज में शामिल होने का अधिकार नहीं है क्‍योकि वे पिछड़े(शूद्र) समाज के है। वे छोटी जाति के है।

Periyar E V Ramaswamy Naiker

 ठीक इसी के समांनतर ऐसी ही घटना अंबेडकर और महात्‍मा फूले के साथ भी घटती है । महात्‍मा फूले जब अपने सवर्ण मित्र की बरात में जाते है तो ओबीसी होने के कारण उनको बेइज्‍जत किया जाता है, उन्‍हे जलील होना पड़ता है। जबकि वे भी एक समृध्‍द ठेकेदार परिवार से थे। ठीक इसी प्रकार डॉ अंबेडकर जब ट्रेन से उतर कर अपने पिता के पास जाते है जिल बैलगाड़ी में बैठते है। उस बैलगाड़ी में उनको छोटी यानि दलित जाति का होने के कारण जलील किया जाता है। जबकि डॉ अंबेडकर एक सैन्‍य अफसर सूबेदार के बेटे थे।

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मैं यही बतलाना चाहता हूँ की अगर कोई व्‍यक्ति जाति के नाम पर उसे जलील होता है तो बेगैरत व्‍यक्ति धार्मिक गुलाम बन जाता है। लेकिन जिसमें थोड़ी भी गैरत बची है, जिसमें थोड़ा भी स्‍वाभिमान बचा है, वह व्‍यक्ति तर्कवादी बनेगा। पेरियार बनेगा। वह व्‍यक्ति अंबेडकर बनेगा। महात्‍मा फूले बनेगा। अगर पेरियार उस घटना से आहत नहीं होते तो वे धार्मिक गुलाम बनते। जिस प्रकार करोड़ो ओबीसी, एससी, एस टी धार्मिक गुलाम बने हुये है।

बहुत सारे ओबीसी, एस सी, एसटी के लोग कहते है कि उनके साथ कभी जातिगत भेद भाव नहीं हुआ। वे कहते है हमारा प्रमोशन हो गया, हम बड़े पद में चले गये। हमारा बिजनेस है, करोड़ो की सम्‍पत्ति, बंगला है। फिर भी हमें किसी ने जाति के नाम पर जलील नहीं किया गया। तो वे लोग झूठ बोलते है। दरअसल वे लोग अपनी औकात को भूल गये है। इनमें यह पहचान करने का गुण कि उनके साथ भेद भाव हो रहा है, खत्‍म हो चुका है। जैसे जैसे आप डिस्क्रिमिनेशन को स्‍वीकार करते जाते है। आपको जलालत महसूस होना बंद हो जाता है। और आप व्‍यवस्‍था को स्‍वीकार कर लेते है। धार्मिक गुलाम बन जाते है। अपनी जलालत को ही अपनी इज्‍जत समझने लगते है। ऐसा कोई ओबीसी, एस सी, एस टी का व्‍यक्ति नहीं होगा जिन्‍हे जाति का लांछन सहन नहीं करना पड़ा हो। एक आदिवासी महिला राष्‍ट्रपति तक को जाति के नाम पर पुरी के मंदिर में जलिल होना पड़ता है, जबकि वह धार्मिक थी। तो आम आदमी की बात ही क्‍या करे।

पंडित बाल गंगा धर तिलक ने सार्वजनिक रूप से आखिर क्‍यों कहा की तेली, तंबोली, कुर्मी क्‍या संसद में आकर गाय भैस चराएंगे?  क्‍या इससे उनका पूरा समाज जलील नहीं हुआ। मेरा कहने का मतलब है कि कही न कही, कभी न कभी ये समाज, छोटी जाति का होने के कारण जलील होता है। चाहे कितनी भी ऊची पोस्‍ट में हो या व्‍यापार में हो। इस प्रकार जलील होने के कारण दो बाते होती है। एक या तो वह इन जलालत को स्‍वीकार करने के बाद हमेंशा के लिए धार्मिक गुलाम बन जायेगा। या फिर तर्कवादी-विद्रोही बन जायेगा, पेरियार, अंबेडकर या महात्‍मा फूले बन जायेगा। तीनो की स्थिति को देखिये वे समृध्‍द शाली परिवार से आते थे। उन्‍हे किसी चीज की कमी नहीं थी। बावजूद इसके उन्‍हे जलालत झेलनी पड़ी। तो यह कहना की आपने कभी जलालत नहीं झेली यह एक झूठ है। ऐसा हो नहीं सकता। ये हो सकता है कि आप धार्मिक गुलाम बन गये हो और आपमें जलालत को सहने का गुण आ गया हो।

यहां मैं बताना चाहूंगा की पेरियार ने 4 महत्‍वपूर्ण बाते कहीं है

(पहली) बात वह कहते हैं ईश्वर के बारे में

(दूसरी) बात कहते हैं धर्म के बारे में

(तीसरी) बात कहते हैं धर्म शास्त्र के बारे में

(चौथी) बात कहते हैं वो ब्राह्मणवाद के बारे में

वो कहते हैं की इन चार चीजों का खात्मा किया जाना चाहिए। वो कहते हैं की जब तक इनका खात्मा नहीं होगा। तब तक उनका उत्थान संभव नहीं। वे कहते हैं की ईश्वर को इसलिए रचा गया, ईश्वर का निर्माण इसलिए किया। ताकि छोटी जाति से अपनी सेवा करा सके। इसीलिए ईश्वर की रचना की गई। और  ईश्वर को स्थापित करने के लिए धर्म की रचना की गई। धर्म को स्थापित करने के लिए शास्त्र लिखा गया है। और यह कहा गया है की यह अपौरुषेय है। इसको किसी पुरुष ने नहीं रचा भगवान ने लिखा है। वे दावा करते है कि यह ग्रंथ आकाश से उतरा है।  उसके बाद अंत में जो चौथा है वह ब्राह्मणवाद। इन तीनों चीजों को स्थापित करने के लिए ब्राह्मणवाद को लागू किया गया। ब्राह्मणवाद का मतलब होता है अंधविश्वास का पालन करना, ब्राह्मणवाद का मतलब है भेदभाव को स्थापित करना। ब्राह्मणवाद का मतलब होता है स्त्रियों का शोषण करना। ब्राह्मणवाद का मतलब है किसी एक जाति‍ को सर्वश्रेष्ठ बताना बाकी जाती को निम्न बताना। इन चार चीजों का खात्मा होना चाहिए। ईश्वर  का, धर्म का, शास्त्रों का और ब्राह्मणवाद का। वे कहते है कि इनके खात्‍में के लिए मैं जीवन भर आंदोलन करता रहूंगा।

एक महत्‍वपूर्ण बात पेरियार से जुड़ी हुई है वह है तर्क। वे एक तर्कशास्‍त्री के रूप में काम करते है। वे कहते है कि तर्क और विज्ञान का रास्‍ता कल्‍याण का रास्‍ता है। मतलब आप समझ लीजिए की कोई व्यक्ति अगर वो दावा कर रहा है की मैं वंचित वर्ग के लिए उनके भलाई के लिए काम कर रहा हूं और उसके अंदर तर्क शक्ति नहीं है। उसके अंदर विज्ञान की विचारधारा नहीं है। तो वो झूठा है। अगर वो व्यक्ति कलावा पहने हुए हैं, वो व्यक्त जनेऊ पहने हुए हैं, तिलक लगाए हुए हैं और तरह-तरह के धार्मिक आडंबर करता है। तो वो वंचितों के लिए काम नहीं कर रहा। वह वंचितों को ठग रहा है। अगर वह बहुत सारे अंगूठियां को पहना हुआ है। मतलब कहीं न कहीं ऐसे चिन्ह को धारण कर रहा है। जिससे की यह मैसेज जाता है की वह एक अंधविश्वासी व्यक्ति है। तो वो वंचितों के लिए काम नहीं कर रहा। बल्कि वंचितों के साथ में ठगी का काम कर रहा हैं। उनको ठगने का काम मत करो। क्योंकि जो वैज्ञानिक विचारधारा है, जो विज्ञान को बढ़ाने वाली विचारधारा है, जो तर्क की विचारधारा है। वो वास्तव में वंचितों की मुक्ति का मार्ग है। अगर अंधविश्वास को हटा दिया जाए, विज्ञान को ला दिया जाए तो जो मानसिक गुलाम है वह अपने आप तर्कशील हो जाएंगे। सबसे पहले उन गुलामों को विज्ञान की तरफ लाना होगा। अंधविश्वास से मुक्त करना होगा। क्योंकि जितनी भी गुलामी का माहौल बनाया गया है। वह अंधविश्वास के बल पर बनाया गया। ऊंच-नीच क्या है एक अंधविश्वास है। भेदभाव क्या है एक अंधविश्वास है। जाति क्‍या है एक अंध विश्‍वास है। विज्ञान को ना मानना क्या है एक अंधविश्वास है। तो इससे मुक्ति किए बगैर आप किसी भी गुलाम को या किसी भी वंचित वर्ग एस सी एस टी ओबीसी का उध्‍दार का आप सपना देखते है। तो वो सपना कभी भी पूरा नहीं हो सकता। वो एक झूठ है,  एक सपना है, एक भ्रम है, छल है। ऐसा अगर आप कर रहे है तो लोगों के साथ एक छल कर रहे है।

अंधविश्‍वास को भी दो हिस्‍से में बांट दिया गया है। एक उच्‍च वर्ण का अंधविश्‍वास दूसरा निम्‍न वर्ण का अंधविश्‍वास। छुआ छूत, वेद शास्‍त्र, जातिवाद, जनेऊ, कुंडली, फलित ज्‍योतिष, हस्‍तरेखा जैसे उच्‍च वर्ण के अंधविश्‍वास को वे अंधविश्‍वास नहीं मानते । वे सिर्फ निम्‍न वर्ण के अंधविश्‍वास झाड़फूक, डायन प्रथा, तोता मैना से भविष्‍य बतना को ही अंधविश्‍वास मानते है। असल में अंधविश्वास का दायरा सीमित नहीं होना चाहिए।  आप एक निम्न वर्ग का विश्वास को ही आप खुलासा करिए और जो उच्च वर्ग का अंधविश्वास है उसको आप बचाइए।  ये जो सोच है। इस सोच का भी पर्दाफाश करने की जरूरत है।  साथियों कितने लोग इस पर काम करते हैं। अगर आप एक सामाजिक कार्यकर्ता है। वंचितों के लिए काम कर रहे हैं। अपने समाज के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन आप के अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता के गुण नहीं है तो आप का ये काम अधूरा है। आप लोगों को छलने का काम कर रहे है। आप उसके साथ ठगी कर रहे हैं।  आपको एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ एक अंधविश्वास विरोधी कार्यकर्ता भी बनना पड़ेगा। तब कहीं जाकर आप किसी वंचित वर्ग का भला कर पाएंगे। डॉक्टर अंबेडकर, महात्मा फुले, कबीर, पेरियार साहब की जिंदगी को देखिए।  इन्होंने जो काम किया साथ-साथ दोनों प्रकार के अंधविश्वास पर उन्होंने चोट किया।

 उन्होंने सच्ची रामायण इसी उद्देश्य लिखी।उन्होंने उस समय मौजूद जितने 20 प्रकार के अलग-अलग रामायण का अध्ययन किया। उन्‍होने एक ही किताब पढ़कर सच्‍ची रामायण नहीं लिखी। गहरा अध्‍ययन किया था उन्‍होने।

जेंडर जस्टिस पर उनके विचार

वो स्त्री पुरुष की बराबरी की बात करते हैं। वे बात करते हैं की किस प्रकार से महिला पुरुष का विवाह हो, उनका संबंध बराबरी को हो। वे कहते है कि पति पत्नी नहीं बोलना चाहिए। क्‍योकि पति का मतलब मालिक है और पत्नी का मतलब दासी। मालिक एवं दासी का रिश्‍ता नहीं हो सकता। दोनो के बीच दोस्‍ती का रिश्‍ता होना चाहिए। उनके बीच बराबरी, एक दूसरे के सम्‍मान का रिश्‍ता होना चाहिए। वे कहते है कि विवाह आडंबर रहित कोर्ट में होना चाहिए। समारोह खर्चीले नहीं होना चाहिए।

धर्म ग्रंथ नहीं पॉलिटिकल ग्रंथ है

दूसरा जो एक महत्वपूर्ण बात ये है की वे कहते हैं की धर्म ग्रंथ रामायण और महाभारत धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि ये पॉलिटिकल ग्रंथ है। लोगों का ब्रेन को वॉश करने के लिए ग्रंथ को बनाया गया। इन ग्रंथो का मकसद सांस्कृतिक गुलाम बनाये रखना है। उसका असर आपको देखने के लिए मिलता है। अब देखिए तमिलनाडु में जो उनकी बनाई पार्टी है वह आज सत्‍ता में है। तमिलनाडु के सरकारी कार्यालय में आपको किसी देवी देवता की तस्वीर या मूर्ति नहीं मिलेगी! बकायदा वहां पर एक ऑर्डर पास किया गया है की सरकारी कार्यालय में कोई भी देवी-देवता, अल्ला भगवान, का फोटो नहीं लगाया जाएगा। लेकिन आप यदि उत्तर भारत में आकर के देखेगें सरकारी कार्यालय को मंदिर सा बना दिया जाता है। क्यों बनाया जाता है? क्या आजादी किसी खास जाति‍ या किसी खास धर्म का योगदान से ही मिली है। संविधान में सभी धर्म के लोगों ने अपना योगदान दिया। यह एक डेमोक्रेटिक देश है। ये धर्मनिरपेक्ष देश है, ये सेकुलर देश है। जिसकी नजर में सारे धर्म एक है। एक जैसे है। धर्म से रहित देश है। संविधान कहता है की धर्मनिरपेक्ष का मतलब होता है किसी भी धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है। लेकिन संसद धार्मिक स्वतंत्रता भी देता है। इसका मतलब यह नहीं है की है देश किसी धर्म का उसका पालन करने के लिए खड़ा हो जाए। एक डेमोक्रेटिक देश के सरकारी कार्यालयों में, थानों में मंदिर और मस्जिद क्‍यों दिखाई पड़ते हैं। ये सोचना पड़ेगा। इसी के बारे में पेरियार साहब बोलते हैं की वोट का पॉलिटिक्स से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है सांस्कृतिक बदलाव।

सांस्कृतिक बदलाव कितना जरूरी है। आरएसएस जैसा बड़ा संगठन क्यों आपने आपको सांस्कृतिक संगठन कहता है। कितना महत्वपूर्ण है सांस्कृतिक बदलाव। इसको आप समझिए पेरियार साहब उस समय क्‍या कह रहे हैं। की सांस्कृतिक बदलाव की बहुत जरूरत है। इसीलिए आर एस एस ने अपने आप को कभी भी पॉलिटिकल संगठन नहीं माना। सांस्कृतिक संगठन माना। उसके लिए ही काम किया। लेकिन आजादी के बाद का जो माहौल है। उसको आप देख सकते हैं की किस प्रकार से वोट की राजनीति पर ध्‍यान केन्द्रित किया गया। जो वंचित वर्ग एस सी, एस टी, ओबीसी के द्वारा संचालित राजनीतिक पार्टी चाहे बीएसपी की बात कहे, चाहे एसपी की बात कहें, चाहे और दूसरी आरजेडी की बात करे। इन्होंने सिर्फ वोट की राजनीति पर ध्‍यान केन्द्रित किया। इसका हस्र क्या हो रहा है। आज उत्तर प्रदेश में आप देख सकते हैं। बिहार में आप देख सकते हैं। सांस्‍कृतिक परिवर्तन नहीं हुआ। सांस्कृतिक परिवर्तन नहीं होने के कारण वोट की सत्‍ता हाथ से निकलती जा रही है। आज तमिलनाडु में आरक्षण विधेयक पास किया और 50% से ज्यादा आरक्षण वे अपने लोगों को दे रहे हैं। ये कैसे हो पाया। इस सांस्कृतिक परिवर्तन, विचार के प्रति अडिग रहने का उनका जो संकल्प है। उसके कारण वे ऐसा कर पाए। आज वे ईडबल्‍यूएस आरक्षण को अपने यहां लागू नहीं कर रहे है। क्योंकि उन्होंने सांस्कृतिक परिवर्तन किया,  वैचारिक परिवर्तन की उन्होंने बात रखी है। उसकी बात करते हैं और उसको लागू करते हैं। वह एक तरफ ऐसा नहीं करते हैं जैसे की उत्तर भारत में होता है। वह एक तरफ कहते हैं की वह दलितों वंचितों, अल्‍पसंख्‍यकों की पार्टी है। दूसरी तरफ वो सवर्ण की ईडब्ल्यूएस आरक्षण के समर्थन की भी बात करते हैं। वैचारिक जो लडंखडांने वाली बात उनके अंदर नहीं है। इस चीज को उत्तर भारत के लोगों को सीख लेनी चाहिए। तब कहीं वह बदलाव हो पाएगा जिसका सपना रामास्वामी पेरियार ने देखा था।

आप कोई भी सामाजिक काम करते हैं या सामाजिक बदलाव की बात करते हैं, आप एक लेखक हैं या आप स्कॉलर हैं और आप बहुत बुद्धिजीवी हैं और आप वैज्ञानिक कार्यकर्ता हैं वंचितों के लिए कम करते हैं। आप चाहते हैं की समता समानता हो और साथ-साथ आप चाहते हैं की जो सुरक्षा चक्र के घेरे में आप रहे। तो संभव नहीं है। आपको जोखिम उठाना पड़ेगा। आपको हर प्लेटफार्म में अपने एजेंडे की बात को रखना पड़ेगा। बिना जोखिम उठाए कोई भी काम आप नहीं कर सकते। जोखिम से डर करके आप कोई भी काम नहीं कर सकते ।

मतलब सुरक्षा चक्र में रहना चाहते हैं तो आप सामाजिक काम करना छोड़ दीजिए। मात करिए क्योंकि सामाजिक काम विज्ञान को लेकर के काम करने के लिए आपको कुछ लोगों को नाराज करना पड़ेगा। तब कहीं जाकर के समता समानता वाला प्रबुध्‍द भारत। जिसका सपना हमारे पूर्वजों ने देखा था। वैसे भारत का अपने निर्माण कर पाएंगे। नहीं तो फिर मेरा ख्याल है की आप सिर्फ नाम और अपने फेम के लिए काम करना चाहते हैं। आपका मकसद कुछ और है। वो मकसद नहीं है जो की आप दिखाना चाह रहे हैं।

तो पेरियार का सपनों का भारत बनाने के लिए हमको पेरियार के बताए हुए रास्ते पर चलना पड़ेगा। तब कहीं जाकर के हम उनके मकसद को कामयाब बना सकते हैं और वैसा भारत हम बना सकते हैं जिसका सपना बाबा साहब ने महात्मा फुले ने देखा था।

SC ST youths will perform naked in front of CG Vidhansab

कल विधानसभा के सामने होगा SCST युवाओं का नग्न प्रदर्शन  
                
 फर्जी जाति मामले में कार्यवाही की मांग को लेकर अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के युवा करेंगे पूर्ण नग्न (निर्वस्त्र) प्रदर्शन छत्तीसगढ़ विधानसभा के सामने 18 जुलाई को प्रदेशभर के 100 से अधिक युवा करेंगे प्रदर्शन



छत्तीसगढ़ में इन दिनों फर्जी जाति का मामला गर्माया हुआ है। बता दे, छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से राज्य के विभिन्न विभागों को शिकायते मिली थी कि, गैर आरक्षित वर्ग के लोग आरक्षित वर्ग के कोटे का शासकिय नौकरियों एवं राजनैतिक क्षेत्रों में लाभ उठा रहे है। इस मामले की गम्भीरता देखते हुए राज्य सरकार नें उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति गठित की थी जिसके रिर्पोट के आधार पर समान्य प्रशासन विभाग ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी कर रहे अधिकारी कर्मचारियों को महत्वपूर्ण पदों से तत्काल हटा उन्हे बर्खास्त करने के आदेश जारी कर दिए। 

आदेश खानापूर्ति ही साबित हुए सरकारी आदेश कों पालन में नहीं लाया गया और फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी करने वाले कुछ सेवानिवृत हो गए तो कुछ ने जांच समिति के रिर्पोट कों न्यायलय में चुनौती दी, लेकिन सामान्य प्रशासन की ओर से जारी फर्जी प्रमाण पत्र धारकों की लिस्ट में ऐसे अधिकांश लोग है जो सरकारी फरमान के पालन नहीं होने का मौज काट रहे और प्रमोशन लेकर मलाईदार पदों में सेवाए दे रहे है। इसे लेकर अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग के युवाओं ने मोर्चा खोल दिया और बिते पिछले दिनों वे आमरण अनशन पर बैठ गए, प्रदर्शन के दौरान आंदोलनकारी के तबियत बिगड़ गई लेकिन सरकार और प्रशासन का रवैया उदासिन रहा जिसके बाद आंदोलनकारी आमरण अनशन कों स्थगित कर आगामी होने वाले मानसून विधानसभा सत्र में निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन करने जा रहे है। 

सरकार की गठित समिति ने पाये 267 प्रकरण फर्जी

छत्तीसगढ़ सरकार ने मामले को गम्भीरता से लेते हुए फर्जी जाति प्रमाण पत्र के शिकायतों की जांच करने उच्च स्तरीय जाति छानबींन समिति का गठन किया। समिति को वर्ष 2000 से लेकर 2020 तक के कुल 758 प्रकरण मिले जिसमें से 659 प्रकरणों में जांच की गई इसमें 267 प्रकरणों में जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाये गए।

गैर आरक्षित होकर कोटे से बने IAS से लेकर चपरासी

छत्तीसगढ़ के लगभग सभी सरकारी विभागो में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के प्रकरण पाये गए है। इसमें सबसे अधिक खेल एवं युवा कल्याण विभाग में 44 मामले है वहीं भिलाई स्पात संयंत्र में 18 तथा सामान्य प्रशासन विभाग एवं कृषि विभाग में 14-14 प्रकरण है। इस तरह प्रत्येक विभाग में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले है। जिसकी जांच पूरी होने एवं कार्यवाही के सरकारी आदेश के बाद भी कोई एक्शन नहीं लिया गया है।

कौन और क्यों कर रहें निर्वस्त्र प्रदर्शन

दरसअल फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले में छत्तीसगढ़ सरकार के कार्यवाही से खुश रहने वाले अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के युवा अब सरकार से नाराज है, मसलन जिस फर्जी जाति प्रकरणों की जाचं सरकार ने करवाई उसमें पाये गए दोषियों के खिलाफ सरकारी फरमान के बावजूद तीन वर्ष बाद भी कार्यवाही नहीं की गई वहीं फर्जी जाति प्रमाण पत्र धारकों को महत्वपूर्ण पदों में व प्रमोशन दिया जा रहा है।

इससे अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के युवा आंदोलित हो गए है, आंदोलन के नेतृत्वकर्ता विनय कौशल ने बताया उन्होंने इससे पूर्व जिम्मेदार अधिकारियों से बात की थी, उन्होने उपर से दबाव होने की बात कही, हमने कार्यवाही न करने पर आंदोनल की चेतावनी दी और हमने 16 मई कों आमरण अनशन किया था, 10 दिनों तक भूखे रहकर आंदोलन किया हमारे आंदोलनकारी युवा साथी एक-एक कर गम्भिर हालातो में अस्पताल भर्ती कराये गए लेकिन सरकार और प्रशासन की ओर से इस मामले में उदासिन रवैया रहा, हमने आमरण अंनशन कों स्थगित कर दिया लेकिन हम अपने हक और अधिकार के लि किसी भी हद तक जा सकते है हम अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं कर सकते इसलिए हम अपनी इज्जत खोकर पूर्ण रूप से निर्वस्त्र होकर सरकार कों नींद से जगाने का काम करंेगे।

100 से अधिक युवा 18 कों करेंगे नग्न प्रदर्शन

विधानसभा के सामने आरोपियों को सरकारी संरक्षण देने के विरूद्ध तथा आरोपियों पर कठोर कार्यवाही की मांग को लेकर प्रदेशभर के अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के 100 से अधिक युवा पूर्ण रूप से नग्न होकर आगामी मानसून विधानसभा सत्र के दौरान 18 जुलाई कों विधानसभा के सामने करेंगे प्रदर्शन।
267 फर्जी जाति प्रमाण पत्र धाराको किस सूची यहां देखें                                                                                                                 
विनय कौशल 
 अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग फर्जी 
जाति प्रमाण पत्र मामला संघर्ष समिति 
 9131214924

Right to Repair मरम्मत का अधिकार

मरम्मत का अधिकार
Right To Repair

संजीव खुदशाह

पिछले दिनों मरम्मत का अधिकार यानी राइट टू रिपेयर का वेबसाइट सेंट्रल गवर्नमेंट के द्वारा जारी किया गया। इस पर लेकर कंपनियों और उपभोक्ताओं के बीच अधिकारों को लेकर चर्चा जोरों पर है। दरअसल अब तक होता यह रहा है कि उपभोक्ता किसी यंत्रों की खरीदी के बाद अगर वह यंत्र बिगड़ जाए तो उसे सुधार करने में या सुधार करवाने में एड़ी चोटी एक करना पड़ता था। कंपनी ने एक नियम बना रखा है कि यदि आप अनाधिकृत सुधारक से सुधार करवाते हैं तो उसकी वारंटी खत्म हो जाएगी। कंपनी ऐसा करके उपभोक्ताओं के अधिकारों का हनन करती है और उपभोक्ता परेशान होते हैं। कंपनी के रिपेयर सेंटर कुछ खास बड़े शहरों में ही होते हैं। इसीलिए उन शहरों तक जाना,  रिपेयर हो जाने के बाद, फिर लेने जाना, इस प्रक्रिया में उपभोक्ता का बहुत पैसा बर्बाद हो जाता है। कंपनियां सुधार करने का मोटा चार्ज भी वसूल करती है। मजबूरन उसे नया प्रोडक्ट लेना पड़ता है।


इसी प्रकार कई कंपनियां उपभोक्ताओं को खराब हुए कलपुर्जे उपलब्ध नहीं कराती है। कलपुर्जे नहीं मिलने के कारण उपभोक्ताओं को परेशानी झेलनी पड़ती है और उनको अपना प्रोडक्ट औने पौने दामों में कबाड़ी को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

इससे कंपनी एवं दुकानदार दोनो मुनाफा कमाते हैं। आम जनता को नुकसान होता है। आम जनता की इसी परेशानी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस वेबसाइट को जारी किया है। जिस पर जाकर उपभोक्ता अपने प्रोडक्ट रिपेयर करा सकता है या उसके कलपुर्जे मंगवा सकता है।

https://righttorepairindia.gov.in/index.php

क्या है कानून?

इस प्रकार के कानून अमेरिका समेत विकसित देशों में पहले से लागू है और इसका कड़ाई से पालन किया जाता है। लेकिन भारत में इस प्रकार के कानून की मांग बहुत समय से होती रही है।

हमारे देश में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय (एमसीए) ने 'मरम्मत के अधिकार' ढांचे के साथ एक समिति गठित की है। 'राइट टू रिपेयर' से लोग इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल सहित कई उत्पादों को सस्ते दाम पर रिपेयर करवा सकते हैं। इससे उत्पादों की वारंटी प्रभावित नहीं होगी।

कानून प्रक्रियाधीन है लेकिन राइट टू रिपेयर नाम के वेबसाइट से सरकार ने आम जनता को जागरूक करने और अधिकार देने का काम शुरू कर दिया है।

अब तक क्या होता था?

इसे दो काल्पनिक घटनाओं से समझना जरूरी है

1. एक उपभोक्ता ने RO वाटर प्यूरीफायर मशीन खरीदा 1 साल के बाद उस मशीन में खराबी आ गई और कलपुर्जे नहीं मिलने के कारण उसे अपनी मशीन को कबाड़ी में बेचना पड़ा। अब कंपनियों की जिम्मेदारी होगी कि वह उपभोक्ताओं को जरूरी कलपुर्जे उपलब्ध कराएं।

2. एक उपभोक्ता का महंगा मोबाइल खराब हो गया, जिसे वह सुधरवाना चाहता है। कंपनी के सर्विस सेंटर ने बहुत महंगे दामों में मोबाइल सुधारने की पेशकश की। लेकिन स्थानीय दुकान में बहुत ही सस्ते में वह मोबाइल सुधर सकता था। कंपनियों ने ऐसे नियम बना रखे हैं कि यदि आप अधिकृत सर्विस सेंटर से रिपेयर नहीं करवाते हैं तो वारंटी खत्म हो जाएगी।

मरम्मत का अधिकार के अंतर्गत कंपनियों को क्या करना होगा?

1      कंपनियों को अपने प्रोडक्ट के साथ ऐसे यूजर मैन्युअल बनाने होंगे जिससे स्थानीय मैकेनिक उसे सुधार सकें।

2      अनधिकृत सर्विस सेंटर से रिपेयर कराने पर वारंटी खत्म होने की शर्त को हटाना होगा।

3      कंपनियां ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए प्रोडक्ट आउटडेटेड हो गया है कह कर उसके कलपुर्जे उपलब्ध नहीं कराती है। अब उन्हें यंत्रों के समस्त कलपुर्जे बाजार में उपलब्ध कराने होंगे।

4      अब कंपनियों को राइट टू रिपेयर वेबसाइट पर उपलब्ध होना पड़ेगा।

 

 मरम्मत के अधिकार के फायदे

1      अब उपभोक्ता अपने यंत्रों को मरम्मत करवा सकेंगे नया यंत्र खरीदने की मजबूरी नहीं होगी।

2      खराब यंत्रों के कबाड़ बन जाने (स्क्रैप) में कमी आएगी। इससे प्रदूषण भी कम होगा।

3      छोटे दुकानदारों और मैकेनिक को रोजगार मिलेगा।

4      यह उपकरणों के जीवन काल, रखरखाव, पुन: उपयोग, उन्नयन, पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करके चक्रीय अर्थव्यवस्था के उद्देश्यों में योगदान देगा।

5      पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों को बल मिलेगा।

 

कौन-कौन से उत्पाद शामिल हैं?

राइट टू रिपेयर के तहत आप मोबाइल, टैबलेट, वायरलेस हेडफोन, ईयरबड्स, लैपटॉप, यूनिवर्सल चार्जिंग पोर्ट, यूनिवर्सल चार्जिंग केबल, बैटरी, सर्वर और डेटा स्टोरेज, प्रिंटर जैसे उपकरणों का लाभ उठा सकते हैं। इसके अलावा वाटर प्यूरिफायर, वाशिंग मशीन, रेफ्रिजरेटर, टेलीविजन, इंटीग्रेटेड/यूनिवर्सल रिमोट, डिशवॉशर, माइक्रोवेव, एयर कंडीशनर, गीजर, इलेक्ट्रिक केटल, इंडक्शन कुकटॉप, मिक्सर ग्राइंडर और इलेक्ट्रिक चिमनी, कार, बाइक, कृषि यंत्र जैसे उत्पाद भी शामिल हैं।

निश्चित रूप से सरकार के इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। क्योंकि इस तरह के कदम से जहां एक ओर आम जनता को फायदा मिलेगा, वही दूसरी ओर रोजगार भी बढ़ेगा, साथ ही साथ प्रदूषण को नियंत्रण करने में भी मदद मिलेगी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है उपभोक्ताओं की जागरूकता। यह तभी हो पाएगा जब उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होंगे और अपने अधिकार को समझेंगे उस अधिकार को लेने के लिए आगे आयेंगे।

 Publish on Navbharat 15/5/2023

आजादी के 75 साल में स्त्रियों की भागीदारी पर सवाल

आजादी के 75 साल में स्त्रियों की भागीदारी पर सवाल




        अम्बेडकर जयंती के उपलक्ष्य में स्थानीय वृंदावन हाल, सिविल लाइंस, रायपुर (छत्तीसगढ़) में डीएमए इंडिया ऑनलाइन यूट्यूब चैनल की ओर से आयोजित सेमिनार में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए। इस सेमिनार के प्रथम सेशन में आजादी के 75 साल और महिलाओं की भागीदारी विषय पर जागरूक महिलाओं ने अपनी बात को रखा नंदा रामटेके अध्यक्षा आदर्श फाउंडेशन गुढ़ियारी रायपुर, विन्नी खुदशाह अध्यक्षा डीएमए इंडिया ऑनलाइन, नसीम बानो सामाजिक कार्यकर्ता, डॉ दीप्ति धुरंधर मनोवैज्ञानिक रंगकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता, सुरेखा जांगड़े संयोजक संयुक्त मोर्चा ने ओजस्वी पूर्ण अपना व्याख्यान दिया। इस कार्यक्रम का सफल संचालन जानी मानी रेडियो एंकर मंजूषा माटे ने किया।


        इस सेमिनार में दूसरा सेशन अंधविश्वास से मुक्ति ही गुलामी से मुक्ति का प्रथम सोपान है विषय पर आयोजित हुआ। जिसके प्रमुख वक्ता थे‌ डॉ क्रांति भूषण बनसोडे तर्कशील कार्यकर्ता, टिकेश कुमार साहू अध्यक्ष एंटी सुपर स्टेशन ऑर्गेनाइजेशन, देवलाल भारती को फाउंडर सोशल जस्टिस लीगल सेल, कैलाश बनवासी प्रसिद्ध कहानीकार, साहू रामलाल गुप्ता सामाजिक चिंतक, डॉ रमेश सुखदेवे संयोजक छत्तीसगढ़ तर्कशील परिषद और कार्यक्रम का सफल संचालन किया बहुजन चिंतक डॉक्टर नरेश कुमार साहू जी ने।
इस अवसर पर सुप्रसिद्ध लेखक संजीव खुदशाह की सद्य प्रकाशित पुस्तक "वास्तुशास्त्र की वास्तविकता" का विमोचन कार्यक्रम उल्लासपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ ।
कार्यक्रम में शहर के जाने-माने बुद्धिजीवी सामाजिक कार्यकर्ताओं लेखकों ने भाग लिया।

दूज कुमार भास्कर 
दलित मूव्हमेंट एसोसिएशन,
 रायपुर (छत्तीसगढ़) ।

Backward Classes - Past & Future

सौजन्य से त्रैमासिक पत्रिका 'अपेक्षाजुलाई दिसम्बर अंक क्रं 36-37

पिछड़ा वर्ग: विगत-अगत

           टेकचंद

17 नवंबर 2011 के ‘नव भारत टाइम्स’ के मुखपृष्ठ की खबर- ‘ओ.बी.सी. में 100 नई जातियां।’

18 नवंबर 2011 के ‘जनसत्ता’ के मुखपृष्ठ की खबर- ‘मलाईदार तबके के लिए आय सीमा दोगुनी करने की सिफारिश।’

3 और 5 दिसंबर के ‘नई दुनिया’ की खबर -‘पिछड़े मुस्लिम वर्ग को आरक्षण।’

पहली खबर में बीस राज्यों के उम्मीदवारों को फायदा मिलने की बात की गई है।  दूसरी खबर में ओ.बी.सी. के लिए बनी ‘क्रीमी लेयर’ (मलाईदार तबके) की सीमा दोगुनी कर इसे सालाना नौ लाख रूपये करने की


सिफारिश की है। तीसरी खबर से स्पष्ट हो जाता है कि सरकार ‘मंडल आयोग’ के तहत सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी में अलग से 5-6 प्रतिशत कोटा तय करने जा रही है।

तीनों खबरों को और घोषित किया जाने वाले ‘मुहुर्त’ को देखकर लगता है कि केंन्द्र सरकार आगामी चुनावों को ठीक उसी तरह ‘इन्फ्लूएंस’ करना चाहती है जैसे छठा वेतन आयोग लागू कर दिया था। बहरहाल! ऐसे में अन्य पिछड़ा वर्ग को जानना बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। मोटे तौर पर देखे तो आज यह सामाजिक वर्ग से बढ़कर राजनीतिक अवधारणा ज्यादा लगी है। जहां-तहां राजनीतिक मंचों से उनके हितों की बात की जा रही है, लेकिन उसकी विगत स्थिति, इतिहास और भविष्य को समझने-समझाने के प्रयास कम ही दिखाई देते है।

दलित व पिछड़े वर्गों के साथ एक विचित्र सी स्थिति है कि साधन संपन्न होते ही वे भी वेदों, पुराणों की तरफ मुड़ने लगते है। जाति नामक अवधारणा से सदियों पीड़ित, शोषित, रहने के बावजूद अवसर मिलते ही स्वयं को श्रेष्ठ ठहराना और अपने नीचे एक आध छोटी जाति टोह लेते है। लोग, व्यक्ति, वर्ग अथवा ज्ञान की तह में जाति के लिए मनुस्मृति, शतपथ बा्रम्हण इत्यादि को आधार बनाते है। ऐसे में रचनाएं भी आऐंगी तो कुछ ऐसी--

ऑरजिन ऑफ शूद्र ऐ क्रिटिकल एनालसेज’: रामरतन सूद

चमार जाति का गौरवशाली इतिहास’: सत्तनाम सिंह

जाट जाति का स्वर्णिम इतिहास’: इत्यादि

उपर्युक्त जातियों तथा ऐसी ही अन्य जातियों को तथाकथित गौरव ‘स्वर्णिम युग’ का अहसास करवाने के लिए उसी ब्राम्हणवादी ग्रंथ परंपरा का ‘संदर्भ पुस्तक’ के तौर पर प्रयोग किया जाता है, जिनकी रचना का उद्देश्य ब्राम्हण जाति को श्रेष्ठ व अन्य के बीच स्वामी सेवक का संबंध विकसित करना था। दूसरी और वैज्ञानिक नृविज्ञान, सामाज विज्ञान, अर्थशास्त्र का उपयोग लगभग नही किया जाता है।

ऐसे परिदृश्‍य में एक महत्वपूर्ण शोध पढ़ने का अवसर मिलता है। ‘आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग’ (पूर्वाग्रह, मिथक एवं वास्तविकताएं) लेखक और शोधार्थी ‘संजीव खुदशाह’ ने इस पुस्तक में पिछड़ा वर्ग के विगत-अगत पर गंभीर शोध किया है। उनकी ‘सफाई कामगार समुदाय’ पुस्तक पहले ही चर्चित हो चुकि है। प्रस्तुत-पुस्तक में पिछड़ा वर्ग की उन वास्तविकताओं को उभारा है, जो स्वयं और अन्यों द्वारा, गढ़े-रचे पूर्वाग्रहों, मिथकों में दब चुकी थी । कुल जमा 140 पृष्ठों व चार अध्याय में ‘पिछड़ा वर्ग की उत्पत्ति, स्थिति एवं वर्गीकरण’ में संजीव पिछड़ा वर्ग की वास्तविकता बयां करते है-‘‘पिछड़ा वर्ग एक ऐसा कामगार वर्ग है जो न तो सवर्ण है न ही अस्पृश्य या आदिवासी। इसी बीच की स्थिति के कारण न तो इसे सवर्ण होने का लाभ मिल सका न ही निम्नतम होने का फायदा।’’ (पृष्ठ 14) सदैव सवर्ण-अवर्ण के बीच झूलते पिछड़ा वर्ग में संजीव चेतना की कमी मानते हैं । और चेतना आती है वैज्ञानिक सोच से। पिछड़ा वर्ग आज तक धार्मिक ग्रंथों में अपनी जड़े सींचने का प्रयास करता रहा है। जहां अमुक देवता के अमुक-अमुक अंग से फलां-फलां जाति के मनुष्य की उत्पत्ति के मिथक पर आज भी पुरोहित वर्ग जान देता है। धार्मिक ग्रंथों की मानव उत्पत्ति संबंधी एक-एक मान्यता का संजीव तार्किक विश्लेषण करते है और पाते है कि स्वयं हिंदू धर्म-ग्रंथ मानव उत्पत्ति को लेकर एकमत नही है।

मनव उत्पत्ति की वैज्ञानिक खोजों में संजीव पांच सौ (500) करोड़ वर्ष पूर्व के अजीव काल अठारह करोड़ वर्ष पूर्व के जुरेसिककाल, नवपाषाण, धातुकाल के आकड़ों का खाका प्रस्तुत कर मनुष्य की उत्पत्ति और विकास को समझाते है। पिछड़ा वर्ग की सामाजिक स्थिति को परिभाषित करते हुए संजीव लिखते है कि -‘‘हिंदू धर्म में से यदि ब्राम्हण क्षत्रिय एवं वैष्य को निकाल दे तो शेष वर्ग ‘शूद्र’ को हम पिछड़ा वर्ग कह सकते है, इसमें अति शूद्र शामिल नही है। पिछड़ा वर्ग वर्षो से तिरस्कृत होता आया बल्कि यों कहें कि हाशिए पर रहा तो ज्यादा बेहतर होगा जिसे सवर्ण न हो पाने का क्षोभ है तो अस्पृश्य न होने का गुमान भी। वर्षो से हिंदू सभ्यता एवं संस्कृति को संजोए यह वर्ग आज भी अपने हस्ताक्षर को बेताब है। यदि हम पिछड़ा वर्ग को रेखांकित करें तो पाएंगे कि वर्ण-व्यवस्था का एक वर्ण शूद्र, जिनमें कुछ नई एवं उच्च समझी जाने वाली जातियां भी शामिल है जो सवर्ण होने का दावा करती है, किंतु सवर्ण इन्हे अपने में शामिल करने को तैयार नहीं है।’’ (वही 22)

यह ‘अस्पृश्य न होने का गुमान’ ‘सवर्ण होने का दावा’ महत्वपूर्ण है। क्योकि इन्ही कारणों से पिछड़ा वर्ग की मानसिकता मध्यवर्ग जैसी हो चली है। उपर वाले इन्हे नीचे धकेलेंगें और नीचे ये जाना नही चाहते। इसी संदर्भ में 28 नवंबर 2011 को दलित नेता उदितराज के नेतृत्व में हुई रैली के पर्चे को देखना जरूरी है। वे लिखते है कि -‘‘मंडल कमीशन की लड़ाई मूलतः दलितों ने ही लड़ी थी और जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री वी.पी.सिंह ने इसे लागू करने की घोषणा की तब जाकर कुछ पिछड़े वर्ग के लोग समर्थन में आए।’’

ठसी तरह की घटनाएं सन् 2004 में उस समय हुई जब मेडिकल में ओ.बी.सी. को लागू किया गया और उसका देशव्यापी विरोध किया गया। विरोध दलितों आदिवासियों को झेलना पड़ा था, क्योकि ओ.बी.सी. वर्ग तो तब भी- इसी टू बी और नॉट बी. की उहापोह भरी स्थिति में था। उनको लग रहा था कि आरक्षण की आरक्षण की मांग करने से वो शूद्रों अस्पृश्‍यों में गिने जाने लगेगें। इसका कारण समझ में आता है जब संजीव ओ.बी.सी. जातियों का वर्गीकरण करते है। वे इन्हे खेत कार्य, पशुपालन, कपड़े का काम, बर्तन, लोहा, धातु, तिलहन का काम, मछली पकड़ने तथा इस्कार जैसे लगभग 10-11 वर्गों में मानते है। दूसरी ओर चमार, सफाई कामगार, वैश्य, नाई, धोबी, मल्लाह, वेद्य इत्यादि को ‘अनुत्पादक’ किंतु सृजनात्मक माना है। सृजन आधुनिक युग में उत्पादन ही है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि ये सब जातियां पिछड़ी तो है किंतु साफ-सफाई खाल-मांस इत्यादि का काम करने वाली अनुसूचित जातियों के मुकाबले कुछ ‘उन्नत’ है। ऐसे में इन्हे स्वयं को ‘उच्च’ साबित करने के लिए अच्छा-खासा आधार मिल जाता है। उपर से सवर्णो के लिए वे थोड़े कम अस्पृष्य है। उनके काम धंधे भी ऐसे है जो सवर्णो के सीधे ‘टच’ में है। जैसे माली (सैनी) के फूल-फसल से, अहीर यादव के डंगरों से कुम्हार के बर्तन से , लोहार के औजार से , सुनार के गहने से, नाई के हाथ से केवट की नाव से, बढ़ई के काम से सवर्ण को उतनी घृणा नही होती जितनी मेहत्तर के मैला ढोने से, चमार द्वारा मृत पशुओं को उठाने, खाल खीचने से होती है। संभवतः वे सवर्णो (उपर के तीनों वर्ण) के सीधे संपर्क में भी उतने नही रहते जितने ओ. बी.सी. वर्ग की जातियां । इसी कारण ओ.बी.सी.जातियों ने ब्राम्हणवादी कर्मकांड पूजा-पाठ रह-सहन और सबसे ज्यादा हिंन्दू धार्मिक ग्रंथों की संस्कृति को लगभग ओढ़ लिया। वे उसमें धंस गए। उसी शतुर्मुर्ग की तरह, जो खतरा होने पर मुंडी तो रेत में छिपा लेता है लेकिन पूरा शरीर शिकारी को सौंप देता है। क्या आज पिछड़े वर्ग ने अपनी ताकत, राजनीति और अस्तित्व को दलितों से अलगाकर सवर्ण शिकारियों को नहीं सौंप-सा दिया है? संजीव तफसील से ओ.बी.सी. वर्ग द्वारा, पूजे जा रहे धार्मिक ग्रंथों के संदर्भो से ही बताते है कि -‘‘क्षत्रिय पिता व ब्राम्हण माता से सूत, शूद्र पिता व ब्राम्हण माता से चांडाल उत्पन्न होता है।’’ इन सभी स्मृति एवं पुराणों के आधार पर कोई भी पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति अपने उपर गर्व नही कर सकता। यदि वे इन धर्म-ग्रंथों को मान्यता देते है, तो उन्हे यह भी मानना होगा कि वे किसी न किसी की  अवैध संतान की संतति है। इसी तरह ‘जाति एवं गोत्र विवाद तथा हिन्दूकरण’ नामक अध्याय में वे उन जातियों की वास्तविकता बताते है, जो सवर्ण होनक का दावा करती है किन्तु हिंदु धर्म ग्रंथ उनके प्रति कटुता से भरे पड़े है। कायस्थ, मराठा, भूमिहार, सूद आदि ऐसी विवादास्पद जातियां है। इसी अध्याय में गोत्रों, देवों व जातियों के हिन्दूकरण को शोधपरक ढंग से समझाया गया है।

लेखक लिखता है कि -‘‘ये पिछड़े वर्ग की जातियां जिन धर्म ग्रंथों पर अकाट्य श्रद्धा रखती है, जिनकी दिन रात स्तुति करती है, वे इन्हे इन्ही सवर्णो (ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य) की नाजायज संतान ठहराते है। आज हिंदू धर्म के बड़े पोषक के रूप् में पिछड़ा वर्ग शामिल है, जिनमें हजारों-हजार जातियां है। वे सभी वर्ण-व्यवस्था के अनुसार शूद्र में आति है।’’ (वही 43)

हम देख सकते हे कि किस प्रकार आरक्षण के लिए तो पिछड़ा वर्ग आवाज उठाता है किंतु अनुसूचित जाति व जनजाति के प्रति उनमें न सहानुभूति है, न सहयोग की भावना। मंडल कमीशन हो या एससी/एसटी का विवाद सवर्णो व प्रतिक्रिया वादियों का कोपभाजन 50/57 को बनना पड़ा था। यही कारण है कि पिछड़ा वर्ग आचार-विचार, संस्कार-संस्कृति कर्मकांड से पूरा सवर्ण हिंन्दूवादी बना रहेगा। साधन-संपन्न होते ही वह स्वयं को सवर्ण हिंन्दू मानने-मनवाले के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है। लेखक ऐतिहासिक तथ्य देते हुए मराठा शिवाजी द्वारा 6 जून 1674 को वंषावली, जाति सुधारने व्रातय स्तोम उपनयन तथा राज्याभिषेक का उदाहरण देता हैः ‘यदि मान भी ले कि वंशावली सच्ची थी फिर भी शिवाजी को उंची जाति में प्रवेश करने के लिए (सामाजिक स्वीकृति) एड़ी-चोटी एक करनी पड़ी। साथ ही अपने राज्याभिषेक के समय रूपये पानी की तरह बहाने पड़े जिसमें गागाभाट को 7000 हण दिए गए तथा शिवाजी को चांदी,तांबा,लोहा आदि से और कपूर, नमक, शक्कर, मक्खन, विभिन्न फलों, सुपारी आदि से भी तौला गया, जिसके मूल्य को ब्राम्हण में वितरित कर दिया गया। कुल खर्चा 1,50,000 हण था।’(वही 48) अब यदि उस वक्त के हिसाब से लगाएं तो एक हण तीन रूपये मूल्य का था। अर्थात आज के हिसाब से करोड़ों रूपये। इस प्रकार जब शासकों की यह हालत थी तो आम जनता की मानसिक स्थिति समझी जा सकती है।

जाति के हिन्दूकरण के साथ-साथ संजीव ‘रक्त सम्मिश्रण’ तथा गोत्रों के बदलाव, ग्रहण, त्याग व हिंदूकरण पर भी तथ्यात्मक जानकारी देते है। इनमें महत्वपूर्ण है-स्थानीय देवी-देवताओं का हिन्दूकरण। वे तफसील से समझाते हे कि किस प्रकार ब्राम्हणों ने अनार्य देव शिव शक्ति गणपति आदि का हिन्दूकरण कर दिया। यहां तक कि बुध्द को भी विष्णु का दसवां अवतार घोषित कर दिया। उड़ीसा, पुरी जगन्नाथ का उदाहरण बेहद दिलचस्प है कि आदिवासियों के आराध्यदेव जगन्नाथ को इस प्रकार वैदिकों के बंधन में जकड़ा गया कि-‘‘राजाओं के प्रशासनिक हितों की रक्षा करने वाले वैदिकों ने आसानी से जगन्नाथ पर धार्मिक कब्जा कर लिया और दलितों को मंदिर से बाहर कर दिया। जगन्नाथ के दर्शन आम जनता के लिए दुलर्भ हो गए।’’(वही 70) इसी संदर्भ में हम साई बाबा (शिरडी) वैष्णों देवी, केदारनाथ, कैलाश इत्यादि व गुड़गांव, बेरी जैसे स्थानीय देव-देवियों के हिन्दूकरण और ब्राम्हणीकरण को भी देख सकते है।

तीसरे अध्याय ‘विकास यात्रा के विभिन्न सोपान’ में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं का विश्लेषण किया गया है। जिससे लेखक की गहन शोध दृष्टि का पता चलता है। जैसे- जाति आधारित आरक्षण आदिकाल से ही शुरू हो जाता है। ‘‘साईमन कमीशन दलित वर्णो के लिए भी संवैधानिक संरक्षणों की सिफारिश करने वाला था, किंतु कांग्रेस तथा हिंदू महासभा ने इसका विरोध किया।’’(वही 77)

काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि ‘पिछड़ेपन का दोष इन्ही जातियों का है,’ ‘सरकारी नौकरियों में आरक्षण गलत है,’ ‘पिछड़ेपन की शिनाख्त से जाति-व्यवस्था स्थायी तौर पर हावी रहेगी’(वही 80)। इनके अतिरिक्त मंडल आयोग की सिफारिशों पर विस्तार से बात की गई है। आरक्षण विरोधी बुद्धिजीवियों पर तीखे प्रश्न दागे गए है, जैसे-‘मैला साफ करने की नौकरी में आरक्षण पर दलितों का विरोध क्यो नही करते ?’

दलित एवं पिछड़ा वर्ग के बुद्धिजीवी को पंडित का दर्जा क्यों नही देते?’

मैनेजमेंट शीट क्या है? पेमेंट शीट क्या है? क्या इस रास्ते अगड़ों के बिगड़े बच्चे लाखों देकर नही आते? ये सीटें किसके लिए आरक्षित है?’

आरक्षण के विरोध को आंदोलन के रूप में क्यों पेष किया जाता है?’

ऐसे ही सवालों से जूझता लेखक सामाजिक-व्यवस्था पर प्रहार करता है-‘मेरी दृष्टि में आंदोलनरत डाक्टरों तथा सवर्ण पंचायत द्वारा सरपंच पद के लिए पर्चा दाखिल करने वाली दलित महिला को नंगी करके गांव में घुमाकर जला देने वाले जातिभिमानी लोगों में कोई अंतर नही है।’ (वही 85)

लेखक ने पिछड़े वर्ग के संत नामदेव, संत चोखामेला, संत कबीर, गुरू नानक, संत सेनजी, महात्मा ज्योतिबा फुले, पेरियार ई.वी.रामास्वामी, नारायण गुरू, संत रैदास इत्यादि समाज-सुधारकों के संघर्षों का ब्यौरा दिया हे और इसके बावजूद पिछड़ा वर्ग के अब तक पिछड़ा बना रहेन पर क्षोभ प्रकट किया है।

अंतिम अध्याय चार ‘पेशे के आधार पर पिछड़ा वर्ग (शूद्र जातियों) की जातियों की विवेचना प्रस्तुत करते है । मंडल कमीशन की सिफारिशों को ज्यों का त्यों अंग्रेजी में प्रकाशित भी किया गया है। इसी आधार पर पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित जातियों की आधिकारिक सूची जारी की है।’

अंत में लेखक ने महत्वपूर्ण समाधान भी प्रस्तुत किए हे जो बेहद महत्वपूर्ण है, जो आज के समय में दलितों एवं पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ अन्यों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। कहा जा सकता हक कि अपने शोध परक दृष्टिकोण एवं सीमित कलेवर के कारण पुस्तक न केवल पठनीय हे बल्कि जरूरी भी है।

यह उनकी पिछली पुस्तक ‘सफाई कामगार समुदाय’ को सार्थकता व संपूर्णता भी प्रदान करती है। एक तरह से बौद्धिक रूप् से यह पुस्तक हमें और ज्यादा मांजेगी, हमारी सोच को और परिष्कृत करेगी ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

टेकचंद

म.न.166 गांव नाहरपुर

रोहिणी सेक्टर-7 दिल्ली 110085


 पुस्तक का नाम    आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग

(पूर्वाग्रहमिथक एवं वास्तविकताएं)   

लेखक   संजीव खुदशाह   

ISBN               97881899378 

मूल्य      200.00 रू.       

संस्करण 2010    पृष्ठ-142

प्रकाशक

शिल्पायन 10295, लेन नं.1

वैस्ट गोरखपार्कशाहदरा,

दिल्ली -110032  फोन-011-22821174