एक देवदासी से लता मंगेशकर तक का सफर
संजीव खुदशाह
लता मंगेशकर एक
देवदासी परिवार से आती थी। आप समझ सकते हैं कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें
कितना संघर्ष करना पड़ा होगा। मेंस्ट्रीम मीडिया में किसी खास जाति का कब्जा रहा
है। यह लोग अति प्रसिद्ध लोगों को उची जाति का या उससे संबंधित बताने की साजिश
करते रहे हैं। यह साजिश आज की नहीं है बुध्द, कबीर, रैदास, अंबेडकर के साथ
भी ऐसी ही कोशिश की गई। आइए मैं बताता हूं कि लता मंगेशकर दरअसल किस परिवार से
ताल्लुक रखती थी। क्योंकि मैं लता के उस गांव तक गया हूं एवं उस मंदिर भी मेरा
जाना हुआ है जहां लता का परिवार, उसकी दादी देवदासी थी। पिता
उस मंदिर में बाजा बजाया करते थे।
लता मंगेशकर के दादा
गणेश गोवा के मंगेश नाम के गांव में रहा करते थे। वही एक मंदिर है जिसका नाम मंगेश
नाथ मंदिर है। गणेश जी यही मंदिर में बाजा बजाया करते थे। यह बात मंगेश गांव के
लोग एवं उनके पुजारी आज भी बताते हैं। जाहिर है बाजा बजाने वाले लोग ब्राह्मण नहीं
होते। गणेश ने इसी मंदिर की देवदासी येसूबाई से शादी की। जैसा कि जगजाहिर है।
देवदासियों का पुजारियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता रहा है। इसलिए किसी भी
पुरुष का देवदासी के साथ विवाह अच्छा नहीं माना जाता है। यदि गणेश ब्राह्मण होते
तो उन्हें बहिष्कृत कर दिया जाता है। लेकिन उन्हें एवं उनके देवदासी पुत्र दीनानाथ
को मंदिर में बाजा बजाने का काम करने दिया गया।
गरीबी परिस्थति
होने के कारण बाद में दीनानाथ इंदौर आ गए। चूकिं देवदासी परिवार अपने नाम के साथ
उस मंदिर का नाम जोड़ते हैं। जिस मंदिर में उन्होंने काम किया है। उसी परंपरा के
अनुसार दीनानाथ ने अपने नाम के साथ मंदिर का नाम मंगेशकर जोड़ लिया। उन्होंने यहां
भी जीविका उपार्जन के लिए गाने बजाने का काम शुरू किया। यदि वे उची जाति के होते
तो कतई ऐसा नहीं करते, क्योंकि उस जमाने में
यह काम नीची जाति के लोग ही किया करते थे। वे नाटक किया करते थे। ज्यादातर महिलाओं
के पात्र निभाते थे। दीनानाथ मंगेशकर ने पहली शादी नर्मदा से कि उन्हें एक पुत्री
लतिका प्राप्त हुई। मां बेटी का देहांत जल्द हो गया। बाद में दीनानाथ ने नर्मदा की
बहन सेवंती से विवाह किया। जिनसे उन्हें लता, मीणा, आशा, उषा नामक पुत्रियों एवं हृदयनाथ नाम के पुत्र
की प्राप्ति हुई।
देवदासी पर किताब
लिखने वाले अनिल चावला पृष्ठ क्रमांक 6 पर लिखते हैं कि The contribution
of devadasis to music is also significant. MS Subbulakshmi, Lata Mangeshkar and
her sister Asha Bhonsle (the three most renowned women singers of India) trace
their lineage to devadasi community. Devadasis, as a community, developed distinct
customs, practices and traditions that were best suited to enable them to live
as artists without suppressing their physical and emotional needs. This
professional community was controlled by women and was matriarchal. एमएस
सुब्बुलक्ष्मी लता मंगेशकर और उनकी बहन आशा भोंसले भारत की 3 सबसे प्रसिद्ध महिला गायिकाएं देवदासी वंश
समुदाय से आती हैं। देवदासियों ने एक अलग सामुदायिक पहचान रीति रिवाज प्रथाओं
परंपराओं को विकसित किया। जो उनकी शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को दबाए बिना
कलाकारों के रूप में सक्षम बनाने के लिए सबसे उपयुक्त है। यह पेशेवर समुदाय
महिलाओं द्वारा नियंत्रित था और मातृसत्तात्मक था।[1]
लता मंगेशकर अपने
एक इंटरव्यू में बताती है कि उन्हें पहले हृदया के नाम से जाना जाता था। लेकिन
उनके पिता एक नाटक में लतिका का किरदार निभाते थे जो काफी प्रसिद्ध हुआ। इसलिए
उन्हें लता नाम से बाद में पुकारा जाने लगा। दीनानाथ की पहली पुत्री का नाम भी
लतिका था।
शास्त्रों
के हिसाब से लता ब्राह्मण नहीं है
यदि सनातन
शास्त्रों, मनुस्मृति की मानें
तो दीनानाथ ब्राह्मण नहीं है। यदि थोड़ी देर के लिए दीनानाथ के पिता गणेश को
ब्राह्मण मान भी लिया जाए। तो उनकी शादी देवदास जी यानी नीची जाति की स्त्री से
होने के कारण मनुस्मृति के अध्याय 10 के अनुसार यह अनुलोम
संतान है। जिसे वर्णसंकर संतान बताया गया है। इस अध्याय के श्लोक संख्या 11-50
के अनुसार दीनानाथ की जाती चांडाल यानी शूद्र[2]
होती है। अतः किसी भी हाल में लता की जाति ब्राह्मण नहीं है। जैसा कि बताया जा रहा
है।
लता
को लता रहने दिया जाए उसे जाति के चश्मे से देखना गलत है
लता निर्विवाद
रूप से एक महान गायिका है। वह जीते जी किवदंती बन चुकी थी। हमें गर्व है कि हमने
उस काल में सांसे ली है। जब लता भी इस हवा में सांस ले रही थी। उनके संघर्षपूर्ण
जीवन से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। जिस प्रकार से मीडिया उन्हे जाति के चश्में से
देख रहा है और किसी खास जाति का महिमामंडन किया जा रहा है वह गलत है।
आज जो समाज
उन्हें ब्राह्मण बताने पर तुला है। वही समाज सालों पहले लता के परिवार पर कई जुल्म
ढाए। उन्हें काम के लिए दर-दर भटकना पड़ा। उनके परिवार को पलायन करना पड़ा। पेट
पालने के लिए नाच गाना करना पडा। लता को उनकी पतली आवाज किसी काम की नहीं कहकर
मजाक उड़ाया गया। चारों पांचों भाई बहन की जिम्मेदारी लता के कंधों पर आ गई। इस
कारण उन्हें आजीवन अविवाहित रहना पड़ा। उनके पिता को बहिष्कृत सा जीवन जीना पड़ा।
लता
जी का फिल्मी करियर एवं विवाद
लता जीते जी
संगीत का पर्याय बन चुकी थी। निसंदेह महान गायिका थी। लेकिन विवादों से उनका चोली
दामन का साथ रहा है। मोहम्मद रफी के साथ उनका विवाद रॉयल्टी को लेकर था। मोहम्मद
रफी का कहना था कि जब हम गाने की पूरी फीस ले लेते हैं तो रॉयल्टी पर हमारा कोई
अधिकार नहीं। लेकिन लता चाहती थी कि उन्हें गाने की रॉयल्टी भविष्य में भी मिलती
रहे। दोनों ने 4 साल तक कोई गीत साथ
में नहीं गाया अनबन बनी रही।
उसी प्रकार एै मेरे
वतन के लोगों गीत के संबंध में आशा जी कहती हैं कि 15
दिन इस गीत को मैंने रिहर्सल किया। यह एक डूयेट गीत था जिसे लता आशा
दोनो का गाना था। लता ने इसे अकेले गाने की शर्त रखी और लताजी ने मुझसे यह गीत छीन
लिया।
बता दूं कि बहन
उषा एवं लता की आवाज काफी मिलती है। जय संतोषी माँ फिल्म के सारे गाने उषा मंगेशकर
ने गाए हैं। उषा मंगेशकर टीवी पर दिए एक साक्षात्कार में यह आरोप लगाती है कि लता
के कारण उनका गायन करियर चौपट हो गया। साठ के दशक में जब लता अपने जीवन की
ऊंचाइयों में थी। तब वह गायन, निर्देशन, शब्दों के चयन से लेकर कई मामलों में हस्तक्षेप करने लगी। कोई प्रोड्यूसर
या संगीतकार उन्हें नाराज नहीं करना चाहता था। नाराज करने का सीधा मतलब था। फिल्में
प्लाप होना। क्योंकि लता के गीत फिल्म सफलता की गारंटी माने जाते थे। यानी उस
समय बिना लता के गाने के फिल्म की कल्पना करना मुश्किल था।
इसी समय लता से
हूबहू मिलती जुलती आवाज सुमन कल्याणपुर की आई उन्हें लता रफी के साथ अनबन के दौरान
खूब गीत मिले। लेकिन वह भी लता के आभामंडल के सामने टिक नहीं पाई। लता के आलोचक
कहते हैं कि जिस प्रकार पुरुष पार्श्व गायन में आवाज की वैरायटी दिखती है। वैसी
वैरायटी स्त्री पार्श्व गायन में नहीं मिलती। हिरोइन के आवाज की पर्याय लता की
आवाज बन गई। नई गायीका भी लता की ही नकल करती। क्योंकि लता ना केवल गायिका थी वह
एक अच्छी राजनीतिज्ञ की भी थी। उन्होंने कई गायिकाओं को इंडस्ट्री से बाहर करवा
दिया।
केवल आशा कुछ समय
तक टिकी रही। उसका कारण था ओ पी नैयर से लता की तल्खी तथा राहुल देव वर्मन से आशा
की शादी होना। शारदा, अनुराधा पौडवाल, उर्मिला, सुमन कल्याणपुर जैसी सुरीली आवाज वाली
गायिका लता के आभामंडल के सामने टिक नहीं पाई। जबकि पुरुष गायन के एल सहगल, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार,
मुकेश, मन्ना डे, शैलेंद्र सिंह, सुरेश वाडेकर नई सतरंगी छटा बिखेरी। इसी प्रकार कवीता कृष्ण मूर्ति
बताती है की किस प्रकार लता मंगेशकर ने उन्हे पार्श्व गायन का मौका दिलवाया।
एक समय तब वह
विवादों में आए जब उन्होंने अपने घर के सामने बनने वाले पुल का विरोध किया और धमकी
दी कि यदि पुल बनता है तो वह मुंबई छोड़ देगी।
लता मंगेशकर कभी
भी सक्रीय राजनीति का हिस्सा नही रही लेकिन वह कभी भी जनता के तरफ नही खड़ी हुई।
उनकी पूरी लड़ाई व्यक्तिगत हितो पर केन्द्रीत थी। चाहे मामला रायल्टी का
हो या ओवर ब्रिज का, किसान आंदोलन के
दौरान वे किसानों के खिलाफ खड़ी दिखी। व्यक्ति चाहे कितना भी बड़ा हो लेकिन उसके
विचार ही उसे जीवित रखाते है। इस मामले में लता मंगेशकर का पक्ष कमजोर था। आखिरी
समय में लता कट्टरवाद की ओर खड़ी दिखती है। खास तौर पर दक्षिणपंथी विचारधारा के
पक्ष में थी। जब बाल ठाकरे परिवार पावर में थे। तब उनके साथ दिखती। वह बाल ठाकरे
एवं नरेन्द्र मोदी के पैर छूते देखी जाती। वह खुलेआम वीर सावरकर को महान बताती और
उनकी स्तुति करती थी। ऐसा भी कहा जाता है कि डॉक्टर अंबेडकर के ऊपर लिखे गए गीत को
उन्होंने गाने से मना कर दिया। उन्होंने उन देवदासियों के पक्ष में कभी आवाज़ नहीं
उठाया जिस परिवार से वे आती थी। वह इतनी जल्दी कैसे भूल गई की उनकी दादी येसूबाई
कभी मंगेश मंदिर में देवदासी थी? देवदासियों के प्रति उनकी
एक आवाज लाखो देवदासियों की नरक जैसी जिन्दगी को बहाल कर देती।
[1] Page no 5 Devadasis- sinners or sinned against (An attempt
to look at the myth and reality of history and present status of Devadasis) by
Anil Chawla www.samarthbharat.com
[2] मनुस्मृति अध्याय 10 श्लोक क्रमांक
11-15