Death or martyrdom in the Sewerage

 

सीवर में मौत या शहादत

संजीव खुदशाह

जब भी किसी सफाई कामगार की मौत सीवर में होती है तो सोशल मीडिया में घड़ियाली आंसू बहाने वालों की बाढ़ आ जाती है। कोई उस मृतक को सैनिक शहीद का दर्जा देने की मांग करता है, तो कोई सरकारी नौकरी, तो कोई करोड़ों रुपये देने की मांग करता है। ऐसा कहने वाले लोग दो प्रकार के हो सकते है ये बेहद शातिर है या तो मूर्ख (मैं मूर्ख के बजाय मासूम कहूंगा ताकि बुरा न लगे)।

दरअसल इसे समझने के लिए हमें सामाजिक जटिलता को समझना होगा।

मैने एक सफाई कामगार से पूछा

:: आप सीवर में क्‍यों उतरते हो ?

क्‍या करू और  कोई काम नहीं मिलता।

:: काम तो बहुत से है रिक्शा चला सकते हो, मजदूरी कर सकते हो?

इसमें मेहनत ज्यादा पैसा कम है साहब।

:: लेकिन स्‍वाभिमान तो है?

चुप

:: क्‍या आपको कोई ये काम जबरदस्ती करवाता है इन मैला गड्ढों (सीवर) में उतरने के लिए?

नहीं साहब

:: कोई दूसरा काम करने से किसी ने मना किया ?

नहीं सभी काम करने की छूट है।

:: तो ये गंदा काम क्यों करते हो ?

काम दो चार घंटे का होता है लेकिन पैसा अच्‍छा है फिर दिन भर की फूर्सत।

:: कहीं सीवर में मर गये तो डर नहीं लगता?

मरने की सोचता तो अंदर ही नहीं जाता। रोज का काम है कभी कभी घटना घट जाती है।

एक बार की बात है, डॉक्टर अंबेडकर जब बंबई की महार बस्ती को संबोधित करने गए तो उन्हें पता चला की कुछ लोग गंदा पेशा अपनाए हुए है। उन्‍होने कहा गंदे पेशे हर हाल में छोड़ दो। चाहे कितनी सुविधा या पैसा मिले। गंदा पेशा दलित जातियों के अपमान का कारण है। स्‍वाभिमानी जातियां मरते मर जायेगी लेकिन गंदा पेशा नहीं अपनाएगी। इसका असर यह हुआ जिन दलित जातियों ने गंदा पेशा छोड़ा वे कहीं और पहुंच गई। लेकिन सफाई कामगारों जातियों के कुछ लोग गंदा पेशा छोड़ने को तैयार नहीं है।

लेकिन सफाई कामगारों का मुआमला इतना आसान नहीं है उत्तर भारत में भंगी को भंगी बनाए रखने के लिए वाल्मीकि और सुदर्शन के नाम से संगठन बनाए गये। इन संगठन को बनाने का मुख्‍य उद्देश्‍य इन जातियों को अंबेडकर से दूर रखा जाए और इनका हिन्‍दूकरण किया जाय। इन्हे मूर्ख बनाने के लिए कहा जाता है कि ये मार्शल (लड़ाकू) कौम है। क्‍या कभी किसी मार्शल कौम को पेट की आग बुझाने के लिए सीवर में घुस कर काम करते देखा है? इसी प्रकार छोटे छोटे संगठन जैसे सफाई मजदूर कांग्रेस, महादलित, अतिदलित आदि के नाम पर बनते गये। सभी ने सफाई काम में सुविधा देने की बात की लेकिन गंदे पेशे  से छुटकारा की बात किसी ने नहीं कही। ये सारी संगठन संस्‍थाओं का वजूद तभी तक है, जब तक की सफाई कामगार है। इसलिए इन लोगों ने कभी गंदे पेशे को छोड़ने का कोई आंदोलन नहीं छेड़ा।

ये चाहते है की इनकी सैलरी बढ़ जाए, नौकरी पक्की हो जाए, अनुकंपा नियुक्ति मिले ताकि पीढ़ियां तक गंदा पेशा करती रहे। गमबूट, किट, दवाई और बोनस मिलता जाए। सीवर में मरने पर शहीद का दर्जा मिले, सैनिक का दर्जा मिले, करोड़ो रूपया का मुआवजा मिले। लेकिन काम तो यही गंदा वाला ही करेगे। अब आप ही बताएये इतने लोग इस काम को करने के लिए प्रेरित करे, इतनी सारी सुविधाएं मिल तो क्‍या कभी कोई स्‍वाभिमानी कौम इस काम को करने से मना करेगी?

वाल्‍मीकि सुदर्शन महादलित अतिदलित  सफाई मजदूर कांग्रेस पर राजनीति खेलने वाले का अंतिम लक्ष्य होता है, राज्य या केंद्र के सफाई कामगार आयोग में जगह पाना। सारी लड़ाई, राजनीति इसी के इर्द गिर्द चलती है । इसलिए ये लोग गंदे काम को छोड़ने का कोई आंदोलन नहीं छेड़ते है।  अंबेडकर के नाम पर इन्‍हे सांप सूंघ जाता है। इनके सवर्ण आका भी यही चाहते है कि वे अंबेडकर और अंबेडकर वादियों से नफरत करते रहे। उन्‍हे हिन्‍दू विरोधी बता कर ठिकाने लगाया जाए ताकि मैला ढोने वालों की कभी कमी न हो।

आज व्‍यक्ति चांद तक पहुच गया है। मंगल की यात्रा की तैयारी है। लेकिन सीवर साफ करने के लिए यंत्र नहीं है। न ही इसका आविष्कार किया गया। क्‍यों हो भला जब यहां सीवर में उतरने के लिए दलित जो है मार्सल कौम। शासन प्रशासन ने भी कभी सफाई कामगार उन्‍मूलन के लिए काम नहीं उठाया। ठेका प्रथा को मैं महत्‍वपूर्ण मानता हूँ  क्‍योकि इससे सुविधाएं कम होने के कारण लोग दूसरे काम की ओर रूख कर रहे है। प्रशासन को चाहिए की सुविधाएं खत्म करके यंत्रों के द्वारा सफाई काम किया जाए ताकि सफाई कामगार व्यक्ति को मानव निहित जीवन जीने का सम्मान मिल सके।

उन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही किया जाना चाहिए जो सीवर में मौत को सैनिक की शहादत से जोड़कर एक शहीद सैनिक का अपमान करते है। यदि किसी को शहीद का दर्जा पाना है तो वह सीना ठोककर सेना में भर्ती हो जाये। लेकिन किसी सैनिक को अपमानित करने का हक उसे नहीं है। जाहीर है इन पर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने वाले लोग फिर भी बाज नहीं आयेगे कयोकि ये उनकी रोजी रोटी का सवाल है।

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जाति छानबीन समिति का आदेश किया रद्द

 छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जाति छानबीन समिति का आदेश किया रद्द 

(मामला महाराष्ट्र से छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पहले आने का)    

श्रीमती शोभना वाल्दे, ध.प. मधुकर वाल्दे, निवासी रायपुर ने उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति, छत्तीसगढ़, रायपुर द्वारा दिनांक 18.11.2021 के आदेश को चुनौती दी गई, जिसके द्वारा याचिकाकर्ता की महार जाति के रूप में पुष्टि करते समय, जाति छानबीन समिति ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा महार अनुसूचित जाति के संबंध में प्राप्त जाति प्रमाण पत्र कानून के अनुसार जारी नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता अपनी महार जाति के सत्यापन के लिए उचित साक्ष्य प्रस्तुत करने में

Adv Love Kumar Ramteke

विफल रही है और इसलिए तहसीलदार, रायपुर द्वारा 8.9.1992 को जारी किया गया जाति प्रमाण पत्र रद्द कर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने 8.9.1992 को  जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया था और उक्त जाति प्रमाण पत्र के आधार पर उसे कलेक्टर, रायपुर, जिला रायपुर, छत्तीसगढ़ के कार्यालय में सहायक ग्रेड III के पद पर नियुक्त किया गया था और वह अपने कर्तव्यों का पालन कर रही है और उसे महार जाति होने का लाभ भी प्राप्त हुआ है। याचिकाकर्ता के भाई-बहनों को भी सक्षम प्राधिकारी द्वारा महार जाति का स्थायी जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया है। उन्हें सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्थायी जाति प्रमाण पत्र प्रदान किया गया था, याचिकाकर्ता का जाति प्रमाण पत्र बिना किसी उचित सत्यापन के रद्द कर दिया गया था । याचिकाकर्ता ने 18/11/2021 के आदेश को रद्द/स्थगित करने और याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति के स्थायी जाति प्रमाण पत्र के लिए छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (सामाजिक स्थिति का विनियमन प्रमाणन) अधिनियम, 2013 के अंतर्गत हकदार है के लिए याचिका लगाई थी ।

याचिकाकर्ता का मामला यह था कि वह महार जाति से ताल्लुक रखती है, जो एक अनुसूचित जाति है। छत्तीसगढ़ राज्य के पुनर्गठन से पहले उसका जन्म स्थान छत्तीसगढ़ में था। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद से वह स्थायी रूप से छत्तीसगढ़ राज्य में रह रही है। याचिकाकर्ता के पूर्वज भी उसी जाति के थे। पुनर्गठन से पहले वे छत्तीसगढ़ की सीमाओं के भीतर राजनांदगांव में रह रहे थे। उसके माता-पिता के दस्तावेज भी पुष्टि करते हैं कि वे महार जाति से हैं, जो संविधान (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 के तहत मध्य प्रदेश राज्य सूची की प्रविष्टि क्रमांक 24 में है, जो भारत सरकार के राजपत्र अधिसूचना दिनांक 10.8.1950 से स्पष्ट है। इसके बाद भारत सरकार ने इसे संशोधित किया और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सूची संशोधन आदेश, 1956 दिनांक 29.10.1956 की अधिसूचना द्वारा इसे अधिसूचित किया। उक्त सूची में महार जाति को अनुसूची 18 में दर्ज किया गया है। पूर्ववर्ती मध्य प्रदेश राज्य की सूची में महार जाति प्रविष्टि क्रमांक 36 पर स्थित है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार यह जाति अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (संशोधन) अधिनियम, 1976 की सूची में सम्मिलित है। उक्त जाति का उल्लेख पहले ही किया जा चुका है और इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि याचिकाकर्ता महार जाति से संबंधित नहीं है, तथापि, जाति जांच आदेश को चुनौती दी गई है।

समिति ने अवैध रूप से यह माना है कि याचिकाकर्ता ने यह साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए हैं कि उसके माता-पिता और पूर्वज महार जाति के थे और यह साबित करने का दायित्व कि याचिकाकर्ता महार जाति का है, याचिकाकर्ता पर है, जिसे वह साबित करने में विफल रही है। याचिकाकर्ता के पूर्वज महाराष्ट्र के निवासी थे। याचिकाकर्ता के पिता वर्ष 1959 में छत्तीसगढ़ आए थे। किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का घोषित करने के लिए जारी अधिसूचना के अनुसार, दिनांक 10.8.1950 और 6.9.1950 को, जहाँ संबंधित पक्ष का जन्म हुआ था, उसे उस विशेष राज्य के लिए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति माना जाएगा। चूँकि याचिकाकर्ता का जन्म उक्त अधिसूचना के बाद हुआ था, इसलिए उसे छत्तीसगढ़ राज्य का निवासी माना जाएगा। अतः, सत्यापन के बाद, उसका जाति प्रमाण पत्र महार जाति का नहीं माना जा सकता और उसका जाति प्रमाण पत्र रद्द किया जा सकता है।

याचिकाकर्ता के विद्वान वकील लव कुमार रामटेके मो. 9827480450 ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने प्रत्येक दस्तावेज़ प्रस्तुत किया है। उसने माता-पिता के संबंध में भी दस्तावेज़ प्रस्तुत किए हैं और उसके माता-पिता के सभी दस्तावेज़ों में, महार जाति का उल्लेख है। उसके पिता रायपुर में भारतीय डाक विभाग में कार्यरत थे और 30.6.1986 को सेवानिवृत्त हुए। याचिकाकर्ता का जन्म 15.8.1967 को रायपुर में हुआ था, उस समय यह तत्कालीन मध्य प्रदेश राज्य था। इस तरह जाति प्रमाण पत्र रद्द करना अपने आप में अवैध है।

दूसरी ओर, राज्य के विद्वान वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को अनुसूचित जाति महार का जाति प्रमाण पत्र केवल शैक्षिक उद्देश्य से जारी किया गया था। याचिकाकर्ता के पिता मूल रूप से महाराष्ट्र के अकोला तहसील और जिला अकोला गाँव के निवासी थे। चूँकि याचिकाकर्ता के पिता अकोला, महाराष्ट्र के निवासी थे, इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य में उनकी जाति महार नहीं मानी जा सकती। याचिकाकर्ता अपनी सामाजिक स्थिति साबित करने में विफल रही है और सतर्कता प्रकोष्ठ की जाँच रिपोर्ट में अपने पिता और पूर्वजों से संबंधित प्रासंगिक दस्तावेज़ भी प्रस्तुत करने में विफल रही है। इसलिए, सतर्कता प्रकोष्ठ ने पाया कि याचिकाकर्ता महार अनुसूचित जाति से संबंधित नहीं है। यह दायित्व उस व्यक्ति का है जो किसी विशेष जाति का होने का दावा कर रहा है। यह उस व्यक्ति का है जो उक्त जाति के लाभ का दावा कर रहा है कि वह अपनी जाति के संबंध में साक्ष्य दे। यह प्रस्तुत किया गया है कि याचिकाकर्ता 1950 से पहले छत्तीसगढ़ राज्य का कोई भी दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में विफल रही है जो दर्शाता हो कि उसके पूर्वज 1950 से पहले छत्तीसगढ़ राज्य के थे। जांच रिपोर्ट के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारी केवल याचिकाकर्ता द्वारा दायर किए गए दस्तावेज़ों से ही प्रभावित थे। यद्यपि याचिकाकर्ता के पूर्वज महाराष्ट्र राज्य के हैं, याचिकाकर्ता का जन्म स्थान छत्तीसगढ़ में है, अर्थात, वर्ष 1967 में तत्कालीन मध्य प्रदेश राज्य में। मध्य प्रदेश राज्य की सूची में महार जाति शामिल थी और इस प्रकार उसे महार जाति के संबंध में एक प्रमाण पत्र जारी किया गया था। इसके बाद, उसे रोजगार के उद्देश्य से भी महार जाति का प्रमाण पत्र दिया गया।

अभिलेख में ऐसा कुछ भी नहीं है जो दर्शाता हो कि याचिकाकर्ता महार जाति से संबंधित नहीं है या उसका जन्म स्थान छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर में नहीं है। इसलिए, जाति छानबीन समिति द्वारा दर्ज किया गया यह निष्कर्ष कि उसे महार जाति का लाभ नहीं दिया जाएगा, विधि के अनुरूप प्रतीत नहीं होता। चूँकि याचिकाकर्ता का जन्म तत्कालीन मध्य प्रदेश (अब छत्तीसगढ़) राज्य के रायपुर में हुआ था, इसलिए उक्त सूची में महार जाति शामिल है। भारत सरकार द्वारा दिनांक 12.8.2023 को जारी एक हालिया अधिसूचना में प्रविष्टि संख्या 33 में महार, महारा, माहरा, मेहर और मेहरा को संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश संशोधन अधिनियम, 2023 में शामिल किया गया है, इस तरह उक्त राजपत्र अधिसूचना के आधार पर, अब याचिकाकर्ता महार जाति का लाभ पाने की हकदार है।

इस तरह उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति, छत्तीसगढ़, रायपुर के आदेश को रद्द किया गया है ।

Blackmailer Journalism, Fourth Pillar of Democracy

ब्लैकमेलर पत्रकारिता का कलंक

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता पर लगती दीमक

योगेश प्रसाद

पत्रकारो द्वारा ब्‍लेकमेलिंग "मामला बहुत गंभीर है और राज्य मशीनरी को इसका संज्ञान लेना चाहिए और ऐसे पत्रकारों का लाइसेंस रद्द करना चाहिए, यदि वे अपने लाइसेंस की आड़ में इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त पाए जाते हैं। राज्य सरकार के पास ऐसी मशीनरी है जो मामले के सही पाए जाने पर इस तरह की गतिविधियों को रोकने में सक्षम है।" इलाहाबाद उच्‍च न्यायालय।[1]  

सरकारी अमले से लेकर गैर सरकारी सैक्टर आज पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग से परेशान है। ये पीड़ा इतनी बढ़ गई है कि समाज हर पत्रकार को हेय दृष्टि से देखने लगा है। ब्लैकमेलिंग के शिकार लोगों/विभागों की शिकायत/फरियाद सुनने के लिए आजतक कोई भी संगठन सामने नहीं आया। कोई भी पत्रकार संगठन यदि आगे आये और ब्लैकमेलिंग करने वाले पत्रकारों को सजा दिलवाने का काम करे तो इस तरह की पहल से पत्रकारिता की लुटती इज्जत को बचाया जा सकता है। भड़ास मीडिया।[2]

कानपूर प्रेस कलब ने 17 मई 2024 पुलिस कमिश्नर को बकायदा पत्र लिखकर ब्लेक मेलिंग करने वाले पत्रकार के खिलाफ कार्यवाही करने को कहा। पुलिस कमीशनर कानपूर उत्‍तरप्रदेश ।[3]

समाज में पत्रकारों का चोला ओढ़कर केवल अपराध करने वाले ही नही है अब पत्रकारिता को कलंकित करने वाले कथित पत्रकार नकली पीडीएफ बनाकर व्हाट्सएप ग्रुपों में डालकर समाज में भय कारित कर धन उगाही कर रहे है. ऐसे पत्रकार गांव से लेकर शहर तक हजारों बार अपनी फजीहत कराने के बाद भी सीना ताने हर रोज उन्हीं कार्यालयो में खडे़ मिलते हैं जहां उनको तमाम उपाधियों से नवाजा जा चुका होता है. ग्राम सभा के प्रधानों से लेकर विधायकों, सांसदों  की गालियां उनके लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं है. ऐसे धन उगाही के बहुतेरे मामलो में पीड़ितों ने ऐसे कथित पत्रकारों को गाली देते हुए पीटा भी है लेकिन नकली पीडीएफ का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा है। भारतीय बस्‍ती डाट काम.[4]

पत्रकारिता को लेकर बहुत सारी बातें होने लगी है बहुत सारे सवाल भी सामने आए हैं। जिसका समय रहते जवाब ढूंढना होगा। आज के समय में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया को देखा जाता है और मीडिया को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका पत्रकार निभाते हैं। एक समय था जब पत्रकारिता को एक पाक और साफ पेशे में गिना जाता था। लेकिन बहुत सारी ऐसी घटनाएं  हो रही हैं जिससे पता चलता है कि पत्रकारिता के पेशे में दीमक लग चुकी हैं। 

अगर आपको जानना है कि पत्रकारों के बारे में लोग क्या राय रखते हैं तो आप एक रियल एस्टेट कंपनी के मालिक से पूछिए, खनन उद्योग में लगे लोगों से पूछिए, पूछिए उनसे जो ईट उत्पादन के काम में लगे हुए हैं, यह जानने की कोशिश कीजिए कि स्थानीय दुकानदार, सरपंच, थानेदार, तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर पत्रकारों के बारे में क्या राय रखते हैं। पी डब्लू डी के अधिकारियों से पूछिए पत्रकारों के बारे में उनकी क्या राय है। ज्यादातर लोगों के लिए पत्रकारों के प्रति कटु अनुभव रहता है। बहुत सारे लोगों को अपनी नौकरी, पेशे, व्यवसाय को बचाने के लिए पत्रकारों को हफ्ता देना पड़ता हैं। यह मसला इतना गंभीर है की अगर इसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया। तो स्थिति विकट हो सकती है। लोग कानून हाथ में ले सकते हैं। 

पत्रकार को जवाबदेही के आधार पर दो भागों विभाजित किया जा सकता है1

ग्रुप ए.          स्थापित टी वी चैनल अखबार आदि के अधिकृत पत्रकार ऐसे पत्रकार अपने टीवी चैनल एवं अखबार संस्‍थान के प्रति जवाबदेह होते है। इनके गलत खबर चलाने पर शासन या जनता के द्वारा आपत्ति करने पर संस्‍थान एवं पत्रकार पर प्रेस एंड रजिस्‍ट्रेशन ऑफ बुक्‍स एक्‍ट 1867 द इंडियन प्रेस काउंसिल एक्‍ट 1978 के अंर्तगत कार्यवाही की जा सकती है। इसलिए ये ज्यादातर पुरी पुष्टि के बाद खबर चलाते है।

ग्रुप बी.         पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल वाले गैर पंजीकृत पत्रकार ऐसे पत्रकार किसी के लिए जवाबदेह नहीं होते है। चूकि इनका कोई पंजीकरण अनिवार्य नहीं है इसलिए ये ज्यादातर पुष्टि के बगैर मनमाने ढंग से समाचार चलाते है। चूकि ये स्थानीय समाचार पत्र, पोर्टल या यूट्यूब चैनल पर पत्रकारिता करते है इसलिए इन्‍हे पत्रकारिता के कानून का भय नहीं होता है।

पत्रकारिता को लेकर कोई मापदंड कोई ट्रेनिंग कोई शिक्षा या कोई परीक्षा नहीं होती है।

कोई भी व्यक्ति जिसके पास एक मोबाइल और नेट पैक है वह मुफ्त में वेबसाइट निर्माण करके, ब्लॉग्स, यूट्यूब चैनल बना करके अपने पत्रकार करियर का शानदार आगाज कर सकते हैं। देखा जाता है कि ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में पत्रकारिता वे लोग कर रहे हैं जिन्होंने उस इलाके में न्यूज़ पेपर बांटने की जिम्मेदारी ली हुई है, वही समाचार का लेनदेन भी करते हैं, यहां तक की विज्ञापन लाने की जिम्मेदारी भी उन पर होती है। वह स्थानीय तौर पर अपने आप को पत्रकार बता कर गौरवान्वित होते हैं। एक समय था जब पत्रकारिता करना बहुत कठिन था। आपको बहुत सारे संसाधन जुटाने पड़ते। कर्मचारी रखना पड़ता या फिर किसी संस्थान में पत्रकार की नौकरी के लिए गुहार लगाना पड़ता तब पत्रकार बन पाते थे।

आइये जानने की कोशिश करते है कि आज कल ज्‍यादातर लोग पत्रकार क्‍यो बनना चाहते है। लोकतंत्र को ध्यान में रखते हुए या कहें लोकतंत्र के चौथे स्तंभ बनने की खातिर बहुत सारे लोग पत्रकारिता में हाथ आजमाने लगे हैं। इसके कुछ कारण है जिनकी चर्चा यहां पर करना जरूरी है। 

A. अच्छी कमाई का जरिया- बहुत सारे लोग पत्रकारिता में इसलिए आते हैं क्योंकि उन्‍हे लगता है कि कम समय में बहुत सारे पैसे यहां पर कमाए जा सकते हैं और ऐसे बहुत सारे पत्रकारों की लिस्ट हैं राष्ट्रीय स्तर पर जो करोड़ों अरबो के मालिक हैं। हालांकि यह रुपए उनके पास कैसे आए हैं यह जांच का विषय है।

B. फेमस होने की चाह- बहुत सारे लोग पत्रकारिता में सिर्फ इसलिए आते हैं क्योंकि इस क्षेत्र में आने के बाद बहुत जल्दी प्रसिद्ध होने की आशा होती है। परिचय में जब आप पत्रकार बताते हैं तो लोग आपकी बातों को गौर करने लगते हैं। यह उन लोगों के लिए बड़ी बात है जिनकी बातों को कोई गौर नहीं करता है।

C. राजनीति और ब्यूरोक्रेसी में पहुंच- पत्रकारिता में आने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि आपका संबंध सीधे अपने कस्बे के विधायक मंत्री नेता अथवा बड़े अफसर से बन जाता है. बड़े नेता और अफसर के सामने जो व्यक्ति खड़े होने की भी योग्यता नहीं रखता। वह पत्रकार बनकर उस योग्यता को पा लेता है और अपनी ज़रूरतें बहुत आसानी से पूरी करता हैं । 

D. समाज सेवा का दिखावा कुछ लोग इस पेशे में इसलिए आना चाहते है कि उनकी प्रतिष्‍ठा समाज सेवक त्‍याग मूर्ती की बने।

पत्रकारिता पर दीमक कैसे लग रहा है

मीडिया पत्रकारों के हाथों में है और जब पत्रकारिता में भ्रष्टाचार की बात आती है तो सारे पत्रकार टूट पड़ते हैं। एक हो जाते हैं। और ऐसे पत्रकार को पत्रकार मानने से ही इनकार करते हैं। कहते हैं कि फर्जी पत्रकार है। यानी जो पत्रकार भ्रष्टाचार करता हुआ पकड़ा नहीं जाता है वह पत्रकार होता है और जो पत्रकार पकड़ा जाता है वह फर्जी पत्रकार हैं, पत्रकारों की भाषा में।  ऐसे ही कुछ कारणों से पत्रकारिता पेशे पर कलंक लगता जा रहा है, इन्हें संरक्षण मिलता है। जिस पर चर्चा करना यहां पर जरूरी है। खास तौर पर ग्रुप बी के पत्रकार के बारे में। पत्रकार आज इतने ताकतवर हो चुके है कि वे सरकार की छवि को बिगाड़ कर उसे सत्‍ता से बेदखल कर सकते है। या सत्‍ता पर काबिज करवा सकते है।

ब्लैकमेलिंग और अवैध वसूली का धंधा 

ग्रुप बी के वेब पोर्टल और यूट्यूब वाले कुछ पत्रकार ब्लैकमेलिंग और अवैध वसूली के धंधे में लगे हुए दिखाई पड़ते हैं। हाल ही में एक घटना का जिक्र में करना चाहूंगा एक पत्रकार ने अपनी वेबसाइट में न्यूज़ कवर किया की बड़े पैमाने में अवैध खनन किया जा रहा है। 200 डंपर मुरूम को डम्प किया गया है। जिसमें वहां के कलेक्टर से लेकर एसडीएम तहसीलदार तक मिले हुए हैं। डम्प करने वाले व्यक्ति के नाम को उजागर किया गया, प्रशासन पर भी लांछन लगाया गया। जब अधिकारी इसकी जांच के लिए पहुंचे तो ज्ञात हुआ कि यह सारा काम परमिशन से वैद्य तरीके से किया जा रहा था। पूछताछ करने पर ज्ञात हुआ कि उस पत्रकार ने ठेकेदार से ₹2 लाख की मांगा था और नहीं देने पर बदनाम करने की धमकी दे रहा था। इस तरह की घटना रोज घटती है। अगर आप गूगल में पत्रकार ब्लैक मेलिंग अवैध वसूली टाइप करके सर्च करेंगे तो आपको लाखों समाचार एक ही स्थान पर मिल जाएंगे। ऐसे पत्रकारों के कारण शासन की छवि को भी नुकसान पहुँचता है।

कई कर्मचारी और अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि उन्हें अपनी बदनामी के डर से ऐसे पत्रकारों को हफ्ता देना पड़ता है। वे यह भी कहते हैं कि पत्रकारों के खिलाफ कड़े कानून नहीं होने के कारण थाने में शिकायत करने पर या कोर्ट में जाने पर भी कोई राहत नहीं मिलती है। इस कारण ऐसे पत्रकारों के हौसले बुलंद रहते हैं और वह इस तरह की अवैध गतिविधि करते रहते हैं। 

यह जांच का विषय होना चाहिए की‌ पत्रकार चार-पांच सालों में करोड़ों की संपत्ति के मालिक कैसे हो जाते हैं ? यह विषय ध्यान देने योग्य है कि एक पोर्टल या यूट्यूब चलाने वाला पत्रकार जिसके व्यूज के आधार पर या हिट के आधार पर उसे पेमेंट मिलता है। यह पेमेंट इतना कम रहता है कि वह अपना केवल घर परिवार हीं चला सकता। विज्ञापन भी इतनी कम मात्रा में मिलता है कि उसकी विलासी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाती। लेकिन इन पत्रकारों के पास पक्के मकान, गाड़ियां, शानदार कार्यालय, कर्मचारी होते हैं। जाहिर है इसके पीछे ब्लैक मेलिंग और उगाही का नेटवर्क काम करता है। यह बातें ग्रुप बी के पत्रकारों में ज्‍यादा देखने को मिलती है।

ऐसे ही एक याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेल करने वाले पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए। 13 जून 2024 को सुनाए गए इस निर्णय में हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य मशीनरी को उन पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए जो अपने लाइसेंस की आड़ में साधारण व्यक्ति को ब्लैकमेल करने जैसी असामाजिक गतिविधियों में शामिल हैं।

दरअसल इलाहबाद हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में मांग की गई थी कि ब्लैकमेलिंग के आरोपों का सामना कर रहे पत्रकार, उसके दो साथियों एवं एक समाचार पत्र वितरक के विरुद्ध कार्रवाई को रद्द किया जाए। इसी मांग को ठुकराते हुए जस्टिस शमीम अहमद की पीठ ने कहा कि राज्य को पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलिंग जैसी असामाजिक गतिविधियों में लिप्त पाए जाने वाले पत्रकारों के लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए।

मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से उपस्थित जी.ए. तथा अपर महाधिवक्ता ने कहा कि पूरे राज्य में एक गिरोह सक्रिय है, जिसमें पत्रकार शामिल हैं। यह गिरोह समाचार पत्रों में आम आदमी के विरुद्ध सामग्री छापने तथा समाज में उनकी छवि खराब करने की आड़ में उसे ब्लैकमेल कर आर्थिक लाभ तथा अन्य लाभ प्राप्त करने जैसी असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त है।

इस पर कोर्ट ने कहा, “मामला बहुत गंभीर है और राज्य मशीनरी को इसका संज्ञान लेना चाहिए। ऐसे पत्रकारों का लाइसेंस रद्द करना चाहिए, यदि वे अपने लाइसेंस की आड़ में इस तरह की असामाजिक गतिविधियों में काम करते पाए जाते हैं। राज्य सरकार के पास ऐसी मशीनरी है जो इस तरह की गतिविधियों को रोकने में सक्षम है, अगर मामला सही पाया जाता है।”[5]

टीवी चैनल जैसे बड़े संस्थानों को तो लाइसेंस की जरूरत पड़ती है। लेकिन यूट्यूब तथा पोर्टल चलाने वाले पत्रकारों को किसी प्रकार की कोई लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ती है। यह इस तरह के अवैध काम धड़ल्ले से करते हैं।

लोकतंत्र के इस स्वयंभू स्तंभ को ठीक से चलाने के लिए शासन को कुछ निर्णय लेने चाहिए। 

1. बिना वैद्य सबूत के सूचना के समाचार प्रकाशन/प्रसारण करने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। क्योंकि इससे समाज में पीड़ित व्यक्ति की छवि खराब होती है, जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती।

2. पत्रकारों के अपने आय के साधन का खुलासा करना चाहिए कि उनके पास यह संपत्ति कहां से आ रही है। और वह अपने संसाधन को चलाने के लिए पैसे कहां से ले रहे हैं?

3. ऐसे व्यक्ति जो पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं उनकी आजीवन पत्रकारिता करने में रोक लगा देना चाहिए।

4. मान हानि के दावे के संबंध में बने कानून को कड़ाई से लागू करना चाहिए और सीमित समय में ऐसे पत्रकारों के खिलाफ तुरंत निर्णय आना चाहिए. 

5. पत्रकारिता प्रारंभ करने के लिए किसी योग्यता का निर्धारण करना चाहिए. परीक्षा पास करने के बाद ही पत्रकारिता करने की अनुमति मिलनी चाहिए.

लेखक पत्रकारिता एवं जन संचार विषय के शोधार्थी है।



डॉ आंबेडकर कल आज और कल - संजीव खुदशाह

अंबेडकर जयंती 14 अप्रैल पर विशेष

डॉ अंबेडकर आज और कल

संजीव खुदशाह

14 अप्रैल 1891 को डॉक्टर अंबेडकर का जन्म हुआ, यानी डॉ आंबेडकर की 132 वी जयंती है। वैसे तो उनका जन्म मध्यप्रदेश के महू सैनिक छावनी में हुआ था। लेकिन उनका परिवार अंबावडे गांव जो कि वर्तमान में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में है, उससे संबंधित था। डॉक्टर अंबेडकर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे और साहू जी महाराज के फेलोशिप की बदौलत उन्होंने विदेश से भी जाकर शिक्षा अर्जित की थी। जीवन में उन्हे कई बार जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा।

एक समय ऐसा था जब भारत में दलितों को सार्वजनिक स्‍थानों से पानी पीने तक का अधिकार नहीं था। वे सार्वजनिक तालाबों, कुओं में पानी नहीं पी सकते थे। डॉक्टर अंबेडकर ने 20 मार्च 1927 को पानी पीने के अधिकार के लिए आंदोलन किया जिसे सामाजिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

दरअसल महाराष्‍ट्र कोलाबा जिले के महाड़ में स्थित चवदार तालाब में ईसाई, मुसलमान, पारसी, पशु, यहाँ तक कि कुत्ते भी तालाब के पानी का उपयोग करते थे लेकिन अछूतों को यहाँ पानी छूने की भी इजाजत नहीं थी। डॉं अंबेडकर ने अपने साथियों के साथ उस तालाब में जाकर एक चुल्‍लु पानी पिया । चारों ओर सवर्ण हिन्दुओं का विरोध हाने लगा डॉं अंबेडकर के काफिले के उपर लाठी डंडे से हमले किया गये लोग जख्‍मी हुऐ । बाद में उस तलाब को ब्राम्‍हणों द्वारा तीन दिनों तक दूध गौमूत्र गोबर मंत्रोपचार यज्ञ हवन से प्‍युरिफाई किया गया।

आजादी के पहले महात्मा गांधी जब एक ओर नमक (नमक सत्‍याग्रह 1930) के लिए लड़ाई कर रहे थे वहीं दूसरी ओर डॉक्टर अंबेडकर वंचित जातियों के लिए पीने के पानी की लड़ाई (1927) लड़ रहे थे। एक ओर जब छोटी-छोटी रियासतें ऊंची जाति के लोग अपनी हुकूमत बचाने के लिए अंग्रेजों से संघर्ष कर रहे थे। तो डॉक्टर अंबेडकर इन रियासतों ऊंची जातियों से पिछड़ी जातियों के जानवर से बदतर बर्ताव, शोषण से मुक्ति की बात कर रहे थे।  महात्मा फुले के बाद वे ही ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पूरे विश्व पटल में जातिगत शोषण का मुद्दा बड़ी ही मजबूती के साथ पेश किया। दरअसल दलित और पिछड़ी वंचित जातियों का मुद्दा विश्व पटल पर तब गुंजा जब उन्होंने गोलमेज सम्मेलन के दौरान जातिगत, आर्थिक और राजनीतिक शोषण होने की बात रखी। बाद में इन मुद्दों को साइमन कमीशन में जगह मिली। पहली बार दबे कुचले वंचित जातियों को अधिकार देने की बात हुई।

डॉक्टर अंबेडकर ने भारत के हर वर्ग के लिए काम किया। यदि भारत का संविधान देखें तो उसमें गैर बराबरी के लिए कोई स्थान नहीं है। हर वह व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति से ताल्लुक रखता हो अगर वंचित है, पीड़ित है, तो संविधान उसे न्याय और ऊपर उठने में मदद करता है। सदियों से पीड़ित दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, भारत की आधी आबादी महिला वर्ग के उत्थान की खातिर उन्होंने संविधान में क्लॉज बनाएं। संविधान सभा के 248 सदस्यों ने प्रारूप में प्रस्‍तुत जिन अनुच्छेदों को सर्वसम्मति से पारित किया, वही आज भारतीय संविधान का हिस्सा है। दरअसल भारत का संविधान यह बताता है कि हमारे पूर्वज जो संविधान सभा के सदस्य थे, पूरे भारत से चुनकर आए थे, वह किस प्रकार के भारत का कल्पना कर रहे थे। संविधान उसी कल्पना का मूर्त रूप है।

डॉक्टर अंबेडकर संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में कहते हैं कि संविधान कैसा लिखा गया है, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि संविधान को किस तरीके से लागू किया जा रहा है। क्या हमारी मशीनरी, हमारा प्रशासन संविधान की मंशा अनुसार भेदभाव रहित लोकतांत्रिक व्यवस्था दे पा रही है? यह एक प्रश्न है जिसे डॉक्टर अंबेडकर के इस मंशा के बरअक्स देखा जा सकता है।

 क्या था डॉक्टर अंबेडकर का ड्रीम प्रोजेक्ट?

समतामूलक भेदभाव रहित समाज की स्थापना के लिए बाबा साहब ने कई सपने देखे थे। इनमें से दो स्‍वप्‍न महत्‍वपूर्ण थे जिन्हें उनका ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है।

पहला है जाति का उन्मूलन, दूसरा है सबको प्रतिनिधित्व।

जाति का उन्मूलन यानी सभी जाति बराबर, बिना भेदभाव के जाति विहीन समाज की स्थापना। वे इस जाति प्रथा को खत्म करना चाहते थे। बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का कहना था कि हमारे देश की तरक्की मैं सबसे बड़ा रोड़ा हमारी जाति व्यवस्था है, ऊंच नीच है।

आज पूरे देश की जिम्मेदारी है कि वह डॉ आंबेडकर के इस ड्रीम प्रोजेक्ट जाति के उन्मूलन के लिए कदम बढ़ाए और उनके इस सपने को पूरा करें। तभी हमारा देश संगठित और विकसित हो पाएगा।

भारत के लोकतंत्र के चार स्तंभ है न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया। क्या इन स्तंभों में डायवर्सिटी है ? क्या सभी वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व इन स्तंभों में है? इसका जवाब है लोकतंत्र के इन स्तंभों में कुछ ही जातियों का दबदबा है। इस कारण तमाम वंचित जातियों, महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है। उनकी बातें, उनकी परेशानियां वहां तक नहीं पहुंच पाती है।

बाबा साहब कहते हैं कि सिर्फ सरकारी नौकरी में प्रतिनिधित्व देने से काम नहीं बनेगा। इनको लोकतंत्र के चारों स्तंभों में बराबर का प्रतिनिधित्व देना पड़ेगा। तब कहीं जाकर देश के सबसे अंतिम पंक्ति के व्यक्तियों का भला हो सकेगा और सबसे अंतिम व्यक्ति को यह महसूस होगा कि वह इस देश का हिस्सा है। देश उसके लिए सोचता है। आज कितने बेघर, भूमिहीन, बेरोजगार , भेदभाव से पीड़ित लोग हैं उन तक शासन-प्रशासन से मदद की जरूरत है।

भारत के फिर से गुलाम होने का भय

डॉ अंबेडकर देश के गद्दारों से भार के फिर से गुलाम होने की आशंका व्‍यक्त करते है। वे संविधान सभा के समापन भाषण में कहते है कि यह बात नहीं है कि भारत कभी एक स्वतंत्र देश नहीं था। विचार बिंदु यह है कि जो स्वतंत्रता उसे उपलब्ध थी, उसे उसने एक बार खो दिया था। क्या वह उसे दूसरी बार खो देगा? यही विचार है जो मुझे भविष्य को लेकर बहुत चिंतित कर देता है। यह तथ्य मुझे और भी व्यथित करता है कि न केवल भारत ने पहले एक बार स्वतंत्रता खोई है, बल्कि अपने ही कुछ लोगों के विश्वासघात के कारण ऐसा हुआ है।

सिंध पर हुए मोहम्मद-बिन-कासिम के हमले से राजा दाहिर के सैन्य अधिकारियों ने मुहम्मद-बिन-कासिम के दलालों से रिश्वत लेकर अपने राजा के पक्ष में लड़ने से इनकार कर दिया था। वह जयचंद ही था, जिसने भारत पर हमला करने एवं पृथ्वीराज से लड़ने के लिए मुहम्मद गोरी को आमंत्रित किया था और उसे अपनी व सोलंकी राजाओं को मदद का आश्वासन दिया था। जब शिवाजी हिंदुओं की मुक्ति के लिए लड़ रहे थे, तब कोई मराठा सरदार और राजपूत राजा मुगल शहंशाह की ओर से लड़ रहे थे।

जब ब्रिटिश सिख शासकों को समाप्त करने की कोशिश कर रहे थे तो उनका मुख्य सेनापति गुलाबसिंह चुप बैठा रहा और उसने सिख राज्य को बचाने में उनकी सहायता नहीं की। सन् 1857 में जब भारत के एक बड़े भाग में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वातंत्र्य युद्ध की घोषणा की गई थी तब सिख इन घटनाओं को मूक दर्शकों की तरह खड़े देखते रहे।

क्या इतिहास स्वयं को दोहराएगा? यह वह विचार है, जो मुझे चिंता से भर देता है। इस तथ्य का एहसास होने के बाद यह चिंता और भी गहरी हो जाती है कि जाति व धर्म के रूप में हमारे पुराने शत्रुओं के अतिरिक्त हमारे यहां विभिन्न और विरोधी विचारधाराओं वाले राजनीतिक दल होंगे। क्या भारतीय देश को अपने मताग्रहों से ऊपर रखेंगे या उन्हें देश से ऊपर समझेंगे? मैं नहीं जानता। परंतु यह तय है कि यदि पार्टियां अपने मताग्रहों को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता संकट में पड़ जाएगी और संभवत: वह हमेशा के लिए खो जाए। हम सबको दृढ़ संकल्प के साथ इस संभावना से बचना है। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी है।

अखण्‍ड भारत के लिए उनके विचार

डॉक्टर अंबेडकर कहते है की आज का विशाल अखण्‍ड भारत धर्मनिरपेक्षता समानता की बुनियाद पर खड़ा है, इसकी अखण्‍डता को बचाये रखने के लिए जरूरी है की इसकी बुनियाद को मजबूत रखा जाय। वे राजनीतिक लोकतंत्र के लिए सामाजिक लोकतंत्र महत्‍वपूर्ण और जरूरी मानते थे। भारत में जिस प्रकार गैरबराबरी है उससे लगता है कि समाजिक लोकतंत्र आने में अभी और समय की जरूरत है।

संविधान सभा के समापन भाषण में वे कहते है। ‘’तीसरी चीज जो हमें करनी चाहिए, वह है कि मात्र राजनीतिक प्रजातंत्र पर संतोष न करना। हमें हमारे राजनीतिक प्रजातंत्र को एक सामाजिक प्रजातंत्र भी बनाना चाहिए। जब तक उसे सामाजिक प्रजातंत्र का आधार न मिले, राजनीतिक प्रजातंत्र चल नहीं सकता। सामाजिक प्रजातंत्र का अर्थ क्या है? वह एक ऐसी जीवन-पद्धति है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जीवन के सिद्धांतों के रूप में स्वीकार करती है।"

उनके अनुसार धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह है कि राजनीति से धर्म पूरी तरह अलग होना चाहिए। राजनीति और धर्म के घाल मेल से भारत की अखण्‍डता को खतरा हो सकता है। वे भारत में नायक वाद को भी एक खतरा बताते है संविधान सभा के समापन भाषण में कहते है कि दूसरी चीज जो हमें करनी चाहिए, वह है जॉन स्टुअर्ट मिल की उस चेतावनी को ध्यान में रखना, जो उन्होंने उन लोगों को दी है, जिन्हें प्रजातंत्र को बनाए रखने में दिलचस्पी है, अर्थात् ''अपनी स्वतंत्रता को एक महानायक के चरणों में भी समर्पित न करें या उस पर विश्वास करके उसे इतनी शक्तियां प्रदान न कर दें कि वह संस्थाओं को नष्ट करने में समर्थ हो जाए।''

उन महान व्यक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने में कुछ गलत नहीं है, जिन्होंने जीवनर्पयत देश की सेवा की हो। परंतु कृतज्ञता की भी कुछ सीमाएं हैं। जैसा कि आयरिश देशभक्त डेनियल ओ कॉमेल ने खूब कहा है, ''कोई पुरूष अपने सम्मान की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता, कोई महिला अपने सतीत्व की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकती और कोई राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता की कीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता।'' यह सावधानी किसी अन्य देश के मुकाबले भारत के मामले में अधिक आवश्यक है, क्योंकि भारत में भक्ति या नायक-पूजा उसकी राजनीति में जो भूमिका अदा करती है, उस भूमिका के परिणाम के मामले में दुनिया का कोई देश भारत की बराबरी नहीं कर सकता। धर्म के क्षेत्र में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है, परंतु राजनीति में भक्ति या नायक पूजा पतन और अंतत: तानाशाही का सीधा रास्ता है।‘’

जाहिर  है डॉं अंबेडकर की चिंता केवल समुदाय विशेष के लिए नही है वे देश को प्रबुध्‍द एवं अखण्‍ड देखना चाहते है। उनके ये विचार कल की तरह आज भी उतने की प्रासंगिक है। आशा ही नही पूर्ण विश्‍वास है कि देश उनके चिंतन से सीख लेता रहेगा और तरक्‍की करता रहेगा।


Dr Ambedker Sanjeev Khudshah
Publish on Navbharat  13 April 2025